कश्मीर में धारा 370 और 35ए हटाने के फैसले पर जहां पूरे देश में जश्न मनाया जा रहा है और जिसमें भाजपा कार्यकर्ता जोर-शोर से भाग ले रहे हैं, वहीं जयपुर में भाजपा के कई बड़े नेता शहर में होने के बावजूद इस जश्न से नदारद रहे. गौरतलब है कि कई दशकों से कश्मीर से धारा 370 हटाना भाजपा का मुख्य एजेंडा रहा है. इसी मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पंडित जवाहलाल नेहरू की सरकार से इस्तीफा देकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो जनता पार्टी से अलग होने के बाद प्रकारांतर से अब भारतीय जनता पार्टी है.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने निषेधाज्ञा तोड़कर कश्मीर की यात्रा की थी और गिरफ्तार कर लिए गए थे. उसके बाद वह रिहा नहीं हुए. कुछ दिनों के बाद कारावास में उनकी मौत हो गई थी. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कई लोग मानते हैं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अपना बलिदान दिया था. अब केंद्र में भाजपा का पूर्ण बहुमत है. पांच अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना साकार कर दिया है. यह मौका भाजपा के लिए जश्न मनाने का है.
देशभर में भाजपा के जितने कार्यालय हैं, वहां इस फैसला का जोरदार स्वागत किया गया. कई जगह मिठाइयां बंटी, कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे को गुलाल लगाकर जश्न मनाया. टीवी के समाचार चैनल्स इस तरह के दृश्यों से भरे पड़े थे. भाजपा के अलावा कई अन्य पार्टियों ने भी फैसले का स्वागत किया. कांग्रेस में भी इस फैसले के कारण मतभेद की स्थिति बन गई है. कई कांग्रेस नेता फैसले का विरोध नहीं कर रहे हैं. यह भाजपा के लिए अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता भी है.
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जयपुर स्थित भाजपा का मुख्यालय भी इससे अछूता नहीं रहा. कई कार्यकर्ता वहां जुटे, आतिशबाजी हुई, लड्डू बंटे, लेकिन प्रमुख भाजपा नेताओं की गैर मौजूदगी अखरने वाली रही. यहां तक कि जयपुर में रहने वाले वरिष्ठ नेता और विधायक तक समारोह से दूर रहे. राजस्थान विधानसभा का सत्र जारी रहने से सभी भाजपा विधायक इन दिनों जयपुर में हैं. वसुंधरा राजे जयपुर से बाहर हैं. इसलिए उनकी मौजूदगी संभव नहीं थी, लेकिन गुलाब चंद कटारिया, राजेन्द्र राठौड़, अशोक लाहोटी सहित तमाम प्रमुख नेता जयपुर में ही थे. सोमवार शाम को विधानसभा सत्र का समापन होने के बाद उनके पास समय भी था. भाजपा कार्यालय विधानसभा से ज्यादा दूर भी नहीं है. वे वहां से पांच-सात मिनट नें भाजपा कार्यालय पहुंच सकते थे, लेकिन उन्हें ऐतिहासिक मौके पर जश्न मनाने में कोई रुचि नहीं थी.
विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद भाजपा विधायकों ने भाजपा कार्यालय पहुंचने की बजाय जल्दी घर लौटना जरूरी समझा. प्रदेश भाजपा मुख्यालय पर प्रदेश के संगठन महामंत्री चंद्रशेखर ने प्रेस कांफ्रेंस की और विधेयक पारित होने का स्वागत किया. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सतीश पूनिया, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा, कालीचरण सराफ और कुछ अन्य भाजपा नेताओं को छोड़कर भाजपा कार्यालय में कोई बड़ा नेता नहीं दिखा, यह आश्चर्यजनक है. राजस्थान विधानसभा में भाजपा के 72 विधायक हैं.
ऐतिहासिक मौके पर भाजपा कार्यालय से अधिकांश विधायकों की बेरुखी से यह भी संकेत मिलता है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है. अगर पार्टी को लेकर भाजपा के विधायक गंभीर रहते तो कम से कम दस विधायकों को तो पार्टी कार्यालय पहुंचना चाहिए था. अगर वसुंधरा राजे यहां होती तो कितने विधायक विधानसभा सत्र के बाद सीधे घर पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते? क्या यह माहौल वसुंधरा राजे की गैर मौजूदगी के कारण तो नहीं है?
बहरहाल बड़े भाजपा नेताओं के पार्टी कार्यालय नहीं पहुंच पाने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक प्रमुख कारण यह भी स्पष्ट होता है कि वे पार्टी को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं हैं. शायद वे यह मानते हैं कि यह अमित शाह का फैसला है, इससे अपना क्या लेना देना. भाजपा की बहुत पुरानी लंबित मांग पूरी हो जाने पर राजस्थान के भाजपा विधायकों की इस कदर मायूसी समझ से परे है.