बिहार चुनाव में आज से बजेगा कांग्रेस का चुनावी बिगुल, 21 दिन में होंगी 100 वर्चुअल रैलियां

बीते तीन दशकों से सत्ता का वनवास झेल रही है कांग्रेस, राहुल गांधी खुद संभालेंगे चुनावी प्रचार की बागड़ौर, महागठबंधन में मांझी की कमी पूरा करना चाहेगी कांग्रेसी तो तीसरा धड़ा बो रहा राह में कांटें

Rahul Gandhi In Bihar Election
Rahul Gandhi In Bihar Election

Politalks.News/Bihar. बिहार की सियासत में पिछले तीन दशकों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस इस बार पूरे जोश में है और प्रदेश की राजनीति में दम तोड़ती तस्वीर को पुनर्जीवित करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. बिहार से सटे झारखंड में 22 में से 17 सीटने जीतने के बाद ऐसा दमखम स्वभाविक भी है. अगर बिहार में कांग्रेस को पिछले चुनावों की तुलना में सफलता मिलती है तो दिल्ली चुनाव की हार को भूल फिर से पार्टी खड़ी हो सकती है, ऐसा राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है. इसी दिशा में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक सितम्बर यानि आज बिहार के चुनावी अभियान का बिगुल फूंकने जा रहे हैं. कांग्रेस ने इसे ‘बिहार क्रांति वर्चुअल महासम्मेलन’ का नाम दिया है, जिसके जरिए पार्टी ने महज 21 दिनों में 100 रैलियां करने का प्लान बनाया है. (Bihar Election-2020)

माना जा रहा है कि कांग्रेस इन रैलियों के जरिए बिहार की 84 विधानसभा क्षेत्रों में वर्चुअल महासम्मेलन रैली करके अपने राजनीतिक समीकरण को साधने की कवायद करेगी. इस संबंध में बिहार विधानसभा चुनाव के कांग्रेस प्रभारी और पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अजय कपूर ने बताया कि 1 से 21 सितंबर तक कांग्रेस पूरे राज्य में 100 आभासी रैलियां करेगी. बिहार की जनता मौजूदा सरकार को बदलना चाहती है और विकास की सरकार बनाने के लिए बिहार की जनता मन बना चुकी है.

बिहार क्रांति महासम्मेलन को सफल बनाने के लिए कांग्रेस के जिला अध्यक्षों को निर्देश दिए जा चुके हैं. हर सम्मेलन में कम से कम आठ से दस हजार लोगों शामिल करना सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है. अजय कपूर ने ये भी बताया कि महासम्मेलन में प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेतागण अपने-अपने विचार रखेंगे. कांग्रेस की इस वर्चुअल रैली में स्थानीय स्तर के नेताओं को भी अपनी बात रखने का मौका मिलेगा. मतलब साफ है कि कांग्रेस लोकल स्तर के नेताओं के जरिए जनता में प्रभाव बनाने पर सूक्ष्मता से काम कर रही है.

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ये भी किसी से छुपा नहीं कि 1990 के बाद से कांग्रेस का बिहार में जनाधार लगातार कम हुआ है. तीन दशक से कांग्रेस बिहार में सत्ता का वनवास झेल रही है. कांग्रेस 2010 में अकेले चुनाव लड़कर अपने हश्र को देख चुकी है इसलिए इस बार भी कांग्रेस महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के हाथ में है. कांग्रेस का बिहार में सामाजिक समीकरण भी बिखर गया है. एक दौर में कांग्रेस के पास माने जाने वाले दलित वोटर दूसरी पार्टियों की ओर शिफ्ट होने लगे. सवर्ण खासकर ब्राह्मण मतदाताओं को बीजेपी ने अपनी ओर आकर्षित किया है. वहीं, अल्पसंख्यक मतदाता भी पूरी तरह साथ नहीं रह पाए हैं और जितिन मांझी की हिंदूस्तान आवाम मोर्चा व चिराग पासवान की लोजपा में बंट गए हैं जो कांग्रेस की सियासत में पिछड़ने की सबसे बड़ी वजह है.

पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नीतीश कुमार और लालू यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस ने 41 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 27 सीटें जीत कांग्रेस प्रदेश की चौथे नंबर की पार्टी बनी. इसके बाद भी माना यही जाता है कि कांग्रेस को इस प्रदर्शन में जदयू और राजद के साथ होने का फायदा मिला था. यही वजह है कि इस बार कांग्रेस का पूरा दारोमदार राजद के सामाजिक मतों के सहारे ही नैया पार लगाने की है.

इस समय कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के चेहरे पर ही हर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है. यही चेहरा बिहार में भी है. राहुल गांधी बिहार में 1 सितम्बर को वर्चुअल रैली के माध्यम से बिहार में चुनावी प्रचार की शुरुआत करने वाले हैं. यह तीसरा मौका है जब खुद राहुल गांधी वर्चुअल माध्यम से बिहार नेताओं से जुड़ेंगे. इसके पहले भी वे कोरोना के बीच दो बार वर्चुअल माध्यम से प्रदेश स्तर के नेताओं से बात कर चुके हैं, लेकिन इस बार यह कार्यक्रम वृहद पैमाने पर होगा और राहुल गांधी पार्टी नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं के साथ भी रूबरू होंगे.

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राजस्थान में कांग्रेस को जीत दिलाने वाली टीम को ही बिहार की कमान सौंपी गई है. राजस्थान के प्रभारी रहे अवनाश पांडे अब बिहार में पार्टी के लिए रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं. जितनराम मांझी के महागठबंधन छोड़ने और चंद्रिका राय सहित कुछ बड़े नेताओं के जदयू में शामिल होने के बाद राजद थोड़ी सी कमजोर हुई है और कांग्रेस इसी कमजोरी को मजबूत करने में जुटी हुई है.

वैसे देखा जाए तो इस बार बिहार का चुनावी घमासान देखने लायक होने वाला है. एक ओर मांझी महागठबंधन से अगर हो एनडीए में जाने को बेताब नजर आ रहे हैं, वहीं चिराग पासवान और पप्पू यादव मिलकर तीसरा धड़ा खड़ा कर रहे हैं. असदुद्दीन ओवैसी और मायावती भी अपने अपने वोट बैंक जरिए छीका तोड़ने की फिराक में लगे हुए हैं. ऐसे में जनता के पास इस बार विकल्प काफी सारे हैं और कांग्रेस के पास मौके काफी कम. ऐसे में बस देखना ये होगा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह राहुल गांधी फैक्टर इस बार कांग्रेस को बिहार की सियासत में लौटने का मौका दे पाता है या नहीं.

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