होम ब्लॉग पेज 3150

‘अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है और अब इस अंधेरी सुरंग में रोशनी की किरण भी नहीं दिख रही’

PoliTalks news

भारतीय अर्थव्यवस्था के साल 2018 में सुस्त रहने का खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा है. अब भारत के सिर से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का ताज छिन गया है. अर्थव्यस्था की दृष्टि से भारत अब 7वें पायदान पर काबिज है. ब्रिटेन और फ्रांस की अर्थव्यवस्था में भारत के मुकाबले ज्यादा ग्रोथ रिकॉर्ड की गई. इस वजह से ब्रिटेन 5वें और फ्रांस छठे स्थान पर पहुंच गया है. अमेरिका टॉप पर बरकरार है. अर्थशास्त्रियों की मानें तो अर्थव्यवस्था पिछड़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना है. मोदी सरकार ने अगले पांच सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने की बात कही गई है. ऐसे में विश्व बैंक का ये ताजा आंकड़ा परेशान करने लगा है.

भारतीय अर्थव्यवस्था के दो पायदान खिसकते ही विपक्ष को मौका मिल गया और उन्होंने दोनों हाथों से इसे भुनाने की कोशिश भी की है. पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था की गाड़ी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. बातों ही बातों में राहुल गांधी ने मोदी 2.0 सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारण पर भी तंज कसा है. लेकिन सोशल मीडिया पर मोदी सरकार नहीं बल्कि खुद राहुल गांधी ट्रोल हो रहे हैं. एक यूजर ने तो यहां तक कहा है कि अगर आप इतने बड़े अर्थशास्त्री हैं तो 2007 में आपने अपना ज्ञान मनमोहनजी को क्यों नहीं दिया. अगर ऐसा करते तो देश में रिशेसन न आता.

@RahulGandhi

@kkshastri_IYC

@Jainkiranjain1

@thesharad

@INCTharoorian

अमरनाथ यात्रा पर आतंकी साया, पर्यटकों को लौटने के निर्देश

PoliTalks news

जम्मू-कश्मीर में पिछले एक सप्ताह से चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शुक्रवार को आई एक बड़ी खबर ने सबको चौंका दिया. जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले की साजिश और संभावनाओं को देखते हुए अमरनाथ यात्रा को रोक दिया गया है. जम्मू-कश्मीर सरकार ने पर्यटकों को जो जहां हैं, वही से वापिस लौटने के आदेश जारी कर दिए हैं. पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों की तरफ से अमरनाथ यात्रा पर हमले की आशंका के मद्देनजर भारत सरकार ने ये निर्णय लिया है. इसके लिए भारत सरकार की तरफ से एडवाइजरी की गई है. इससे पहले खराब मौसम के चलते अमरनाथ यात्रा को 4 अगस्त तक के लिए रोका गया था. अचानक यात्रा खत्म किए जाने संबंधी एडवाइजरी जारी किए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर नाराजगी और चिंता जताई है.

यह भी पढ़ें: धारा 35ए, विधानसभा चुनाव, आतंकी घटना या कुछ और..?

खूफिया इनपुट के आधार पर आतंकियों द्वारा अमरनाथ यात्रा को आईडी धमाके और यात्रियों पर हमले के जरिये निशाना बनाने की कोशिश करने की विशिष्ट सूचना मिली है. इसके लिए सेना की ओर से सघन तलाशी अभियान चलाया जा रहा है. सुरक्षाबलों ने पाकिस्तान में बनी एक लैंडमाइन और टेलीस्कोप के साथ एक M-24 अमेरिकन स्नाइपर राइफल बरामद की है. इससे साफ है कि कश्मीर में आतंकी हमलों की कोशिश हो रही है.

सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा, ‘पाकिस्तान कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने की लगातार कोशिशें कर रहा है. इसके लिए सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की कोशिशें हो रही हैं. इस मौके पर 15 कोर कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लन ने कहा, ‘पिछले तीन-चार दिनों में बहुत ही स्‍पष्‍ट और पुष्‍ट खुफिया जानकारी मिली है कि पाकिस्‍तानी सेना द्वारा समर्थित आतंकी अमरनाथ यात्रा बाधित करने की फिराक में हैं और उसके आधार पर यात्रा के दोनों मार्गों, दक्षिण की तरफ के पहलगाम वाले रास्‍ते और उत्तर की तरफ के बालटाल वाले रास्‍तों पर सेना और सीआरपीएफ की टीमों में संयुक्‍त रूप से गहन तलाशी अभियान चलाया है. यहां तक कि पवित्र गुफा तक जाने वाले पैदल मार्ग की भी पिछले तीन दिनों से लगातार जांच की जा रही है.’

सरकार के इस आदेश पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है, ‘यह आदेश दर्शाता है कि अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमले की आशंका है. हालांकि इससे घाटी में मौजूद डर को कम नहीं किया जा सकता है.’

इससे पहले गृह मंत्रालय के एक आदेश के बाद जम्मू-कश्मीर में पिछले सप्ताह करीब 10 हजार अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद हाल ही में 26 हजार और अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती के निर्देश दिए गए हैं. ग्रह मंत्रालय के इस आदेश का जम्मू-कश्मीर में जमकर विरोध हो रहा है. खैर, जो भी हो लेकिन इतना तय है कि पहले इतनी संख्या में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती और अब अमरनाथ यात्रा रोकने के साथ ही पयर्टकों की वापसी के आदेश, हो न हो, घाटी में सच में कुछ बड़ा तो होने वाला है.

राजस्थान में राज्यसभा की एक सीट पर उपचुनाव की तैयारी

राजस्थान में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन लाल सैनी के निधन से खाली राज्यसभा सीट पर 26 अगस्त को उपचुनाव होगा, जिसके लिए नामांकन भरने की आखिरी तारीख 14 अगस्त है. पहले यह भाजपा की सीट थी, लेकिन अब राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस का बहुमत होने से यह सीट कांग्रेस को मिलेगी. इसके बावजूद विधायकों की तोड़-फोड़ का सॉलिड अनुभव ले चुकी भाजपा अपना उम्मीदवार भी इस सीट पर खड़ा कर सकती है.

इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से डॉ. मनमोहन सिंह को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा है. पहले वह असम से राज्यसभा सांसद थे. उनका कार्यकाल जून में समाप्त हो चुका है. मनमोहन सिंह को तमिलनाडु से राज्यसभा में भेजने की तैयारी चल रही थी, लेकिन वहां कांग्रेस की सहयोगी पार्टी द्रमुक ने खाली राज्यसभा सीट पर वाइको को चुने जाने का वादा कर लिया था, इसलिए मनमोहन सिंह को तमिलनाडु से राज्यसभा में नहीं भेजा जा सका. तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और द्रमुक ने राज्यसभा की तीन-तीन सीटें जीती हैं.

कांग्रेस के कुछ नेता मानते हैं कि मनमोहन सिंह काफी उम्रदराज हो चुके हैं, इसलिए उन्हें राज्यसभा में भेजना ठीक नहीं होगा. मनमोहन सिंह बोलते भी बहुत कम हैं और ज्यादा सक्रिय भी नहीं हैं. कांग्रेस के ये नेता चाहते हैं कि राजस्थान की राज्यसभा सीट ऐसे नेता को दी जाए, जिसका मजबूत जनाधार हो और जिससे पार्टी को वोट दिलाने में मदद मिले.

यह भी पढ़ें: राजस्थान में गहलोत और पायलट की खींचतान और तेज होने के आसार

राजस्थान में सचिन पायलट के समर्थक चाहते हैं कि इस खाली सीट से अशोक गहलोत को राज्यसभा में भेज दिया जाए, जिससे कि राज्य में पायलट का रास्ता साफ हो और वह मुख्यमंत्री बन सकें. राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन का इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता है. इस सीट पर कार्यकाल 2024 तक रहेगा. हालांकि इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार तय करने का फैसला कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद होने की संभावना है.

गौरतलब है कि इस समय राज्यसभा में कांग्रेस की सीटें बहुत कम है, इसलिए कांग्रेस इस मौके का फायदा उठाकर किसी सक्षम नेता को राज्यसभा में भेज सकती है.

जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस पर पंचायतों में फहराया जाएगा तिरंगा

BDC Election
BDC Election

जम्मू-कश्मीर में तेज हो रही चुनावी सरगर्मियों के बीच भाजपा अपनी चुनावी संभावनाएं मजबूत करने के लिए जोरशोर से जुट गई है. इसके तहत 15 अगस्त को कश्मीर घाटी में स्वतंत्रता दिवस पर बड़ा जश्न मनाने की तैयारी है. इसके तहत सभी पंचायत प्रमुखों को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रध्वज फहराने के लिए कहा गया है.

सूत्रों की मानें तो आल जम्मू एंड कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के प्रधान अनिल शर्मा ने कि इस बार सभी सरपंचों से स्वतंत्रता दिवस पर अपनी पंचायतों में तिरंगा फहराने की अपील की है. वहीं भाजपा महासचिव राम माधव ने कहा है कि यह सरकारी फैसला नहीं है. फिर भी अगर राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के कार्यक्रम होते हैं तो उसमें हर्ज क्या है. बताया जाता है कि हाल ही भाजपा के जम्मू-कश्मीर कोर ग्रुप की दिल्ली में हुई बैठक में इस विषय पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया था. बैठक की अध्यक्षता भाजपा का कार्यवाहक अध्यक्ष जेपी नड्डा ने की थी. इस बैठक में जम्मू-कश्मीर में भाजपा की चुनावी तैयारियों पर भी बातचीत हुई.

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में इन दिनों बड़े पैमाने पर अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की जा रही है. सूत्रों का कहना है कि यह तैनाती स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से की जा रही है, जिससे कि स्वतंत्रता दिवस समारोह के कार्यक्रम निर्विघ्न संपन्न हो जाएं. कुछ लोग इसे विधानसभा चुनाव की तैयारी से जोड़ रहे हैं. कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने को लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर का एक अलग झंडा है और अलग संविधान है. मुस्लिम बहुल इस राज्य को स्वायत्त राज्य का दर्जा मिला हुआ है.

यह भी पढ़ें: अमरनाथ यात्रा पर आतंकी साया, पर्यटकों को लौटने के निर्देश

जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के साथ ही राज्य का झंडा भी फहराया जाता है. पूर्व पुलिस अधिकारी फारूख खान ने 2015 में इस परंपरा को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. फारूख खान भाजपा में शामिल होने के बाद लक्षद्वीप में प्रशासक नियुक्त किए गए हैं. उन्होंने तत्कालीन महबूबा मुफ्ती की सरकार के फरमान के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें राज्य की सभी संवैधानिक इमारतों और सरकारी वाहनों पर जम्मू-कश्मीर का झंडा फहराने के लिए कहा गया था. हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद सरकारी फरमान पर रोक लगा दी थी.

कुछ लोगों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की. 27 दिसंबर 2015 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने राज्य में दोनों झंडे फहराने का आदेश दिया था. इसके बाद राज्य में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए और भाजपा की एक विधान-एक निशान की नीति पर सवाल उठने लगे थे. इसके बाद भाजपा ने सिंगल बैंच के फैसले के खिलाफ खंडपीठ में अपील की थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि जम्मू-कश्मीर में भी पूरे देश की तरह राष्ट्र ध्वज ही फहराया जाएगा.

सरकार को फरमान जारी करने की जरूरत इसलिए पड़ी कि एक नागरिक अब्दुल कयूम खान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए राष्ट्र ध्वज के सम्मान के संबंध में अदालत से निर्देश मांगे थे. यह पीडीपी-भाजपा गठबंधन में पड़ी पहली दरार भी थी. विवाद होने पर सरकारी वेबसाइट से चुपचाप यह सर्कुलर हटा दिया गया था.

जम्मू-कश्मीर के झंडे में लाल पृष्ठभूमि पर हल का निशान और तीन खड़ी लाइनें हैं, जो कश्मीर, जम्मू और लद्दाख को दर्शाती है. इनका अपना इतिहास है, जो 1931 के बाद हुए राजनीतिक आंदोलनों से जुड़ा है. 13 जुलाई 1931 में तत्कालीन डोगरा सरकार ने श्रीनगर की सेंट्रल जेल के पास गोलीबारी करवा दी थी, जिसमें 21 लोगों की मौत हुई थी. इसके विरोध में किसी ने एक घायल व्यक्ति की खून से सनी कमीज को जम्मू-कश्मीर के झंडे के रूप में फहराया था. 11 जुलाई 1939 को डोगरा शासकों के खिलाफ आंदोलन शुरू करने वाली पार्टी जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस ने इसे अपने झंडा बना लिया.

