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क्या वास्तव में सच है EVM मशीन बदले जाने की खबरें, जानिए वायरल सच…

लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण पूरा होने के बाद कई जगह से ईवीएम मशीन बदले जाने की खबरें आ रही हैं. इससे जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. ये वीडियो झांसी, चंदौली, गाजीपुर और डुमरियागंज के बताए जा रहे हैं. वीडियो वायरल होने के बाद विपक्ष के नेता आरोप लगा रहे हैं कि नतीजों को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी ने ईवीएम बदलने का खेल रचा है. क्या वाकई में बीजेपी के इशारे पर ईवीएम की अदला-बदली हो रही है? क्या चुनाव आयोग बीजेपी के हाथों की कठपुतली बन गया है?

जब पॉलिटॉक्स ने इस मामले की पड़ताल की तो सामने आया कि सोशल मीडिया पर झांसी, चंदौली, गाजीपुर और डुमरियागंज के नाम से वायरल हो रहे वीडियो वहीं के हैं. वीडियो सही साबित होने के बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बीजेपी के इशारे पर ईवीएम को इधर-उधर किया गया. पॉलिटॉक्स ने इस बारे में पड़ताल की तो चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई.

दरअसल, झांसी, चंदौली, गाजीपुर और डुमरियागंज सीटों पर सातवें और आखिरी चरण में वोटिंग हुई थी. यहां मतदान पूरा होने का समय शाम छह बजे का था लेकिन जो मतदाता इस समय सीमा में मतदान केंद्र की चारदीवारी में दाखिल हो गए, उन्हें वोट डालने दिया गया. इसलिए कई जगह आठ बजे तक वोटिंग चली. मतदान पूरा होने के बाद कागजी खानापूर्ति हुई और ईवीएम मशीनें स्ट्रॉंग रूम के लिए रवाना हुईं. कई पोलिंग बूथ स्ट्रॉंग रूम से दूर थे इसलिए वहां से ईवीएम पहुंचते-पहुंचते सुबह हो गई. झांसी के जिला निर्वाचन अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है.

पॉलिटॉक्स की पड़ताल में यह भी सामने आया कि हर पोलिंग बूथ, जोनल और सेक्टर मजिस्ट्रेट के पास रिजर्व ईवीएम होती हैं. इनका प्रयोग वोटिंग के दौरान किसी ईवीएम के खराब हो जाने पर होता है. इनमें से जो ईवीएम काम नहीं आती हैं, उन्हें अलग स्ट्रॉंग रूम में रखा जाता है. आमतौर पर इन्हें दिन में स्ट्रॉंग रूम में रखा जाता है. सभी सीटों पर ऐसा हुआ, लेकिन झांसी, चंदौली, गाजीपुर और डुमरियागंज पर इनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.

झांसी के जिला निर्वाचन अधिकारी ने विस्तार से इसकी जानकारी दी है. उन्होंने कहा, ‘झांसी में एक ही पोलिंग पार्टी की रवानगी होती है, यहीं पर स्ट्रॉंग रूम बनते हैं और यहीं कलेक्शन प्वाइंट होता है. चूंकि गरोठा और मऊ काफ़ी दूर के विधानसभा क्षेत्र हैं तो कुछ पोलिंग पार्टियों को वहां से आने में विलंब हो गया था. कुछ पीठासीन अधिकारियों को अपने पत्र भरने में विलंब हो गया था. इसलिए स्ट्रॉंग रूम सील होते होते सुबह हो जाती है. यहां भी सुबह 7-7.30 तक सारी ईवीएम मशीन हमने स्ट्रॉंग रूम में रख दी थी. उनकी सीलिंग जेनरल ऑब्ज़र्वर और जो भी कैंडिडेट आए थे उनके सामने की गई थी, उन्हें इसके लिए सूचित किया गया था. सीलिंग करते समय वीडियो बनाई गई थी और सीसीटीवी कैमरा के सामने की गई थी.

एक आरोप यह भी लग रहा कि उम्मीदवारों को स्ट्रॉंग रूम की निगरानी नहीं करने दी जा रही है. गाजीपुर के जिला निर्वाचन अधिकारी ने इसका खंडन किया है. उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा, ‘इस सूचना के बारे में ये अवगत करवाना है कि ग़ाज़ीपुर में रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा ये व्यवस्था बनाई गई है कि प्रत्येक प्रत्याशी को स्ट्रॉंग रूम पर निगरानी रखने के लिए तीन कलेक्शन प्वाइंट परआठ-आठ घंटे में एक-एक व्यक्ति को पास जारी करने के लिए निर्धारित किया गया है. लेकिन कई जगहों पर कभी तीन तो कभी पांच लोगों को पास जारी करने की मांग की गई जिसके लिए प्रशासन ने असहमति जताई है.’

