Thursday, February 6, 2025
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मध्यप्रदेश: भोपाल में ‘कमल’ चुनौती के भंवर में फंसे दिग्विजय सिंह

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चार महीने पहले तक चौराहे पर पस्तहाल पड़ी कांग्रेस को खड़ा करके सत्ता के शिखर पर पहुंचाने के लिए पसीना बहाते रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शायद सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ उन्हें चुनौती के भंवर में फंसा सकते हैं. दिग्विजय राज्य की सबसे मुश्किल और बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाली भोपाल सीट से चुनावी मैदान में हैं. वह भी तब जबकि राज्यसभा के उनके कार्यकाल में अभी तीन साल शेष हैं.

दिग्विजय भले कहते रहे हो कि पार्टी जहां से टिकट देगी, वह लड़ने को तैयार हैं मगर हकीकत तो यह है कि राजगढ़ उनकी पसंदीदा सीट रही है. इस क्षेत्र के सौंघिया, गुर्जर, दांगी और यादव उनके परंपरागत वोटर बन चुके हैं, जो आंख मूंदकर उन्हें वोट डालते हैं, लेकिन भोपाल के साथ ऐसा नहीं है. ऐसी सीट जहां पिछले तीन दशक से कांग्रेस खाता तक न खोल पाई हो, वहां से दिग्विजय को चुनाव लड़वाने की क्या वजह हो सकती है?

पूर्व मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि कमलनाथ ने बड़ी सफाई से अपने रास्ते का कांटा साफ किया है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसे कांग्रेस के भीतरी घमासान का नतीजा बताते हैं. कांग्रेसी हलकों में भी इस बात के चर्चे हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर ज्योतिरादित्य, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह खेमें में जो खींचतान मची थी, यह फैसला उसी की देन है. सरकार बनने के बाद दिग्विजय का ‘पावर सेंटर’ बनकर उभरना कमलनाथ को नागवार गुजरा.

दिग्गी को किसी बड़ी चाल में फंसाने का संकेत तो तभी मिल गए थे जब दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ कैबिनेट के कुछ मंत्रियों की कार्यशैली को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की. तब मंत्री उनके खिलाफ उठ खड़े हुए, लेकिन कमलनाथ खामोशी की चादर ओढ़े रहे. दिग्गी को भोपाल से टिकट मिलने पर भी वे सतही बातें बोल रहे हैं. उनका कहना है कि दिग्विजय सिंह को इंदौर, भोपाल या जबलपुर में से कोई एक क्षेत्र को चुनने के लिए कहा गया. तय हुआ कि वे भोपाल से चुनाव लड़ेंगे.

बता दें कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि प्रदेश के बड़े नेताओं को कठिन सीटों से चुनाव लड़ना चाहिए. उन्होंने दिग्विजय सिंह का नाम लेते हुए कहा था कि उन्हें भोपाल या इंदौर से चुनाव लड़ना चाहिए. इसके जवाब में दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट करके कहा था कि मेरे नेता राहुल गांधी हैं. वे जहां से कहेंगे मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं. साथ ही उन्होंने चुनाव के लिए आमंत्रित करने के लिए कमलनाथ का आभार जताया था.

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कमलनाथ की ओर कठिन सीट से चुनाव लड़ने की ‘चुनौती’ देना और दिग्विजय सिंह का इसे ‘स्वीकार’ करना सूबे की राजनीति पर दूरगामी असर डालेगा. इसका असर लोकसभा चुनाव के बाद खुलकर दिखेगा. दिग्विजय सिंह को लेकर जो हिंदू विरोधी छवि गढ़ी जा चुकी है, उसका भोपाल के चुनावी समर में भारी पड़ना तय है. दिग्विजय चुनाव हारें या जीतें, दोनों ही स्थितियों में राज्य में कांग्रेस की अंतरकलह, घात-प्रतिघात और कुनबा परस्ती में इजाफा होगा.

शिवराज सिंह चौहान दिग्गी के भोपाल से चुनाव लड़ने के फैसले को ‘बंटाधार रिर्टन’ का दर्जा दे रहे हैं. 15 साल पहले ‘मिस्टर बंटाधार’ का फतवा देकर उमा भारती ने दिग्विजय सिंह से सत्ता छीनी थी. जहां तक भोपाल संसदीय क्षेत्र के इतिहास का सवाल है यहां सरकारी कर्मचारी और कायस्थ मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं. कुछ क्षेत्रों में मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण भी जबरदस्त असर डालता है.