यह भी पढ़ें: धारा 35ए, विधानसभा चुनाव, आतंकी घटना या कुछ और..?

7 जून, 1952 को जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने एक प्रस्ताव पारित करते हुए इसे राजकीय ध्वज का दर्जा दे दिया. बताया जाता है कि 1947 से 1952 तक जम्मू-कश्मीर में इसे राष्ट्रीय ध्वज माना जाता था. नेशनल कांफ्रेंस का एक गीत भी था, जिसे मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी ने लिखा था, लेकिन उसे राज्य की स्थापना में शामिल नहीं किया गया. यह गीत 2001 में उमर अब्दुल्ला के पार्टी अध्यक्ष बनने के मोके पर गाया गया था.

जम्मू-कश्मीर को लेकर 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच समझौता हुआ था जिसमें केंद्र और राज्य के अधिकार परिभाषित किए गए थे. इसमें तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज और जम्मू-कश्मीर को राजकीय ध्वज माना गया और दोनों ध्वज साथ में फहराने की परंपरा शुरू हुई. राज्य में आंदोलनों से जुड़े ऐतिहासिक कारणों से अलग राजकीय ध्वज को मान्यता देने की जरूरत महसूस की गई. जम्मू-कश्मीर के संविधान में भी इसे मान्यता दी गई है. जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक आंदोलन 1947 से पहले किसानों के शोषण और उसके खिलाफ आवाज उठाने पर केंद्रित हुआ करते थे. नेशनल कांफ्रेंस का नया कश्मीर (न्यू कश्मीर) एजेंडा साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित था.

भाजपा राष्ट्र के एकीकरण के मुद्दे पर राजनीति कर रही है, इसलिए इस बार स्वतंत्रता दिवस पर कश्मीर में जगह-जगह राष्ट्रध्वज फहराए जाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. साथ ही भाजपा को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी जीतना है. इसी सिलसिले में इस बार स्वतंत्रता दिवस पर धूमधाम से हर पंचायत में राष्ट्र ध्वज फहराने की तैयारी चल रही है.

विधायकों के सेमीनार में मोदी को लेकर टिप्पणी पर हंगामा

जयपुर में गुरुवार एक अगस्त को विधायकों के लिए आयोजित एक सेमीनार में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली की प्रोफेसर जोया हसन के संबोधन से नाराज भाजपा विधायकों ने सेमीनार का बायकाट कर दिया. यह घटना सेमीनार के समापन सत्र में हुई. सेमीनार दिनभर चला. लेकिन समापन सत्र में भाजपा विधायक जेएनयू की प्रोफेसर जोया हसन की इस बात से बुरी तरह नाराज हो गए कि मोदी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव विज्ञापनों के बल पर जीते हैं. इस पर सेमीनार में उपस्थित करीब 40 भाजपा विधायकों ने हंगामा किया और सभा कक्ष से बाहर निकल गए.

प्रो. जोया हसन ने कहा कि वर्तमान में तीन केंद्रीय विचारधाराएं देखने में आ रही हैं. पहली लोकलुभावनवाद, दूसरी अधिनायकवाद, तीसरी राष्ट्रवाद. उन्होंने भारतीय राजनीति में सत्ता के केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के बारे में भी विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि सरकार ने देश में हिंदुत्व की विचारधारा फैलाने के लिए कई शहरों के नाम बदले और मुस्लिमों को खत्म करने का काम किया. कोई भी अगर देश में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ आवाज उठाए तो वे राष्ट्रवाद के खिलाफ है, ऐसा माहौल देश में तैयार हो रहा है.

