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एक तरफ लोकसभा चुनाव के बाद हर कोई बेसब्री से नतीजों का इंतजार कर रहा है. वहीं दूसरी ओर नतीजे जारी करने वाले चुनाव आयोग में ही घमासान छिड़ा हुआ है. खुद आयोग अंदरूनी मामलों व मतभेदों में ही उलझा नजर आ रहा है. सोमवार को निर्वाचन आयोग ने एक बैठक आयोजित की. जिसमें आयोग ने चुनाव आयुक्त की उस मांग को नकार दिया है जिसमें उन्होंने आचार संहिता से जुड़े कागजात को सार्वजनिक करने की मांग की थी. लवासा की इस मांग पर आयोग की बैठक में 2-1 के नतीजों से निर्णय लिया गया है. अशोक लवासा ने बीजेेपी शीर्ष नेताओं को क्लीन चिट व विपक्षी दलों को नोटिस देने पर आपत्ति जताई थी.

आयोग की यह अंदरखाने की लड़ाई मीडिया के जरिए जब देश के सामने आई तो हड़कंप मच गया था. चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने आचार संहित उल्लंघन मामलों में शीर्ष नेताओं को मिली क्लीन चिट और विपक्षी नेताओं को भेजे गए नोटिस पर सवाल खड़े किए थे. साथ ही उन्होंने कहा था कि आचार संहिता से जुड़े सभी कागजों को सार्वजनिक किया जाए. इस पर चुनाव आयोग की ओर से सोमवार को बड़ी बैठक आयोजित कर चर्चा की गई. बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के साथ सुशील चंद्रा व अशोक लवासा भी शामिल रहे. इसके बाद इस पर 2-1 की राय के अनुसार निर्णय लिया गया और अशोक लवासा की मांग को नकार दिया.

खास बात यह रही कि इस बैठक मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा व सुशील चंद्रा के साथ अशोक लवासा का शामिल होना अंचभित करने वाला था. बता दें कि इससे पहले की बैठकों में लवासा शामिल नहीं हुए थे. वरिष्ठ आयुक्त लवासा ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को इससे पहले पत्र लिखकर अपने मन की बात कही थी. जिसमें उन्होंने बताया था कि जब उनके मतभिन्नता के तर्क और दलील आयोग के आदेश में लिखे ही नहीं जाते तो बैठक में भाग लेने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता. इस पर आयोग की ओर से कहा गया है कि तीनों में से किसी भी आयुक्त की मतभिन्नता के तर्क बैठक के रिकॉर्ड में तो दर्ज तो किए ही जाते हैं लेकिन आदेश केवल बहुमत के आधार पर ही जारी किया जाता है.

आयोग की इस बैठक में इस बात की भी चर्चा की गई कि पद छोड़ने के बाद कई आयुक्त अपने मन की बात ब्लॉग या किताबों में लिखते रहे हैं, ऐसे में वह तसल्ली से अपनी बातों को सभी के सामने रख सकते हैं. बता दें कि सत्ता पक्ष द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लघंन को लेकर विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर निशाना बनाता रहा है. नतीजों से पहले सामने आई चुनाव आयुक्तों के मतभेद की बात के बीच विपक्ष अब ईवीएम का रौना रोने में लगा है और इस बार भी उनके निशाने पर है भारतीय निर्वाचन आयोग.

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