30 साल से भाजपा के कब्जे में रही इस सीट पर पिछले 8 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तमाम चेहरों को पराजय झेलनी पड़ी. 1989 में रिटायर्ड नौकरशाह सुशील चंद्र वर्मा के हाथों केएन प्रधान की शिकस्त से शुरू हुए इस सिलसिले के बाद कांग्रेस ने धीरे-धीरे इस सीट को अपने लिए मुश्किल मान लिया. पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी उम्मीदवार आलोक संजर को सात लाख से ज्यादा वोट मिले जबकि कांग्रेस के पीसी शर्मा को महज साढ़े तीन लाख.

इससे पहले भाजपा से कांग्रेस में आए आरिफ बेग को भी भोपाल ने नकार दिया. यहां तक कि इस सीट पर भाग्य आजमाने वाले मंसूर अली खां पटौदी भी कांग्रेस को जीत नहीं दिलवा सके. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने जीत दर्ज की हो, लेकिन भोपाल लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में भाजपा के पास लगभग 60 हजार मतों की बढ़त है. अंतर की इस गहरी खाई को पाटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिग्विजय सिंह के मैदान में होने से कांग्रेस एकजुट होगी, लेकिन यह देखना रोचक होगा कि नरेंद्र मोदी का जादू और दिग्विजय सिंह की पुरानी छवि भोपाल के 21 लाख मतदाताओं के दिलो-दिमाग में कितना असर करती है. ये दोनों फैक्टर जीत और हार में बड़ी भूमिका तय करेंगे.

भाजपा की ओर से साध्वी प्रज्ञा इस सीट पर दावेदारी जता रही हैं. कैलाश विजयवर्गीय ने भी यहां के चुनावी रण में उतरने की मंशा जाहिर की है, लेकिन सबकी नजर शिवराज सिंह चौहान की तरफ है. क्या वे दिग्गी के सामने मैदान में उतरेंगे. यदि भोपाल में मुकाबला दिग्विजय सिंह बनाम शिवराज सिंह हुआ तो यह और रोचक हो जाएगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

‘चौकीदार चोर नहीं बल्कि प्योर है, दुबारा पीएम बनना श्योर है’

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देश में विपक्ष द्वारा चौकीदार के लिए लगातार लग रहे नारों के बीच केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के चौकीदार यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव किया है. केन्द्रीय मंत्री ने दिल्ली में एक ​पब्लिक रैली में कहा कि चौकीदार चोर नहीं बल्कि प्योर है. चौकीदार का दुबारा प्रधानमंत्री बनना श्योर है. देश की समस्याओं का वो ही तोड़ है.

इसी संबंध में श्रीगंगानगर में हुई एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि वह कहते हैं मैं चौकीदार हूं लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वह किसके चौकीदार हैं. क्या आपने किसी किसान के घर में चौकीदार देखा है? क्या किसी बेरोजगार युवा के घर पर चौकीदार देखा है? क्या आपने अनिल अंबानी के घर पर चौकीदार देखा है? नरेंद्र मोदी ने यह नहीं बताया कि अनिल अंबानी और नीरव मोदी जैसे लोगों के चौकीदार हैं।

अब IPL में भी चौकीदार चौर है

बीजेपी के बागी घनश्याम तिवाड़ी सहित कई नेताओं ने थामा कांग्रेस का हाथ

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जयपुर की सांगानेर विधानसभा सीट से लगातार तीन बार और पूर्व में तीन बार विधायक रहे बीजेपी के बागी नेता घनश्याम तिवाड़ी आज कांग्रेस में शामिल हो गए. जयपुर के रामलीला मैदान में शक्ति कार्यकर्ता सम्मेलन में पधारे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दुपट्टा ओढ़ाकर तिवाड़ी को पार्टी में शामिल किया.

आज सुबह घनश्याम तिवाड़ी ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बनाई अपनी भारत वाहिनी पार्टी को भी भंग कर दिया है।सम्मेलन में बाबूलाल नागर सहित 12 अन्य निर्दलीय विधायकों ने भी कांग्रेस का हाथ थामा है. इस दौरान मंच पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित कई दिग्गज नेता मौजूद रहे.

इनके अलावा, भाजपा सरकार में मंत्री रहे सुरेंद्र गोयल, भाजपा के बागी महापौर विष्णु लाटा, बसपा नेता डूंगर गेदर और जयपुर जिला प्रमुख मूलचंद मीणा ने भी कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. इनके साथ ही भाजपा नेता जनार्दन गहलोत, कांतिलाल संयम और पूसाराम चौधरी ने भी कांग्रेस की सहयोगी बन पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है.

