Politalks.News/Bihar. बिहार के चुनावी परिणाम हर किसी के लिए बेहद चौंकाने वाले रहे. महागठबंधन को अपनी हार पर विश्वास नहीं हो रहा और न ही कांग्रेस अपनी हार पचा पा रही है. वहीं चुनावों में नीतीश कुमार के लिए जनता की नाराजगी खुलकर दिखी. लॉकडाउन में नीतीश सरकार के कुशासन का सीधा प्रभाव जदयू पर पड़ा. पिछले चुनावों में प्रदेश की दूसरे नंबर की पार्टी बनी जदयू खिसककर तीसरे नंबर पर आ गई और केवल 43 सीटों पर सिमट गई. इसका पूरा श्रेय जाता है लोजपा के चिराग पासवान को, जिन्होंने जदयू को हराने में चिराग पासवान ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. लोजपा के एनडीए से अलग होने क बाद लोजपा ने करीब करीब हर जदयू के सामने चुनावी प्रत्याशी उतारा जिसने जदयू के वोट काटे. इससे नीतीश की पार्टी कमजोर हुई लेकिन अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में पार्टी की लाज बची.
बिहार चुनावों में चिराग पासवान को एनडीए का विभिषण बताया जा रहा है. यही वजह रही कि जदयू ने चिराग को वोटकटवा तक कह दिया. चिराग चुनावों से पहले ही नीतीश कुमार पर हमलावर रहे. उन्होंने नीतीश कुमार को जेल तक भेजने की धमकी दे दी थी. चिराग के उम्मीदवारों ने हर जगह जदयू प्रत्याशियों के वोट काटे. इससे जदयू कमजोर हुई और पिछले चुनावों में 71 सीटे जीतने वाली जदयू इस बार केवल 43 सीटों पर सिमट कर रह गई. यहां इस बार का भी जिक्र करना जरूरी है कि चिराग खुद जीते नहीं लेकिन जदयू को कई जगहों पर हरवा दिया. लोजपा केवल एक सीट पर कब्जा कर पाई.
बिहार में चुनाव शुरु होने से पहले ही खासतौर पर मजदूरों और युवाओं में नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी देखने को मिली. प्रदेश में लगातार नए ब्रिज टूटने, प्रवासी मजदूर, रोजगार आदि मुद्दों पर जनता में नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी थी. 10 लाख रोजगार का वादा कर महागठबंधन ने इस हवा को अपने पक्ष में बहाने की कोशिश की. यही वजह रही कि बिहार के एक तबके में तेजस्वी की लहर बह रही थी. इस लहर में बहकर राजद 75 सीटों पर कब्जा करके प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल हुई लेकिन कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन ने महागठबंधन को सत्ता के दरवाजे से दूर रखा.
यह भी पढ़ें: बिहार में नहीं जली ‘लालटेन’ जनता ने फिर दिया ‘डबल इंजन’ सरकार को मौका
पिछले चुनाव में 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 सीटे जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार 70 सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन कब्जा जमाया केवल 19 सीटों पर. इतने लचर प्रदर्शन की उम्मीद तो खुद कांग्रेस और राहुल गांधी तक को नहीं दी. इतना जरूर है कि कई सीटों पर कांग्रेस और विजेता पार्टी के बीच अंतर 500 वोटों से कम रहा लेकिन हार तो हार है. कांग्रेस के कमजोर होने से महागठबंधन जहां कमजोर हुआ, वहीं एनडीए में बीजेपी मजबूत हुई. जदयू ने भी कई सीटों पर कांग्रेस को हराया. मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी कांग्रेस को काफी जगह मुंह की खानी पड़ी.
इधर, महागठबधंन को थर्ड फ्रंट को हलके में लेना भारी पड़ा. असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पार्टी ने मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में दो दर्जन के करीब उम्मीदवार खडे किए और कांग्रेस व राजद से उनके प्रभाव क्षेत्र की सभी सीटे जीत ली. ओवैसी ने पांच सीटें अपने नाम की. बसपा ने भी एक सीट पर जीत दर्ज की. इन सभी सीटों का नुकसान महागठबंधन को हुआ. राजद का M+Y समीकरण निर्णायक माना जाता रहा है लेकिन इन्हीं सीटों ने महागठबंधन की जीत में रोड़ा अटका दिया.