पॉलिटॉक्स की पड़ताल से यह साफ होता है कि झांसी, चंदौली, गाजीपुर और डुमरियागंज में ईवीएम बदलने की खबर सच नहीं है. असल में यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे हर सीट पर अपनाया गया है.

प्रणब मुखर्जी ने जताई EVM सुरक्षा पर चिंता, चुनाव आयोग को दी नसीहत

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लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में अब ज्यादा वक्त नहीं रहा है लेकिन इससे पहले ईवीएम को लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है. विपक्ष के इस दावे को और बल मिल गया जब सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने ट्विटर हैंडल से बयान का एक पत्र शेयर किया. इस बयान में मुखर्जी ने ईवीएम की सुरक्षा को लेकर खड़े हो रहे सवालों पर चिंता व्यक्त की है. साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग को नसीहत भी दी है कि वे हर हाल में जनता के फैसले पर संकट नहीं आने दे और लोकतंत्र पर जनता के भरोसे को नहीं टूटने दे.

अपने ट्विटर हैंडल से एक पत्र शेयर करते हुए प्रणब मुखर्जी ने लिखा कि लोकतंत्र में लोगों के निर्णय पर किसी तरह का संकट नहीं आना चाहिए. लोगों का फैसला हमेशा किसी भी तरह के संशय से हटकर सर्वोच्च रहना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने लिखा कि संस्थानों में विश्वास रखते हुए मेरा मानना है कि जो कार्य कर रहा है उसी की जिम्मे ही संस्थान को सही तरीके से चलाना होता है.’ प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा कि अभी जो भी संशय सामने आ रहे हैं, उसपर चुनाव आयोग को कार्रवाई करनी चाहिए ताकि इन संशयों को कोई जगह ना मिले.

गौरतलब है कि सोमवार को कांग्रेस, टीएमसी, AAP, NCP समेत कई पार्टियों ने दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में बैठक कर विपक्ष की एकजुटता दिखाई थी और चर्चा के बाद आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में चुनाव आयोग से मिले थे. इस दौरान विपक्ष ने आयोग से ईवीएम की सुरक्षा बढ़ाने की गुहार लगाई थी. इसी बीच अब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के इस संदेश के बाद ईवीएम सुरक्षा की बात को और बल मिला है.

बता दें कि इससे पहले प्रणब मुखर्जी भारत निर्वाचन आयोग के मौजूदा आयुक्त की तारिफ कर चुके हैं. उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था कि यदि हम संस्थानों को मजबूत करना चाहते हैं तो हमें ध्यान में रखना चाहिए कि ये संस्थान देश की अच्छी तरह से सेवा कर रहे हैं. वहीं पूर्व में भी एक कार्यक्रम में भी उनके द्वारा कहा गया था कि अगर लोकतंत्र सफल साबित हो रहा है तो इसके लिए चुनाव आयोग को काफी हद तक जिम्मेदार माना जाना चाहिए.

चुनाव आयोग ने 2-1 से खारिज की लवासा की मांग, नतीजों से पहले घमासान!

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एक तरफ लोकसभा चुनाव के बाद हर कोई बेसब्री से नतीजों का इंतजार कर रहा है. वहीं दूसरी ओर नतीजे जारी करने वाले चुनाव आयोग में ही घमासान छिड़ा हुआ है. खुद आयोग अंदरूनी मामलों व मतभेदों में ही उलझा नजर आ रहा है. सोमवार को निर्वाचन आयोग ने एक बैठक आयोजित की. जिसमें आयोग ने चुनाव आयुक्त की उस मांग को नकार दिया है जिसमें उन्होंने आचार संहिता से जुड़े कागजात को सार्वजनिक करने की मांग की थी. लवासा की इस मांग पर आयोग की बैठक में 2-1 के नतीजों से निर्णय लिया गया है. अशोक लवासा ने बीजेेपी शीर्ष नेताओं को क्लीन चिट व विपक्षी दलों को नोटिस देने पर आपत्ति जताई थी.

आयोग की यह अंदरखाने की लड़ाई मीडिया के जरिए जब देश के सामने आई तो हड़कंप मच गया था. चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने आचार संहित उल्लंघन मामलों में शीर्ष नेताओं को मिली क्लीन चिट और विपक्षी नेताओं को भेजे गए नोटिस पर सवाल खड़े किए थे. साथ ही उन्होंने कहा था कि आचार संहिता से जुड़े सभी कागजों को सार्वजनिक किया जाए. इस पर चुनाव आयोग की ओर से सोमवार को बड़ी बैठक आयोजित कर चर्चा की गई. बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के साथ सुशील चंद्रा व अशोक लवासा भी शामिल रहे. इसके बाद इस पर 2-1 की राय के अनुसार निर्णय लिया गया और अशोक लवासा की मांग को नकार दिया.

