Maharashtra Election: महाराष्ट्र में चुनावी बिगुल बज चुका है. दिल्ली की लॉबिंग शुरू हो गयी है. अब इंतजार है टिकट बंटवारे का. सभी की निगाहें महायुति पर टिकी है जिसके सदस्यों एवं नेताओं का दल बदल होना लगभग तय है. यहां एनसीपी प्रमुख अजित पवार को महायुति की सबसे कमजोर कड़ी माना जा रहा है. एनसीपी के नेताओं ने उन्हें ‘अजित दादा’ का दर्जा जरूर दिया हुआ है लेकिन जनता की नजरों में हकीकत शायद कुछ और ही है. सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना का प्रदर्शन स्थिर रहने वाला है जबकि बीजेपी को लहर का साथ मिलता रहेगा. वहीं महाविकास अघाड़ी के पास खोने के लिए वैसे भी कुछ नहीं है लेकिन पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार की गुगली निश्चित तौर पर महायुति पर भारी पड़ने वाली है.
वैसे देखा जाए तो महाविकास अघाड़ी का तमाम दारोमदार कांग्रेस पर निर्भर करता है. शिवसेना और एनसीपी में टूट के बाद इस वक्त कांग्रेस ही सबसे स्थित और सबसे मजबूत विपक्षी दल है. एक तरह से देखा जाए तो महाराष्ट्र में कांग्रेस ही बीजेपी को टक्कर दे सकती है. बाकी शिवसेना का मुकाबला शिवसेना से और एनसीपी का मुकाबला एनसीपी से ही होना है. इसमें कोई संशय नहीं है.
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ऐसा होना भी तय है कि जहां जहां शिवसेना के उम्मीदवार खड़े होंगे, वहां उद्धव ठाकरे गुट से प्रत्याशी मैदान में उतारे जाएंगे. ठाकरे गुट का सीधा लक्ष्य जीतना नहीं, वरन शिंदे गुट के उम्मीदवारों को हार का स्वाद चखाना होगा. यही स्थिति एनसीपी में भी बनी हुई है. जहां अजित पवार की एनसीपी के प्रत्याशी घड़ी की सुईयों के साथ कदमताल करेंगे, वहीं शरद पवार के मंजे हुए उम्मीदवार उनके बहाने अजित पवार को पटखनी देने की कोशिश करते हुए नजर आएंगे. उद्धव ठाकरे और शरद पवार की चुनावी रैलियां भी वहीं ज्यादा होंगी, जहां शिवसेना और एनसीपी के साथ छोड़ चुके उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे होंगे.
महाराष्ट्र में सभी की नजरें इस वक्त शरद पवार पर भी टिकी होंगी. 81 साल के शरद पवार को एनसीपी में टूट के बाद फिर से खड़ा होने का अवसर दिया गया है. अब पवार घायल शेर की तरह फिर से मैदान में उतरेंगे, जिसकी झलक लोकसभा चुनाव में देखी जा चुकी है. बरसते पानी में जो ललकार शरद पवार ने मारी थी, उसका असर और परिणाम सभी के सामने है. शरद पवार उन सदस्यों को भी सोच समझकर अपने साथ मिला रहे हैं, जो पहले पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं. इधर, अजित पवार को टूटी हुई पार्टी के फिर से टूटने का भी डर सता रहा होगा. लोकसभा में केवल एक सीट जीतने वाले अजित पवार की पार्टी के किसी सदस्य को केंद्रीय केबिनेट में जगह न मिलने से एनसीपी के नेता खासे नाराज हैं. ऐसे में टूट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
इसी तरह से जनता की ओर से अजित को जनता का साथ मिलना मुश्किल ही दिखाई देता है. जिस वक्त पर अजित पवार को पार्टी को मजबूत करना चाहिए था, उस वक्त् उन्होंने सत्ता एवं पद की लालसा में अपने ही चाचा के साथ दगा करते हुए सत्ताधारी दल से हाथ मिलाया और डिप्टी सीएम बन बैठे. उनके इस कदम से न केवल शरद पवार को मजबूत होकर एक बार फिर से खड़ा होने का अवसर मिल गया, बल्कि जनता की सहानुभूति भी उनके साथ चली गयी. यहां अजित पवार को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
शिवसेना यूबीटी पर भी काफी दारोमदार टिका हुआ है. हालांकि उनकी पार्टी के सबसे मजबूत नेता एकनाथ शिंदे गुट में चले गए हैं लेकिन यहीं से उनकी लड़ाई शुरू होती है. मुंबई यूनिवर्सिटी में हाल ही में संपन्न हुए सीनेट चुनाव में युवा सेना की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पर भारी जीत के जरिए ठाकरे गुट युवाओं में पैठ बनाने में कामयाम हो रहा है. आदित्य ठाकरे यूथ विंग का नेतृत्व करेंगे, जिन्हें यूथ से जुड़ पाने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए. अब जनता के बीच जाने का काम उद्धव ठाकरे का है. अगर वे स्व.बाला साहेब ठाकरे की छवि छोड़ सीधे जनता से रूबरू होंगे तो कमाल कर सकते हैं. अपने चाचा राज ठाकरे को साथ मिला पाएं तो सोने पर सुहागा हो सकता है.
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कुल मिलाकर कहानी ये है कि महाराष्ट्र में लहर बीजेपी और शिवसेना की चल रही है लेकिन अगर महाविकास अघाड़ी की ओर से कांग्रेस अपना सब कुछ झोंककर चुनावी मैदान में उतरे तो महायुति को पटखनी दी जा सकती है. अजित पवार थोड़ा कमजोर जरूर हैं लेकिन कई बार राज्य के डिप्टी सीएम रह चुके हैं. हालांकि सीट बंटवारे को लेकर उनकी अनबन होना तय है. ऐसे में जनता को मार्मिक रूप से टार्गेट कर एमवीए जीत का प्रयास करेगी. अब देखना रोचक होगा कि 81 साल के शरद पवार की अगुवाई में महाविकास अघाड़ी जीत का बिगुल बजा पाएगा या फिर बीजेपी महाराष्ट्र की जनता को एक बार फिर असली नकली के फेर में फंसाकर विजयी ‘कमल’ खिला पाएगी.