राज्य में करीब 17 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, जो हार जीत का अंतर पैदा कर सकते हैं. लेकिन इस बार यही वोटर अलग-अलग हिस्सों में बंटते हुए नज़र आए, जिसका फायदा एनडीए को हो गया. राजद का M+Y समीकरण निर्णायक माना जाता रहा है लेकिन ओवैसी ने इन्हीं सीटों ने महागठबंधन की जीत में रोड़ा अटका दिया. राजद 75 जबकि कांग्रेस 19 सीटों पर सिमट गई. वाम दलों को 16 सीटों पर जीत मिली. राजद एक बार फिर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी, हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले पार्टी को पांच सीटें कम मिली.
यह भी पढ़ें: बिहार में यूं ही सफल नहीं हुआ ओवैसी फैक्टर, इसी रणनीति ने पलटा महागठबंधन का खेल
वहीं बिहार में नीतीश कुमार के लिए बह रही नाराजगी की हवा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल पहचाना, बल्कि उसे बदलने में भी कामयाबी हासिल की. इसी का नतीजा है कि एनडीए बिहार में बहुमत के आंकड़े के पार पहुंचा. जब बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए की ओर से मोर्चा संभाला तो हवा का रुख बदलना शुरू हुआ. पीएम मोदी ने करीब एक दर्जन सभाएं की, कई रैलियों में वो नीतीश कुमार के साथ भी नज़र आए. पीएम ने लगातार नीतीश की तारीफ की, लोगों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें नीतीश सरकार की जरूरत है.
इसके अलावा केंद्र की योजनाओं का गुणगान हो, राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर विपक्ष पर वार करना हो या फिर राजद के जंगलराज का जिक्र कर तेजस्वी पर निशाना साधना हो, पीएम मोदी ने अकेले दम पर एनडीए के प्रचार को आगे बढ़ाया. जिसने हार और जीत का अंतर तय कर दिया, नतीजों ने भी दिखाया कि जहां जदयू को सीटों में घाटा हुआ वहां पर बीजेपी की बढ़त ने एनडीए को बहुमत तक पहुंचा दिया.
बिहार चुनावों में बीजेपी एक बड़े भाई की भूमिका में नजर आया. बीजेपी 74 तो जदयू ने 43 सीटों पर जीत दर्ज की. जीतनराम मांझी की हम और पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही मुकेश सहनी की वाईआईपी ने चार-चार सीट जीती. एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रही चिराग पासवान की लोजपा को रामविलास पासवान के निधन की सहानुभूमि नहीं मिल पाई लेकिन पार्टी खाता खोलने में जरूर कामयाब रही. लोजपा ने वहां वहां अपने उम्मीदवार खड़े किए जहां जदयू के प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. इससे जदयू को खास नुकसान हुआ. जदूय कई बार चिराग को वोटकटवा कह चुकी है.
यह भी पढ़ें: 11 राज्यों के उपचुनावों में बजा बीजेपी का डंका, मध्यप्रदेश में कायम रहा सिंधिया का जलवा
एनडीए की जीत का एक अहम फैक्टर बिहार की महिला वोटर रहीं. बिहार में महिला वोटरों को नीतीश कुमार का पक्का मतदाता माना जाता रहा है, जो हर बार साइलेंट तरीके से नीतीश के पक्ष में वोट करता है. यही नतीजा इस बार के चुनाव में भी दिख रहा है. केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना, शौचालयों का निर्माण, पक्का घर, मुफ्त राशन, महिलाओं को आर्थिक मदद जैसी कई ऐसी योजनाएं हैं जिनका सीधा लाभ महिलाओं को होता है. इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा की गई शराबबंदी के पक्ष में भी बिहार की महिलाएं बड़ी संख्या में नज़र आती हैं. ऐसे में फिर एक बार एनडीए की जीत में 50 फीसदी आबादी निर्णायक भूमिका निभाते नज़र आए हैं. खुद पीएम मोदी ने बिहार चुनाव के नतीजों के बाद महिला वोटरों को खास तौर पर धन्यवाद किया.