खास बात यह रही कि इस बैठक मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा व सुशील चंद्रा के साथ अशोक लवासा का शामिल होना अंचभित करने वाला था. बता दें कि इससे पहले की बैठकों में लवासा शामिल नहीं हुए थे. वरिष्ठ आयुक्त लवासा ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को इससे पहले पत्र लिखकर अपने मन की बात कही थी. जिसमें उन्होंने बताया था कि जब उनके मतभिन्नता के तर्क और दलील आयोग के आदेश में लिखे ही नहीं जाते तो बैठक में भाग लेने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता. इस पर आयोग की ओर से कहा गया है कि तीनों में से किसी भी आयुक्त की मतभिन्नता के तर्क बैठक के रिकॉर्ड में तो दर्ज तो किए ही जाते हैं लेकिन आदेश केवल बहुमत के आधार पर ही जारी किया जाता है.

आयोग की इस बैठक में इस बात की भी चर्चा की गई कि पद छोड़ने के बाद कई आयुक्त अपने मन की बात ब्लॉग या किताबों में लिखते रहे हैं, ऐसे में वह तसल्ली से अपनी बातों को सभी के सामने रख सकते हैं. बता दें कि सत्ता पक्ष द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लघंन को लेकर विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर निशाना बनाता रहा है. नतीजों से पहले सामने आई चुनाव आयुक्तों के मतभेद की बात के बीच विपक्ष अब ईवीएम का रौना रोने में लगा है और इस बार भी उनके निशाने पर है भारतीय निर्वाचन आयोग.

छतीसगढ़ के एग्ज़िट पोल के आंकड़े नहीं हो रहे हैं हजम

मतदान के आखिरी दौर के बाद न्यूज़ चैनल्स द्वारा जारी एग्ज़िट पोल के मुताबिक एनडीए की सरकार बनती दिख रही है. एग्ज़िट पोल में किस राज्य की किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही है, यह भी बताया गया है. सर्वे बीजेपी को छतीसगढ़ में 8 सीटें दिला रहा है. यह आंकड़ा राजनीतिक पंडितों के गले नहीं उतर रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जब बीजेपी को विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है तो पिछले पांच महीनों में ऐसा क्या हो गया कि पूरे राज्य का माहौल बीजेपीमय हो गया.

बता दें, छतीसगढ़ में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करीब 16 साल बाद सत्ता में वापसी हुई है. कांग्रेस को 90 में से 68 सीटों पर विजयश्री हासिल हुई और बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया. बीजेपी को सिर्फ 15 सीट पर ही जीत नसीब हुई थी. इनमें से कई सीटें तो जोगी-बसपा गठबंधन के कारण बीजेपी के खाते में आयी थी. 2013 के चुनावों के मुकाबले यहां बीजेपी को 34 सीटों का नुकसान हुआ था.

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली भारी जीत के चलते अनुमान लगाया जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन यहां अच्छा रहेगा. लेकिन एग्ज़िट पोल तो इसके विपरित ही इशारा कर रहे हैं.

बीजेपी आलाकमान भी इस बार चुनाव से पहले छतीसगढ़ को लेकर असमंसज की स्थिति में था. यही वजह है कि संगठन ने इस चुनाव में अपने नौ वर्तमान सांसदों के टिकट काट उन्हें चलता किया. यहां तक की पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का भी टिकट काटकर राजनांदगांव से संतोष पांडे को चुनावी मैदान में उतारना पड़ा.

छतीसगढ़ में चार लोकसभा सीट आदिवासी समाज के लिए आरक्षित है. इसी साल जनवरी में आदिवासी और वनवासियों को बड़ी संख्या में उनकी जमीन से विस्थापित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया था. इस पर केंद्र सरकार के ठंडे रवैए के बाद यह आशंका थी कि इस बार आदिवासी समाज का वोटर अपना रुख कांग्रेस की ओर करेगा. इससे इन क्षेत्रों में कांग्रेस को फायदा होने का अनुमान लगाया जा रहा था. इसके उलट,जिन क्षेत्रों में बीजेपी का जमकर विरोध हो, वहां बीजेपी जीत रही है, यह चमत्कार नहीं तो और क्या है.

छतीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारी जीत तो हासिल की लेकिन पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री अजीत जोगी की नई-नवेली पार्टी ‘जनता कांग्रेस’ ने कई क्षेत्रों में कांग्रेस का नुकसान किया था. जनता कांग्रेस ने पांच सीटों पर कब्जा जमाया था. वहीं कई सीटों पर कांग्रेस के वोटबैंक में सेंधमारी की थी.

लेकिन लोकसभा चुनाव से पूर्व जोगी ने अपनी पार्टी के प्रत्याशी चुनाव में नहीं उतारने का फैसला किया. इसके बाद यह साफ हो गया था कि जोगी के चुनाव से हटने का सीधा फायदा कांग्रेस को होगा. लेकिन जोगी के चुनाव में नहीं उतरने के बाद भी कांग्रेस का एग्ज़िट पोल में सफाया होना किसी जादूगिरी से कम नहीं है.

राजस्थान: इन 6 नेताओं और संघ की मेहनत से प्रदेश में खिलेगा कमल

तमाम एग्ज़िट पोल राजस्थान में बीजेपी को 25 में से 19 या उससे भी ज्यादा सीटें दे रहे हैं. हालांकि इस बात में कोई शक नहीं है कि बीजेपी प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन करने जा रही है. इसका क्रेडिट जाता है बीजेपी के छह प्रमुख नेताओं को. पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, प्रकाश जावड़ेकर, वसुंधरा राजे, सुंधाशु त्रिवेदी और चंद्रशेखर ने विधानसभा चुनाव में हार होने के बावजूद राज्य में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाया.

मोदी ने जहां ताबड़तोड़ सभाएं करते हुए अपने भाषणों से कार्यकर्ताओं को जोश दिलाया. शाह के नेतृत्व में मजबूत रणनीति को इन नेताओं ने अंजाम दिया. वसुंधरा राजे ने टिकट वितरण से लेकर प्रचार तक कमान संभाले रखी. वहीं संघ ने कमजोर सीटों पर विशेष फोकस रखते हुए प्रत्याशियों को जीत की दहलीज पर ला खड़ा किया. अगर एग्ज़िट पोल के दावे नतीजों में तब्दील होते हैं तो बीजेपी का कम से कम 20 सीटों पर जीत तय है. पांच महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में हारने वाली बीजेपी का कांग्रेस पर यह करारा पलटवार होगा.

आइए जानते हैं प्रदेश में कमल खिलाने में बीजेपी के किन छह नेताओं का अहम योगदान रहा …

पीएम नरेंद्र मोदी
बीजेपी की अगर एग्ज़िट पोल के तहत 20 सीटें आ रही हैं तो इसके रियल हीरो होंगे पीएम मोदी. मोदी का चेहरा और राष्ट्रवाद बीजेपी के लिए राजस्थान में संजीवनी बूंटी बन गया. हर प्रत्याशी बस ‘मोदी को ही वोट’ देने की रट लगा रहा था. जहां बीजेपी कमजोर थी, वहां मोदी ने ताबड़तोड सभाएं करते हुए अपने प्रत्याशियों को टक्कर में ला दिया. मोदी ने अपने ओजस्वी भाषण से कार्यकर्ताओं में जोश फूंक दिया. यह मोदी का ही करिश्मा था कि राजस्थान में फर्स्ट टाइमर्स वोटर्स थोक के भाव बीजेपी के पाले में गए.

अमित शाह
प्रदेश में कमल खिलाने में नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का अहम रोल रहा. शाह ने विधानसभा चुनाव में हार की भनक लगते ही राजस्थान पर ध्यान देना शुरु कर दिया था. इसके लिए शाह लगातार राजस्थान में दौरे करते रहे. इस दौरान शाह ने मौजूदा सांसदों की परफॉर्मेंस जानी. शाह ने ही रणनीति के तहत प्रकाश जावड़ेकर को राजस्थान चुनाव का प्रभारी बनाने का फैसला लिया. शाह की राय से ही टिकट वितरण से लेकर प्रचार प्रसार की रणनीति को अंजाम दिया गया था.

प्रकाश जावड़ेकर
केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर आलाकमान के चयन पर एकदम खरे साबित होते दिख रहे हैं. हर टास्क को जावड़ेकर ने बखूबी अंजाम दिया. जावड़ेकर ने कमान तब संभाली जब विधानसभा चुनाव में बीजेपी हार चुकी थी. जावड़ेकर ने हर सियासी और जातिगत समीकरण पर फोकस रखा. जातिगत समीकरण साधने के लिए नागौर की सीट हनुमान बेनीवाल को देने की चाल जावड़ेकर की ही थी. इसका फायदा बीजेपी को कईं सीटों पर मिलता दिख रहा है.

