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लोकसभा चुनाव का रोमांच चरम पर है. पहले चरण का मतदान हो चुका है और 18 अप्रैल को दूसरे चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. चुनाव के नतीजों पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. एक तबका यह कह रहा है कि मोदी फिर से सत्ता में आ रहे हैं जबकि दूसरा तबका उनके बहुमत से दूर रहने का दावा कर रहा है. इस कयासबाजी के बीच कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर सबकी नजर हैं. बिहार की बेगूसराय सीट इनमें से एक है.

बेगूसराय सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है. यहां एनडीए की तरफ से बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मैदान में हैं. गिरिराज वर्तमान में नवादा सीट से सांसद हैं, लेकिन इस बार यह एनडीए के सहयोगी लोजपा के खाते मे आई है. इसलिए गिरिराज का बेगूसराय से मैदान में उतरना पड़ा. उनका मुकाबला सीपीआई के कन्हैया कुमार और राजद के तनवीर हसन से है.

बेगूसराय को वामपंथ का गढ़ कहा जाता है, लेकिन पिछले चुनावों के नतीजे इसकी ओर इशारा नहीं करते. सीपीआई यहां वोट तो हासिल करती है मगर 1967 के चुनाव के बाद पार्टी ने जीत का स्वाद नहीं चखा. 2014 में भाजापा के भोला सिंह यहां से सांसद चुने गए थे. उन्होंने राजद के तनवीर हसन को लगभग 56000 वोटों से मात दी थी.

इस सीट के जातिगत समीकरणों पर तो बेगूसराय में भूमिहार लगभग 5 लाख की तादाद में हैं. वहीं, मुसलमान 3 लाख के करीब हैं. राजनीतिक दलों ने टिकट भी इसी आधार पर बांटे हैं. बीजेपी और सीपीएम के प्रत्याशी भूमिहार जाति से आते हैं जबकि राजद प्रत्याशी मुस्लिम हैं. गिरिराज सिंह अपने बयानों के कारण हमेशा सुर्खियों में रहते है और कभी-कभी इनके बयान बीजेपी के लिए भी परेशानी के सबब बन जाते हैं.

कन्हैया कुमार जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके है और यहां कथित तौर पर लगे देश विरोधी नारों की वजह से सुर्खियों में आए थे. इस प्रकरण में कन्हैया कुमार को आरोपी बनाया गया है. इस मामले में वे जेल भी जा चुके हैं. कन्हैया कुमार अपने बयानों में मोदी सरकार को घेरते नजर आए हैं. तनवीर हसन मिडिया के लिए नया चेहरा हैं, लेकिन बेगूसराय की राजनीति में उनकी पकड़ पुरानी है. इस बात का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जिस मोदी लहर में एनडीए प्रत्याशियों के सामने उम्मीदवार लाखों वोटों के अंतर से हार रहे थे, वहां तनवीर हसन की हार का अंतर केवल 56 हजार रहा.

बेगूसराय सीट पर एनडीए प्रत्याशी गिरिराज सिंह हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता हैं और इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं. कन्हैया कुमार को भूमिहार और मुस्लिम वोट बैंक से काफी आस है, लेकिन तनवीर हसन उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं. वहीं, तनवीर हसन को राजद के परंपरागत मुस्लिम, यादव और दलित गठजौड़ से उम्मीदें हैं. अब 23 मई को ही पता चलेगा कि बेगूसराय किस उम्मीदवार के माथे पर राजतिलक करेगा.

 

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