भाजपा सदस्यता अभियान में राजस्थान अव्वल
विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने अपना परिवार और बढ़ाने के लिए 6 जुलाई को देशव्यापी सदस्यता अभियान की शुरुआत की थी, यह अभियान आगामी 11 अगस्त तक चलेगा. अभियान में पार्टी से वंचित लोगों को जोड़ने के लिए भाजपा ने इस अभियान की शुरुआत की है. अभियान के तहत राजस्थान में भी पार्टी के तमाम पदाधिकारी और कार्यकर्ता जोरशोर से ‘भाजपा सदस्यता अभियान’ के तहत मिस्ड कॉल और फॉर्म के जरिये पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवा रहे है…
राजस्थान में इन दिनों भाजपा का सदस्यता अभियान जोर-शोर से चल रहा है. पार्टी अब तक प्रदेश में 26 लाख सदस्य बना चुकी है. पार्टी के प्रदेश पदाधिकारी और सांसद व सभी विधायक इस सदस्यता अभियान में जुटे हैं. अभियान के तहत पार्टी ने अपने सभी सांसदों को प्रदेश पदाधिकारियों के साथ पिछले दिनों प्रदेश के सभी जिलों में भेजा था. राजस्थान में पार्टी का सदस्यता अभियान छह जुलाई से शुरू हुआ था जो कि 11 अगस्त तक चलेगा. इसके बाद 12 अगस्त से 31 अगस्त तक प्रदेश में सक्रिय सदस्यता अभियान चलेगा जिसमें पार्टी के लिए 25 सदस्य बनाने वाले कार्यकर्ता को पार्टी का सक्रिय सदस्य बनाया जायेगा.
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राजस्थान में भाजपा सदस्यता अभियान के प्रदेश संयोजक सतीश पूनिया ने शनिवार को प्रदेश भाजपा मुख्यालय पर पत्रकार वार्ता में बताया कि प्रदेश में पार्टी के इस सदस्यता अभियान में अब तक करीब 26 लाख सदस्य बनाये जा चुके है और हमारा लक्ष्य प्रदेश में 30 लाख सदस्य बनाने का है जबकी राष्ट्रीय नेतृत्व ने प्रदेश को 10 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया था.
पूनिया ने बताया कि पिछले दिनों हुई वीडियो कांफ्रेंस में राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने राजस्थान को सदस्यता अभियान में अव्वल बताया था. पूनिया ने बताया कि राजस्थान में हमने पार्टी के सभी अग्रिम संगठनों के साथ अभियान चला रखा है इस अभियान के तहत युवा मोर्चा, महिला मोर्चा सहित सभी अग्रिम संगठनों ने कैम्प लगा कर सदस्यता अभियान चलाया है. यही कारण है कि प्रदेश में अब तक 26 लाख सदस्य जोड़ने में पार्टी सफल हुई है.
अभियान की विस्तृत जानकारी देते हुए पूनिया ने बताया कि इस अभियान के तहत प्रदेश में जिन बूथों पर सदस्यों की संख्या कम थी उनको विशेष फोकस किया गया प्रदेश में एैसे करीब 10 हजार बूथ थे. सदस्यता अभियान के साथ-साथ सामाजिक कार्य करते हुए भाजपा ने इन दिनों प्रदेश में अब तक करीब 2 लाख पेड भी लगाये है. पूनिया के अनुसार आने वाले समय में भाजपा सामाजिक कार्यों में और गती लाएगी और इसके तहत पूरे प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करवाये जाएंगे.