सुधांशु त्रिवेदी
सुधांशु त्रिवेदी को सहप्रभारी बनाकर चुनाव से पहले राजस्थान में भेजा गया था. त्रिवेदी ने हर जगह प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए लगातार गहलोत सरकार पर आक्रामक हमले किए. कर्ज माफी और युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने जैसे वादों की जमकर पोल खोली. साथ ही जमकर केंद्रीय योजनाओं के फायदे गिनाएं. त्रिवेदी ने प्रदेश सरकार पर जमकर आरोप लगाते हुए कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाए रखा.

वसुंधरा राजेे
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का प्रदेश की हर रणनीति में अहम रोल रहा. राजे ने टिकटों के बंटवारों से लेकर जातिगत समीकरण साधने और तूफानी चुनाव प्रचार तक पूरी कमान संभाले रखी. प्रदेश के तमाम नेताओं को राजे ने एकजुट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक की राजे नाराजगी के बावजूद राज्यवर्धन सिंह और गजेंद्र सिंह का प्रचार करने गई थी.

चंद्रशेखर
बीजेपी प्रदेश संगठन मंत्री चंद्रशेखर के प्रयास भी पार्टी के लिए काम आए. चंद्रशेखर के प्रयासों के चलते ही संघ का बीजेपी को पूरा साथ मिला. शाह के निर्देशन में चंद्रशेखर पर्दे के पीछे हर रणनीति को अंजाम देते बखूबी नजर आए. चंद्रशेखर संघ के साथ मिलकर प्रत्याशियों को जिताने में जुटे रहे. यही वजह रही कि इस बार राजस्थान में संघ ने बीजेपी के लिए जमकर पसीना बहाया.

आरएसएस का रोल
जानकारों की माने तो संघ ने पहली बार राजस्थान में सक्रिय होकर अपना रोल निभाया. इस बार वसुंधरा राजे के बजाय चुनाव की कमान केंद्रीय नेताओं के हाथ में थी इसलिए संघ ने मोदी को दोबारा पीएम बनाने के लिए जी-जान से मेहनत की. बीजेपी का जीत के लिए अन्य राज्यों के स्वयंसेवक भी राजस्थान में आए. संघ ने सबसे ज्यादा ध्यान कमजोर सीटों पर दिया. यह संघ की मेहनत का ही कमाल था कि जहां कांग्रेस लाखों से जीत का दावा कर रही थी, वहां अब जीत का टोटा पड़ रहा है. यही वजह रही कि सीएम अशोक गहलोत ने संघ को राजनीतिक पार्टी बनाने की नसीहत दे दी.

अगर एग्ज़िट पोल के दावे सही साबित होते हैं तो इन छह धुंरधंर बीजेपी नेताओं का कद बढ़ना तय है. क्योंकि भीषण गर्मी में भी इन नेताओं ने दिन-रात एक कर दिया और सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस के ‘मिशन 25’ को फेल करने की दिशा में जुट गए.

ईवीएम बवाल मामले में विपक्ष लामबंद, 21 दलों की दिल्ली में बैठक

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लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण के साथ ही अब हर किसी को नतीजों का बेसब्री से इंतजार है. इसी बीच आए विभिन्न न्यूज चैनल्स व सर्वे एजेंसियों के एग्जिट पोल ने सियासत को गर्मा दिया है. एनडीए एग्जिट पोल में मिल रही बढ़त के चलते उत्साहित है तो वहीं यूपीए इसे नकारते हुए असल परिणामों के इंतजार में लगा है. वहीं आज सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईवीएम व वीवीपैट की पर्चियों के मिलान की याचिका खारिज करने के बाद पूरा विपक्ष दिल्ली में जुटा है. जहां ईवीेएम से वीवीपैट पर्चियों के मिलान पर गहन चर्चा की गई. दूसरी ओर पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट मंत्रियों के साथ बैठक है. साथ ही बीजेपी अध्यक्ष एनडीए के सहयोगी दलों को डिनर देने जा रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले ही सत्ता पक्ष और विपक्ष की बैठकों का दौर शुरू हो गया है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री व टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में आज विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने मी़टिंग की है. इस दौरान उपस्थित सभी नेताओं ने एक स्वर में ईवीएम से वीवीपैट की पर्चियों के मिलान की बात पर चर्चा की. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ईवीएम मामले पर याचिका खारिज कर दी. जिसके बाद पूरा विपक्ष लामबंद दिख रहा है. ईवीएम पर उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक का विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है. विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है. बैठक के बाद चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में ये दल चुनाव आयोग से मिलने वाला है.

दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित बैठक में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, सपा नेता रामगोपाल यादव, राजद नेता मनोज झा, राजस्थान प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, टीएमसी के डिरेक ओ ब्रायन, बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा, सीपीएम के सीताराम येचुरी, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल व अहमद पटेल, सीपीआई के डी राजा, टीडीपी चीफ चंद्रबाबू नायडू, डीएमके की कनिमोझी और जेडीएस से दानिश अली शामिल हुए. इस बैठक से पहले सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि विपक्ष डरा हुआ नहीं है, जो डरे हुए हैं वो गुफा में बैठ रहे हैं.

मॉक पोल के साथ असली वोट भी डिलीट, 20 कर्मचारियों पर गिरी चुनाव आयोग की गाज

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हिमाचल प्रदेश में लोकसभा के आखिरी चरण के मतदान के दौरान लापरवाही को देखते हुए पांच पीठासीन अधिकारियों समेत 20 कर्मचारियों पर चुनाव आयोग की गाज गिरी है. तीन बार प्रशिक्षण के बावजूद इन कर्मचारियों की भारी चूक सामने आई है. इन्होंने मॉक पोल डिलीट किए बिना ही वोटिंग शुरू कर दी. इतना ही नहीं इसके बाद उच्च अधिकारियों को बिना किसी सूचना के हड़बड़ी में मॉल पोल के वोटों के साथ असली वोट भी ईवीएम से हटा दिए. अब आयोग जांच के बाद आगे की कार्रवाई करने वाला है.

निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता की कड़ाई से पालना सहित बिना चूक मतदान के प्रति सख्त दिखा है. आखिरी चरण के मतदान के दौरान रविवार को हिमाचल प्रदेश में उच्च अधिकारियों ने जब पोलिंग का जायजा लिया तो बड़ी चूक सामने आई. जहां नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र के कश्मीरपुर, मंडी के सलवाहन, नाचन के हरवाहनी, सरकाघाट के चौक-2 और कुल्लू के ढालपुर-3 पोलिंग बूथ पर मतदान कर्मचारी मॉक पोल के वोट डिलीट करना ही भूल गए. यही नहीं हड़बड़ी में कर्मचारियों ने कश्मीरपुर में तो असली वोट भी डिलीट कर डाले.

जिसमें नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र के हमीरपुर मतदान केंद्र पर 51 मॉक पोल के अलावा 36 असली वोट भी पड़ गए थे. वोटिंग शुरू होने के बाद जब मतदान कर्मियों को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने बिना उच्च अधिकारियों को जानकारी दिए सारे वोट डिलीट कर दिए. जिसमें मॉक पोल के बाद पड़े असली वोट भी डिलीट हो गए. मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने निर्वाचन आयोग को इस पूरी घटना की रिपोर्ट भेज दी गई. साथ ही मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस लापरवाही के आरोप में पांच पीठासीन अधिकारियों समेत 20 कर्मचारियों के निलंबन के आदेश जारी कर दिए हैं.

मतदान के दौरान इस गड़बड़ी के बाद उच्च अधिकारियों सभी जगह मतदान कर्मियों को बदल दिया. साथ ही पहले की ईवीएम और वीवीपैट मशीन भी सील कर बदली गईं. अब चुनाव आयोग नालागढ़ के कश्मीरपुर बूथ पर फिर से मतदान कराने पर अपना फैसला दे सकता है. चूंकि बड़ी संख्या में वोट डिलीट हुए हैं ऐसे में दिल्ली में आयोग को इसकी अलग से रिपोर्ट भेजी गई है.

नतीजों से पहले EVM पर दंगल, कांग्रेस के बाद ‘आप’ और महबूबा ने भी उठाए सवाल

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देश में लोकसभा चुनाव के बाद आए एग्ज़िट पोल ने विपक्ष की नींदे उड़ा दी है. अभी परिणाम आने शेष हैं लेकिन उससे पहले ही ईवीएम मशीन पर दंगल शुरू हो गया है. एग्ज़िट पोल ने केंद्र में एनडीए की सरकार क्या बनाई, पहले कांग्रेस और अब शेष विपक्ष के दलों ने लामबंध होकर ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. कांग्रेस के बाद आप पार्टी और महबूबा ने भी ईवीएम पर सवालिया निशान लगाया है.

वहीं दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम-वीवीपैट पर फिर से सुनवाई से इनकार कर दिया है. कई दलों ने ईवीएम की गणना का मिलान 100 फीसदी वीवीपैट की पर्चियों से करने की अपील की थी. अब इस मामले पर आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री व टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में 22 विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग को घेरना का मन बनाया है.

