लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही राजनीतिक दलों ने अपने अपने दांव खेल दिए हैं. किसी ने वजीर को आगे किया है तो किसी ने प्यादों को आगे बढ़ाकर बिसात बिछाई है. शह और मात के इस खेल राजनीति में राजस्थान भी पीछे नहीं है. आमतौर पर प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही सीधा मुकाबला होता है, लेकिन इस बार बीजेपी गठबंधन के साथ सूबे के सियासी मैदान में है.
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी आरएलपी से गठजोड़ कर जीत की व्यूह रचना तैयार की है. बेनीवाल आरएलपी के सिंबल पर नागौर सीट से मैदान में उतर चुके हैं जबकि बाकी बची 24 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी मैदान में हैं. आपको बता दें कि बेनीवाल पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बनी.
‘मिशन-25’ के साथ चुनावी रण में उतरी बीजेपी बेनीवाल के साथ तालमेल को ‘मास्टर स्ट्रोक’ करार दे रही है. बीजेपी के नेता प्रकाश जावड़ेकर ने तो यहां तक दिया कि बेनीवाल की लोकप्रियता राजस्थान ही नहीं, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित दूसरे राज्यों में है. बेनीवाल ने भी इस बात की पुष्टि की है कि वे बीजेपी के पक्ष में प्रचार करने के लिए राजस्थान के अलावा दूसरे राज्यों में भी जाएंगे.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हनुमान बेनीवाल प्रदेश के जाट बेल्ट में खासे लोकप्रिय हैं. विधानसभा चुनाव से पहले हुई रैलियों में उन्हें सुनने के लिए अच्छी खासी भीड़ जुटी. हालांकि यह भीड़ नतीजों में नहीं दिखी. आरएलपी को महज तीन सीटों पर जीत नसीब हुई. अलबत्ता उन्होंने कई सीटों पर हार-जीत के समीकरण जरूर ऊपर-नीचे कर दिए.
खुद हनुमान बेनीवाल को खींवसर सीट पर 82 हजार वोट मिले जबकि उनकी पार्टी को भोपालगढ़ में 67 हजार, मेड़ता में 56 हजार, शिव में 50 हजार, जायल में 49 हजार और सीकर में 28 हजार से अधिक वोट मिले. आरएलपी उम्मीदवारों को कोटपूतली, कपासन, नीमकाथाना, चौहटन में बीस हजार से अधिक और दूदू, चाकसू, बगरु, शेरगढ़, कठूमर व सरदारशहर में 10 हजार से अधिक वोट मिले. पूरे प्रदेश में आरएलपी के खाते में कुल 8 लाख 32 हजार 852 वोट पड़े, जो कुल मतदान का 2.4 प्रतिशत है.
क्या महज 2.4 फीसदी वोट हासिल करने वाली पार्टी राजस्थान में लोकसभा चुनाव के परिणामों को प्रभावित कर सकती है? राजनीति के जानकारों की मानें तो हनुमान बेनीवाल पर इतना बड़ा दांव खेलकर बीजेपी ने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया है. पहली बात तो यह कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक तर्ज पर नहीं होते और दूसरा बेनीवाल को राज्यव्यापी पकड़ रखने वाला लीडर कहना जल्दबाजी है.
विधानसभा चुनाव में ज्यादातर जाट बाहुल्य सीटों पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. आरएलपी को खाजूवाला में नौ हजार, लूणकरनसर में 2300, श्रीडूंगरगढ़ में एक हजार, पीलीबंगा में 1600, झुंझुनूं में 1500 और नागौर में महज चार हजार वोट मिले. चुनाव में हनुमान बेनीवाल के अलावा जिन दो उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, वे दोनों ही अनुसूचित जाति के हैं. यानी इन सीटों पर आरएलपी उम्मीदवार अपनी जाति और बेनीवाल की वजह से जाट वोट के गठजोड़ से जीते. वह भी तब जब मुकाबला त्रिकोणीय था.
बीजेपी भले ही आरएलपी से गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में राज्यव्यापी फायदा देख रही हो, लेकिन राजनीति के जानकारों की मानें तो खुद हनुमान बेनीवाल के लिए नागौर से चुनाव जीतना बड़ी चुनौती है. एक तो उनका मुकाबला मिर्धा परिवार की बेटी ज्योति मिर्धा से है और दूसरा विधानसभा चुनावों में आरएलपी कई सीटों पर धराशायी हुई थी. आरएलपी को नागौर से महज चार हजार वोट मिले जबकि लाडनूं में पार्टी के उम्मीदवार को 19 हजार वोटों से संतोष करना पड़ा.
नागौर में हनुमान बेनीवाल के सामने आरएलपी का वोट बैंक बढ़ाना बड़ी समस्या है. बेनीवाल को जानने वाले कहते हैं कि उनकी राजनीति विरोध पर आधारित है, चाहे वह वसुंधरा राजे का विरोध हो या फिर अशोक गहलोत का. उनकी यही खासियत लोकप्रियता की वजह भी है, लेकिन बीजेपी के साथ गठबंधन उनकी इस पहचान को परेशानी में डाल सकता है. अब वे चाहकर भी वसुंधरा राजे के खिलाफ नहीं बोल पाएंगे. उनके भाषणों में अब एक ही सामग्री होगी- पीएम मोदी की तारीफ. इसे सुनकर बेनीवाल के प्रसंशकों में कितना जोश जागेगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि बेनीवाल की एंट्री से बीजेपी के मूल वोट बैंक राजपूत और ओबीसी पर सीधा असर पड़ेगा. कहा जाता है कि जब नागौर से हवा चलती है तो राजनीतिक मौसम पूरे मारवाड़ का बदलता है. ऐसे में बेनीवाल के बीजेपी के साथ जाने का असर जोधपुर और बाड़मेर सीट पर भी होगा. आपको बता दें कि अशोक गहलोत से व्यक्तिगत रिश्तों के बावजूद जोधपुर में राजपूत अभी तक कांग्रेस के साथ खड़ा नजर नहीं आ रहा था, लेकिन अब जब बीजेपी ने अपने तुरुप के पत्ते को जनता को दिखा दिया है, तो वे अपना रुख मोड़ सकते हैं.
हनुमान बेनीवाल के बीजेपी में जाने का सबसे बड़ा फायदा मानवेंद्र सिंह को होगा. राजपूत– मुस्लिम–दलित वोटों की गणित कागज पर तो अब तक सुहानी नजर आ रही थी पर हकीकत में उसका साकार होना मुश्किल था. मगर बदले हुए हालात में बाड़मेर में न केवल राजपूत पूरी तरह से मानवेंद्र सिंह के साथ खड़ा हो गया है, बल्कि मूल ओबीसी और सामान्य वर्ग भी भाजपा से छिटका हुआ नजर आ रहा है.
कुल मिलाकर बीजेपी के हनुमान बेनीवाल से गठबंधन से नागौर ही नहीं बल्कि समूचे मारवाड़ के सियासी समीकरण गड़बड़ा गए हैं. यदि दोनों ने इसकी काट नहीं ढूंढ़ी तो लोकसभा चुनाव के परिणाम निराश कर सकते हैं. वहीं, कांग्रेस यहां नए सिरे से रणनीति बनाने में जुटी है. पार्टी के नेताओं को लगता है कि बीजेपी-आरएलपी के बीच हुए गठबंधन ने उनके लिए संभावना के दरवाजे खोल दिए हैं. यह देखना रोचक होगा कि ऊंट आखिरकार किस करवट बैठता है.