प्रदेश में भाजपा का यह सदस्यता अभियान अब और गति पकडेगा. आगामी 7 अगस्त को पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उदयपुर के दौरे पर रहेंगे. इस दौरान चौहान उदयपुर में विभिन्न सदस्यता अभियानों में शिरकत करेंगे. इस एक दिवसीय उदयपुर दौरे के दौरान शिवराज सिंह चौहान प्रबुद्ध लोगो को भाजपा की सदस्यता दिलवायेंगे
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक अगले हफ्ते
कांग्रेस के अगले अध्यक्ष के चयन पर अगले हफ्ते चर्चा होने की संभावना है. संसद सत्र के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होगी, जिसमें पक्के तौर पर अगले अध्यक्ष के बारे में चर्चा होगी. हालांकि बैठक की सूचना देते हुए प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस अगले अध्यक्ष के चुनाव को लेकर गंभीर है, क्योंकि राहुल गांधी इस्तीफा देकर पार्टी से हट गए हैं और सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा भी अध्यक्ष बनने की इच्छुक नहीं हैं.
कांग्रेस को ऐसे अध्यक्ष की जरूरत है जो मौजूदा परिस्थितियों में पार्टी में नई जान फूंक सके. बताया जाता है कि गांधी परिवार के विश्वस्त सलाहकार सैम पित्रोदा ने पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें 134 वर्ष पुरानी पार्टी को नया रूप देने के लिए करीब 20 सुझाव दिए हैं. इसमें एक सुझाव यह है कि पार्टी को कार्पोरेट कंपनी की तर्ज पर ढाला जाए, जिसमें एक मुख्य तकनीकी अधिकारी की नियुक्ति हो, पार्टी का मानव संसाधन विभाग हो और हर पदाधिकारी की जिम्मेदारी तय हो.
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक आठ या 10 अगस्त को हो सकती है, जो कि संसद सत्र के समापन पर निर्भर है. इसमें राहुल गांधी से एक बार फिर इस्तीफे पर पुनर्विचार करने के लिए अनुरोध किया जाएगा. पार्टी अध्यक्ष के मुद्दे पर गुरुवार को कांग्रेस महासचिवों की बैठक हुई थी. प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस नेताओं से साफ कह दिया है कि अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम का जिक्र न किया जाए.
गौरतलब है कि शशि थरूर और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि प्रियंका को अध्यक्ष पद संभाल लेना चाहिए. महासचिवों की बैठक में एक महासचिव ने भी थरूर और कैप्टन की बात दोहराई, जिस पर प्रियंका ने साफ मना कर दिया. प्रियंका भी कांग्रेस महासचिव हैं. राहुल गांधी ने मई में इस्तीफा दिया था. कांग्रेस कार्यसमिति ने अब तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है. कांग्रेस में उनके उत्तराधिकारी के चयन पर अब तक कोई औपचारिक बैठक भी नहीं हुई है.
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राहुल के इस्तीफे के बाद से अब तक कांग्रेस को एक के बाद एक कई झटके लग रहे हैं. गोवा में कांग्रेस के विधायक सामूहिक रूप से भाजपा में शामिल हो गए. कर्नाटक में जदएस-कांग्रेस सरकार भी गिर गई. कई राज्यों में पार्टी में गुटबंदी बढ़ रही है. यूपीए अध्यक्ष और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लोकसभा में सक्रिय हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कांग्रेस इस समय नेतृत्व विहीन है.
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस के कई नेताओं का दम निकला हुआ है. झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. जम्मू-कश्मीर में भी जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने के आसार बन रहे हैं. इन परिस्थितियों में कांग्रेस के नए अध्यक्ष या अंतरिम अध्यक्ष का चुनाव जरूरी है.
सैम पित्रोदा की रिपोर्ट में कांग्रेस के पुनर्गठन के लिए मिशन 2020 तय करने के साथ ही शुरू में 60 दिन के कार्यक्रम प्रस्तावित किए गए हैं. इसके तहत केंद्र में ही नहीं, राज्यों में भी मुख्य तकनीकी अधिकारी नियुक्त करने का प्रस्ताव है. इन पर पार्ट को तकनीकी आधार पर संगठित करने की जिम्मेदारी रहेगी. वे सोशल मीडिया और आंकड़ों की जानकारी रखने वालों के संपर्क में रहेंगे. यह सुझाव कांग्रेस के डाटा एनालिटिक्स विभाग के नाकाम रहने के बाद आया है, जिसकी जिम्मेदारी 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रवीण चक्रवर्ती को सौंपी गई थी.
