भारत की संप्रभुता को चुनौती देता चीन, क्या कोरोना से ध्यान भटकाने की है साजिश?

विरोधी प्रदर्शनों के बीच चीन ने बढ़ाया भारत-चीन बॉर्डर पर तनाव, हमेशा से विस्तारवादी नीतियों का पक्षधर रहा है चीन, भारत एक बड़ा बाजार है चीन के लिए, वायरस की जांच पर अन्य राष्ट्र घेर रहे चीन को, लिस्ट में भारत भी शामिल

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पाॅलिटाॅक्स न्यूज. वैश्विक महामारी कोरोना का जन्मदाता चीन पूरी दुनिया के निशाने पर आ चुका है. दुनिया के 70 से अधिक देशों ने कोरोना वायरस के मामले में चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए नाराजगी जताई है. इसी के चलते अमेरिका और चीन के बीच दरार बढ़ गई है. दुनिया भर में चीन विरोधी प्रदर्शनों के बीच चीन ने भारत-चीन बॉर्डर पर तनाव बढ़ा दिया है. पिछले एक महीने से दोनों देशों के बीच तनाव बड़े स्तर पर पहुंच गया. चीन ने भारतीय सीमाओं के पास युद्ध का साजो समान पहुंचा दिया तो भारत की ओर से भी इसी तरह की कार्रवाई की गई. अब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर बातचीत चल रही है.

क्या चीन वास्तव में सीमा विवाद को लेकर भारत से युद्ध चाहता है या फिर कोरोना वायरस के मामले में दुनिया के देशों से घिरे चीन का प्रयास ध्यान भटकाने की कोशिश भर है. इस सहित कई और सवाल इस समय ज्वलंत बनकर खड़े हैं. इन सवालों को नजर अंदाज किए बिना चीन और भारत के बीच बढ़ रहे तनाव को समझा और जाना नहीं जा सकता है.

साम्राज्यवादी नीतियों पर चलता है चीन

चीन साम्राज्यवादी विस्तारवादी नीतियों का पक्षधर रहा है. भारत के साथ उसके रिश्तों में कभी मिठास नहीं रही. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन के प्रति एक अच्छे पडौसी देश का नजरिया रखते थे. लेकिन 1962 में चीन ने अचानक भारतीय सीमा में घुसकर हमला कर दिया. उन दिनों भारतीय सेना इस तरह के हमले का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं थी. हालांकि भारतीय सैनिकों ने भरसक प्रयास किया लेकिन इस युद्ध में भारत को कई तरह के बड़े नुकसान उठाने पड़े. चीन ने भारत की सीमा में एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया. यह ठीस आज भी बनी हुई है.

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हिंदी चीनी भाई-भाई

भारत की ओर से चीन के साथ अच्छे संबंधों का प्रयास हमेशा रहा. हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा बुलंद किया गया. लेकिन ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई. जब-जब भी भारत को महसूस हुआ कि दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार हो रहा है. चीन ने कुछ न कुछ ऐसा किया जिससे दोनों देशों के बीच न सिर्फ भरोसा कम हुआ बल्कि तल्खी भी बढ़ी. सीमा पर कई बार तनाव हो चुका है. कई बार सीमा विवाद सुलझाने के बड़े स्तर पर प्रयास हो चुके हैं. लेकिन मसला विवादित बना रहा.

भारतीय बाजार पर एकाधिकार

खास बता यह है कि चीन के लिए भारत एक बड़ा बाजार बना हुआ है. भारतीय बाजारों में चीनी सामान का कब्जा 40 फीसदी से अधिक है. चीनी सामान ने पिछले 20 सालों में भारत के कई घरेलू उद्योग धंधों को पूरी तरह समाप्त कर दिया है. भारतीय बाजार चीन की इकनोमी के लिए किसी आॅक्सीजन से कम नहीं है. उसके बावजूद भी चीन समय-समय पर भारतीय सीमाओं पर अपनी दावेदारी जताकर तनाव बनाता रहता है.

कोरोना वायरस की जांच की मांग में भारत भी शामिल

अभी हाल ही में कोरोना वायरस के कारण सारी मानव जाति पर संकट के बादल मंडराए हैं. दुनिया के कई देशों की इकनोमी पूरी तरह तबाह हो गई. चीन के वुहान से निकले इस वायरस को लेकर दुनिया भर के नाराज देशों ने इस वायरस की जांच की मांग की है. इसके लिए बकायदा अन्तराष्टीय स्तर पर एक प्रस्ताव तैयार हुआ. इस प्रस्ताव पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत चीन सीमा पर बढ़ रहे तनाव का एक कारण चीन की नाराजगी भी हो सकती है.