जोया हसन ने कहा कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फोटो सहित सरकारी योजनाओं के विज्ञापन छापे, उनमें ऐसा लगा कि वे सरकार की नहीं, बल्कि अपनी स्वयं की योजनाएं हैं. उन्होंने कहा कि अब केन्द्र के साथ-साथ राज्यों में भी हिंदुत्व की शुरूआत हो रही है. उनके इतना कहते ही भाजपा के सदस्य भड़क गए. उनके सब्र का बांध टूट गया और वे विरोध करने लगे. हंगामा हो गया. सत्र की अध्यक्षता कर रहे सीपी जोशी ने सदस्यों को शांत करने का प्रयास किया. बाद में उन्हें कहना पड़ा कि अगर आपकी इसमें रुचि नहीं है तो आप बाहर जा सकते हैं. जोशी के यह कहने पर गुलाबचंद कटारिया सहित भाजपा के सभी सदस्य सभा स्थल से बाहर चले गए. बाद में गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि जोया हसन का बयान निंदनीय है. उनकी बातें पार्लियामेंट को सुधारने से जुड़ी हुई नहीं थी. इसलिए हमने सेमीनार का बहिष्कार किया.

एक दिवसीय सेमीनार का आयोजन राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) और लोकनीति-सीएसडीएस के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था, जिसका विषय था- भारत के संसदीय लोकतंत्र की बदलती प्रकृति (चेंजिंग नेटर ऑफ पार्लियामेंट डेमोक्रेसी इन इंडिया). सेमीनार का उद्घाटन मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया. उद्घाटन सत्र को राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के उपाध्यक्ष मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, सीपीए के सचिव विधायक संयम लोढ़ा ने संबोधित किया. सेमीनार की अध्यक्षता चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने की.

यह भी पढ़ें: डिनर डिप्लोमैसी पर जोया हसन ने फेरा पानी, जोशी की टिप्पणी ने किया आग में घी का काम

सेमीनार के उद्घाटन सत्र का प्रमुख भाषण प्रणव मुखर्जी ने अंग्रेजी में दिया था, जिससे कई विधायकों को असुविधा हुई. उद्गाटन सत्र के बाद अगले सत्र से पहले भाजपा विधायक रामप्रताप कासनिया को कहना पड़ा कि उद्घाटन के दौरान एक घंटे तक हमें अंग्रेजी में भाषण होने से तपना पड़ा, अब क्या आगे के सत्रों में भी ऐसे ही तपना पड़ेगा? राजेन्द्र राठौड़ ने भी वक्ताओं से हिंदी में बोलने का अनुरोध किया. इसके बाद वक्ताओं ने हिंदी में भाषण दिए.

सेमीनार के दूसरे सत्र प्रोफेसर सुहास पलसीकर ने विधायकों को संसदीय प्रणाली की जानकारी दी. जैन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संदीप शास्त्री, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने भी संबोधित किया. बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजेन्द्र गुढ़ा ने अपनी ही पार्टी की प्रमुख मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बसपा में एक विधायक को टिकट देने के बाद दूसरा विधायक अगर ज्यादा पैसे देता है तो उसे टिकट दे दिया जाता है. तीसरा व्यक्ति उससे ज्यादा पैसे देता है तो उसका टिकट काटकर तीसरे व्यक्ति को टिकट दे दिया जाता है. इस पर राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि इसका जवाब तो बसपा अध्यक्ष मायावती ही दे सकती है.

सेमीनार के तकनीकी सत्र को वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त उमेश सिन्हा, ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय, पंजाव विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के प्रोफेसर आशुतोष कुमार, केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के डॉ. केके कैलाश, राज्य के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने संबोधिन किया. उमेश सिन्हा ने भारतीय चुनाव व्यवस्था में तीन खतरों के बारे में बताया. पहला खतरा बाहुबल, दूसरा खतरा धनबल और तीसरा खतरा है मीडिया में पेड न्यूज के अलावा सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहें. इन खतरों को दूर करने के लिए चुनाव प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है. आशुतोष वार्ष्णेय ने कहा कि उदारवादी लोकतंत्र में तीन बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. पहला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, दूसरा धार्मिक स्वतंत्रता, तीसरा संगठनात्मक स्वतंत्रता. आशुतोष कुमार ने क्षेत्रीय राजनीति का विश्लेषण किया.

समापन सत्र में सीपी जोशी ने कहा कि सबके विचारों को सुनना लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है. चाहे कोई किसी के विचारों से सहमत न हो, फिर भी उसके विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लोकतांत्रिक और उदारवादी होने के कारण भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूती के साथ स्थापित हो पाई है. जोया हसन ने लोकतंत्र में आए बदलाव के बारे में बताया.

अध्यक्षीय भाषण चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने दिया. उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सभी के विचारों को सुनना आवश्यक है. लोकतंत्र की रक्षा के लिए निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है. उसके सामने मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करना सबसे बड़ी चुनौती है. 2009 से 2014 तक देश में आठ करोड़ नए मतदाता जुड़े हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में स्वीप कार्यक्रम के तहत 91 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. राष्ट्रमंडल देशों के बीच भारत ने चुनावी दृष्टि से सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है. एसोसिएशन ऑफ वर्ल्ड इलेक्शन बॉडी ने भारत को इस बार अध्यक्षता करने का न्योता दिया है.

कुल मिलाकर सेमीनार विचारोत्तेजक रहा. संसदीय लोकतंत्र में सुधार के लिए कई विचार और सुझाव सामने आए. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) के सचिव संयम लोढ़ा ने आभार प्रदर्शन किया.

राजस्थान में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए लम्बा इंतजार

अब शत्रुघ्न सिन्हा ने भी सुझाया प्रियंका गांधी का नाम, पार्टी के लिए बताया पावर बूस्टर

पहले शशि थरूर फिर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और अब पूर्व भाजपा सांसद व कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रियंका गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सबसे उपयुक्त बताया है. सिन्हा ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए योग्य उम्मीदवार बताते हुए कहा है कि अगर ऐसा होता है तो ये कांग्रेस पार्टी और अन्य कार्यकर्ताओं के लिए पावर बूस्टर की तरह होगा

बता दें, हाल ही में यूपी के सोनभद्र नरसंहार मामले पर शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रियंका गांधी के एक्शन की जमकर तारीफ की थी. इससे पहले कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्रियंका गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के योग्य बताते हुए कगा था कि , “प्रियंका गांधी के पास ‘स्वाभाविक करिश्मा’ है जो निश्चित तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को प्रेरित और एकजुट कर सकता है. उनकी इसी खूबी के कारण कई लोग उनकी तुलना उनकी दादी और पूर्व पार्टी अध्यक्ष दिवंगत इंदिरा गांधी से करते हैं.”

वरिष्ठ नेता शशि थरूर के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कांग्रेस अध्यक्ष पड़ के लिए प्रियंका गांधी के नाम की पैरवी कर चुके हैं. कैप्टन ने कहा था, “कांग्रेस की बागडोर संभालने के लिए वह सही विकल्प होंगी”

यह भी पढ़े: ‘प्रियंका गांधी कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभालने के लिए सबसे सही विकल्प’

शुक्रवार को सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, ‘हमारे पास प्रियंका गांधी के रूप में एक युवा अध्यक्ष है फिर देरी क्यों? आइए जल्द ही फैसला करें. देरी से जल्दी बेहतर है. मैं दूसरों की तरह ही विचारों को प्रतिध्वनित करता हूं. फिर न कहना, होशियार ना किया, ख़बरदार ना किया. जय हिन्द!’ उनके इस ट्वीट के बाद कांग्रेस में एक बार फिर से अध्यक्ष पद के लिए प्रियंका गांधी के नाम की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है.

गौरतलब है कि शशि थरूर, पंजाब सीएम कै.अमरिंदर सिंह के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री और यूपी कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे और पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनिल शास्त्री सहित पार्टी के अन्य सीनियर नेता भी पार्टी अध्यक्ष के लिए प्रियंका गांधी को एक परफेक्ट उम्मीदवार बता चुके हैं.

यह भी पढ़े: कांग्रेस अध्यक्ष तय करने में जितनी देर होगी उतनी गुटबंदी बढ़ेगी और शुरू होगा बिखराव

बता दें, 25 मई, 2019 को लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में उन्होंने इस इस्तीफे को सोशल मीडिया पर भी शेयर करते हुए इस्तीफा वापिस लेने के सभी कयासों को पूरी तरह समाप्त कर दिया. राहुल गांधी किसी गैर गांधी व्यक्ति को पार्टी चीफ बनाना चाह रहे हैं. साथ ही उन्होंने प्रियंका गांधी को इन सब से दूर रखने को भी कहा है.

दिग्गी ने उठाए अमित शाह की नियत पर सवाल

पैसे दो…टिकट लो

आखिर क्यों हो रहा है नेशनल मेडिकल कमीशन बिल-2019 का विरोध, जानिए सच…

केंद्र सरकार ने नेशनल मेडिकल कमिशन बिल-2019 को विपक्ष के विरोध के बावजूद गुरुवार को राज्यसभा से पास करा लिया. इससे पहले 29 जुलाई को ये बिल लोकसभा से में पारित करवाया गया था. जल्दी ही इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा जाएगा और उनकी अनुमति के बाद ये बिल कानून की शक्ल ले लेगा.

गौरतलब है कि जब से ये बिल लोकसभा से पारित हुआ है, देशभर के डॉक्टर्स इस बिल के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं. दिल्ली में एम्स के डॉक्टर्स भी लगातार तीसरे दिन हड़ताल पर हैं. विरोध प्रदर्शन के चलते अधिकांश सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह ठप्प हो गयी. आखिर क्या है इस बिल में जो सभी चिकित्सक एकजुट हो विरोध करने पर आमादा हैं. आइए जानते हैं ….

एनएमसी बिल-2019 पर एक सरसरी निगाह डालें तो पता चलता है कि पूरे बिल में केवल 5-6 बातें ही हैं जिसका की डॉक्टर्स विरोध कर रहे हैं. हालांकि इस बिल को सरकार केवल मेडिकल क्षेत्र में सिस्टम को सुधारने के लिए लेकर आयी है. सरकार का कहना है कि इस बिल के कानून बनने के बाद चिकित्सा परिस्थितियां बदल जाएंगी.

यह भी पढ़ें: राज्यसभा से भी पास हुआ तीन तलाक बिल, पॉलिटॉक्स की खबर पर लगी मुहर

1. इस बिल पर सबसे बड़ा विरोध ये हैं कि एनएमसी बिल-2019 में एक ब्रिज कोर्स का प्रावधान है. इस ब्रिज कोर्स को करने के बाद आयुर्वेद और होम्योपैथी डॉक्टर एलोपैथिक इलाज कर पाएंगे. इसके विरोध में डॉक्टर्स का कहना है कि इससे नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा. वहीं सरकार का कहना ये है कि आयुर्वेद और होम्योपैथी डॉक्टर्स के आने के बाद डॉक्टर्स की संख्या बढ़ेगी और चिकित्सा व्यवस्था सुधरेगी. साथ ही कहा गया है कि ब्रिज कोर्स के जरिए सीमित एलोपैथी प्रैक्टिस का अधिकार केवल उन आयुष डॉक्टरों को मिलेगा जिनके पास प्रैक्टिस का लाइसेंस हो.

2. एनएमसी के 32वें प्रावधान के तहत कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को मरीजों को दवाइयां लिखने और इलाज का लाइसेंस मिलेगा. इस प्रावधान पर डॉक्टर्स ने आपत्ति जताई कि इससे मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी. चिकित्सों का ये भी कहना है कि बिल में ‘कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर’ शब्द को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया. इसके अनुसार, अब नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिक्स आधुनिक दवाइयों के साथ प्रैक्टिस कर सकेंगे जबकि, वे इसके लिए प्रशिक्षित नहीं होते. इस पर सरकार का तर्क है कि इस बिल के आने से प्राइमरी हेल्थ वर्कर्स को 6 महीने का मेडिकल कोर्स करके प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिल जाएगा. इसके बाद वे प्राइमरी इलाज कर सकेंगे और दवाईयां भी लिख सकेंगे. इस कदम से खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को खासी राहत मिलेगी. कानून बनने के बाद करीब 3.5 लाख गैर-चिकित्सा शिक्षा प्राप्त लोगों को लाइसेंस मिलेगा.