पित्रोदा ने कांग्रेस कार्यसमिति के पुनर्गठन का सुझाव देते हुए कहा है कि कांग्रेस कार्यसमिति को एक 10 सदस्यीय निदेशक मंडल का गठन करना चाहिए. इसमें बाहरी लोगों और विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया जा सकता है. यह नया निदेशक मंडल हर तीन महीने में पार्टी अध्यक्ष और कांग्रेस कार्यसमिति के साथ बैठक करेगा और सलाह देगा.
पित्रोदा ने महासचिवों को राज्यों का प्रभार सौंपने की मौजूदा परिपाटी बदलने का सुझाव भी दिया है. उनका कहना है कि महासचिवों की जिम्मेदारी इस तरह तय होनी चाहिए, जैसे राजनीतिक महासचिव, प्रशासनिक महासचिव, वित्तीय और आर्थिक मामलों के महासचिव आदि. एक महासचिव को चुनाव का प्रभार सौंपा जा सकता है.
दिल्ली के राजनीतिक विश्लेषक एन. भास्कर राव ने कहा कि सैम पित्रोदा अच्छे टैक्नोक्रेट हो सकते हैं, लेकिन राजनीति के जमीनी हालात की जानकारी उनको नहीं है. इसलिए पार्टी को कार्पोरेट की तर्ज पर ढालने का उनका जो सुझाव है, वे कारगर नहीं हो सकते. पार्टी का जमीन से जुड़ना और संगठन का विस्तार करना बहुत जरूरी है. इसके लिए कांग्रेस को अपने सेवा दल जैसे आनुषांगिक संगठनों को भी सक्रिय करने की जरूरत है.
फिर बढ़ी आजम खान की मुश्किलें, जमीन हड़पने का एक और मामला दर्ज
समाजवादी पार्टी के लोकसभा सांसद आजम खान के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं. शायद यही वजह है कि परेशानियां उनका पीछा नहीं छोड़ रहीं. हाल में आजम खान पहले लोकसभा में विवादित टिप्पणी के चलते सुर्खियों में रहे. बाद में उनके बेटे अब्दुल्ला को पासपोर्ट में फर्जी दस्तावेज पेश करने के मामले में हिरासत में लिया गया. अब उन पर जमीन कब्जाने के मामले में एक और मामला दर्ज हुआ है. इस मामले के बाद आजम खान पर जमीन हड़पने के कुल 27 मामले दर्ज हो चुके हैं.
इससे पहले शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आजम खान पर कार्रवाई की और अब आजम खान पर मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) के तहत केस दर्ज किया है. आजम खान पर अब करोड़ों रुपये के जमीन घोटाले का आरोप है. वहीं यूपी सिंचाई विभाग ने आजम खान को रामपुर में लग्जरी रिसॉर्ट ‘हमसफर’ के लिए सरकारी जमीन कब्जाने को लेकर नोटिस भी जारी किया है.
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दूसरी ओर, आजम खान की निजी रामपुर स्थित मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी भी विवादों में चल रही है. एक ओर यूनिवर्सिटी के खाते में विदेशों से दान मिलने से संबंधित कथित धनशोधन के आरोपों की जांच भी चल रही है. यहां से 150 साल पुराने ऐतिहासिक इस्लामिक ग्रंथ भी मिले हैं जो मदरसा आलिया से चोरी हो गए थे. छापेमारी में पुलिस ने उन किताबों को विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी से बरामद किया है.
इससे पहले आजम खान लोकसभा में बीजेपी सांसद रमा देवी पर एक आपत्तिजनक टिप्पणी करने के चलते जमकर सुर्खियों में रहे. एक बार तो उनपर निलंबन की कार्यवाही होने तक की नौबत आ खड़ी हुई लेकिन बाद में सदन में सार्वजनिक माफी मांगने पर हंगामा खत्म हुआ.