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एक महीने से विवाद

भारत और चीन की सेनाएं पूर्वी लद्दाख के गलवान और पैंगोंग सो इलाके में 5 मई से ही आमने-सामने डटी हैं. सूत्रों की माने तो चीन की सेना ने पैंगोग सो और फिंगर 5 इलाके में एलएसी से 100 मीटर पीछे अपने टेंट गाड़े हैं. गलवान में चीन की सेना पट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 16 पर मौजूद है. हालांकि पट्रोलिंग पॉइंट 15 पर कुछ पीछे हटी है. लेकिन जानकारों का कहना है कि चीनी सेना के पीछे हटने का मतलब यह नहीं है कि उसने इस मामले में अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. इस तनाव को खत्म करने के लिए दोनों सेनाओं के बीच अब तक 7 बार बैठक हो चुकी है. चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और भारतीय सेना के बीच ब्रिगेडियर स्तर पर 4 और मेजर जनरल स्तर की 3 बार बात हो चुकी है लेकिन ये सभी बेनतीजा रहीं.

लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत

अब सारी नजरें 6 जून को होने वाली लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत पर टिकी है. इसमें सेना की 14वीं कोर के कमांडर और पीएलए के वेस्टर्न थिअटर के इसी रैंक के अधिकारी हिस्सा लेंगे. भारतीय सेना साफ कर चुकी है कि जब तक स्थिति पहले जैसी नहीं हो जाती, वह एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि चीन के साथ सैन्य और कूटनीति दोनों स्तरों पर बातचीत चल रही है.

अलर्ट पर भारत की सेना

भारत ने लद्दाख सीमा पर चीन की किसी भी हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पुख्ता तैयारी कर रखी है. शॉर्ट नोटिस पर टी-72, टी-90 टैंकों और बोफोर्स जैसी आर्टिलरी गनों को लद्दाख सीमा पर तैनात किया जा सकता है. स्वीडन से हासिल बोफोर्स गनों ने करगिल युद्ध के दौरान अपनी उपयोगिता साबित की थी और पाकिस्तानी घुसपैठियों के छ्क्के छुड़ा दिए थे. इस तोप की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह -3 से लेकर 70 डिग्री के ऊंचे कोण तक फायर कर सकती है. साथ ही वायुसेना के विमान भी लगातार चीन की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं.

दुनिया की ओर से चीन पर बढ़ता चौतरफा दबाव

विशेषज्ञों के अनुसार चीन की ओर से सैनिकों को पीछे किए जाने की वजह दुनिया की ओर से बढ़ता चौतरफा दबाव है. साउथ चाइना सी, कोरोना और व्यापार के मुद्दे पर अमेरिका के साथ उसकी जंग चल रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के ताकतवर देशों के ग्रुप-7 का विस्तार कर भारत को शामिल करने के संकेत दिए हैं. यही नहीं जापान, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान चीन की विस्तारवादी नीति का लगातार विरोध कर रहे हैं. चैतरफा घिरा चीन इस समय दुनिया की सबसे बड़ी सेना रखने वाले भारत से जंग का खतरा मोल नहीं ले सकता है. चीन भारतीय बाजार को भी नहीं खोना चाहता है, इसी वजह से उसे लद्दाख में अपने रुख में नरमी लानी पड़ी है.

बोर्डर पर सेना, भारतीय बाजारों में चीनी माल

हालांकि जब-जब भी चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाब बढ़ता है तो भारत में चीनी सामान के बहिष्कार की हवाएं आंधी तूफान बनकर चलने लग जाती हैं. लेकिन होता कुछ नहीं. कुछ राष्टवादी संगठन सोशल मीडिया पर इसकी मुहिम चलाते हैं. लाइसक और कमेंट के साथ ही सारी मुहिम समाप्त हो जाती है. अबके बार प्रधानमंत्री ने लोकल का वोकल मंत्र सुझाया है. लेकिन यह भी मेक इन इंउिया और मेड इन इंडिया की तरह ही जुमला से बढ़कर कुछ नजर नहीं आ रहा है. यदि वास्तव में ही भारतीय बाजारों को चीनी समान से मुक्त करना है तो सरकारी स्तर पर राष्ट्रीय नीति बनानी ही पड़ेगी. कोरोना महामारी के बाद मोदी सरकार यह काम अपने स्तर कर सकती है क्योंकि चीन से व्यापारिक रिश्तों का भारत को कोई बड़ा लाभ नहीं मिल रहा, बल्कि उसका उद्योग और रोजगार जबर्दस्त तरीके से प्रभावित हुआ है.

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