राजस्थान विधानसभा ने सोमवार को राज्य में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए “राजस्थान लिंचिंग संरक्षण विधेयक-2019” और ऑनर किलिंग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए संशोधित विधेयक ‘राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक, 2019’ ध्वनिमत से पारित कर दिया.
मणिपुर के बाद अब राजस्थान मॉब लिचिंग कानून बनाने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है. राजस्थान में अब मॉब लिंचिंग की घटना में पीड़ित की मौत पर दोषियों को आजीवन कारावास और पांच लाख रुपये तक का जुर्माने की सजा भुगतनी होगी. वहीं, मॉब लिंचिंग में पीड़ित के गंभीर रूप से घायल होने पर 10 साल तक की सजा और 50 हजार से तीन लाख रुपये तक का जुर्माना दोषियों को भुगतना होगा.
ऑनर किलिंग मामले में राज्य के संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने 30 जुलाई को ‘राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक, 2019’ सदन में पेश किया था. विधेयक के अनुसार कथित सम्मान के लिए की जाने वाली हिंसा एवं कृत्य भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध हैं और इन्हें रोकना जरूरी है. उच्चतम न्यायालय ने 17 जुलाई को अपने निर्णय में इस संबंध में कानून बनाने का निर्देश दिया था.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 16 जुलाई को बजट भाषण के जवाब के दौरान मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कानून बनाने की घोषणा की थी. मॉब लिंचिंग विधेयक के तहत मॉब लिंचिंग की घटनाओं में पीड़ित की मौत पर दोषी को कठोर आजीवन कारावास और एक से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. वहीं ऑनर किलिंग के लिए फांसी या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी.
विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री शांति कुमारी धारीवाल ने कहा कि राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जहां माब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए इस तरह का कानून बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हाल के वर्षों में राज्य में मॉब लिंचिंग की कुछ घटनाओं से राजस्थान के हर नागरिक का सिर शर्म से झुक गया.’ विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने इस विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति के पास भेजे जाने की सिफारिश की और कहा कि भावावेश में किसी कानून को इतना सख्त भी नहीं बना देना चाहिए कि लोग जानबूझकर उसकी अवहेलना करने लग जाएं. उन्होंने कहा, ‘भाजपा मौजूदा रूप में इस विधेयक का कभी समर्थन नहीं करेगी.’ विधेयक पर चर्चा और मंत्री धारीवाल के जवाब के बाद विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित हुआ घोषित किया.
मॉब लिंचिंग में किसी भी रूप से सहायता करने वाले को भी वही सजा मिलेगी, जो लिंचिंग करने वाले को मिलेगी. भाजपा ने इस विधेयक का विरोध किया. विधेयक में मॉब लिंचिंग को गैर जमानती, संज्ञेय अपराध बनाया गया है. लिंचिंग की घटना के वीडियो, फोटो किसी भी रूप में प्रकाशित या प्रसारित करने पर भी एक से तीन साल तक की सजा और 50 हजार रुपये का जुर्माना देय होगा. विधेयक में प्रावधान किया गया है कि दो व्यक्ति भी अगर किसी को मिलकर पीटते है तो उसे मॉब लिंचिंग माना जाएगा.
विधेयक पर हुई चर्चा में विधायकों द्वारा जताई गई आशंकाओं का जवाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की पालना में मॉब लिंचिंग कानून बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि देश में 2014 मॉब लिंचिंग के 200 से अधिक मामले सामने आए, इनमें से 86 प्रतिशत राजस्थान के हैं. देश में शांत प्रदेश माना जाने वाला राजस्थान मॉब लिंचिंग स्टेट के रूप में पहचाने जाने लगा.
वहीं ऑनर किलिंग के लिए फांसी या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी. जाति, समुदाय और परिवार के सम्मान के नाम पर शादीशुदा जोड़े में से किसी एक की जान जाने वाली हत्याएं गैर-जमानती होंगी. इसके अलावा पांच लाख रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. इस विधेयक में शादीशुदा जोड़े पर जानलेवा हमला करने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकेगी.
क्या है मॉब लिंचिंग, क्या है प्रावधान
मॉब लिंचिंग को गैरजमानती और संज्ञेय अपराध बनाया गया है. लिंचिंग से संरक्षण विधेयक-2019 के तहत अगर दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी को मिलकर पीटते हैं तो वो मॉब लिंचिंग के दायरे में आती है. मॉब लिचिंग के दौरान पीड़ित की मौत होने पर दोषी को आजीवन कठोर कारावास और एक लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना देय होगा. पीड़ित के गंभीर रूप से घायल होने पर दोषी को 10 साल तक की कैद और 50 हजार से 3 लाख रुपये तक का जुर्माने से दंडित किया जाएगा. लिंचिंग में सहायता करने वाले को भी दोषी माना जाएगा. दोषियों को गिरफ्तारी से बचाने या अन्य सहायता करने पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान है. वहीं गवाहों को धमकाने वालों के लिए पांच साल की जेल एवं एक लाख तक के जुर्माने और घटना के वीडियो/फोटो प्रकाशित-प्रसारित करने पर एक से तीन साल की सजा एवं 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
इंस्पेक्टर स्तर का अफसर ही करेगा मामले की जांच
किसी भी तरह की मॉब लिंचिंग के मामलों की जांच केवल इंस्पेक्टर स्तर या उससे ऊपर का पुलिस अफसर ही करेगा. मॉब लिंचिंग रोकने के लिए आईजी रैंक के पुलिस अफसर को राज्य समन्वयक बनाया जाएगा. प्रत्येक जिले का एसपी लिचिंग रोकने के लिए जिला समन्वयक होगा.
गवाहों की सुरक्षा के लिए पहचान रहेगी गुप्त
मॉब लिंचिंग के गवाहों की सुरक्षा के लिए उनकी पहचान पूरी तरह से गुप्त रखी जाएगी. गवाहों को दो से ज्यादा तारीखों पर अदालत जाने की बाध्यता से छूट मिलेगी. पीड़ित व्यक्ति का विस्थापन होने पर सरकार उसका पुनर्वास करेगी. साथ ही 50 से अधिक व्यक्तियों के विस्थापित होने पर राहत शिविर लगाने का प्रावधान भी बिल में शामिल है.