करीब डेढ़ साल पहले अलवर लोकसभा के उपचुनाव में लाखों वोटों से जीतने वाली कांग्रेस के लिए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पैदा हुआ सियासी माहौल पूरी तरह बदल गया है. यही वजह है कि दोबारा शुरु हुई मोदी लहर के बीच कांग्रेस के लिए जीत बरकरार रखना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. अलवर के चुनावी रण में मुकाबला एक संन्यासी और एक राजा के बीच है. इस सीट से बीजेपी ने योगी बालकनाथ को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर पूर्व अलवर राजघराने के भंवर जितेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. लेकिन यहां का मुकाबला एक बार फिर यादव बनाम अन्य जातियों के बीच बनता जा रहा है.
बीजेपी के बालकनाथ को महंत चांदनाथ के सांसद रहने के दौरान बीमारी के चलते निष्क्रिय रहने की खामी और बाहरी होने के चलते खतरा मंडरा रहा है. इससे बचने के लिए बालकनाथ हर सभा में ‘मोदी मोदी’ के नारे लगवा रहे हैं और ‘मोदी को मिल गया जोगी’ गाना बजवा रहे हैं. वहीं भंवर जितेंद्र सिंह 2009 में केंद्र में मंत्री रहते हुए अलवर में कराए गए विकास कार्यों को गिनाते हुए मोदी लहर को कम करने में लगे हैं.
बसपा ने यहां अपना प्रत्याशी खड़ा करके कांग्रेस की धड़कने बढ़ा दी हैं. हालांकि मुकाबले में बसपा, कांग्रेस के मेव मुस्लिम और एससी वोट बैंक में सेंध लगाती नहीं दिख रही. यह तय है कि यादव एकतरफा बालकनाथ को वोट देंगे तो मेव मुस्लिम और मीणा कांग्रेस के साथ जाएंगे. ऐसे में जनरल, ओबीसी और दलित वोट बैंक का पलड़ा जिस तरफ भारी रहेगा, नतीजा उसी पर निर्भर करेगा.
सियासी समीकरण
अलवर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा आती है. डेढ़ साल पहले महंत चांदनाथ के निधन के चलते हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने 1.96 लाख वोटों से यह सीट जीती थी लेकिन विधानासभा चुनाव में पार्टी ने यह बढ़त खो दी. कांग्रेस को यहां से विधानसभा चुनाव में महज तीन सीटें मिली. दो-दो सीटें बीजेपी, बसपा और एक निर्दलीय के खाते में गई.
विधानसभा चुनाव के परिणामों के हिसाब से बात की जाए तो कांग्रेस अलवर ग्रामीण और राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ में अच्छी लीड हासिल करेगी. वहीं बीजेपी बहरोड़ और मुंडावर में बढ़त बनाएगी. बीजेपी किशनगढ़बास और अलवर शहर से भी आगे रह सकती है. रामगढ़ सीट पर कांग्रेस खुद को मजबूत मानकर चल रही है लेकिन तिजारा से बसपा विधायक होने के चलते टेंशन में दिख रही है.
जातिगत समीकरण
अलवर का चुनाव मोदी लहर और जातिगत होने के कारण कांटे का हो गया है. पिछले नौ चुनाव में बीजेपी ने लोकसभा मेंं सात बार यादव जाति के नेता को टिकट दिया है. इस बार भी पार्टी ने यादव उम्मीदवार पर दांव खेला है. लिहाजा एक बार फिर मुकाबला यादव बनाम अन्य जातियों के बीच बनता दिख रहा है. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस की जीत की राह मजबूत हो जाएगी. लेकिन बालकनाथ इस समीकरण को भांपते हुए यादवों के अलावा अन्य वोटों को हासिल करने के लिए मोदी लहर पर सवार हो गए है और मोदी मोदी की माला जप रहे है.
अलवर में करीब 18 लाख 62 हजार 400 मतदाता है जिनमें करीब 3.6 लाख यादव, 4.5 लाख दलित, 3.35 लाख मेव मुस्लिम, 1.4 लाख जाट, 1.15 लाख ब्राह्मण, एक लाख वैश्य और बाकी अन्य जातियों के वोट बैंक है. सबसे अहम निर्णायक वोट दलित वोट बैंक है. जो इन वोटों को साध पाएगा, जीत उसी की हो जाएगी.
बालकनाथ यादव हैै और कांग्रेस ने उपचुनाव में नाइट वाचमैन की तर्ज पर उतारे गए मौजूदा सांसद करण सिंह यादव का टिकट काट दिया लिहाजा यादव वोटर्स कांग्रेस से खफा है. बहरोड़ में यादवों के एकतरफा बालकनाथ के साथ जाने की पूरी संभावना है. कांग्रेस प्रत्याशी को इस नुकसान का पूरा ज्ञान भी है. मुंडावर में जाट भाजपा विधायक मंजीत चौधरी के चलते बीजेपी के पाले में जाने की की संभावना है. लिहाजा भंवर जितेन्द्र सिंह को मेव मुस्लिम और मीणावाटी राजगढ़ में मीणा मतदाताओं के एकतरफा वोट लेने होंगे.
बसपा से होने वाले नुकसान की भरपाई में जुटे जितेंद्र सिंह
विधानसभा चुनाव में बसपा अलवर में बड़ी ताकत बनकर उभरी थी. बसपा ने तिजारा और किशनगढ़बास सीट पर जीत दर्ज की थी जबकी मुंडावर में दूूसरे नंबर पर रही थी. इस बार बसपा ने इमरान खान को यहां से टिकट दिया है. इमरान सीधे रुप से कांग्रेस के मेव मुस्लिम औऱ एससी वोटों में सेंध लगाने की कोशिश करेंगे. हालांकि लेकिन धरातल पर फिलहाल ऐसा नजर नहीं आ रहा.
मुस्लिम वोटर्स इमरान और बसपा दोनों में रुचि नहीं दिखा रहे. मुस्लिम वोटर्स इमरान को वोट देने से मोदी राज में कांग्रेस को होने वाले नुकसान से भलीभांंति परिचित है. लिहाजा जानकारों और मुस्लिम वोटर्स का मिजाज देखें तो वो कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. दलितों के वोट जरुर बसपा लेते दिख रही है. ऐसे में भंवर जितेंद्र सिंह बसपा से होने वाले नुकसान को कवर करने में जुटे हुए हैं.
चुनाव में तीसरा पहलू कर रहा है काम
इन तमाम सियासी और जातिगत समीकरणों के बीच अलवर के कईं मतदाताओं का मिजाज बहुत कुछ बयां करता है. लोगों का कहना है कि साधु और संन्यासियों को धार्मिक कार्यों में रुचि दिखाई चाहिए न की सियासत में. लोगों ने कहा कि महंत चांदनाथ को सांसद चुना तो उन्होंने कुछ नहीं किया. वहींं कुछ वोटर्स ने कहा कि बालकनाथ जीतते है तो फिर हमें यहां से काम के लिए उनके पास हरियाणा जाना होगा. ऐसे में साफ है कि लोगों में बाहरी होने का मुद्दा काम कर रहा है.
एक चौंकाने वाली बात निकलकर यह भी आई है कि लोग 2009 में भंंवर जितेंद्र सिंह के केंद्र में मंत्री रहतेे हुए अलवर में कराए गए कामों को अब भी याद कर रहे हैं. जितेंद्र सिंह की साफ सुथरी छवि भी लोगों को रास आ रही है. इन सबके बीच साइलेंट वोटर्स के मूड को भांपना बहुत कठिन है लेकिन तमाम फैक्टर और समीकरणों के बीच मोदी लहर अब भी बरकार है.