मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग पर कठोर कानून वाले विधेयक राजस्थान विधानसभा में पास
राजस्थान विधानसभा ने सोमवार को राज्य में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए “राजस्थान लिंचिंग संरक्षण विधेयक-2019” और ऑनर किलिंग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए संशोधित विधेयक ‘राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक, 2019’ ध्वनिमत से पारित कर दिया.
मणिपुर के बाद अब राजस्थान मॉब लिचिंग कानून बनाने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है. राजस्थान में अब मॉब लिंचिंग की घटना में पीड़ित की मौत पर दोषियों को आजीवन कारावास और पांच लाख रुपये तक का जुर्माने की सजा भुगतनी होगी. वहीं, मॉब लिंचिंग में पीड़ित के गंभीर रूप से घायल होने पर 10 साल तक की सजा और 50 हजार से तीन लाख रुपये तक का जुर्माना दोषियों को भुगतना होगा.
ऑनर किलिंग मामले में राज्य के संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने 30 जुलाई को ‘राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक, 2019’ सदन में पेश किया था. विधेयक के अनुसार कथित सम्मान के लिए की जाने वाली हिंसा एवं कृत्य भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध हैं और इन्हें रोकना जरूरी है. उच्चतम न्यायालय ने 17 जुलाई को अपने निर्णय में इस संबंध में कानून बनाने का निर्देश दिया था.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 16 जुलाई को बजट भाषण के जवाब के दौरान मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कानून बनाने की घोषणा की थी. मॉब लिंचिंग विधेयक के तहत मॉब लिंचिंग की घटनाओं में पीड़ित की मौत पर दोषी को कठोर आजीवन कारावास और एक से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. वहीं ऑनर किलिंग के लिए फांसी या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी.
विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री शांति कुमारी धारीवाल ने कहा कि राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जहां माब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए इस तरह का कानून बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हाल के वर्षों में राज्य में मॉब लिंचिंग की कुछ घटनाओं से राजस्थान के हर नागरिक का सिर शर्म से झुक गया.’ विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने इस विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति के पास भेजे जाने की सिफारिश की और कहा कि भावावेश में किसी कानून को इतना सख्त भी नहीं बना देना चाहिए कि लोग जानबूझकर उसकी अवहेलना करने लग जाएं. उन्होंने कहा, ‘भाजपा मौजूदा रूप में इस विधेयक का कभी समर्थन नहीं करेगी.’ विधेयक पर चर्चा और मंत्री धारीवाल के जवाब के बाद विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित हुआ घोषित किया.
मॉब लिंचिंग में किसी भी रूप से सहायता करने वाले को भी वही सजा मिलेगी, जो लिंचिंग करने वाले को मिलेगी. भाजपा ने इस विधेयक का विरोध किया. विधेयक में मॉब लिंचिंग को गैर जमानती, संज्ञेय अपराध बनाया गया है. लिंचिंग की घटना के वीडियो, फोटो किसी भी रूप में प्रकाशित या प्रसारित करने पर भी एक से तीन साल तक की सजा और 50 हजार रुपये का जुर्माना देय होगा. विधेयक में प्रावधान किया गया है कि दो व्यक्ति भी अगर किसी को मिलकर पीटते है तो उसे मॉब लिंचिंग माना जाएगा.
विधेयक पर हुई चर्चा में विधायकों द्वारा जताई गई आशंकाओं का जवाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की पालना में मॉब लिंचिंग कानून बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि देश में 2014 मॉब लिंचिंग के 200 से अधिक मामले सामने आए, इनमें से 86 प्रतिशत राजस्थान के हैं. देश में शांत प्रदेश माना जाने वाला राजस्थान मॉब लिंचिंग स्टेट के रूप में पहचाने जाने लगा.
वहीं ऑनर किलिंग के लिए फांसी या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी. जाति, समुदाय और परिवार के सम्मान के नाम पर शादीशुदा जोड़े में से किसी एक की जान जाने वाली हत्याएं गैर-जमानती होंगी. इसके अलावा पांच लाख रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. इस विधेयक में शादीशुदा जोड़े पर जानलेवा हमला करने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकेगी.
क्या है मॉब लिंचिंग, क्या है प्रावधान
मॉब लिंचिंग को गैरजमानती और संज्ञेय अपराध बनाया गया है. लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019 के तहत अगर दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी को मिलकर पीटते हैं तो वो मॉब लिंचिंग के दायरे में आती है. मॉब लिचिंग के दौरान पीड़ित की मौत होने पर दोषी को आजीवन कठोर कारावास और एक लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना देय होगा. पीड़ित के गंभीर रूप से घायल होने पर दोषी को 10 साल तक की कैद और 50 हजार से 3 लाख रुपये तक का जुर्माने से दंडित किया जाएगा. लिंचिंग में सहायता करने वाले को भी दोषी माना जाएगा. दोषियों को गिरफ्तारी से बचाने या अन्य सहायता करने पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान है. वहीं गवाहों को धमकाने वालों के लिए पांच साल की जेल एवं एक लाख तक के जुर्माने और घटना के वीडियो/फोटो प्रकाशित-प्रसारित करने पर एक से तीन साल की सजा एवं 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
इंस्पेक्टर स्तर का अफसर ही करेगा मामले की जांच
किसी भी तरह की मॉब लिंचिंग के मामलों की जांच केवल इंस्पेक्टर स्तर या उससे ऊपर का पुलिस अफसर ही करेगा. मॉब लिंचिंग रोकने के लिए आईजी रैंक के पुलिस अफसर को राज्य समन्वयक बनाया जाएगा. प्रत्येक जिले का एसपी लिचिंग रोकने के लिए जिला समन्वयक होगा.
गवाहों की सुरक्षा के लिए पहचान रहेगी गुप्त
मॉब लिंचिंग के गवाहों की सुरक्षा के लिए उनकी पहचान पूरी तरह से गुप्त रखी जाएगी. गवाहों को दो से ज्यादा तारीखों पर अदालत जाने की बाध्यता से छूट मिलेगी. पीड़ित व्यक्ति का विस्थापन होने पर सरकार उसका पुनर्वास करेगी. साथ ही 50 से अधिक व्यक्तियों के विस्थापित होने पर राहत शिविर लगाने का प्रावधान भी बिल में शामिल है.
पाक सितारों को लगी मिर्ची, सोशल मीडिया पर अलाप रहे ‘कश्मीर राग’
नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर पर ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और धारा 35ए को समाप्त कर दिया गया है. कमोबेश पूरा देश सरकार के इस फैसले का जश्न मना रहा है. तो वहीं दूसरी ओर, भारत सरकार के इस फैसले से पाकिस्तान के सितारों को मिर्ची लग रही है. वहां के सितारे मन ही मन जल-भुन रहे हैं और सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालते हुए दुनिया से इस मामले पर आवाज उठाने की गुहार लगा रहे हैं. पाकिस्तान में रहकर कश्मीर की चिंता करने वाले इन सितारों में बॉलीवुड में काम कर चुकी माहिरा खान और मारवा भी शामिल हैं. वहीं इंडियन यूजर्स की तरफ से इन सभी को करारा पलटवार भी मिल रहा है. एक यूजर ने तो ये तक कहा है कि आप भारत के मसले में परेशान न हों और अपने देश की फ़िक्र करें.
पाकिस्तानी एक्टर हमजा अली अब्बास ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया है, ‘मैं पाकिस्तान के सभी कलाकारों से गुजारिश करता हूं कि वो अपनी आवाज क्यों नहीं उठा रहे हैं. कश्मीर के लिए अपनी उठाएं.’
(1/3) I appeal to all Pakistani artists, especially those with the most following on social media, ask urselves with utmost sincerity tht why do u not raise a voice for KASHMIR? Is it bcz u genuinely think it won’t make a difference? Or…. #KashmirUnderThreat
— Hamza Ali Abbasi (@iamhamzaabbasi) August 4, 2019
वहीं इसका उत्तर देते हुए सोशल मीडिया यूजर जनार्दन मिश्रा ने कहा, ‘जो हमारे कश्मीर की तरफ बुरी नज़र से देखेगा उसका हाल भी बुरा ही होगा क्योंकि इस बार देशभक्तो की सरकार है और देशभक्त जो चाहेगे वही होगा.’
जो हमारे कश्मीर की तरफ बुरी नज़र से देखेगा उसका हाल भी बुरा ही होगा क्योंकि इस बार देशभक्तो की सरकार है और देशभक्त जो चाहेगे वही होगा।।
ये भिखारी पाकिस्तानी कलाकार हमारा क्या करेंगेजय श्री राम
जय हिंद
भारत माता की जय
— Janardan Mishra (@JBMIS) August 4, 2019
एक्ट्रेस हरीम फारूक ने कश्मीर पर आए फैसले पर बेहद चिंता जताते हुए कहा, ‘दुनिया शांत क्यों है. कश्मीर में हो रही ये निर्ममता की क्यों अनदेखी हो रही है. ये अपनी आवाज को उठाने का वक्त है. ये वक्त कश्मीर के साथ खड़े होने का है. इस अन्याय को खत्म करने की जरूरत है.’
Why is the world quite?!?! How come this brutality in kashmir is being ignored?!? Have we lost all humanity!!!?! Its time to raise our voices!! Its time to stand with kashmir! Its time to end this brutality and injustice!#KashmirBleeds #KashmirNeedsAttention
— Hareem Farooq (@FarooqHareem) August 4, 2019
एक यूजर ने उन्हें रिट्वीट करते हुए कहा, ‘पहले अपना बलूचिस्तान संभाल वरना वो भी हाथ से निकल जाएगा.’
पहले अपना बलूचिस्तान संभाल वरना वो भी हाथ से निकल जाएगा।
— Anuj Agarwal (@ANUJ30JUNE) August 5, 2019
शाहरूख खान के साथ फिल्म रईस में काम कर चुकी माहिरा खान कहा कहना है, ‘जिस पर हम चर्चा नहीं करना चाहते हैं, उस पर हमें बहुत ही आसानी से खामोश कर दिया गया है. ये रेत पर लकीर खींचने की तरह है…जन्नत जल रहा है और हम खामोशी से आंसू बहा रहे हैं.’
Have we conveniently blocked what we don’t want to address? This is beyond lines drawn on sand, it’s about innocent lives being lost! Heaven is burning and we silently weep. #Istandwithkashmir #kashmirbleeds
— Mahira Khan (@TheMahiraKhan) August 5, 2019
एक यूजर ने उन्हें ट्रोल करते हुए रिट्वीट किया, ‘हां, हम समझ सकते हैं कि आप चुपचाप रो रहे हो क्योंकि न तो आपको भारतीय फिल्मों में अभिनय करने के लिए मिला और न ही आपको रणबीर. अपना ध्यान रखें और खुश रहें…लाइफ चलती रहती है.’
Yeah we understand you are silently weeping as neither you got to act in OUR movies nor you got Ranbir ?. Take care, happens … but you know life moves on.
— sonal?? (@comeonletsshare) August 5, 2019
वहीं एक अन्य पाक अदाकारा मारवा ने ट्वीट किया, ‘क्या हम इस अंधेरे में जी रहे हैं. ह्यूमन राईट के लिए अनगिनत प्रोटेस्ट हुए उन सारे अधिकारों, नियमों का क्या हुआ. क्या उनके मायने हैं?’
Where is UNHRC?
It’s inhumane. #Kashmir
Do we live in such dark times ?Countless conventions to protect human lives? What about all the rights & rules we are taught in the books? Do they mean anything? #SaveLivesinKashmir #KashmirBleed @UN @UNICEF_Pakistan— MAWRA HOCANE (@MawraHocane) August 4, 2019
इस पर रिट्वीट करते हुए एक इंडियन यूजर ने लिखा, ‘आपको क्या तकलीफ है मावरा? कश्मीर हिंदुस्तान का एक हिस्सा है और हम हमेशा कश्मीर के हित में सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे. अब आप पाकिस्तान की बेहतर देखभाल करें.’
why u have a problem Mawra? Kashmir is a part of India and we will always do best in interest of Kashmir. you better take care of Pakistan now
— SamirSinha (@samir_sinha) August 5, 2019
क्या हैं जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने के मायने
मोदी 2.0 सरकार ने सोमवार को कश्मीर पर एक ऐतिहासिक फैसला लिया. जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से चल रही धारा 370 और धारा 35ए को हटा दिया गया है (केवल धारा 370 का खंड-1 लागू है). साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. पहला जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख. जम्मू-कश्मीर को विधानसभा सहित केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला है. वहीं लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है. इससे पहले जम्मू-कश्मीर अति विशेष दर्जा प्राप्त राज्य था. जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनते ही देश में अब 29 की जगह 28 राज्य रह गए जबकि केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या सात से बढ़कर नौ हो गयी. सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी करते हुए सभी सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया है.
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जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के साथ ही प्रदेश में बहुत कुछ बदल गया है. ऐसे में धारा 370 हटने के क्या हैं मायने, आइए इन पर चर्चा करते हैं…
1. अति विशेष राज्य का दर्जा समाप्त
धारा 370 हटने के साथ ही जम्मू-कश्मीर को प्राप्त अति विशेष राज्य का दर्जा अब समाप्त हो गया. अब से जम्मू-कश्मीर और नव निर्मित प्रदेश लद्दाख सामान्य राज्यों की श्रेणी में शामिल किए जाएंगे.
2. दोहरी नागरिकता खत्म
आर्टिकल 370 के समाप्त होते ही जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता की अनिवार्यता खत्म हो गयी है. पहले जम्मू-कश्मीर में रहने वालों को भारतीय नागरिकता के साथ स्थानीय नागरिकता लेनी पड़ती थी. अगर यहां रहने वाला कहीं बाहर जाकर रहने लगे तो वो नागरिकता स्वत: ही समाप्त हो जाती थी. अब यहां इसकी अनिवार्यता पूरी तरह से खत्म हो गयी है. अब एकल नागरिकता का नियम लागू हो गया है. देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी पा सकता है और अन्य स्थानों पर विवाह कर सकता है.
3. अलग झंडा नहीं, अब होगा तिरंगा और राष्ट्रीय ध्वज/गान का सम्मान
अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से अब देशभर की तरह जम्मू-कश्मीर में भी सिर्फ तिरंगा फहराया जाएगा. पहले यहां तिरंगा नहीं अपितु अलग झंडा फहराया जाता रहा है. लेकिन अब से न सिर्फ तिरंगा फहराया जाएगा अपितु राष्ट्रीय गान भी गाया जाएगा. राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान/गीत का उसी तरह से सम्मान किया जाएगा जैसा पूरे देश में किया जाता है.
4. कश्मीर में जमीन ले सकेंगे, व्यवसाईयों के लिए द्वार खुलेंगे
धारा 35ए हटने के साथ ही जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने और व्यवसाय करने के रास्ते प्रदेश के बाहर के लोगों को लिए भी पूरी तरह से खुल गए हैं. इससे पहले तक कोई बाहर का व्यक्ति यहां न जमीन खरीद सकता था और न ही कारोबार चला सकता था. अब दोनों ही बातें संभव हो गयी हैं.
5. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन
आर्टिकल 370 के खत्म होने के साथ ही कश्मीर में सुप्रीम कोर्ट के वे सभी आदेश लागू हो गए हैं जो पूरे देश में स्वीकृत हैं. राज्य की विधानसभा का कार्यकाल अब पांच साल का होगा, जो पहले 6 साल का था. RTI और RTE सहित अन्य कानूनी फैसले जम्मू-कश्मीर के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होंगे.
6. धारा 356 लागू, राज्यपाल शासन की जगह राष्ट्रपति शासन
भारत के संविधान का अनुच्छेद-356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में तत्कालीन सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है. राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो. बिलकुल यही स्थिति जम्मू-कश्मीर में भी है. ऐसे में अब यहां राज्यपाल शासन की जगह राष्ट्रपति शासन तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. इससे पहले जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को ही राज्यपाल शासन कहा जाता था.
मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक
जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करते हुए वहां धारा 370 और 35ए हटाने का जो धमाकेदार फैसला हुआ है, उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. यह मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक है. पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की तैनाती हो रही थी. अमरनाथ यात्रा तय समय से दो हफ्ते पहले रोक दी गई थी. संचार माध्यमों पर निगरानी बढ़ा दी गई थी.
इस माहौल में जम्मू-कश्मीर में जो तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं, उनमें प्रमुख थी विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है. दूसरी अटकल यह थी कि केंद्र सरकार राज्य को तीन हिस्सों, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में बांट सकती है. तीसरी अटकल यह थी कि धारा 370 हट सकती है और चौथी अटकल धारा 35ए हटने की थी. अफवाहें रोकने के लिए घाटी में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई. डिप्टी कमिश्नरों और आईपीएस अफसरों को सेटेलाइट फोन दे दिए गए.
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संसद में अमित शाह के संकल्प पत्र पेश करने के साथ ही सारी अटकलों पर पूर्ण विराम लग गया. इस फैसले से राजनीतिक हलचल शुरू हो गई है और तमाम पार्टियों के नेता बैठकों में व्यस्त हो गए हैं. पूरे देश में जश्न का माहौल है. मुंबई में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सहित कई लोगों ने मिठाई बांटी और मोदी सरकार के फैसले का स्वागत किया.
यह फैसला आम तौर पर स्वागत योग्य है, क्योंकि इससे जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन जाएगा. जो भी इस फैसले का विरोध करेगा, वह देश के विरोध में माना जाएगा. इसलिए कई विपक्षी पार्टियां भी इस फैसले का समर्थन कर रही हैं. राज्यसभा में शिवसेना सदस्य संजय राउत ने कहा कि आज जम्मू-कश्मीर लिया है, कल बलूचिस्तान और पीओके भी लेंगे. देश के प्रधानमंत्री अखंड भारत का सपना पूरा करेंगे.
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम हिंदुस्तान के संविधान के साथ खड़े हैं और इस संविधान की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा देंगे, लेकिन भाजपा ने आज संविधान का मर्डर किया है. पी चिदंबरम ने ट्वीट किया है कि जम्मू-कश्मीर के नेताओं को घर में नजरबंद किया जाना इस बात का संकेत है कि सरकार अपने मकसद को हासिल करने के लिए सभी लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों की अवहेलना करेगी. मैं उनकी नजरबंदी की आलोचना करता हूं. मैंने जम्मू-कश्मीर में किसी भी दुस्साहस को लेकर चेतावनी दी थी, लेकिन लगता है सरकार ऐसा करने पर आमादा है.
धारा 370 और 35ए हटाने के बाद तमाम विपक्षी पार्टियां सकते में
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के साथ ही वहां से धारा 370 और 35ए हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों सहित तमाम विपक्षी पार्टियां करीब-करीब सकते में आ गई हैं. कमोबेश सरकार के फैसले का ज्यादातर पार्टियां समर्थन ही कर रही हैं, जिनमें बसपा, शिवसेना, अन्नाद्रमुक, आप शामिल हैं. यह मामला कई दशकों से उलझा हुआ था. जम्मू कश्मीर की पार्टियां पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस इसके सख्त खिलाफ है.
संसद में गृहमंत्री अमित शाह की घोषणा के कुछ मिनट बाद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने 11.39 बजे लगातार दो ट्वीट किए. उन्होंने कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दिन है. जम्मू-कश्मीर के नेतृत्व ने 1947 में भारत के साथ जाने का जो फैसला किया था, वो गलत साबित हो गया. भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला अवैध और असंवैधानिक है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धारा 370 पर मोदी सरकार के फैसले का स्वागत किया है.
सरकार के फैसले के बाद अब जम्मू-कश्मीर की स्थिति दिल्ली जैसी हो गई है. वहां चुनाव होंगे, सरकार भी होगी, लेकिन उप राज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार का दखल बना रहेगा. जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह लागू होगा. जम्मू-कश्मीर ने 17 नवंबर, 1956 को अपना अलग संविधान पारित किया था. अब उसकी मान्यता समाप्त हो गई है. जम्मू-कश्मीर का अपना अलग ध्वज भी नहीं होगा. इस तरह जम्मू-कश्मीर के विशेषाधिकार पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं.
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह वर्ष का था. अब वहां भी अन्य प्रदेशों की तरह विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा. पहले अन्य राज्यों के लोग कश्मीर के मतदाता नहीं बन सकते थे और वहां चुनाव भी नहीं लड़ सकते थे. अब भारत के नागरिक वहां के मतदाता भी होंगे और वहां चुनाव भी लड़ सकेंगे.
केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले पर प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस ने इसे सत्ता के नशे में लिया गया फैसला बताया है. जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियां जो कल तक धारा 370 और 35ए हटाने का विरोध कर रही थीं, अब अगली रणनीति बनाने में व्यस्त हो गई हैं.
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म, लद्दाख अलग राज्य होगा
जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया है. लद्दाख जम्मू-कश्मीर से अलग हो गया है और इस तरह अब दो केंद्र शासित प्रदेश बन गए हैं. लद्दाख बगैर विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा रहेगी. इस संबंध में सोमवार को संसद का सत्र शुरू होते ही राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने संकल्प पेश किया और धारा 370 के कुछ प्रावधान तथा 35ए को हटाने की घोषणा की. लगे हाथ कानून मंत्रालय ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी. अधिसूचना पर राष्ट्रपति ने दस्तखत कर दिए हैं. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान और अलग ध्वज की मान्यता खत्म हो गई है.
इससे पहले सुबह 9.30 बजे प्रधानमंत्री निवास में मंत्रिमंडल की बैठक हुई थी. मंत्रिमंडल की बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और अन्य मंत्री संसद पहुंचे. इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल भी संसद में पहुंच गए थे. राज्यसभा की बैठक शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए कहा कि राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को नजरबंद कर दिया गया है, ऐसे में गृहमंत्री को घाटी की स्थिति पर बयान देना चाहिए.
गुलाम नबी आजाद की बात सुनने के बाद अमित शाह ने कहा कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और वहां से धारा 370 को हटाने का प्रस्ताव पेश किया है. शाह के संकल्प पेश करते ही राज्यसभा में हंगामा शुरू हो गया. हंगामे के बीच कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अधिसूचना के बारे में बताया. राज्यसभा में इसके साथ ही हंगामा शुरू हो गया. नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद फर्श पर धरना देकर बैठ गए. उनके साथ ही कई विपक्षी सदस्य जुट गए. पीडीपी के सांसदों ने अपने कपड़े फाड़ लिए. धरने पर बैठे सांसदों को हटाने के लिए मार्शल को बुलाया गया.
अमित शाह ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का विधेयक पेश किया है. इसके तहत लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है. लद्दाख को बिना विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. लद्दाख के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया जाए, ताकि यहां रहने वाले लोग अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें. जम्मू-कश्मीर को अलग से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा होगी.
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अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की जनता आज मुश्किलों में जी रही है. आज जो हम बिल लेकर आए हैं, वह ऐतिहासिक है. धारा 370 ने कश्मीर को देश से जोड़ा नहीं, बल्कि अलग करके रखा था. बहुजन समाज पार्टी ने राज्यसभा में इस संकल्प का समर्थन किया है. संकल्प पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दस्तखत कर दिए हैं, इसके साथ ही केंद्र सरकार का फैसला तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. इसके साथ ही कश्मीर को धारा 370 के तहत जो विशेषाधिकार मिले हुए थे, वे भी खत्म हो गए हैं.
इससे पहले रविवार शाम गृहमंत्री अमित शाह ने इस संबंध नें विशेष बैठक बुलाई थी. इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, गृह सचिव राजीव गॉबा, खुफिया ब्यूरो और रॉ के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए. इससे पहले कश्मीर में भारी हलचल थी. कश्मीर घाटी के कई हिस्सों में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं. कुछ इलाकों में के हालात हैं. रविवार रात 11.12 बजे जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि इंटरनेट बंद होने की खबरें आ रही हैं, घाटी में कर्फ्यू पास बांटे जा रहे हैं, खुदा जाने कल क्या होने वाला है.
महबूबा मुफ्ती के ट्वीट के कुछ मिनट बाद नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, मुझे लगता है कि मैं आधी रात से नजरबंद कर दिया गया हूं. अन्य नेताओं को भी नजरबंद करने की प्रक्रिया जारी है. पता नहीं ये खबरें सही हैं या गलत. अगर ये खबरें सही हैं तो हम अल्लाह के भरोसे हैं.
रविवार शाम को प्रशासनिक अधिकारियों को सेटेलाइट फोन दे दिए गए हैं और सेटेलाइट फोन नंबरों की डायरेक्टरी भी दे दे दी गई है, जिसमें राज्य के डिप्टी कमिश्नरों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नंबर हैं. इससे पहले तीन अगस्त को महबूबा मुफ्ती को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की तरफ से नोटिस भेजा गया है, जिसमें जानकारी मांगी गई है कि उनके मुख्यमंत्री रहते समय सरकार के मंत्रियों की सिफारिश पर जम्मू-कश्मीर बैंक में कितनी नियुक्तियां की गईं.
नोटिस मिलने के बाद महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि यह कश्मीर में मुख्य धारा के नेताओं को दबाव में लाने का प्रयास है. इस समय जो रहा है, उस परिस्थिति में कश्मीर के सभी नेताओं को एकजुट होने की जरूरत है. पूर्व विधायक राशिद को एनआईए ने समन भेजा है. वह एनआईए के सामने हाजिर होने के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं.
इस दौरान जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूख अब्दुल्ला ने अपने निवास पर आयोजित सर्वदलीय बैठक में कहा था कि धारा 370 या 35ए हटाने, इसमें कोई बदलाव करने, राज्य में क्षेत्रों के परिसीमन करने या राज्य को जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के रूप में तीन हिस्सों में बांटने का कोई भी प्रयास ठीक नहीं होगा. जम्मू-कश्मीर की जनता इसका विरोध करेगी.
बहरहाल केंद्र सरकार के आदेश से महबूबा मुफ्ती और अब्दुल्ला का सारा विरोध धरा रह गया है. जम्मू-कश्मीर के संबेदनशील इलाकों में चप्पे पर सुरक्षा बलों की तैनाती हो रही है. श्रीनगर में सचिवालय, पुलिस मुख्यालय, एयरपोर्ट आदि प्रमुख स्थानों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है. श्रीनगर के प्रमुख बाजार रविवार से ही बंद हैं. लोगों को लंबे समय उथल पुथल जारी रहने के आसार दिख रहे हैं और वे अपने घरों में राशन जुटाने में लगे हैं.
देवड़ा ने सुझाए पायलट और सिंधिया के नाम, प्रियंका की संभावना से किया इनकार
पिछले लगभग 2 माह से नेतृत्वहीन चल रही कांग्रेस पार्टी को आगामी 10 अगस्त को होने वाली कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में अपना नेता मिलने की सम्भावना प्रबल हो गई है. लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, तब से ही कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद को लेकर माथापच्ची जारी है. पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल द्वारा आगामी 10 अगस्त को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक की जानकारी दिए जाने के साथ ही कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने पार्टी अध्यक्ष के लिए सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नामों का प्रस्ताव दिया है. देवड़ा ने कहा है कि किसी युवा नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए, पायलट और सिंधिया इसके लिए पूरी तरह सक्षम हैं.
राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से ही अगले पार्टी अध्यक्ष के चुनाव को लेकर लगातार असमंजस की स्थिति बनी हुई है. नए अध्यक्ष को चुनने के लिए बैठकों के कई दौर हो चुके हैं लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. कांग्रेस कार्य समिति ने राहुल गांधी के इस्तीफे को अस्वीकार करते हुए उन्हें पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन के लिए अधिकृत किया हुआ था, हालांकि राहुल गांधी अपने रुख पर अड़े रहे और स्पष्ट कर दिया कि न तो वह और न ही गांधी परिवार का कोई दूसरा सदस्य इस जिम्मेदारी को संभालेगा.
कांग्रेस कार्य समिति की आगामी बैठक की घोषणा होने के साथ ही कांग्रेस के दिग्गज नेता मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम का प्रस्ताव दिया है. मिलिंद देवड़ा ने कहा कि वो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की इस बात से सहमत हैं कि नया कांग्रेस अध्यक्ष युवा, सक्षम और अनुभवशील होना चाहिए. देवड़ा ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘मेरे विचार से सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया में कांग्रेस अध्यक्ष बनने की योग्यता है. वो कांग्रेस को मजबूत करने में सक्षम हैं. साथ ही वो विपक्ष को भी मजबूत कर सकते हैं.’
गौरतलब है कि इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह युवा नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग कर चुके हैं जिसकी जमीनी पकड़ और देशभर में पहचान हो. अब कैप्टन की बात का समर्थन करते हुए मिलिंद देवड़ा ने कहा कि “मैं कैप्टन अमरिंदर सिंह की बात से सहमत हैं कि युवा नेता को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया चाहिए जिसके पास अनुभव भी हो. इस हिसाब से सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं.”
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मिलिंद देवड़ा ने कहा है कि, ‘मैं अपनी क्षमता और ताकत को समझता हूं और जो कोई भी पार्टी हित में काम करेगा मैं उसके साथ काम करने को तैयार हूं.’ उन्होंने कहा कि सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को कम से कम अंतरिम अध्यक्ष तो बनाया ही जाना चाहिए जिन्हें सार्वजनिक तौर पर गांधी परिवार से सपोर्ट भी मिलना चाहिए.
सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नामों की पैरवी करते हुए देवड़ा ने कहा, ”इनमें से किसी एक को पार्टी अध्यक्ष बनाने से राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार में भी स्थिरता आएगी. मुझे भी उनके अंदर काम करके अच्छा लगेगा. मुझे कोई कारण समझ नहीं आता कि कैप्टन की राय पर बाकी नेता सहमत नहीं होंगे.”
देवड़ा से प्रियंका गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाये जाने के सवाल अध्यक्ष पर मिलिंद देवड़ा ने कहा कि प्रियंका अध्यक्ष बनती हैं तो उन्हें खुशी होगी वह आगे आएं और पार्टी की कमान संभालें, लेकिन खुद राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि अगला पार्टी अध्यक्ष उनके परिवार से नहीं होगा. तो ऐसे में कांग्रेस पार्टी का अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से होने की तो संभावना ही खत्म हो गई.
इस बीच कांग्रेस सांसद और ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष शशि थरूर ने समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए नए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव करवाने की मांग की है. थरूर ने कहा कि वो सीडब्ल्यूसी से अपील करते हैं कि दस तारीख की बैठक में अंतरिम अध्यक्ष चुना जाए और फिर संगठन के चुनाव के जरिए नया पार्टी अध्यक्ष चुना जाए. ऐसा कांग्रेस और देश के हित में होगा. युवा नेता को अध्यक्ष बनाने की मिलिंद देवड़ा की मांग पर थरूर ने कहा कि वो किसी व्यक्ति की नहीं प्रक्रिया की बात करना चाहते हैं.
बता दें, शशि थरूर खुद इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए प्रियंका गांधी को सबसे उपयुक्त उम्मीदवार बता चुके हैं. शशि थरूर ने प्रियंका गांधी के नाम की पैरवी करते हुए कहा था कि, प्रियंका गांधी के पास ‘स्वाभाविक करिश्मा’ है जो निश्चित तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को प्रेरित और एकजुट कर सकता है. उनकी इसी खूबी के कारण कई लोग उनकी तुलना उनकी दादी और पूर्व पार्टी अध्यक्ष दिवंगत इंदिरा गांधी से करते हैं.” बहरहाल, शशि थरूर ने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष की तत्काल नियुक्ति की मांग ऐसे समय की है जब मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने पार्टी अध्यक्ष पद के लिए दो युवा नेता सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सुझाया है.
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी को लेकर मिलिंद देवड़ा के बयान पर राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया है. हालांकि जब उनसे सवाल किया गया कि क्या वो राजस्थान की राजनीति से बाहर जाना चाहते हैं, तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि मैं इस मसले पर एक या दो दिन में कुछ बोलूंगा.
खैर, आगामी दस अगस्त को होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक होगी में राहुल गांधी का इस्तीफा मंजूर किया जा सकता है और उम्मीद है कि नए पार्टी अध्यक्ष की तस्वीर साफ होगी. तत्काल अंतरिम अध्यक्ष चुन कर आगे चुनाव करवाए जा सकते हैं. अगर आम राय नहीं बनी तो फिर नया अध्यक्ष चुनने के लिए कमेटी गठित की जा सकती है. लेकिन सीडब्लूसी की बैठक से पहले देवड़ा का सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिये दिया गया बयान बेहद अहम इसलिए क्योंकि वो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं.