जयपुर में गुरुवार एक अगस्त को विधायकों के लिए आयोजित एक सेमीनार में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली की प्रोफेसर जोया हसन के संबोधन से नाराज भाजपा विधायकों ने सेमीनार का बायकाट कर दिया. यह घटना सेमीनार के समापन सत्र में हुई. सेमीनार दिनभर चला. लेकिन समापन सत्र में भाजपा विधायक जेएनयू की प्रोफेसर जोया हसन की इस बात से बुरी तरह नाराज हो गए कि मोदी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव विज्ञापनों के बल पर जीते हैं. इस पर सेमीनार में उपस्थित करीब 40 भाजपा विधायकों ने हंगामा किया और सभा कक्ष से बाहर निकल गए.
प्रो. जोया हसन ने कहा कि वर्तमान में तीन केंद्रीय विचारधाराएं देखने में आ रही हैं. पहली लोकलुभावनवाद, दूसरी अधिनायकवाद, तीसरी राष्ट्रवाद. उन्होंने भारतीय राजनीति में सत्ता के केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के बारे में भी विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि सरकार ने देश में हिंदुत्व की विचारधारा फैलाने के लिए कई शहरों के नाम बदले और मुस्लिमों को खत्म करने का काम किया. कोई भी अगर देश में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ आवाज उठाए तो वे राष्ट्रवाद के खिलाफ है, ऐसा माहौल देश में तैयार हो रहा है.
जोया हसन ने कहा कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फोटो सहित सरकारी योजनाओं के विज्ञापन छापे, उनमें ऐसा लगा कि वे सरकार की नहीं, बल्कि अपनी स्वयं की योजनाएं हैं. उन्होंने कहा कि अब केन्द्र के साथ-साथ राज्यों में भी हिंदुत्व की शुरूआत हो रही है. उनके इतना कहते ही भाजपा के सदस्य भड़क गए. उनके सब्र का बांध टूट गया और वे विरोध करने लगे. हंगामा हो गया. सत्र की अध्यक्षता कर रहे सीपी जोशी ने सदस्यों को शांत करने का प्रयास किया. बाद में उन्हें कहना पड़ा कि अगर आपकी इसमें रुचि नहीं है तो आप बाहर जा सकते हैं. जोशी के यह कहने पर गुलाबचंद कटारिया सहित भाजपा के सभी सदस्य सभा स्थल से बाहर चले गए. बाद में गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि जोया हसन का बयान निंदनीय है. उनकी बातें पार्लियामेंट को सुधारने से जुड़ी हुई नहीं थी. इसलिए हमने सेमीनार का बहिष्कार किया.
एक दिवसीय सेमीनार का आयोजन राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) और लोकनीति-सीएसडीएस के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था, जिसका विषय था- भारत के संसदीय लोकतंत्र की बदलती प्रकृति (चेंजिंग नेटर ऑफ पार्लियामेंट डेमोक्रेसी इन इंडिया). सेमीनार का उद्घाटन मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया. उद्घाटन सत्र को राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के उपाध्यक्ष मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, सीपीए के सचिव विधायक संयम लोढ़ा ने संबोधित किया. सेमीनार की अध्यक्षता चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने की.
यह भी पढ़ें: डिनर डिप्लोमैसी पर जोया हसन ने फेरा पानी, जोशी की टिप्पणी ने किया आग में घी का काम
सेमीनार के उद्घाटन सत्र का प्रमुख भाषण प्रणव मुखर्जी ने अंग्रेजी में दिया था, जिससे कई विधायकों को असुविधा हुई. उद्गाटन सत्र के बाद अगले सत्र से पहले भाजपा विधायक रामप्रताप कासनिया को कहना पड़ा कि उद्घाटन के दौरान एक घंटे तक हमें अंग्रेजी में भाषण होने से तपना पड़ा, अब क्या आगे के सत्रों में भी ऐसे ही तपना पड़ेगा? राजेन्द्र राठौड़ ने भी वक्ताओं से हिंदी में बोलने का अनुरोध किया. इसके बाद वक्ताओं ने हिंदी में भाषण दिए.
सेमीनार के दूसरे सत्र प्रोफेसर सुहास पलसीकर ने विधायकों को संसदीय प्रणाली की जानकारी दी. जैन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संदीप शास्त्री, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने भी संबोधित किया. बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजेन्द्र गुढ़ा ने अपनी ही पार्टी की प्रमुख मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बसपा में एक विधायक को टिकट देने के बाद दूसरा विधायक अगर ज्यादा पैसे देता है तो उसे टिकट दे दिया जाता है. तीसरा व्यक्ति उससे ज्यादा पैसे देता है तो उसका टिकट काटकर तीसरे व्यक्ति को टिकट दे दिया जाता है. इस पर राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि इसका जवाब तो बसपा अध्यक्ष मायावती ही दे सकती है.
सेमीनार के तकनीकी सत्र को वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त उमेश सिन्हा, ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय, पंजाव विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के प्रोफेसर आशुतोष कुमार, केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के डॉ. केके कैलाश, राज्य के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने संबोधिन किया. उमेश सिन्हा ने भारतीय चुनाव व्यवस्था में तीन खतरों के बारे में बताया. पहला खतरा बाहुबल, दूसरा खतरा धनबल और तीसरा खतरा है मीडिया में पेड न्यूज के अलावा सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहें. इन खतरों को दूर करने के लिए चुनाव प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है. आशुतोष वार्ष्णेय ने कहा कि उदारवादी लोकतंत्र में तीन बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. पहला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, दूसरा धार्मिक स्वतंत्रता, तीसरा संगठनात्मक स्वतंत्रता. आशुतोष कुमार ने क्षेत्रीय राजनीति का विश्लेषण किया.
समापन सत्र में सीपी जोशी ने कहा कि सबके विचारों को सुनना लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है. चाहे कोई किसी के विचारों से सहमत न हो, फिर भी उसके विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लोकतांत्रिक और उदारवादी होने के कारण भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूती के साथ स्थापित हो पाई है. जोया हसन ने लोकतंत्र में आए बदलाव के बारे में बताया.
अध्यक्षीय भाषण चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने दिया. उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सभी के विचारों को सुनना आवश्यक है. लोकतंत्र की रक्षा के लिए निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है. उसके सामने मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करना सबसे बड़ी चुनौती है. 2009 से 2014 तक देश में आठ करोड़ नए मतदाता जुड़े हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में स्वीप कार्यक्रम के तहत 91 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. राष्ट्रमंडल देशों के बीच भारत ने चुनावी दृष्टि से सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है. एसोसिएशन ऑफ वर्ल्ड इलेक्शन बॉडी ने भारत को इस बार अध्यक्षता करने का न्योता दिया है.
कुल मिलाकर सेमीनार विचारोत्तेजक रहा. संसदीय लोकतंत्र में सुधार के लिए कई विचार और सुझाव सामने आए. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) के सचिव संयम लोढ़ा ने आभार प्रदर्शन किया.