3. नेशनल मेडिकल कमिशन बिल-2019 में दूसरा प्रावधान ये है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को 50 फीसदी सीटों की फीस तय करने का हक मिलेगा. इस प्रावधान के बाद जायज है कि अगर मेडिकल कॉलेज खुद फीस तय करेगा तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षा महंगी हो जाएगी. इस पर सरकार ने तर्क दिया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को 50 फीसदी सीटों की फीस तय करने का हक देने से आर्थिक तंगी से बंद होने की नौबत नहीं आएगी. हालांकि देश में एमबीबीएस की मौजूदा 76 हजार सीटों में से 58 हजार सीटों पर फीस सरकार ही तय करेगी.

4. केंद्र सरकार ने चिकित्सा में शिक्षा के स्तर को उंचा उठाने के लिए नेशनल मेडिकल कमिशन बिल-2019 में एक प्रावधान डाला गया है. प्रावधान के अनुसार, एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिस शुरू करने के लिए डॉक्टरों को एक टेस्ट पास करना होगा. उसके बिना कोई भी प्रैक्टिस नहीं कर पाएगा. डॉक्टर्स का सबसे अधिक विरोध इसी प्रावधान पर है. डॉक्टरों का कहना है कि एक बार टेस्ट में नाकाम रहने के बाद दोबारा टेस्ट देने का कोई अतिरिक्त विकल्प यहां नहीं है. ऐसे में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद भी हजारों लोगों को घर बैठना पड़ेगा. वहीं सरकार ने तर्क दिया है कि इससे पढ़ाई का स्तर सुधरेगा. इस परीक्षा को पास करने वालों को ही मैडिकल प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस दिया जाएगा. इसी के आधार पर पोस्ट ग्रैजुएशन में एडमिशन होगा. बिल में बिना लाइसेंस मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को एक साल की जेल और 5 लाख तक जुर्माने की व्यवस्था का प्रावधान है.

यह भी पढ़ें: राजस्थान में राज्यसभा की एक सीट पर उपचुनाव की तैयारी

5. इस बिल के आने के बाद एमसीआई यानि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया खत्म हो जाएगी. इसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन यानि एनएमसी लेगा. एमसीआई की बर्खास्ती के साथ ही कई अधिकारियों की सेवाएं भी तत्काल प्रभाव से समाप्त होंगी. इस पर सरकार का तर्क हे कि जिन कर्मचारियों-अधिकारियों की सेवाएं खत्म होंगी, उन्हें 3 महीने की तनख्वाह और भत्ते मिलेंगे. उसके बाद ही एनएमसी बनने की कार्यवाही शुरू होगी.

6. अगला तर्क राजनीतिक है. इसके तहत अब तक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के उच्चाधिकारियों की नियुक्ति चुनाव से होती आयी है लेकिन नेशनल मेडिकल कमीशन में सरकार द्वारा गठित एक कमेटी अधिकारियों का चयन करेगी. इसमें चिकित्सा संघ का कहना ये है कि सरकार तो अपने पसंद के अधिकारी को ही पैनल में बिठाएगी और पसंद के अधिकारी को एनएमसी में भेजेगी. इस पर सरकार ने तर्क दिया है कि चुने गये अधिकारी का कार्यकाल केवल चार वर्ष के लिए होगा. इससे चिकित्सीय पैनल को राजनीति से दूर रखने में मदद मिलेगी. कार्यकाल कम होने से योग्य लोगों को बेहतर अवसर प्राप्त होंगे.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने (IMA) ने एनएमसी बिल-2019 का कड़ा विरोध किया है. बिल का विरोध करते हुआ IMA के कहना है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन 1956 में आधुनिक चिकित्सा सेवा को पंजीकृत करने और दिशा निर्देशित करने के लिए किया गया था. इसके अलावा यह चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को भी देखता है. आईएमए का कहना है कि इस बिल से मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षा महंगी हो जाएगी.

बिल का विरोध करते हुए आईएमए ने कहा कि बिल में कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर शब्द को सही से परिभाषित नहीं किया गया है. जिससे नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिक्स आधुनिक दवाइयों के साथ प्रैक्टिस कर सकेंगे. इसके अलावा निजी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन 50 प्रतिशत सीटों को मनमर्जी के दाम में बेचेंगे जिससे मेडिकल शिक्षा गरीब युवा की सोच से बहुत दूर हो जाएगी.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat