Rajasthanupdates. कोचिंग स्टूडेंट्स की सुसाइड रोकने के लिए शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाने का फैसला किया है. यह कमेटी 15 दिन में रिपोर्ट देगी. इस कमेटी में कोचिंग सेंटर संचालक और एक्सपर्ट शामिल होंगे. यह निर्देश सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिए हैं. कोटा में कोचिंग स्टूडेंट्स की सुसाइड को लेकर सीएम अशोक गहलोत ने कोचिंग सेंटर संचालकों और अफसरों की साझा बैठक में कहा कि हम बच्चों को मरते हुए नहीं देख सकते. इसे रोकने के लिए ठोस उपाय करने होंगे. सीएम गहलोत ने कहा कि कोचिंग को कमर्शियल एक्टिविटी की तरह मान लिया गया है. जब कोचिंग के बच्चों की सुसाइड की खबर आती है तो बहुत दुख होता है. सुसाइड की कोई नौबत नहीं आए, ऐसा माहौल बनाने की जिम्मेदारी आपकी है. इस बैठक में शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने कोचिंग सेंटर को हैप्पीनेस सेंटर के तौर पर विकसित करने की बात कही.
एलन में ही सुसाइड ज्यादा क्यों हो रहे हैं – सीएम गहलोत
सीएम गहलोत ने कोचिंग सेंटर संचालकों से संवाद के दौरान पूछा कि एलन कोचिंग इंस्टीट्यूट में ही इतने सुसाइड क्यों हो रहे हैं. मुख्यमंत्री ने सुसाइड का आंकड़ा पूछा. बैठक में बताया गया कि 20 में से 14 सुसाइड एलन के हैं. इस पर एलन के प्रतिनिधि ने कहा कि एलन में आईआईटी और मेडिकल की तैयारी करने वाले 70 फीसदी बच्चे हैं, देश भर में सेंटर हैं. सीएम गहलोत ने इस पर कहा कि मेरा मकसद एलन को टारगेट करने का नहीं है. हमारा मकसद बच्चों की सुसाइड का कारण पता लगाकर उसे रोकने का है. मुख्यमंत्री ने कहा कि हम बच्चों को मरते हुए नहीं देखना चाहते हैं. जब कोचिंग के बच्चों की सुसाइड की खबर आती है तो बहुत दुख होता है. सुसाइड की कोई नौबत नहीं आए, माहौल बनाने की जिम्मेदारी आपकी है.
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मुख्यमंत्री ने कहा कि वीकली टेस्ट का बच्चों पर दबाव रहता है. कई लोग एक्स्ट्रा क्लास लेते हैं. फिजिकल एक्टिविटी होती नहीं है. फिजिकल एक्टिविटी और हेल्थ का बहुत बड़ा संबंध है. आप बच्चे को 6 घंटे क्लास में रखते हैं, फिर एक्स्ट्रा क्लास, फिर हॉस्टल में स्टडी. वहां खेल-कूद का समय नहीं मिलता. हर कोचिंग इंस्टीट्यूट में अस्पताल या मेडिकल सेंटर होना चाहिए. बच्चों को पर्व-त्योहार पर भी घर जाने का मौका मिलता नहीं है, छुट्टी मिलती नहीं है. बच्चों को हमारे जमाने में तो स्काउट में रहना, एनएसएस में जाना अनिवार्य होता था, अब यह कहां होता है? अब जो हालात बन गए हैं उसको सुधारने पर सोचना पड़ेगा. माहौल खुशनुमा कैसे हो, उस पर अलग से विचार करना होगा .
राजनीतिक दलों से ज्यादा खर्च करते हैं प्रचार पर
सीएम गहलोत ने कहा कि कोचिंग को कमर्शियल एक्टिविटी की तरह मान लिया गया है. विज्ञापन एवं प्रचार पर कोचिंग वाले राजनीतिक दलों से ज्यादा खर्च करते हैं. फ्रंट पेज पर जितने राजनीतिक दलों के विज्ञापन नहीं आते, उतने कोचिंग सेंटर के आते हैं. पैसा कहां से आ रहा है अपने पास? कोई हिसाब-किताब तो रखो. आप किस प्रकार की फीस लेते हो, उस पर भी विचार करो. कोचिंग में 14 से 15 साल की उम्र में बच्चे को भेज देते हैं. बच्चा छोटा होता है, उसी को आप भेज देते हैं फिर उसको मां की याद आती है तो सुसाइड करने वाले बच्चे भी मां को याद करते हैं. बच्चों को अवसर मिले, लेकिन दबाव में काम करेंगे तो बच्चों में सुसाइड की घटनाएं बढ़ेंगी.
कोचिंग सेंटर को हैप्पीनेस सेंटर के तौर पर विकसित करें
संवाद में शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने भी शिरकत की. उन्होंने कोचिंग सेंटर में हैप्पीनेस सेंटर की आवश्यकता पर बात की. उन्होंने कहा कि कोचिंग क्लासेज में लाफिंग क्लब बनाएं. सप्ताह में कम से कम एक दिन लाफिंग क्लब में बच्चों को चुटकुले सुनाएं. बच्चा अगर हंसमुख रहता है, खेलता-कूदता है तो तो स्वस्थ रहता है. बच्चा साल में एक बार एग्जाम देता है तो भी टेंशन में आ जाता है. आप तो वीकली टेस्ट लेकर उस बच्चे को हर सप्ताह टेंशन में डाल देते हो. वीकली टेस्ट से बच्चा ज्यादा डिप्रेशन में आता है, टेंशन में आता है. कल्ला ने कहा कि हमारे कोचिंग सेंटर्स को हैप्पीनेस सेंटर के तौर पर डेवलप करें.
शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने कहा कि बच्चे को जॉयफुल एजुकेशन देनी चाहिए. कोई बच्चा पढ़ाई में कमजोर हो तो उसे राय देनी चाहिए कि वह अच्छा क्रिकेट खेले, अच्छा फुटबॉल खेले. आप देखिए, आज विराट कोहली को कोई पैसे की कमी है क्या? डॉक्टर-इंजीनियरों से ज्यादा कमाता है.