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पूर्व विदेश मंत्री और बीजेपी की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज का निधन, राजनीतिक जगत में शोक की लहर

पूर्व विदेश मंत्री और बीजेपी की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में दिल्ली के AIIMS में निधन हो गया. मंगलवार रात नौ बजे सीने में दर्द की शिकायत के बाद सुषमा स्वराज को दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था. पांच वरिष्ठ डॉक्टरों की टीम उनके इलाज के लिए लगाई गई थी. लेकिन सुषमा स्वराज को बचाया नहीं जा सका.

सुषमा स्वराज लंबे अर्से से बीमार चल रही थीं और उनका किडनी ट्रांसप्लांट भी हुआ था. बीमारी की वजह से ही उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था. 2014 में सुषमा स्वराज को विदेश मंत्रालय का प्रभार मिला था. बीजेपी के शासन के दौरान सुषमा दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रही थीं. उन्हें दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था. इंदिरा गांधी के बाद सुषमा स्वराज दूसरी ऐसी महिला थीं, जिन्होंने विदेश मंत्री का पद संभाला था. बीते चार दशकों में वे 11 चुनाव लड़ीं, जिसमें तीन बार विधानसभा का चुनाव लड़ीं और जीतीं, इसके अलावा सुषमा स्वराज सात बार सांसद रह चुकी थीं.

लम्बे समय से खराब स्वास्थ्य के चलते सुषमा स्वराज ने इस बार का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय किया था. सुषमा स्वराज की गिनती प्रखर नेताओं में होती थी. जब साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनी तब उनके राजनीतिक अनुभव को देखते हुए उन्हें विदेश मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी दी गई. निधन के कुछ घंटे पहले ही उन्होंने अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले पर ट्विट कर केंद्र सरकार की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई दी थी.

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निधन की खबर से पूरे राजनीतिक जगत में शोक की लहर है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित सभी पार्टियों के नेताओं ने सुषमा स्वराज के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. उनके निधन की खबर मिलते ही बीजेपी के तमाम बड़े नेता AIIMS पहुंचे और सुषमा स्वराज के परिवार की सांत्वना दी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सुषमा स्वराज के निधन पर शोक जाहिर करते हुए कहा कि वो लोगों के लिए प्रेरणा थीं. उन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. मोदी ने ट्वीट किया, ”भारतीय राजनीति में एक शानदार अध्याय समाप्त होता है. भारत एक उल्लेखनीय नेता के निधन पर शोक व्यक्त करता है, जिन्होंने अपना जीवन सार्वजनिक सेवा और गरीबों के जीवन को समर्पित किया. सुषमा स्वराज जी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत थीं.”

बता दें, सुषमा स्वराज के नाम कई कीर्तिमान हैं, जिसके लिये उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा. 1977 में जब वह 25 साल की थीं, तब वह भारत की सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनी थीं. वह 1977 से 1979 तक सामाजिक कल्याण, श्रम और रोजगार जैसे 8 मंत्रालय मिले थे. जिसके बाद 27 साल की उम्र में 1979 में वह हरियाणा में जनता पार्टी की राज्य अध्यक्ष बनी थीं. सुषमा स्वराज के नाम ही राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता होने का गौरव प्राप्त था. इसके अलावा सुषमा स्वराज पहली महिला मुख्यमंत्री, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विपक्ष की पहली महिला नेता थीं.

‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, चिंता मत करो बेटा इसे भी सुलझा लेंगे’

जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले के बाद पाकिस्तान की आवाम और सरकार में बौखलाहट साफ देखी जा सकती है. केंद्र सरकार ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और धारा 35ए को समाप्त कर दिया. इस फैसले के बाद एक ओर तो पाक प्रधानमंत्री इमरान खान सेना को जंग के लिए तैयार रहने की सलाह दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के पूर्व हरफनमौला खिलाड़ी शाहिद आफरीदी और बीजेपी के दिल्ली सांसद गौतम गंभीर इसी मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर आमने-सामने हो गए. दोनों की यह तीखी तकरार ट्विटर पर हुई और खासी ट्रेंडिंग में रही. आफरीदी ने न केवल भारत सरकार के इस कदम को गलत बताया, साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ की चुप्पी पर भी निशाना साधा.

पूर्व पाक क्रिकेटर ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार, कश्मीर को उसका हक मिलना चाहिए. उन्हें हमारी जैसी आजादी मिलनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र क्यों बना था? वह क्यों सो रहा है? यह बेवजह आक्रामकता और मानवता के खिलाफ अपराध है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए.’


इसका जवाब देते हुए गौतम गंभीर ने उन्हें रिट्वीट करते हुए कहा, ‘आफरीदी एक बार फिर हाजिर हैं. आफरीदी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं. यह बेवजह आक्रामकता है और मानवता के खिलाफ अपराध हैं. इन्होंने काफी कुछ कहा लेकिन यह बताना भूल गए कि यह सब पीओके में हो रहा है. चिंता मत करो, हम इससे भी निपट लेंगे बेटा.’

ट्वीट के आखिर में गौतम गंभीर ने शाहिद आफरीदी को ‘बेटा’ कहते हुए संबोधित किया. हालांकि आफरीदी की कोई प्रतिक्रिया इस बारे में नहीं आयी है लेकिन इस ट्वीट पर इंडियन यूजर्स ने आफरीदी को जमकर ट्रोल किया. कुछ यूजर्स ने क्रिकेट मैच में आफरीदी और गौतम गंभीर की तकरार के वीडियो भी पोस्ट किए. बता दें, गौतम गंभीर पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं और हाल के लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने क्रिकेट से संन्यास लेते हुए बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और सदन में पहुंचे.

इस तीखी तकरार के दूसरी ओर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने मोदी सरकार के इस फैसले पर सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी. राहुल गांधी, राजस्थान सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने इस कदम का विरोध किया.

वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को समाप्त करने का समर्थन किया.

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 लोकसभा में भी हुआ पास

सोमवार को राज्यसभा में पारित हुआ ऐतिहासिक ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019’ मंगलवार को लोकसभा में भी पास हो गया. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 को पेश किया जो वोटिंग के बाद पास हो गया. दिनभर चले हंगामे के बाद शाम को हुई वोटिंग में विधेयक के पक्ष में 367 और विपक्ष में 67 वोट पड़े. सदन में मौजूद सदस्यों की कुल संख्या 434 रही. समाजवादी पार्टी ने इस दौरान सदन से वॉकआउट किया. बिल में जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने तथा अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को समाप्त करने के प्रस्ताव हैं.

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 बिल राज्यसभा में सोमवार को 61 के मुकाबले 125 वोटों से पहले ही पास हो चुका है. अब इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा जाएगा. उनकी सहमति के साथ ही इसे कानून का दर्जा प्राप्त हो जाएगा. गृह मंत्री ने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक भी पेश किया.

इससे पहले आज सदन में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच तीखी बहस हुई. कांग्रेस ने जब इस बिल और घाटी में धारा 370 की समाप्ति पर सवाल खड़े किए तो अमित शाह भड़क गए और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे कश्मीर के लिए जान भी दे देंगे.

इतना ही नहीं, शाह ने ये तक कह दिया कि जब मैं जम्मू-कश्मीर बोलता हूं तो उसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) भी आता है और अक्साई चीन भी. दोनों ही देश के अभिन्न अंग हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर की भलाई के लिए विपक्ष को भी साथ देना चाहिए. अमित शाह ने आगे कहा कि हमारी पार्टी इतिहास में की गई गलती को नहीं दोहराएगी. साथ ही ये भी कहा कि लद्दाख के बारे में बाद में सोच समझकर विचार किया जाएगा.

अंत में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने लोकसभा के सम्पूर्ण बजट सत्र की कार्यवाही का विवरण पेश करते हुए लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की.

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया जम्मूकश्मीर पुनर्गठन बिल का समर्थन

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जम्मूकश्मीर पुनर्गठन बिल का समर्थन का समर्थन पर ट्विट करते हुए लिखा – “जम्मूकश्मीर और #लद्दाख को लेकर उठाए गए कदम और भारत देश मे उनके पूर्ण रूप से एकीकरण का मैं समर्थन करता हूँ। संवैधानिक प्रक्रिया का पूर्ण रूप से पालन किया जाता तो बेहतर होता, साथ ही कोई प्रश्न भी खड़े नही होते। लेकिन ये फैसला राष्ट्र हित मे लिया गया है और मैं इसका समर्थन करता हूँ।”

प्रियंका को राजस्थान से राज्यसभा में भेजने की मांग

राजस्थान में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन लाल सैनी के निधन से खाली राज्यसभा सीट पर 26 अगस्त को उपचुनाव होगा, जिसके लिए नामांकन भरने की आखिरी तारीख 14 अगस्त है. पहले यह भाजपा की सीट थी, लेकिन अब राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस का बहुमत होने से यह सीट कांग्रेस को मिलना लगभग तय है. राजस्थान की सीट पर किसको उम्मीदवार बनाया जाए, इस पर कांग्रेस हाईकमान विचार कर रहा है. इस बीच राजस्थान से इस सीट पर प्रियंका गांधी को सांसद बनाकर राज्यसभा भेजने की अटकलें लगाई जा रही है.

पूर्व में इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से डॉ. मनमोहन सिंह को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा थी. मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा सांसद थे. उनका कार्यकाल जून में समाप्त हो चुका है. मनमोहन सिंह को तमिलनाडु से राज्यसभा में भेजने की तैयारी चल रही थी, लेकिन वहां कांग्रेस की सहयोगी पार्टी द्रमुक ने खाली राज्यसभा सीट पर वाइको को चुने जाने का वादा कर लिया था, इसलिए मनमोहन सिंह को तमिलनाडु से राज्यसभा में नहीं भेजा जा सका. तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और द्रमुक ने राज्यसभा की तीन-तीन सीटें जीती हैं.

राजस्थान की राज्यसभा सीट पर उम्मीदवार के चयन की कवायद के बीच कांग्रेस विधायक खिलाड़ीलाल बैरवा ने कहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को राजस्थान से राज्यसभा सदस्य बनाया जाना चाहिए. प्रियंका गांधी को राज्यसभा में भेजने के साथ ही उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से जो परिस्थितियां बनी हैं, उसमें कांग्रेस कार्यकर्ता परेशान हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में ख़िलाड़ीलाल बैरवा ने कहा कि वह नेक इंसान हैं, लेकिन आज के हालात को ध्यान में रखते हुए प्रियंका गांधी का कद बढ़ाया जाना जरूरी है. प्रियंका के राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने से पार्टी को मजबूती मिलेगी और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा. राजस्थान से प्रियंका गांधी का रिश्ता बनेगा, जिससे पार्टी के अंदरूनी मतभेदों पर भी विराम लगेगा.

चुनाव आयोग ने गुरुवार एक अगस्त को राजस्थान और उत्तर प्रदेश की एक-एक खाली राज्यसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा कर दी है. राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस का बहुमत होने से वह इस सीट को आसानी से जीतने की स्थिति में है, क्योंकि 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा में वर्तमान में 198 सदस्य हैं जिसमें कांग्रेस के पास 100 सदस्य है तथा एक लोक दल, 11 निर्दलीय सदस्यों के समर्थन के साथ बसपा के 6 सदस्यों का समर्थन भी है, इस तरह उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस की तय है. प्रियंका गांधी या मनमोहन सिंह या फिर कोई ओर, राज्यसभा में उनका कार्यकाल तीन अप्रैल 2024 तक रहेगा. चुनाव के लिए सात अगस्त को अधिसूचना जारी होने वाली है.

राज्यसभा सीट पर नामांकन की आखिरी तारीख 14 अगस्त होगी, 19 अगस्त तक नामांकन वापस लिए जा सकेंगे. उप्र की एक सीट पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर के इस्तीफे से खाली हुई है. वह सपा छोड़कर भाजपा में चले गए हैं. पूरी संभावना है कि नीरज शेखर भाजपा के कोटे से राज्यसभा में पहुंच जाएं.

कैसा होगा ‘नया कश्मीर’, युवाओं को मिलेंगे आगे बढ़ने के सुअवसर

सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा कश्मीर से धारा370 और 35A को समाप्त करके लिये गए ऐतिहासिक फैसले के बाद स्थानीय युवाओं को आगे बढ़ने के सुअवसर मिलेंगे, इसमें कोई संयश नहीं है. अभी तक धारा 370, दोहरी नागरिकता और अन्य प्रतिबंधों के चलते युवाओं को न तो यहां से बाहर निकलने का मौका मिलता था और न ही किसी और को यहां आने का. बेरोजगारी यहां की सबसे बड़ी समस्या है जिससे चलते युवा वर्ग बहकावे में आता है और पत्थरबाजों की शक्ल ले लेता है. लेकिन अब सभी तक के प्रतिबंध यहां से हट चुके हैं और एकल नागरिकता के साथ सुप्रीम कोर्ट के सभी कानून एवं नियम यहां लागू हो गए हैं जिनमें स्वैच्छिक शिक्षा, विवाह, कारोबार, आरटीआई और आरटीई सहित अन्य नियम शामिल हैं.

इन सबके अतिरिक्त यहां के युवाओं को रोजगार के प्रबल अवसर भी उपलब्ध होंगे. इससे न सिर्फ उनका ध्यान भटकाव से दूर रहेगा, वे अपनी जिंदगी आम नागरिक की तरह बिता पाएंगे, अच्छे स्कूल-कॉलेज में शिक्षा ले सकेंगे और बेहतर रोजगार के अवसर पा सकेंगे. लेकिन इतना सब होगा कैसे? ये सवाल हर किसी के दिमाग में हैं. इस खास रिपोर्ट में हम बताने जा रहे हैं जम्मू—कश्मीर में धारा 370 और धारा 35ए के बाद पनपने वाली उन परिस्थितियों के बारे में, जिनके बाद यहां का युवा और आम वर्ग प्रतिबंधों की बेड़ियों से छूट आत्मसम्मान का जीवन जी सकेगा.

1. केंद्र सरकार लाएगी फूड पार्क सहित कई बड़े प्रोजेक्ट, निवेश के द्वार खुलेंगे
केंद्र सरकार जल्द ही जम्मू-कश्मीर में नए तरीके से विकास का खाका खींचने का काम करेगी. कुछ दिनों में ही जम्मू-कश्मीर के लिए फूड पार्क, रेलवे और हाइवे सहित कई बड़े प्रोजेक्ट्स का ऐलान किया जाने की उम्मीद है. इससे युवाओं को न केवल रोजगार मिलेगा बल्कि उनके लिए तरक्की के दरवाजे भी खुलेंगे. जानकारी ये भी आ रही है कि कश्मीर में नए तरीके से निवेश को लेकर सरकार अक्टूबर में एक समिट करने जा रही है जिसमें देश और दुनिया के कई बड़े कारोबारी हिस्सा लेंगे. पर्यटन को पहले से अधिक बढ़ावा देने की भी सरकार की योजना प्रबल हे.

2. बेरोजगारी से मिलेगी मुक्ति, आईटी व फार्मा सेक्टर के प्लांट लगेंगे
कश्मीर के युवाओं में भटकाव की अगर कोई सबसे बड़ी वजह अगर कोई है तो वो है बेरोजगारी. लेकिन अब राज्य में बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन हो सकेगा. विप्रो ने श्रीनगर में आईटी सेंटर स्थापित करने की तैयारी शुरू की है. फार्मा सेक्टर की कई देसी-विदेशी कंपनियां जम्मू-कश्मीर में प्रोजेक्ट लगाने की इच्छुक हैं. जम्मू-कश्मीर के कई घरानों ने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजवाद और सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया है. अन्य कंपनियां आने से भ्रष्टाचार में तो कमी आएगी ही, यहां का विकास भी सुचारू तौर पर हो सकेगा.

3. जमीन खरीद से मिलेगा फायदा
धारा 35ए हटने के बाद अब कोई भी कश्मीर में खेती या अन्य व्यवसाय के लिए जमीन की खरीद फरोख्त कर सकता है. इससे पहले यह संभव नहीं था और स्थानीय व्यक्ति ही ऐसा कर सकता था. बाहरी राज्यों के उद्योगपतियों और कारोबारियों को अगर यहां जमीने मिलेंगी तो उनका इस्तेमाल औद्योगिक गतिविधियों के लिए होगा. जम्मू के अलावा उधमपुर और कठुआ इलाके में ग्लास, प्लास्ट‍िक और बिल्ड‍िंग मटीरियल के इंडस्ट्र‍ियल एस्टेट हैं जिन्हें और बढ़ावा मिलेगा. इन सभी जगहों पर स्थानीय कारीगरों की आवश्यकता होगी जिनसे यहां के युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

4. रोजगार मिलने से घटेगा आतंवाद
अगर जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों को दो जून की रोटी के साथ विकासभरा माहौल मिलेगा तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि घाटी से आतंकवाद को पैर पसारने का अवसर नहीं मिलेगा. जिस सख्ती से केंद्र सरकार ने प्रदेश से धारा 370 और धारा 35ए को हटाया, अगर उसी कदम पर चलते हुए विकास और उन्नति पर भी काम करें तो जम्मू-कश्मीर जल्द ही एक पूर्ण राज्य बन सकेगा. साथ ही यहां दहशत का नहीं बल्कि शांति का माहौल बनेगा.

धारा 370 समाप्त होने पर पार्टी के जश्न से नदारद रहे बड़े भाजपा नेता

कश्मीर में धारा 370 और 35ए हटाने के फैसले पर जहां पूरे देश में जश्न मनाया जा रहा है और जिसमें भाजपा कार्यकर्ता जोर-शोर से भाग ले रहे हैं, वहीं जयपुर में भाजपा के कई बड़े नेता शहर में होने के बावजूद इस जश्न से नदारद रहे. गौरतलब है कि कई दशकों से कश्मीर से धारा 370 हटाना भाजपा का मुख्य एजेंडा रहा है. इसी मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पंडित जवाहलाल नेहरू की सरकार से इस्तीफा देकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो जनता पार्टी से अलग होने के बाद प्रकारांतर से अब भारतीय जनता पार्टी है.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने निषेधाज्ञा तोड़कर कश्मीर की यात्रा की थी और गिरफ्तार कर लिए गए थे. उसके बाद वह रिहा नहीं हुए. कुछ दिनों के बाद कारावास में उनकी मौत हो गई थी. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कई लोग मानते हैं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अपना बलिदान दिया था. अब केंद्र में भाजपा का पूर्ण बहुमत है. पांच अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना साकार कर दिया है. यह मौका भाजपा के लिए जश्न मनाने का है.

देशभर में भाजपा के जितने कार्यालय हैं, वहां इस फैसला का जोरदार स्वागत किया गया. कई जगह मिठाइयां बंटी, कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे को गुलाल लगाकर जश्न मनाया. टीवी के समाचार चैनल्स इस तरह के दृश्यों से भरे पड़े थे. भाजपा के अलावा कई अन्य पार्टियों ने भी फैसले का स्वागत किया. कांग्रेस में भी इस फैसले के कारण मतभेद की स्थिति बन गई है. कई कांग्रेस नेता फैसले का विरोध नहीं कर रहे हैं. यह भाजपा के लिए अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता भी है.

यह भी पढ़ें: राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र का समापन

जयपुर स्थित भाजपा का मुख्यालय भी इससे अछूता नहीं रहा. कई कार्यकर्ता वहां जुटे, आतिशबाजी हुई, लड्डू बंटे, लेकिन प्रमुख भाजपा नेताओं की गैर मौजूदगी अखरने वाली रही. यहां तक कि जयपुर में रहने वाले वरिष्ठ नेता और विधायक तक समारोह से दूर रहे. राजस्थान विधानसभा का सत्र जारी रहने से सभी भाजपा विधायक इन दिनों जयपुर में हैं. वसुंधरा राजे जयपुर से बाहर हैं. इसलिए उनकी मौजूदगी संभव नहीं थी, लेकिन गुलाब चंद कटारिया, राजेन्द्र राठौड़, अशोक लाहोटी सहित तमाम प्रमुख नेता जयपुर में ही थे. सोमवार शाम को विधानसभा सत्र का समापन होने के बाद उनके पास समय भी था. भाजपा कार्यालय विधानसभा से ज्यादा दूर भी नहीं है. वे वहां से पांच-सात मिनट नें भाजपा कार्यालय पहुंच सकते थे, लेकिन उन्हें ऐतिहासिक मौके पर जश्न मनाने में कोई रुचि नहीं थी.

विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद भाजपा विधायकों ने भाजपा कार्यालय पहुंचने की बजाय जल्दी घर लौटना जरूरी समझा. प्रदेश भाजपा मुख्यालय पर प्रदेश के संगठन महामंत्री चंद्रशेखर ने प्रेस कांफ्रेंस की और विधेयक पारित होने का स्वागत किया. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सतीश पूनिया, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा, कालीचरण सराफ और कुछ अन्य भाजपा नेताओं को छोड़कर भाजपा कार्यालय में कोई बड़ा नेता नहीं दिखा, यह आश्चर्यजनक है. राजस्थान विधानसभा में भाजपा के 72 विधायक हैं.

ऐतिहासिक मौके पर भाजपा कार्यालय से अधिकांश विधायकों की बेरुखी से यह भी संकेत मिलता है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है. अगर पार्टी को लेकर भाजपा के विधायक गंभीर रहते तो कम से कम दस विधायकों को तो पार्टी कार्यालय पहुंचना चाहिए था. अगर वसुंधरा राजे यहां होती तो कितने विधायक विधानसभा सत्र के बाद सीधे घर पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते? क्या यह माहौल वसुंधरा राजे की गैर मौजूदगी के कारण तो नहीं है?

बहरहाल बड़े भाजपा नेताओं के पार्टी कार्यालय नहीं पहुंच पाने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक प्रमुख कारण यह भी स्पष्ट होता है कि वे पार्टी को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं हैं. शायद वे यह मानते हैं कि यह अमित शाह का फैसला है, इससे अपना क्या लेना देना. भाजपा की बहुत पुरानी लंबित मांग पूरी हो जाने पर राजस्थान के भाजपा विधायकों की इस कदर मायूसी समझ से परे है.

पूर्व मुख्यमंत्रियों को अलगाववादी बताते हुए गिरफ्तार करने का कोई औचित्य नहीं है -पायलट

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जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का ट्वीट – प्रगतिशील और सक्रिय लोकतंत्र होने से सभी राजनीतिक पार्टियों और सभी जन प्रतिनिधियों को जम्मू कश्मीर के बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए. पूर्व मुख्यमंत्रियों को अलगाववादी बताते हुए गिरफ्तार करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि उन्होंने भी सविंधान की शपथ की थी. उम्मीद है कि कश्मीर में जल्द ही शांति का वातावरण बनेगा.

राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र का समापन

सोमवार पांच अगस्त को राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र का समापन हो गया. विधानसभा का बजट और मानसून सत्र 27 जून से शुरू हुआ था 5 अगस्त तक चलने के बाद अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया. इस सत्र में 21 दिन विधानसभा की बैठक हुई और कुल 179 घंटे 19 मिनट सदन में कामकाज हुआ. सोमवार शाम विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी. इससे पहले उन्होंने सदन में हुए कामकाज का ब्योरा दिया.

जोशी ने बताया कि इस सत्र के दौरान प्रश्नकाल में सदस्यों से कुल 7292 प्रश्न प्राप्त हुए, जिनमें से 7277 प्रश्न स्वीकृत किए गए. इनमें 3220 तारांकित और 4057 अतारांकित प्रश्न शामिल हैं. कुल 477 तारांकित प्रश्न सूचीबद्ध हुए, जिनमें से 222 प्रश्नों पर सदन में चर्चा हुई. सत्र के दौरान 599 अतरांकित प्रश्न सूचीबद्ध हुए. मदन दिलावर और भरत सिंह कुंदनपुर ने विधानसभा में आधा घंटा बहस की मांग भी की. सदस्यों से प्रक्रिया के नियम 50 के तहत 273 स्थगन प्रस्तावों की सूचना प्राप्त हुई, जिनमें से 64 सदस्यों को स्थगन प्रस्तावों के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई. मंत्रियों ने 22 विषयों पर सरकार की स्थिति स्पष्ट की.

प्रक्रिया के नियम-295 के तहत प्राप्त 190 विशेष उल्लेख की सूचनाएं सदन में पढ़ी गई और पढ़ी हुई मानी गई, जिनमें 75 सूचनाओं के संबंध में राज्य सरकार से जानकारी मिली. इसी प्रकार प्रक्रिया के नियम 119 के तहत लोकहित के विषय के अंतर्गत दो प्रस्ताव मिले, जिनमें से एक प्रस्ताव तथ्यात्मक जानकारी के लिए राज्य सरकार को भेजा गया. 55 सदस्यों ने पर्ची के माध्यम से विषय उठाए, जिनमें से 14 पर राज्य सरकार ने तत्काल स्थिति स्पष्ट की. 639 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव मिले, जिनमें से राज्य सरकार ने 284 का उत्तर दिया. इनमें से 28 प्रस्ताव सदन में संबंधित मंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए सूचीबद्ध किए गए.

यह भी पढ़ें: बजट सत्र के आखिरी दिन वेतन बढ़ाने का जरूरी काम ताबड़तोड़ हुआ

बजट सत्र के दौरान 10 जुलाई को आय-व्ययक अनुमान वर्ष 2019-20 सदन में पेश किया गया. इस पर चार दिन सामान्य बहस हुई, जिसमें 106 सदस्यों ने भाग लिया. बजट पर कुल 23.13 घंटे बहस हुई. अनुदान मांगों पर 3521 कटौती प्रस्ताव मिले, जिनमें से 2871 सदन में प्रस्तुत किए गए. 650 कटौती प्रस्ताव नामंजूर किए गए. अनुदान मांगों पर विभिन्न तारीखों में होने वाली बहस में भाग लेने वाले विधायकों की संख्या कुल 353 रही.

सत्र के दौरान 15 विधेयक फिर से पेश किए गए. सदन ने 15 विधेयक पारित किए. विधेयकों पर सदस्यों से 175 संशोधन प्रस्ताव मिले, जिनमें से 34 नामंजूर किए गए. 141 संशोधनों को मंजूरी दी गई. पूरे सत्र में कुल 20 गैर सरकारी संकल्प प्राप्त हुए, जिनमें 19 मंजूर किए गए. पांच गैर सरकारी संकल्प सूचीबद्ध किए गए. सूचीबद्ध संकल्पों में कुल आठ संशोधनों की सूचना मिली, जिनमें एक को छोड़कर बाकी सभी मंजूर कर लिए गए.

सत्र के दौरान राज्य में किसानों के कर्ज, पेयजल और बिजली की स्थिति पर 28 जून को सदन में विचार किया गया, जिसमें 22 सदस्यों ने भाग लिया और चार घंटे 29 मिनट की बहस हुई. पेयजल की स्थिति पर सदन में 8 जुलाई को विचार किया गया, जिसमें 52 सदस्यों ने भाग लिया, पांच घंटे 27 मिनट बहस हुई. बिजली की स्थिति पर सदन में नौ जुलाई को विचार हुआ, जिसमें 50 सदस्यों ने छह घंटे 27 मिनट बहस की.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राजस्थान विधानसभा का यह बजट सत्र सफल रहा है हालांकि पूरे बजट सत्र के दौरान कुछ एक मुद्दों पर विपक्ष ने कुछ घन्टों का वॉक आउट भी किया जो कि किसी भी विधानसभा सत्र की सामान्य प्रक्रिया कही जा सकती है.

बजट सत्र के आखिरी दिन वेतन बढ़ाने का जरूरी काम ताबड़तोड़ हुआ

राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र का समापन सोमवार को हो गया. बजट सत्र के आखिरी दिन महत्वपूर्ण विधेयक मॉब लिंचिंग के खिलाफ राजस्थान हिंसा से संरक्षण विधेयक-2019 और राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक-2019 पारित हो गए. इसके साथ ही बीच में मॉब लिंचिंग के खिलाफ विधेयक पर बहस को बीच में रोककर ताबड़तोड़ मंत्रियों, विधायकों का वेतन बढ़ाने संबंधी संशोधन विधेयक भी पारित करा लिया गया, जिसका न किसी ने विरोध किया और नही आपत्ति जताई.

वेतन बढ़ाने संबंधी दो विधेयक राजस्थान मंत्री वेतन (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2019 और राजस्थान विधानसभा (अधिकारियों तथा सदस्यों क परिलब्धियां और पेंशन) (संशोधन) विधेयक 2019 विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के निर्देश पर संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने पेश किए थे. दोनों विधेयक पारित होने में सात मिनट से ज्यादा समय नहीं लगा. इसके बाद मॉब लिंचिग के खिलाफ विधेयक पर बहस फिर बहाल हो गई.

वेतन वृद्धि संशोधन विधेयक पारित होने के बाद विधायकों का वेतन 25 हजार रुपए से बढ़कर 40 हजार रुपए प्रतिमाह हो गया है. निर्वाचन भत्ता 50 हजार से बढ़कर 70 हजार रुपए और विधायकों का दैनिक भत्ता 1500 से बढ़ाकर 2000 रुपए प्रतिदिन कर दिया गया है. राज्य के बाहर यह भत्ता 2500 रुपए प्रतिदिन रहेगा. टेलीफोन भत्ता बढ़ाकर 2500 रुपए कर दिया गया है. निर्वाचन क्षेत्र में भ्रमण के लिए वाहन भत्ता 15 दिन के लिए अधिकतर 45 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है. रेल और हवाई यात्रा के लिए वार्षिक भत्ता दो लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपए किया गया है. मकान किराया 20 हजार से बढ़ाकर 30 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है.

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इससे पहले विधायकों, मंत्रियों का वेतन भत्ता पिछली भाजपा सरकार के दौरान 26 अप्रैल 2017 को बढ़ाया गया था. सोमवार को जो वेतन वृद्धि की गई है, उसके तहत मुख्यमंत्री का वेतन 55 हजार से बढ़कर 75 हजार रुपए, विधानसभा अध्यक्ष का वेतन 50 हजार से बढ़कर 70 हजार रुपए, विधानसभा उपाध्यक्ष का वेतन 45 हजार से बढ़कर 65 हजार रुपए, उप मुख्यमंत्री का वेतन 65 हजार से बढ़कर 80 हजार रुपए, कैबिनेट मंत्री का वेतन 45 हजार से बढ़कर 65 हजार रुपए, राज्यमंत्री का वेतन 42 हजार से बढ़कर 62 हजार रुपए, संसदीय सचिव का वेतन 40 हजार से बढ़कर 60 हजार रुपए, मुख्य सचेतक का वेतन 45 हजार से बढ़कर 65 हजार रुपए, उप मुख्य सचेतक का वेतन 42 हजार से बढ़कर 62 हजार रुपए, नेता प्रतिपक्ष का वेतन 45 हजार से बढ़कर 65 हजार रुपए, उपमंत्री का वेतन 40 हजार से बढ़कर 60 हजार रुपए हो गया है.

विधानसभा अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों का सत्कार भत्ता भी बढ़ा दिया गया है. विधानसभा अध्यक्ष, और नेता प्रतिपक्ष का सत्कार भत्ता 80 हजार रुपए प्रतिमाह होगा. उप मुख्य सचेतक का सत्कार भत्ता 70 हजार रुपए होगा. अध्यक्ष को फर्नीचर के लिए कार्यकाल के दौरान छह लाख रुपए मिलेंगे. उपाध्यक्ष, सरकारी मुख्य सचेतक, उप मुख्य सचेतक, नेता प्रतिपक्ष को फर्नीचर के लिए पांच लाख रुपए मिलेंगे.

मुख्यमंत्री का सत्कार भत्ता 55 से बढ़ाकर 85 हजार रुपए प्रतिमाह हो गया है. उप मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यमंत्री को 80 हजार, संसदीय सचिव को 70 हजार, उप मंत्री को 60 हजार रुपए प्रतिमाह सत्कार भत्ते के रूप में मिलेंगे. मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री का मकान किराया भत्ता भी 10 हजार से बढ़ाकर 30 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है.

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