हाथ को मिला इन नेताओं का साथ

  • बीजेपी के बागी घनश्याम तिवाड़ी
  • बीजेपी के बागी सुरेंद्र गोयल
  • भाजपा नेता जनार्दन सिंह गहलोत
  • बसपा नेता डूंगरराम गेदर
  • जयपुर मेयर विष्णु लाटा
  • जयपुर जिला प्रमुख मूलचंद मीणा
  • विधायक कांतिलाल मीणा
  • विधायक रमीला खड़िया
  • विधायक रामकेश मीणा
  • विधायक सुरेश टाक
  • विधायक महादेव सिंह खंडेला
  • विधायक लक्ष्मण मीणा
  • विधायक संयम लोढ़ा
  • विधायक खुशवीर सिंह
  • विधायक बलजीत यादव

राहुल ने मोदी पर चलाए शब्दों के बाण

बूथ सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर शब्दों के प्रहार किए. उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में केवल तुक्का लग जाने से भाजपा की सरकार बन गई लेकिन इस बार ऐसा नहीं होने वाला है. हमने केवल सच्चाई के साथ काम किया है. देश के लोकतंत्र और संविधान को भाजपा एवं मोदी से खतरा है. मोदी राज में संवैधानिक असुरक्षा का माहौल है. मोदी केवल अमीरों के चौकीदार हैं और उन्होंने गरीबों का पैसा लूटा है. आरएसएस पर भी राहुल गांधी ने जमकर तंज कसे.

बीजेपी ने घोषित की 39 उम्मीदवारों की सूची, जयप्रदा को रामपुर से मिला टिकट

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बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए 39 प्रत्याशियों की सूची जारी की है. इसमें 29 उत्तर प्रदेश और 10 पश्चिम के नाम शामिल हैं. उत्तर प्रदेश लिस्ट में मुताबिक मेनका गांधी को सुलतानपुर, हाल में पार्टी से जुड़ी जयाप्रदा को रामपुर, वरुण गांधी को पीलीभीत, रेखा वर्मा को धौरहरा, मुकेश राजपूत को फरुखावाद, रमाशेखर खतेरिया को इटावा, सुभ्रत पाठक को कनाकुंज, सत्यदेव पचोरी को कानपुर, महेंद्र नाथ पांडे को चंदोली और बृजभूषण शरण को केसरगढ़ से टिकट मिला है.

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इसी प्रकार, देवेंद्र सिंह को अकबरपुर, भानू प्रताप वर्मा को जालौन, पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को हमीरपुर, साधवी निरंजन ज्योति को फतेहपुर, विनोद सोनकर को कौशाम्बी, रिटा बहुगुना जोशी को अहलाबाद, उपेंद्र रावत को बाराबनकी, लालु सिंह को फरीजाबाद, अक्षयवर लाल गुद को बहराइच, ददन मिश्रा को श्रावस्ती और कीर्तिवर्धन सिंह को गोंडा से बीजेपी चेहरा बनाया गया है.

वहीं जगदम्बिका पाल को दोमरियागंज, हरिश द्विवेदी को बस्ती, पंकज चौधरी को महाराजगंज, विजय दूबे को खुशी नगर, कमलेश पासवान को बांसगांव, रविंद्र कुशवाहा को सेलमपुर, विरेंद्र सिंह मस्त को बलिया और मनोज सिन्हा को गाजीपुर से लोकसभा का टिकट मिला है.

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पश्चिमी बंगाल की सूची में कृष्णा आर्य को बहरमपुर, हुमायुंन कबीर को मुसिदाबाद, डॉ.मुकुट मणी अधिकारी को रानाघाट, शांतनु ठाकुर को बानगांव, निलंजन रॉय को डायमंड हरबोर, रंतिदेव सेन गुप्ता को हावड़ा, जॉय बनर्जी को उलुबेरिया, डॉ.देबाशिश समंत को कांथी, डॉ.शुभाष शंकर को बंकुरा और राम प्रसाद दास को बोलपुर से भाजपा उम्मीदवार बनाया है.

उत्तराखंड: 2014 में क्लीन स्वीप करने वाली BJP इस बार मुकाबले में उलझी

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मोदी लहर में लड़े गए पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तराखंड में सभी पांचों सीटें अपनी झोली में डाली थीं, लेकिन इस बार पार्टी की राह आसान नहीं दिख रही. सूबे की नैनीताल लोकसभा सीट की बात करें तो भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं, कांग्रेस की ओर से उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत यहां से मैदान में हैं. हालांकि इस सीट पर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश, केसी बाबा और महेंद्र पाल का नाम भी सामने आ रहा था लेकिन रावत ने सभी को पीछे छोड़ दिया.

कार्यकर्ताओं की मानें तो रावत को यही लग रहा है कि अजय भट्ट से उन्हें ज्यादा चुनौती नहीं मिलेगी और वे आसानी से सीट निकाल लेंगे. हालांकि दोनों प्रत्याशी बाहरी हैं मगर रावत यहां लंबे समय से सक्रिय रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के हरीश रावत का पलड़ा थोड़ा भारी लग रहा है. राजनीति के जानकार यह भी कह रहे हैं कि अगर हरीश रावत को हरिद्वार सीट से चुनाव लड़वाया जाता तो यहां उन्हें वर्तमान सांसद और भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक से कड़ी टक्कर मिलती.

बता दें कि हरिद्वार सीट पर हरीश रावत निशंक को पहली भी पटकनी दे चुके हैं. इस सीट पर कांग्रेस ने अंबरीश कुमार को चेहरा बनाया है. अंबरीश हरिद्वार विधानसभा सीट से सपा के विधायक और 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. बात करें अल्मोड़ा लोकसभा सीट की तो यहां कांग्रेस ने फिर से प्रदीप टम्टा पर दांव खेला है. टम्टा वर्तमान राज्यसभा के सदस्य हैं और अभी उनका तीन साल का कार्यकाल शेष है.

अल्मोड़ा सीट पर प्रदीप टम्टा पिछली बार भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा से मात भी खा चुके हैं. इसके बावजूद कांग्रेस ने उन पर यकीन दिखाया है. इस सीट पर प्रदीप टम्टा और अजय टम्टा तीसरी बार आमने-आमने हैं. प्रदेश की पौड़ी सीट पर कांग्रेस ने मनीष खंडूरी और बीजेपी ने राष्ट्रीय सचिव और बीसी खंडूरी के शिष्य तीरथ सिंह रावत को पार्टी चेहरा बनाया है. मनीष वर्तमान सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी के पुत्र हैं. उन्होंने हाल ही में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है.

राजनीति के जानकारों का मानना है कि अपने पिता की साफ छवि के चलते मनीष खंडूरी को जीत दर्ज करने में दिक्कत आने की उम्मीद कम है. टिहरी लोकसभा सीट की बात करें तो यहां हमेशा से ही राजशाही का ही दबदबा रहा है. भूतपूर्व टिहरी नरेश के वंशजों को जिस भी पार्टी ने टिकट दी, उसने जीत दर्ज की है. भाजपा ने वर्तमान सांसद पूर्व महारानी माला राज्य लक्ष्मी शाह को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने प्रदेशाध्यक्ष प्रीतम सिंह पर दांव खेला है.

टिहरी में प्रीतम सिंह की अच्छी पकड़ के चलते उनका दावा मजबूत बताया जा रहा है. वहीं, लक्ष्मी शाह का अधिकतर समय दिल्ली में गुजरता है. कुल मिलाकर ​2014 के चुनाव में सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा की राह इस बार आसान नहीं है. ज्यादातर सीटों पर उसे कांग्रेस की ओर से कठिन चुनौती मिल रही है.

विपक्ष ने नोटबंदी को बताया अब तक का सबसे बड़ा घोटाला

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साल 2016 में नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार द्वारा की गई नोटबंदी पर विपक्ष ने फिर से एक बार निशाना साधा है.  कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला, अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, मनोज झा और शरद यादव ने आज एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नोटबंदी को अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला बताया और एक वीडियो भी जारी किया. वीडियो में दावा किया जा रहा है कि 31 दिसंबर, 2016 के बाद भी बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं की मदद से 500 रुपये और एक हजार रुपये के पुराने नोट बदले जा रहे थे.

वीडियो में दिखाया गया कि कैसे 31 दिसंबर, 2016 के बाद भी पांच करोड़ के 500 के पुराने नोट आए और 3 करोड़ के 2000 के नोट दे दिए गए. जबकि 8 नवम्बर की रात को पांच सौ और एक हजार के सभी नोट चलन से बाहर कर दिए गए थे. इस मौके पर कपिल सिब्बल ने कहा कि कुछ चौकीदारों ने देश के साथ गद्दारी की है और आम आदमी की जेब से पैसा छीना है. उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण देश की जीडीपी पीछे चली गई. किसानों को नुकसान हुआ और छोटे कारोबारियों को नुकसान झेलना पड़ा.

