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राजस्थान की विधानसभा पर भूत-प्रेतों का साया होने की चर्चा क्यों होती है?

जब राजस्थान की विधानसभा नए भवन में शिफ्ट होने के बाद कई विधायकों की मृत्यु और कई के जेल जाने के बाद यह चर्चा होती है कि इसमें भूत—प्रेतों का साया है. 14वीं विधानसभा अंतिम सत्र के अंतिम दिन बाकायदा इस पर लंबी चर्चा हुई. कुछ विधायकों ने गंभीर होकर इस मुद्दे का उठाया और कुछ ने मजाकिया लहजे में विधानसभा के भवन का शुद्धिकरण करने की मांग की. इस दौरान तत्कालीन मुख्य सचेतक कालू लाल गुर्जर ने दावा किया कि उन्होंने पंडितों और वास्तु विशेषज्ञों को विधानसभा भवन परिसर दिखाया था. उन्होंने कुछ उपाय बताए हैं, जिन्हें किया जाना चाहिए. हालां​​कि ऐसा कुछ किया नहीं गया.

बता दें कि 11वीं विधानसभा में फरवरी 2001 से नए विधानसभा भवन में शिफ्ट कर लिया गया था. 25 फरवरी को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन को इसका उद्घाटन करने आना था, लेकिन बीमार होने की वजह से वे नहीं आ सके और बिना उद्घाटन के ही विधानसभा शुरू हो गई. इसके बाद नवंबर 2001 में इसका उद्घाटन हुआ. तब से लेकर अब तक आठ विधायकों की मौत हो चुकी है. 2001 में तब की अशोक गहलोत सरकार के केबिनेट मंत्री भीखा भाई, विधायक किशन मोटवानी और भीमसेन चौधरी की मृत्यु हो गई जबकि 2003 में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राम सिंह विश्नोई काल के गाल में समा गए.

2005 में विधायक अरुण सिंह दुनिया से चले गए और 2017 में भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी और 2018 में कल्याण सिंह दुनिया से चले गए. इसके अलावा 2011 में तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार के केबिनेट मंत्री महिपाल मदेरणा और कांग्रेस विधायक मलखान सिंह को चर्चित भंवरी देवी हत्या प्रकरण में जेल जाना पड़ा. इसी साल दारिया एनकाउंटर मामले में भाजपा के वरिष्ठ विधायक राजेंद्र राठौड़ को सीबीआई ने गिरफ्तार किया. वहीं, 2013 में कांग्रेस सरकार के मंत्री बाबूलाल नागर को बलात्कार के एक मामले में जेल की हवा खानी पड़ी और 2017 में बसपा के बीएल कुशवाह को हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा हुई.

कई विधायक सार्वजनिक रूप से यह कह चुके हैं कि विधानसभा भवन का एक हिस्सा श्मशान की जमीन पर बना हुआ है, जिसकी वजह से गड़बड़ हो रही है. वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल के समय अध्यक्ष सुमित्रा सिंह ने भवन का कथित वास्तुदोष दूर करने के नाम पर उत्तर दिशा में एक बोरवेल खुदवाया था. हालांकि इसके बावजूद विधायकों की मौतों का सिलसिला नहीं थमा. वैसे कई विधायक यह कह चुके हैं कि भूत—प्रेत की बातें करना अंधविश्वास से अधिक कुछ भी नहीं है. विज्ञान भी यही कहता है.

कांग्रेस के किन दो नेताओं ने रची अशोक चांदना को मंत्री पद से हटाने की साजिश?

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार में राज्यमंत्री अशोक चांदना की कुर्सी पर आया संकट टल गया है. जयपुर विद्युत वितरण निगम के अभियंता जेपी मीणा की शिकायत पर बूंदी जिले की नैनवां थाना पुलिस ने चांदना के खिलाफ राजकार्य में बाधा डालने और जातिसूचक शब्दों से अपमानित करने करने का मामला दर्ज कर लिया है. पुलिस के अनुसार चांदना के खिलाफ धारा 332, 353, 504 व एससी-एसटी एक्ट की धारा 3 के तहत मामला दर्ज किया गया है. मामले की जांच सीआईडीसीबी जयपुर को भेजी गई है.

मामला दर्ज होने के बाद मंत्री चांदना के खिलाफ जयपुर विद्युत वितरण निगम के कर्मचारियों और मीणा समाज की ओर से जारी आंदोलन थम गया है. गौरतलब है कि युवा मामले एवं खेल राज्यमंत्री अशोक चांदना ने हिंडौली में जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों की शिकायत पर 5 फरवरी को काछौला फीडर के हेल्पर मुकेश सैनी को सस्पैंड करने को कहा था. मंत्री के कहने पर अभियंता जेपी मीणा ने सैनी को इसी दिन सस्पैंड कर दिया, लेकिन 12 फरवरी को मुख्य अभियंता क्षेमराज मीणा के आदेश के बाद अभियंता मीणा ने हेल्पर को काछौला के पास हरना फीडर पर लगा दिया.