इन सबसे अलावा, रामपुर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी जयाप्रदा ने भी आजम खान के निर्वाचन को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है. जयाप्रदा ने निर्वाचन याचिका दाखिल कर रामपुर सांसद आजम खान की लोकसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की है. जया प्रदा की तरफ से दाखिल इस याचिका में लोकसभा चुनाव में आजम खान की तरफ से की गई बदजुबानी को भी आधार बनाया गया है.
कैसे हैं जम्मू-कश्मीर के हालात? राज्यपाल ने बताई पूरी सच्चाई
जम्मू-कश्मीर में बीते कुछ दिनों से काफी कुछ चल रहा है. गृह मंत्रालय के एक आदेश के बाद जम्मू-कश्मीर में पिछले सप्ताह करीब 10 हजार अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद हाल ही में 26 हजार और अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती के निर्देश दिए गए हैं. ग्रह मंत्रालय के इस आदेश का जम्मू-कश्मीर में जमकर विरोध हो रहा है. उसके तुरंत बाद अमरनाथ यात्रा को रोकने एवं पर्यटकों को तत्काल वापिस लौटने की एडवाइजरी जारी होने से घाटी में काफी हलचल मची हुई है. राजनीतिक पार्टियों ने ऐसे हालातों में घाटी में डर की स्थिति पर चिंता जताई है. इस माहौल के बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने वहां के हालातों की पूरी सच्चाई बयां की है.
घाटी के मौजूदा हालात पर राज्यपाल ने कहा, ‘कश्मीर में किसी को डरने की जरूरत नहीं हैं. आतंकी खतरे की वजह से एडवाइजरी जारी की गई. इसमें चिंतित होने वाली कोई बात नहीं है.’ उन्होंने स्थानीय जनता से अफवाहों पर ध्यान न देने और शांति बनाए रखने की अपील की.
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इस मुद्दे पर शनिवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्यपाल से मुलाकात कर हालिया हालातों पर चर्चा की. उसके बाद अब्दुल्ला ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि किसी से भी कोई सही जवाब नहीं मिल रहा है. हालांकि राज्यपाल ने आश्वासन दिया है कि जम्मू-कश्मीर में कुछ बड़ा होने की खबर केवल अफवाह है. उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 370 को लेकर किसी ऐलान की तैयारी नहीं की जा रही है. न ही अनुच्छेद 35-ए से कोई छेड़छाड़ की जाएगी. इसके बाद भी घाटी में हो रही हलचल हैरान करने वाली है.’
घाटी के हालातों पर कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘इस वक्त अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात करना चिंताजनक है. कश्मीर और लद्दाख के लोग गृह मंत्रालय की एडवाइजरी के बाद काफी डरे हुए हैं. ऐसा तो तब भी नहीं हुआ, जब घाटी में आतंक चरम पर था.’
बता दें, शुक्रवार को सरकार की ओर से सुरक्षा का हवाला देते हुए जम्मू कश्मीर में एजवाइजरी जारी की गई थी. अमरनाथ यात्रा भी इस एडवाइजरी के बाद रोक दी गई. घाटी के हालात को देखते हुए ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए जम्मू-कश्मीर, श्रीनगर और भारत-पाकिस्तान बॉर्डर का दौरा न करने की हिदायत दी है. एडवाइजरी में आगे कहा गया कि अगर इन जगहों का दौरा कर रहे हैं तो प्रोफेशनल सिक्योरिटी एडवाइज जरूर ले लें. वहीं ब्रिटेन ने कहा कि अगर आप जम्मू-कश्मीर में हैं तो सतर्क रहें और स्थानीय अधिकारियों की सलाह फॉलो करें.
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इससे पहले बीती रात पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट के प्रमुख शाह फैसल और पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी राज्यपाल से मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने सरकार की एडवाइजरी से कश्मीर घाटी में डर की स्थिति पैदा होने के बारे में चिंता जताई. इस पर गर्वनर ने नेताओं को शांत रहने और अफवाहों पर ध्यान न देने की सलाह दी.