हालांकि, सिब्बल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में कहा कि वह इस वीडियो की न तो पुष्टि कर सकते हैं और न ही कह रहे हैं कि ये वीडियो उनका है. उन्होंने बताया कि वीडियो उन्हें एक वेबसाइट से मिला है, जिसमें कुछ चौंकाने वाली बात सामने आई हैं. सिब्बल ने वीडियो में दिखाए फुटेज की जांच करने की मांग की है.

बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही नोटबंदी का ऐलान किया था. उसके बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विपक्ष के निशाने पर बने हुए हैं.

बाहरी नेताओं के लिए उपजाऊ साबित हुई है यूपी की चुनावी जमीन

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देश में उत्तर प्रदेश राजनीति का सबसे बड़ा गलियारा है. यह एक ऐसा गलियारा है जिसकी मिट्टी न केवल स्थानीय बल्कि बाहरी नेताओं को भी जमकर रास आयी. यहां की जनता ने न केवल बाहर से आए नेताओं को सम्मान दिया बल्कि उनका कद बढ़ा उन्हें सातवें शिखर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा दी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी, हेमा मालिनी, मो अजहरुद्दीन, उमा भारती और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनमें प्रमुख नाम हैं. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही बाहरी नेताओं के बारे में जिनकी सियासत की चमक को यूपी ने तराशा.

अटल बिहारी बाजपेयी :
ग्वालियर, मध्य प्रदेश में जन्में अटल बिहारी बाजपेयी 1984 में अपने गृह क्षेत्र से लोकसभा चुनाव हार गए थे. इसके बाद उन्होंने यूपी का रूख किया और यहीं से प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया. 1984 के बाद से प्रधानमंत्री बनने तक अटल लगातार लखनऊ के सांसद रहे. लखनऊ को कर्मभूमि बनाते हुए उन्होंने यहां लम्बे समय तक अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.

उमा भारती :
उमा भारती ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत मध्य प्रदेश से की और वहां की मुख्यमंत्री भी रहीं. 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने उमा भारती को महोबा की चरखारी सीट से चुनाव लड़ाया जहां उन्होंने ​जीत दर्ज की. 2014 में उन्होंने झांसी लोकसभा सीट से चुनाव जीता.

मोहम्मद अजहरऊद्दीन :
हैदराबाद में जन्में पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने अपनी सियासी पारी की शुरूआत उत्तर प्रदेश की सरजीं से की. उन्होंने अपना पहला चुनाव 2009 में यूपी के मुरादाबाद से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और सांसद बने।

नरेंद्र मोदी :
वडनगर के एक गुजराती परिवार में पैदा हुए नरेंद्र मोदी 1985 में बीजेपी से जुड़े और 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने. 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद नरेंद्र मोदी यूपी की वाराणसी लोकसभा सीट से चुनावी जीत दर्ज कर संसद संसद पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री बनें. 2019 में फिर वह वाराणसी सीट से ही लोकसभा के प्रत्याशी हैं.

हेमा मालिनी :
यूं तो ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी का जन्म अमंकुदी, तमिलनाडु में हुआ लेकिन उनकी कर्म स्थली मुम्बई रही. 4 दशक का लंबा सफर फिल्मी ​दुनिया में बिताने के बाद वह राजनीति में आईं और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से राज्य सभा की सदस्य बनीं. 2014 में बीजेपी ने उन्हें यूपी की मथुरा लोकसभा सीट से मैदान में उतारा जहां उन्होंने रालोद नेता जयंत चौधरी को धूल चटाते हुए जीत दर्ज की. 2019 में उन्हें फिर से मथुरा से बीजेपी चेहरा बनाया गया है.

जया प्रदा :
एक और फिल्मी अदाकारा जया प्रदा भी यूपी की रामपुर लोकसभा सीट से लगातार दो बार सांसद रहीं. हालांकि उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत एन.टी. रामराव के नेतृत्व में की. बाद में वह चंद्रबाबू नायडु वाले गुट में शामिल हो गईं और 1996 में वह आंध्र प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्य सभा में मनोनीत हुईं. नायडू से मतभेदों के चलते जया प्रदा आंध्र की राजनीति छोड़ यूपी की राजनीति में सक्रिय हुईं.  समाजवादी पार्टी की नेता रहीं जया प्रदा ने हाल ही में भाजपा का दामन थामा है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें रामपुर लोकसभा सीट से भाजपा चेहरा बनाया जा सकता है.