अशोक चांदना जब 18 फरवरी को इलाके में पहुंचे तो ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि आपके कहने पर जो हेल्पर सस्पैंड हुआ उसे अभियंता जेपी मीणा ने आठ दिन बाद ही काछौला के पास हरना फीडर पर लगा दिया तो मंत्री भन्ना गए. उन्होंने तुरंत जयपुर विद्युत वितरण निगम के आला अधिकारियों और अभियंता मीणा को तलब किया. मीणा की मानें तो रात 9 बजे उनकी मंत्री से नैनवां हाईवे पर मुलाकात हुई जहां उन्होंने आते ही पूछा कि एसई कौन है‌? एक्सईएन कौन है? मैंने कहा कि मैं एक्सईएन हूं. इस पर मंत्री ने यह कहते हुए थप्पड़ जड़ दिया कि तूने उस कर्मचारी को वापस क्यों लगाया, गिरेबान पकड़कर जातिसूचक गालियां देने लगे.

इस घटना का एक ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो बवाल मच गया. जयपुर विद्युत वितरण निगम के कर्मचारियों ने तो मंत्री चांदना के खिलाफ कार्रवाई करने और मंत्री पद से बर्खास्त करने की मांग को लेकर आंदोलन किया ही मीणा समाज भी लामबंद हो गया. शुरूआत में सरकार ने इस आंदोलन को दरकिनार किया, लेकिन तूल प​कड़ने पर कान खड़े हुए. सरकार के हरकत में आने की भनक लगते ही मंत्री चांदना अपनी कुर्सी बचाने के लिए सक्रिय हो गए. उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे से मिलकर अपना पक्ष रखा.

इस दौरान अशोक चांदना कई बार मीडिया के सामने आए. चांदना में हर बार यह दोहराया कि उन्होंने ना तो अभियंता जेपी मीणा के साथ मारपीट की और ना ही उन्हें गालियां दीं. वायरल ऑडियो में आवाज भी उनकी नहीं है. चांदना ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश रची जा रही है. उन्होंने अभियंता मीणा के साथ मारपीट और गालीबाजी की या नहीं, इसका खुलासा तो जांच में होगा, लेकिन यह रहस्य बरकरार है कि आखिरकार अशोक चांदना के खिलाफ साजिश रची किसने. कौन है इसका सूत्रधार?

‘पॉलिटॉक्स’ के पुख्ता सूत्रों के अनुसार अशोक चांदना के खिलाफ साजिश के सूत्रधार कांग्रेस के दो कद्दावर नेता हैं. हाड़ौती से ताल्लुक रखने वाले इन नेताओं में से एक वर्तमान में विधायक हैं और दूसरे को विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था. जब अशोक चांदना का कथित गाली और थप्पड़ कांड सामने आया तो इन दोनों नेताओं की बांछे खिल गईं. असल में पिछली कांग्रेस सरकार में विधानसभा में ऊंचे ओहदे पर रह चुके इन आदिवासी नेता को इस बार मंत्री पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन नंबर नहीं आया. इन्हें लगता है कि चांदना के मंत्री बनने की वजह से उनका पत्ता कट गया. य​​दि चांदना की मंत्रिमंडल से छुट्टी हो जाए तो उनकी लॉटरी लग सकती है.

जबकि दूसरे नेता राज्यमंत्री रह चुके हैं और इस बार भी उन्होंने विधानसभा चुनाव मंत्री बनने के ख्वाब के साथ लड़ा, लेकिन नजदीकी मुकाबले में हारने की वजह से इनका सपना चकनाचूर हो गया. इस हार के पीछे वे खुद के लचर प्रबंधन और रणनीति को जिम्मेदार मानने की बजाय अशोक चांदना की कथित कारसेवा पर ठीकरा फोड़ते हैं. इन्हें चांदना के मंत्री पद से हटने से कोई पद तो नहीं मिलता, लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली हार का हिसाब जरूर चुकता हो जाता. इन दोनों नेताओं में पहले ने चांदना-अभियंता विवाद को जाति का रंग दिया. इनके इशारे पर ही मीणा समाज के लोगों ने अशोक चांदना के खिलाफ धरना, प्रदर्शन और ज्ञापन सिलसिला शुरू किया, जो दो दिन बाद ही हाड़ौती के बाहर तक पहुंच गया.

वहीं, दूसरे नेता ने जयपुर विद्युत वितरण निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को चांदना के खिलाफ आंदोलन करने के लिए उकसाया. ये नेता अधिकारियों को यह कहते हुए सुने गए कि आज गाली और थप्पड़ एक को मिले हैं, यदि मंत्री को सबक नहीं सिखाया तो सबको पांच साल तक ऐसी ही गुंडागर्दी झेलनी पड़ेगी. दोनों ने चांदना के पिता की पृष्ठभूमि को भी अधिकारियों के सामने ताजा किया. इन दोनों नेताओं के इशारे पर चांदना के खिलाफ जोरदार आंदोलन हुआ. इससे उनकी कुर्सी हिली जरूर, लेकिन आंच नहीं आई. अक्सर ‘हर गलती हिसाब मांगती है’ कहने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चांदना को ‘पहली गलती’ पर चेतावनी देकर बख्श दिया. गहलोत की इस मेहरबानी से चांदना के खिलाफ साजिश रचने वाले दोनों नेता हलकान हैं. दोनों अगले मौके की तलाश में जुट गए हैं. चांदना को भी इनकी भनक है. उन्होंने इन पुराने चावलों से निपटने का इंतजाम कर लिया है.

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