इधर, एग्ज़िट पोल आने के बाद कांग्रेस ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए शुरू कर दिए थे. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बारे में अपनी आवाज तेज की. अब आम आदमी पार्टी और महबूबा मुफ्ती भी इस लिस्ट में शामिल हो गई है.

इस बारे में आप पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने 23 मई को लोकसभा चुनाव की काउंटिंग से पहले चुनाव आयोग द्वारा गाइड लाइन जारी न होने पर आंदोलन का रास्ता अपनाने का ऐलान किया है. संजय सिंह ने कहा, ‘राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से लिखकर कहा था कि VVPAT की पर्चियों और EVM मशीन में कोई मिस मैच होता है या दोनों के वोट में मिसमैच और गड़बड़ी पाई जाती है तो आगे की गाइड लाइन क्या है? क्या उस क्षेत्र का चुनाव रद्द होगा? क्या उस क्षेत्र में दोबारा मतगणना होगी?’

वहीं जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी EVM की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं. अपने ट्वीटर हैंडल से उन्होंने ट्वीट किया, ‘ईवीएम स्विच करने की खबरें लगातार आ रही हैं, लेकिन अभी तक चुनाव आयोग की तरफ से कोई सफाई नहीं दी गई है. जिस तरह एग्जिट पोल के बाद इस तरह की लहर बनाने की कोशिश हो रही है, ये एक तरह से दूसरे बालाकोट की तैयारी है.’

राष्ट्रीय जनता दल ने भी अपने आॅफिशियल ट्वीट हैंडल से एक ट्वीट शेयर कर ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है.

प्रियंका गांधी ने नकारा एग्ज़िट पोल, कार्यकर्ताओं को दी यह नसीयत

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लोकसभा चुनाव के सभी चरणों के समाप्त होने के बाद आए ​एग्ज़िट पोल्स ने कांग्रेस सहित सभी नेताओं की नींद उड़ाकर रख दी है. ऐसे में समय पर कुछ कांग्रेसी नेता ईवीएम का रोना रो रहे हैं तो कुछ दिलासा देने में लगे हैं. ऐसे भी कुछ लीडर्स हैं जो अभी भी एग्ज़िट पोल को नकार रहे हैं. पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी भी उन्हीं में से एक हैं जो कार्यकर्ताओं को एग्ज़िट पोल पर भरोसा न करने को लेकर नसीयत दे रही हैं. बता दें, लोकसभा चुनाव का परिणाम 23 मई को आना है.

प्रियंका ने कार्यकर्ताओं से अफवाहों और एग्ज़िट पोल पर ध्यान न देने को कहा है. साथ ही अपील की है कि वे स्ट्रॉन्ग रूम और मतगणना केंद्रों पर डटे रहें. प्रियंका ने कार्यकर्ताओं को जारी एक ऑडियो संदेश में कहा, ‘आप लोग अफवाहों और एक्ज़िट पोल से हिम्मत मत हारिए. यह अफवाहें आपका हौसला तोड़ने के लिए फैलाई जा रही है.

इस बीच आपकी सावधानी और भी महत्वपूर्ण बन जाती है. स्ट्रांग रूम और मतगणना केंद्रों पर डटे रहिए और चौकन्ने रहिए. हमें पूरी उम्मीद है कि हमारी और आपकी मेहनत का फल मिलेगा.’

यह तो पक्का है कि मीडिया संस्थानों के एग्ज़िट पोल ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का हौसला तो पूरी तरह से चकनाचूर कर दिया है. इस बीच प्रियंका ने उनकी हौसला अफजाई करने के लिए यह संदेश जारी कर दिया जो उनके हौसलों में नई जान फूंक सकता है. हालांकि करीब-करीब सभी एग्ज़िट पोल जो केंद्र में एनडीए की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, सभी को नकारा नहीं जा सकता.

इसके बाद भी प्रियंका की हार न मानने और कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई करने की यह कोशिश भी काबिलेतारीफ है. वैसे केवल दो दिन का इंतजार शेष है और परिणाम सामने आ जाएगा. हालांकि राहुल गांधी की ओर से अभी तक कोई टिप्पणी इस बारे में नहीं आयी हे.

राजस्थान: मंत्रियों-दिग्गजों को चुनाव नहीं लड़ाना कांग्रेस के लिए हो रहा है भारी साबित

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के बाद तमाम एग्ज़िट पोल प्रदेश में कांग्रेस को महज तीन से पांच सीटें दे रहे हैं. इसके बाद कांग्रेस में अभी से हार के कारणों को लेकर चर्चा शुरु हो गई है. कांग्रेस नेता अब मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को चुनाव नहीं लड़ाने की रणनीति को कम सीटें आने के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं.

अगर कांग्रेस अजमेर से सचिन पायलट या रघु शर्मा, भीलवाड़ा से सीपी जोशी, झालावाड़ से प्रमोद जैन भाया, बाड़मेर से हरीश चौधरी, जयपुर शहर से महेश जोशी और जयपुर ग्रामीण से लालचंद कटारिया को मैदान में उतारती तो शायद कांग्रेस की अच्छी सीटें आ सकती थी. अब कांग्रेस के पास सिवाय मंथन और अफसोस के अलावा कुछ नहीं बचा है.

अजमेर
अगर खुद डिप्टी सीएम सचिन पायलट या मंत्री रघु शर्मा यहां से चुनाव लड़ते तो कांग्रेस शानदार मुकाबला कर सकती थी. दोनों नेता पहले यहां से सांसद रह चुके हैं. दोनों के मुकाबले रिजु झुंनझुनवाला बेहद कमजोर प्रत्याशी साबित हुए. बाहरी होने के चलते अजमेर के मतदाताओं की बात छोड़िए, खुद कांग्रेस के कईं नेताओं ने रिजु का साथ नहीं दिया. पायलट या रघु शर्मा लड़ते तो अजमेर सीट कांग्रेस आराम से निकाल सकती थी. वहीं रिजु को टिकट देकर कांग्रेस ने जीत सीधे थाली में परोसकर बीजेपी को दे दी.

भीलवाड़ा
मिनी नागपुर के नाम से पहचान बनाते भीलवाड़ा में कांग्रेस ने कमजोर मोहरे पर दांव खेला. विधानसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद भी कांग्रेस ने कमजोर प्रत्याशी रामपाल शर्मा पर दांव खेला. यहां कांग्रेस अगर सीपी जोशी को मैदान में उतारती तो बाजी पलट सकती थी. लेकिन स्पीकर बनने के बाद सीपी को कांग्रेस ने चुनावी मैदान में उतारने पर विचार तक नहीं किया. जोशी पहले यहां से सांसद रह चुके हैं.

बारां-झालवाड़
यहां से मंत्री प्रमोद जैन भाया मैदान में उतरते तो मुकाबले में कांग्रेस नजर आ सकती थी. लेकिन भाया ने खुद चुनाव लड़ने में रुचि नहीं दिखाई जिसके चलते बीजेपी से आए प्रमोद शर्मा को टिकट दिया गया. पू्र्व सीएम वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह के सामने शर्मा कहीं टिकते नजर नहीं आए. खुद कांग्रेस यहां से बड़े अंतर से हार मानकर चल रही है.

जयपुर शहर
तमाम विरोध के बावजूद कांग्रेस ने जयपुर शहर से ज्योति खंडेलवाल पर दांव खेला. ज्योति की जगह अगर महेश जोशी को चुनाव लड़ाया जाता तो कांग्रेस की बात बन सकती थी. यहां भी कांग्रेस ने बीजेपी को एक तरह से वॉकओवर दे दिया.

जयपुर ग्रामीण
हालांकि कृष्णा पूनिया ने अच्छी तरह से चुनाव लड़ा लेकिन बाहरी होने का कहीं ना कहीं नुकसान उन्हें उठाना पड़ा. अगर यहां से पहले सांसद रहे लालचंद कटारिया को चुनाव में उतारते तो बात बन सकती थी. लेकिन कांग्रेस ने जाट और सेलिब्रिटी की रणनीति के तहत कृष्णा पूनिया को यहां से उतारा. इससे अच्छा यह होता कि कृष्णा को अगर चूरु से टिकट देते तो सीट निकल सकती थी.

बाड़मेर
बाड़मेर में कांग्रेस ने मानवेंद्र सिंह को टिकट दिया. मंत्री हरीश चौधरी ने टिकट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. वहीं बीजेपी ने जाट कार्ड खेलते हुए कैलाश चौधरी मैदान में उतारा. जानकारों का कहना है कि कैलाश चौधरी के सामने हरीश चौधरी भारी साबित होते.

तो यह वो छह सीटें हैं जिन पर कांग्रेस अगर मंत्रियों और दिग्गजों पर दांव खेलती तो विजयश्री हासिल कर सकती थी. अब इनको चुनाव नहीं लड़ाने की रणनीति कांग्रेस के लिए भारी साबित होती दिख रही है. लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद कांग्रेस नेता खुलकर कमजोर रणनीति अपनाने की गलती स्वीकार कर सकते हैं.

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