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चार महीने पहले तक चौराहे पर पस्तहाल पड़ी कांग्रेस को खड़ा करके सत्ता के शिखर पर पहुंचाने के लिए पसीना बहाते रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शायद सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ उन्हें चुनौती के भंवर में फंसा सकते हैं. दिग्विजय राज्य की सबसे मुश्किल और बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाली भोपाल सीट से चुनावी मैदान में हैं. वह भी तब जबकि राज्यसभा के उनके कार्यकाल में अभी तीन साल शेष हैं.

दिग्विजय भले कहते रहे हो कि पार्टी जहां से टिकट देगी, वह लड़ने को तैयार हैं मगर हकीकत तो यह है कि राजगढ़ उनकी पसंदीदा सीट रही है. इस क्षेत्र के सौंघिया, गुर्जर, दांगी और यादव उनके परंपरागत वोटर बन चुके हैं, जो आंख मूंदकर उन्हें वोट डालते हैं, लेकिन भोपाल के साथ ऐसा नहीं है. ऐसी सीट जहां पिछले तीन दशक से कांग्रेस खाता तक न खोल पाई हो, वहां से दिग्विजय को चुनाव लड़वाने की क्या वजह हो सकती है?

पूर्व मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि कमलनाथ ने बड़ी सफाई से अपने रास्ते का कांटा साफ किया है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसे कांग्रेस के भीतरी घमासान का नतीजा बताते हैं. कांग्रेसी हलकों में भी इस बात के चर्चे हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर ज्योतिरादित्य, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह खेमें में जो खींचतान मची थी, यह फैसला उसी की देन है. सरकार बनने के बाद दिग्विजय का ‘पावर सेंटर’ बनकर उभरना कमलनाथ को नागवार गुजरा.

दिग्गी को किसी बड़ी चाल में फंसाने का संकेत तो तभी मिल गए थे जब दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ कैबिनेट के कुछ मंत्रियों की कार्यशैली को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की. तब मंत्री उनके खिलाफ उठ खड़े हुए, लेकिन कमलनाथ खामोशी की चादर ओढ़े रहे. दिग्गी को भोपाल से टिकट मिलने पर भी वे सतही बातें बोल रहे हैं. उनका कहना है कि दिग्विजय सिंह को इंदौर, भोपाल या जबलपुर में से कोई एक क्षेत्र को चुनने के लिए कहा गया. तय हुआ कि वे भोपाल से चुनाव लड़ेंगे.

बता दें कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि प्रदेश के बड़े नेताओं को कठिन सीटों से चुनाव लड़ना चाहिए. उन्होंने दिग्विजय सिंह का नाम लेते हुए कहा था कि उन्हें भोपाल या इंदौर से चुनाव लड़ना चाहिए. इसके जवाब में दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट करके कहा था कि मेरे नेता राहुल गांधी हैं. वे जहां से कहेंगे मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं. साथ ही उन्होंने चुनाव के लिए आमंत्रित करने के लिए कमलनाथ का आभार जताया था.

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कमलनाथ की ओर कठिन सीट से चुनाव लड़ने की ‘चुनौती’ देना और दिग्विजय सिंह का इसे ‘स्वीकार’ करना सूबे की राजनीति पर दूरगामी असर डालेगा. इसका असर लोकसभा चुनाव के बाद खुलकर दिखेगा. दिग्विजय सिंह को लेकर जो हिंदू विरोधी छवि गढ़ी जा चुकी है, उसका भोपाल के चुनावी समर में भारी पड़ना तय है. दिग्विजय चुनाव हारें या जीतें, दोनों ही स्थितियों में राज्य में कांग्रेस की अंतरकलह, घात-प्रतिघात और कुनबा परस्ती में इजाफा होगा.

शिवराज सिंह चौहान दिग्गी के भोपाल से चुनाव लड़ने के फैसले को ‘बंटाधार रिर्टन’ का दर्जा दे रहे हैं. 15 साल पहले ‘मिस्टर बंटाधार’ का फतवा देकर उमा भारती ने दिग्विजय सिंह से सत्ता छीनी थी. जहां तक भोपाल संसदीय क्षेत्र के इतिहास का सवाल है यहां सरकारी कर्मचारी और कायस्थ मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं. कुछ क्षेत्रों में मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण भी जबरदस्त असर डालता है.

30 साल से भाजपा के कब्जे में रही इस सीट पर पिछले 8 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तमाम चेहरों को पराजय झेलनी पड़ी. 1989 में रिटायर्ड नौकरशाह सुशील चंद्र वर्मा के हाथों केएन प्रधान की शिकस्त से शुरू हुए इस सिलसिले के बाद कांग्रेस ने धीरे-धीरे इस सीट को अपने लिए मुश्किल मान लिया. पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी उम्मीदवार आलोक संजर को सात लाख से ज्यादा वोट मिले जबकि कांग्रेस के पीसी शर्मा को महज साढ़े तीन लाख.

इससे पहले भाजपा से कांग्रेस में आए आरिफ बेग को भी भोपाल ने नकार दिया. यहां तक कि इस सीट पर भाग्य आजमाने वाले मंसूर अली खां पटौदी भी कांग्रेस को जीत नहीं दिलवा सके. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने जीत दर्ज की हो, लेकिन भोपाल लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में भाजपा के पास लगभग 60 हजार मतों की बढ़त है. अंतर की इस गहरी खाई को पाटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिग्विजय सिंह के मैदान में होने से कांग्रेस एकजुट होगी, लेकिन यह देखना रोचक होगा कि नरेंद्र मोदी का जादू और दिग्विजय सिंह की पुरानी छवि भोपाल के 21 लाख मतदाताओं के दिलो-दिमाग में कितना असर करती है. ये दोनों फैक्टर जीत और हार में बड़ी भूमिका तय करेंगे.

भाजपा की ओर से साध्वी प्रज्ञा इस सीट पर दावेदारी जता रही हैं. कैलाश विजयवर्गीय ने भी यहां के चुनावी रण में उतरने की मंशा जाहिर की है, लेकिन सबकी नजर शिवराज सिंह चौहान की तरफ है. क्या वे दिग्गी के सामने मैदान में उतरेंगे. यदि भोपाल में मुकाबला दिग्विजय सिंह बनाम शिवराज सिंह हुआ तो यह और रोचक हो जाएगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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