दिल्ली पर अधिकार और एलजी की शक्तियों में विस्तार को लेकर भाजपा व केजरीवाल में फिर शुरू हुई तकरार

एक्ट में हुए संशोधन के अनुसार दिल्ली में सत्तासीन राज्य सरकार को अब विधायिका से जुड़े फैसलों को उपराज्यपाल के पास 15 दिन पहले देना होगा, इतना ही नहीं, किसी भी प्रशासनिक फैसलों को करीब एक सप्ताह पहले मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजना होगा

दिल्ली पर अधिकार और एलजी की शक्तियों में विस्तार को लेकर भाजपा व केजरीवाल में फिर शुरू हुई तकरार
दिल्ली पर अधिकार और एलजी की शक्तियों में विस्तार को लेकर भाजपा व केजरीवाल में फिर शुरू हुई तकरार

Politalks.News/NewDelhi. “जब हम दिल्ली में रहते हैं तो हमारी चलेगी, भले ही तुम्हारी चुनी हुई सरकार क्यों न हो, बीच-बीच में तुम हमसे आगे बढ़ने की कोशिश करते हो, तभी हमें यह कदम उठाना पड़ता है.”- केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली की केजरीवाल सरकार को पिछले काफी समय से यही समझाने का प्रयास कर रही है. लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार कहां मानने वाली है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पिछले कई वर्षों से कहते आ रहे हैं कि, ‘दिल्ली में उनका अधिकार है, भाजपा सरकार हमारे कामों में अड़ंगा डालती है.’

अब एक बार फिर दिल्ली में पहला अधिकार किसका है, इसको लेकर भाजपा और केजरीवाल सरकार के बीच ठन गई है. आइए अब आपको बताते हैं पूरा मामला क्या है. बता दें कि दिल्ली के उपराज्यापल अनिल बैजल को और अधिक अधिकार देने वाले बिल को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. ‘गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी‘ दिल्ली एक्ट में कुछ संशोधन किए हैं. इस फैसले के बाद दिल्ली विधानसभा से अलग भी कुछ फैसलों पर उपराज्यपाल का अधिकार होगा. ऐसे में जाहिर है कि केजरीवाल सरकार को कुछ फैसलों के लिए उपराज्यपाल की अनुमति हर हाल में लेनी होगी.

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संशोधन के तहत दिल्ली में सत्तासीन राज्य सरकार को अब विधायिका से जुड़े फैसलों को उपराज्यपाल के पास 15 दिन पहले देना होगा. इतना ही नहीं, किसी भी प्रशासनिक फैसलों को करीब एक सप्ताह पहले मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजना होगा. आपको बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली के उपराज्यपाल को कई अधिकार मिले हुए हैं. इन्हीं अधिकारों को लेकर केजरीवाल सरकार कई बार विरोध जता चुकी है. दूसरी ओर केंद्र सरकार का कहना है कि अनिल बैजल के अधिकार बढ़ाने का मकसद है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार से उनका टकराव कम हो सके.

2015 से जारी है केंद्र और केजरीवाल के बीच घमासान

देश की राजधानी दिल्ली पर अधिकारों को लेकर लगभग 6 वर्षों से केंद्र सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच घमासान चला आ रहा है. बता दें कि वर्ष 2015 में तीसरी बार पूर्ण बहुमत से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के साथ ही आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के बीच जंग जारी है. मालूम हो कि केंद्र और केजरीवाल सरकार के बीच विवाद दिल्ली हाईकोर्ट से होता हुआ सर्वोच्च अदालत तक भी पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को नसीहत के साथ कुछ प्रावधान भी दिए थे, जिसके बाद मामला शांत हुआ था.

दिल्ली सरकार के फैसले और आदेश को पलटने और खारिज करने का अधिकार है उपराज्यपाल को

संविधान की ‘धारा 239 एए’ के मुताबिक, दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सलाह मानने के लिए उपराज्यपाल बाध्य नहीं हैं. वहीं देश के अन्य राज्यों में राज्यपाल चुनी हुई सरकार के फैसले मानने के लिए बाध्य होते हैं. दरअसल, केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली में हालात ठीक अन्य राज्यों के विपरीत हैं. दिल्ली में उपराज्यपाल जब चाहें दिल्ली में सत्तासीन राज्य सरकार के फैसले और आदेश पलट सकते हैं या उसे खारिज भी कर सकते हैं. वहीं दिल्ली पुलिस भी केंद्र सरकार के अंडर में आती है, ऐसे में कानून व्यवस्था का मसला भी केंद्र सरकार के अधीन आता है. दिल्ली में सरकार चलाने वाली सरकारें लगातार दिल्ली पुलिस को राज्य के अधीन लाने की मांग करती रहीं हैं.
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गौरतलब है कि हाल ही में हुए दिल्ली दंगों के मामलों में वकील तय करने में उपराज्यपाल और केजरीवाल के बीच टकराव देखा गया. कोरोना संकट काल के दौरान दिल्ली के अस्पतालों में बाहरियों के इलाज पर रोक लगाने के दिल्ली सरकार के फैसले को उपराज्यपाल अनिल बैजल ने पलट दिया था, उस समय बैजल ने तर्क दिया था कि इससे समानता, जीवन जीने के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा था. इसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है. इसके बाद उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के संबंधों में खटास देखी गई थी.

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