उत्तर प्रदेश की राजनीति में लेफ्ट पार्टियां (वामदल) हाशिए पर आ खड़ी हुई हैं. कभी यूपी की राजनीति का केंद्र बिन्दु रहने वाली लेफ्ट पार्टियां (वाम दल) 1991 के बाद एक सांसद तक को जिता कर दिल्ली नहीं भेज पाईं. स्थिति यह है कि आज सीपीआई के अलावा कोई यहां से लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारने की स्थिति में भी नहीं हैं. सीपीआई ने तीन सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं और सात से आठ सीटों पर प्रत्याशियों की घोषित करने जा रहे हैं. यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं.
आजादी के बाद की बात करें तो 1957 से 1991 के बीच हुए लोकसभा चुनावों में यूपी से वाम दल (खासकर, सीपीआई और सीपीआईएम) के छह प्रत्याशी तक जीत दिल्ली पहुंचे थे. सीपीआई का आखिरी सांसद विश्वनाथ शास्त्री 1991 में गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीते. वहीं सीपीआईएम के आखिरी सांसद के रूप में सुभाषिनी अली ने 1989 के आम चुनाव में कानपुर से जीत दर्ज की. 1989 में लेफ्ट पार्टियां जनता दल के साथ गठबंधन में मैदान में उतरी थीं और उसी चुनाव में सीपीआई के राम सजीवन ने बांदा लोकसभा सीट से जीत का परचन फहराया था.
पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो यूपी की कुल 80 सीटों में से सीपीआई ने आठ और सीपीआईएम ने 10 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और सभी की जमानत जब्त हुई. सीपीआई उम्मीदवारों को कुल 1,29,417 वोट मिले, जो कुल वोट का 0.09 फीसदी था. इसी तरह सीपीआई को 2009 के लोकसभा चुनाव में 0.16 फीसदी और 2004 के लोकसभा चुनाव में 0.13 फीसदी वोट मिला था. सीपीआईएम प्रत्याशियों का हाल और भी बुरा था. उन्हें 37,712 वोट मिले, जो कुल वोट का 0.03 फीसदी थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें 0.06 फीसदी और 2004 के लोकसभा चुनाव में 0.11 फीसदी वोट मिले.
वामदलों का खेल लोकसभा ही नहीं बल्कि विधानसभा चुनावों में भी बिगड़ा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में सक्रिय छह लेफ्ट पार्टियों (सीपीआई, सीपीएम, सीपीआइएमएल-मार्क्सवादी लेनिनवादी, आरएसपी, फारवर्ड ब्लॉक और एसयूसीआई -सी) ने साझा चुनाव लड़ने की घोषणा की है और 134 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक भी नहीं जीत सका.
आगामी लोकसभा चुनाव में सीपीआई फिर मैदान में है. पार्टी ने तीन सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. इनमें घोषी से अतुल अंजान, राबर्टसगंज से अशोक कनौजिया और लखीमपुर सीट से विजनेश शुक्ला हैं. पार्टी महासचिव गिरीश शर्मा की माने तो जल्द ही पार्टी सात से आठ अन्य सीटों पर भी प्रत्याशियों की घोषणा करेगी. वहीं सीपीआईएम ने प्रत्याशी उतारने से इंकार किया. सीपीआई एमएल भी कुछ सीटों पर प्रत्याशी उतारने की कवायद में जुटी है. सभी वामदल नेताओं का कहना है कि जिन सीटों पर उनके प्रत्याशी हैं, वहां सभी दल उन्हें चुनाव लड़ाएंगे और जहां प्रत्याशी नहीं है, वहां भाजपा को हराने की रणनीति के तहत काम करेंगे.
वाम नेता मानते हैं कि जातिगत और सांप्रदायिक राजनीति ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया है. माकपा के राज्य सचिव मंडल के सदस्य प्रेम नाथ राय का कहना है कि यूपी में छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां बंद होने से यहां ट्रेड यूनियन आंदोलन कमजोर पड़ा. नतीजतन, वाम राजनीति का प्रभाव कम हुआ. हम अपना खोया हुआ गौरव पाने की तलाश में हैं. वहीं भाकपा के पूर्व राज्य महासचिव अशोक मिश्र कहते हैं कि इन चुनावों में उनके मुद्दे रोजी-रोटी, रोजगार, सस्ती शिक्षा और दवाई के हैं. जनहित से जुड़े इन मुद्दों के लिए वाम दल ही संघर्ष कर सकते हैं. राजनीति शास्त्री डॉ. रमेश दीक्षित कहते हैं कि वामदलों की राजनीति विचारधारा और सिद्धांत पर आधारित है लेकिन जातिगत और सांप्रदायिक राजनीति के साथ धनबल और बाहुबल ने वामदलों की सिद्धांत और विचारधारा वाली राजनीति को हाशिए पर धकेल दिया.