सुचेता कृपलानी :
पंजाब के अम्बाला में पली-बढ़ी सुचेता कृपलानी यूपी आने से पहले दिल्ली से लोकसभा सदस्य थी. उन्होंने यहां आने के बाद बस्ती जिले की मेंहदावल सीट से चुनाव लड़ा और विधायक बनीं. बाद में गोंडा से बतौर सांसद चुनी गई. सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.

यूपी में मजबूत हुआ महागठबंधन, साथ आईं दो नई पार्टियां

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उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन में दो नई पार्टियां भी शामिल हो गई हैं. निषाद पार्टी और जनवादी पार्टी इस गठबंधन में शामिल हुई हैं. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा चीफ अखिलेश यादव ने यह जानकारी दी. यह दोनों पार्टियां समाजवार्दी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल एलाइंस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेगी.

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटेें हैं. सपा और बसपा 38-38 सीटों के साथ चुनावी मैदान में हैं. आरएडी 3 और कांग्रेस के लिए 2 सीटें छोड़ी गई हैं. अब निषाद पार्टी और जनवादी पार्टी को दोनों पार्टियों को गठबंधन अपने-अपने पेठे से लोकसभा सीट देगा।

जानें, सूबे की किस सीट पर किस चरण में होना है मतदान…

सहारनपुर –  11 अप्रैल
कैराना – 11 अप्रैल
मुजफ्फरनगर – 11 अप्रैल
बिजनौर – 11 अप्रैल
नगीना (SC) – 18 अप्रैल
मुरादाबाद – 23 अप्रैल
रामपुर – 23 अप्रैल
संभल – 23 अप्रैल
अमरोहा – 18 अप्रैल
मेरठ – 11 अप्रैल
बागपत – 11 अप्रैल
गाजियाबाद – 11 अप्रैल
गौतमबुद्ध नगर – 11 अप्रैल
बुलंदशहर (SC) – 18 अप्रैल
अलीगढ़ – 18 अप्रैल
हाथरस – 18 अप्रैल
मथुरा – 18 अप्रैल
आगरा – 18 अप्रैल
फतेहपुर सीकरी – 18 अप्रैल
फिरोजाबाद – 23 अप्रैल
मैनपुरी – 23 अप्रैल
एटा – 23 अप्रैल
बदायूं – 23 अप्रैल
आंवला – 23 अप्रैल
बरेली – 23 अप्रैल
पीलीभीत – 23 अप्रैल
शाहजहांपुर (SC) – 29 अप्रैल
खीरी – 29 अप्रैल
धौरहरा – 6 मई
सीतापुर – 6 मई
हरदोई – 29 अप्रैल
मिसरिख – 29 अप्रैल
उन्नाव – 29 अप्रैल
मोहनलालगंज – 6 मई
लखनऊ – 6 मई
रायबरेली – 6 मई
अमेठी – 6 मई
सुल्तानपुर – 12 मई
प्रतापगढ़ – 12 मई
फर्रुखाबाद – 29 अप्रैल
इटावा – 29 अप्रैल
कन्नौज – 29 अप्रैल
कानपुर – 29 अप्रैल
अकबरपुर – 29 अप्रैल
जालौन – 29 अप्रैल
झांसी – 29 अप्रैल
हमीरपुर – 29 अप्रैल
बांदा – 6 मई
फतेहपुर – 6 मई
कौशांबी – 6 मई
फूलपुर – 12 मई
इलाहाबाद – 12 मई
बाराबंकी – 6 मई
फैजाबाद – 6 मई
अंबेडकरनगर – 6 मई
बहराइच – 6 मई
कैसरगंज – 6 मई
श्रावस्ती – 12 मई
गोंडा – 6 मई
डुमरियागंज – 12 मई
बस्ती – 12 मई
संत कबीर नगर – 12 मई
महाराजगंज – 19 मई
गोरखपुर – 19 मई
कुशीनगर – 19 मई
देवरिया – 19 मई
बांसगांव (SC) – 19 मई
लालगंज (SC) – 12 मई
आजमगढ़ – 12 मई
घोसी – 19 मई
सलेमपुर – 19 मई
बलिया – 19 मई
जौनपुर – 12 मई
मछलीशहर (SC) – 12 मई
गाजीपुर – 19 मई
चंदौली – 19 मई
वाराणसी – 19 मई
भदोही – 12 मई
मिर्जापुर – 19 मई
रॉबर्ट्सगंज (SC) – 19 मई

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