सीपी जोशी ने मंत्री को लगाई फटकार
राजस्थान विधानसभा में शुक्रवार को शून्यकाल के दौरान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने श्रम मंत्री टीकाराम जूली को जोर से डांट दिया. जूली एक मुद्दे पर बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे. जोशी ने कहा, ‘सरकार का पक्ष ठीक नहीं है. आप इस मामले में विभाग के अधिकारियों के साथ फिर से चर्चा करिए, उसके बाद मैं सदन में फिर से इस पर चर्चा करवाउंगा.’ जोशी के यह कहते ही कांग्रेस के विधायक स्तब्ध रह गए और भाजपा विधायकों ने मेजें थपथपाकर समर्थन किया.
शून्यकाल में भाजपा विधायक मदन दिलावर ने कोटा की एएसआई कंपनी के श्रमिकों के साथ अन्याय का मुद्दा उठाते हुए इस पर आधा घंटा विशेष बहस कराने की मांग की थी. उनका कहना था कि इस मामले में श्रम कानूनों का उल्लंघन हुआ है. इसे सीपी जोशी ने मंजूर कर लिया. दिलावर ने कहा कि 24 जुलाई को उन्होंने प्रश्नकाल में सरकार से पूछा था कि रामगंज मंडी में चल रही एएसआई कंपनी में ठेका रजिस्टर बनाकर रखा जाता है? इस पर श्रम मंत्री ने सदन में झूठ बोला. कंपनी में काम कर रहे ठेका श्रमिकों को कोई सुविधा नहीं मिल रही है. श्रम विभाग इसका रिकॉर्ड ही नहीं रखता.
दिलावर ने आरोप लगाया कि श्रम मंत्री ने अपने जवाब में 60-65 श्रमिक होने की बात कही, जबकि कंपनी में 35 हजार से ज्यादा ठेका श्रमिक काम कर रहे हैं. इस पर श्रम मंत्री ने कहा कि विधायक जिन श्रमिकों के बारे में बात कर रहे हैं, वे खनन श्रमिक हैं. खनन श्रमिकों और फैक्ट्री श्रमिकों में अंतर होता है. खनन श्रमिकों के बारे में सवाल पूछा ही नहीं था. जवाब में मंत्री ने श्रम कानूनों की धाराएं पढ़ना शुरू कर दिया.
जोशी ने श्रम मंत्री टीकाराम जूली को टोकते हुए कहा कि आप मुद्दे की बात कीजिए, लेकिन जुली बार-बार अपना जवाब दोहराते रहे. इस पर जोशी नाराज हो गए और कहा, ‘बैठ जाइए. सरकार का व्यू ठीक नहीं है, इसे समझिए. इस बारे में आपको चिंता करनी चाहिए और विभाग के अफसरों से भी चर्चा करें. इसके बाद इस मुद्दे पर सदन में फिर से चर्चा कराई जाएगी’.
राजस्थान विधानसभा में हंगामे के बीच तीन विधेयक पारित
राजस्थान विधानसभा में शुक्रवार को विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच सरकार ने तीन विधेयक पारित करवा लिए. ये विधेयक हैं सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय एवं वितरण का नियमन) (राजस्थान) संशोधन विधेयक, राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक 2019 और राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक.
सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय एवं वितरण का नियमन) (राजस्थान) संशोधन विधेयक स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने पेश किया. विधेयक पेश करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में हुक्का बार का संचालन पूरी तरह बंद हो चुका है. अब कहीं भी इसका संचालन करते हुए पाए जाने पर मालिक को तीन साल तक की सजा हो सकती है. विधेयक पर विपक्ष ने भी कुछ संशोधन सुझाए. पक्ष-विपक्ष में हल्की नोकझोंक हुई. इसके बाद विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया गया.
राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक 2019 मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने पेश किया. इस विधेयक में प्रावधान है कि राज्य में मंत्री पद से हटने के बाद तय समय में सरकारी निवास खाली नहीं करेंगे तो उन पर 10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना वसूला जाएगा. पहले यह जुर्माना पांच हजार रुपए प्रतिदिन था. सरकार ने विधेयक पेश करते हुए इसे बढ़ाकर 10 हजार रुपए प्रतिदिन कर दिया है. इस तरह जुर्माने में करीब 60 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी गई है.
