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जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के साथ ही वहां से धारा 370 और 35ए हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों सहित तमाम विपक्षी पार्टियां करीब-करीब सकते में आ गई हैं. कमोबेश सरकार के फैसले का ज्यादातर पार्टियां समर्थन ही कर रही हैं, जिनमें बसपा, शिवसेना, अन्नाद्रमुक, आप शामिल हैं. यह मामला कई दशकों से उलझा हुआ था. जम्मू कश्मीर की पार्टियां पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस इसके सख्त खिलाफ है.

संसद में गृहमंत्री अमित शाह की घोषणा के कुछ मिनट बाद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने 11.39 बजे लगातार दो ट्वीट किए. उन्होंने कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दिन है. जम्मू-कश्मीर के नेतृत्व ने 1947 में भारत के साथ जाने का जो फैसला किया था, वो गलत साबित हो गया. भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला अवैध और असंवैधानिक है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धारा 370 पर मोदी सरकार के फैसले का स्वागत किया है.

सरकार के फैसले के बाद अब जम्मू-कश्मीर की स्थिति दिल्ली जैसी हो गई है. वहां चुनाव होंगे, सरकार भी होगी, लेकिन उप राज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार का दखल बना रहेगा. जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह लागू होगा. जम्मू-कश्मीर ने 17 नवंबर, 1956 को अपना अलग संविधान पारित किया था. अब उसकी मान्यता समाप्त हो गई है. जम्मू-कश्मीर का अपना अलग ध्वज भी नहीं होगा. इस तरह जम्मू-कश्मीर के विशेषाधिकार पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं.

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह वर्ष का था. अब वहां भी अन्य प्रदेशों की तरह विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा. पहले अन्य राज्यों के लोग कश्मीर के मतदाता नहीं बन सकते थे और वहां चुनाव भी नहीं लड़ सकते थे. अब भारत के नागरिक वहां के मतदाता भी होंगे और वहां चुनाव भी लड़ सकेंगे.

केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले पर प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस ने इसे सत्ता के नशे में लिया गया फैसला बताया है. जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियां जो कल तक धारा 370 और 35ए हटाने का विरोध कर रही थीं, अब अगली रणनीति बनाने में व्यस्त हो गई हैं.

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