शांति धारीवाल ने कहा कि पूर्व मंत्रियों के समय पर आवास खाली नहीं करने से नए मंत्रियों को आवास नहीं मिल पाते, इसलिए ऐसा कानून लाया गया है. भाजपा विधायकों ने इस कानून का विरोध करते हुए हंगामा किया. संयम लोढ़ा ने विपक्ष को घेरने का प्रयास किया. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि आवास समय से खाली होने चाहिए, लेकिन इसके लिए जो समयावधि तय की गई है, उस पर फिर से विचार करने की जरूरत है. कई बार पारिवारिक परिस्थितियों के कारण तय समय पर आवास खाली करना संभव नहीं होता. ऐसे में इतना जुर्माना लगाया जाना सही नहीं है. यह कानून कभी न कभी हमारे लिए ही मुश्किल बनेगा.
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उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि इसके पीछे सरकार अपने विधायकों के बीच फैला असंतोष खत्म करना चाहती है. वासुदेव देवनानी, किरण माहेश्वरी और रामलाल शर्मा ने कहा, यह कानून तक तरह से अब तक रहे मंत्रियों को घेरने की कोशिश मालूम पड़ता है. इससे समाज में यह संदेश जा रहा है कि मंत्री मकान खाली करना नहीं चाहते.
निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन कैबिनेट मंत्री की सुविधा और आवास देने का मामला उठा दिया. राजस्थान में भाजपा ने अपने कार्यकाल में यह संशोधित कानून पारित कराया था. लोढ़ा ने कहा कि पिछली सरकार ने यह कानून पारित कराया था, जिससे सरकार पर एक करोड़ रुपए प्रतिमाह का भार आएगा, जिसकी कोई जरूरत नहीं है. गौरतलब है कि इसके तहत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जयपुर में सरकारी बंगला मिला हुआ है. लोढ़ा के इतना कहते ही भाजपा के विधायक भड़क गए. कुछ विधायक आसन के सामने पहुंच गए. हंगामे के बीच ही पीठासान सभापति राजेन्द्र पारीक ने यह विधेयक पारित होने की घोषणा कर दी.
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक पेश करते हुए इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि यह विधेयक पारदर्शिता की दृष्टि से लाया गया है. मूल अधिनियम में राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (आरयूएचएस) के कुलपति को ठीक से काम नहीं करने पर हटाने का प्रावधान था, जिसे बाद में संशोधन के जरिए हटा दिया गया था. वर्तमान में अधिनियम में आरयूएचएस के कुलपति की नियुक्ति के संबंध में तो स्पष्ट प्रावधान है, लेकिन प्रक्रियाधीन जांच के दौरान अथवा जांच में दोष सिद्ध पाए जाने पर कुलपति के विरुद्ध कार्रवाई संबंधी कोई प्रावधान नहीं है.
रघु शर्मा ने कहा कि राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों कुलपति के विरुद्ध नियुक्ति में अनियमितताओं, वित्तीय कुप्रबंधन, प्रशासनिक दृष्टि से अनुचित निर्देश की स्थिति में यह वांछनीय है कि कुलपति को जांच प्रक्रिया के दौरान कुलपति पद के कर्तव्यों के निर्वहन से वंचित करने तथा निलंबन करने का अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान हो. इस विधेयक पर भाजपा विधायकों ने जमकर हंगामा किया.
भाजपा के रामप्रसाद कासनिया, अशोक लाहोटी, कालीचरण सराफ, वासुदेव देवनानी सहित कई विधायकों ने विधेयकों का विरोध करते हुए कहा कि यह कानून कुलपति को सरकार की कठपुतली बनाने वाला है. भाजपा विधेयकों के विरोध के बीच विधेयक विधानसभा में पारित हो गया.