Politalks.News/Delhi. क्या जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के समय से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता गुलाम नबी आजाद गांधी परिवार और उसके सहयोगियों द्वारा कोई स्टैंड नहीं लेने के बाद से ही नाराज चल रहे थे? क्या गुलाम नबी आजाद कांग्रेस में तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण सहित अन्य मामलों में पूरी तरह अलग-थलग पड चुके थे? क्या भाजपा के बढते जनाधार के बाद कांग्रेस की नीतियों में आए बदलाव से आजाद चिंतित थे? या फिर अब अगले साल समाप्त हो रहे राज्यसभा सदस्य कार्यकाल के बाद उन्हें कांग्रेस में अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है?
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस से जुडे कई सवाल ऐसे हैं, जिनसे होते हुए कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग खडी हुई है. याद किजिए 5 अगस्त 2019 का वो दिन जब मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का प्रस्ताव संसद में लाई थी. सरकार ने इस प्रस्ताव की तैयारी इतनी गोपनीय रखी थी कि प्रधानममंत्री नरेंद्र, गृहमंत्री अमित शाह सहित चुनिंदा भाजपा नेताओं को छोड़कर किसी भाजपा नेता को इसकी जानकारी नहीं थी.
कांग्रेस की ओर से केवल गुलाम नबी आजाद ही एक मात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने धारा 370 के हटाने का ना सिर्फ जबरदस्त विरोध किया बल्कि इसे कश्मीर की जनता के साथ धोखा भी बताया. आजाद के अलावा कांग्रेस के किसी और नेता ने 370 हटाने का विरोध नहीं किया. असल में धारा 370 को हटाने के प्रस्ताव पर कांग्रेस पूरी तरह असमंजस में थी और कोई निर्णय नहीं कर पाई थी. इसलिए वो राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही सदनों में मोदी सरकार का विरोध नहीं कर पाई. केवल राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद ने मोदी सरकार के निर्णय के खिलाफ खुलकर बोला था.
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यहां हमारा मतलब यह है कि कांग्रेस ने धारा 370 का विरोध तो किया लेकिन जिस तैयारी के साथ और जिस पुरजोर तरीके से गुलाम नबी चाहते थे, उस तरह से नहीं किया गया विरोध.
दूसरी ओर असमंजस से गुजर रही, कांग्रेस इस मसले पर कोई स्टेंड नहीं ले पाई. गांधी परिवार और कांग्रेस के रणनीतिकार मोदी सरकार के धारा 370 हटाने के पक्ष में बोलने या विरोध करने से जुडा कोई भी निर्णय नहीं कर पाए थे. जिसके चलते गुलाम नबी आजाद पूरी तरह अलग-थलग पड गए थे. अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है कि सोनिया गांधी को चुनाव कराने के लिए लिखे गए पत्र के मुख्य सूत्रधार गुलाम नबी आजाद ही हैं. उनके साथ वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी सहित कुछ वरिष्ठ नेता भी इसमें शामिल हैं. चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले 23 नेताओं की लंबी फेहरिस्त होने के बाद भी गांधी परिवार के वर्तमान के भरोसेमंद नेताओं के निशाने पर मुख्यरूप से गुलाम नबी आजाद ही हैं.
सलमान खुर्शीद के निशाने पर भी आए आजाद
अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने गुलाम नबी आजाद का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधा है. सलमान खुर्शीद ने कहा है कि कांग्रेस के पास फुलटाइम अध्यक्ष है. इस दौरान खुर्शीद ने गांधी परिवार की जमकर तरफदारी की और चिट्ठी को अनुचित बताते हुए कहा कि जिन्होंने चिट्ठी लिखी है, वो सोनिया गांधी से सीधे मिल सकते थे. खुर्शीद ने यह भी कहा कि जो भी गांधी परिवार में भरोसा करता है, उसे यह चिठ्ठी पसंद नहीं आएगी. यहां तक कह दिया कि चिट्ठी को लेकर अगर उन्हें पार्टी में हमलों का सामना करना पड रहा है, तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है.
जब पदों पर थे, तब क्यों नहीं कि चुनाव की बात
कांग्रेस के जो नेता गुलाम नबी आजाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे है, उनका कहना है कि जब कांग्रेस और गांधी परिवार शक्तिशाली था, तब गुलाम नबी आजाद सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे और संगठन में भी अहम पदों पर रहे. यही नहीं गांधी परिवार के बडे-बडे निर्णयों में भीबशामिल रहे, उस समय कभी आजाद ने चुनाव की मांग नहीं की. सलमान खुर्शीद ने कहा कि जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ नेता पार्टी में शीर्ष पदों पर सालों रहे हैं. उस वक्त भी ऐसे चुनाव नहीं हुए हैं, फिर उन्हें क्या दिक्कत हो रही है.
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वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष मुकेश खत्री ने गुलाम नबी आजाद का नाम लेकर कहा कि पार्टी ने गुलाम नबी को जब यूपी का प्रभारी बनाया तो पार्टी को जबरदस्त हार का सामना करना पडा. पार्टी के केवल 7 विधायक जीत कर आए थे, जो कि पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन था. उसके बाद गुलाम नबी को हरियाणा चुनाव का भी प्रभारी बनाया गया था, जहां उनके और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बीच चुनाव के समय मतभेद उभरकर सामने आए थे. उस समय भी सोनिया गांधी ने भूपेन्द्र हुडडा को टिकट बांटने और अपने हिसाब से चुनाव लड़ने के लिए वीटो दे दिया तब जाकर कांग्रेस वहां टक्कर दे पाई.
इन नेताओं का कहना है कि अब जब कांग्रेस मुश्किल दौर से गुजर रही है और गांधी परिवार कुछ कमजोर हुआ है तो गुलाम नबी आजाद की नेतृत्व परिवर्तन की मांग को जायज कैसे ठहराया जा सकता है. इन नेताओं का यहां तक कहना है कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस को आगे बढाया ही नहीं जा सकता है.
सोनिया और राहुल के लिए कहने में नहीं चूके आजाद
इस सारे सियासी घटनाक्रम में गांधी परिवार जिस नेता से सबसे ज्यादा नाराज बताया जा रहा है, वो गुलाम नबी आजाद ही हैं, जिन्होंने न सिर्फ चुनाव की मांग को लेकर चिट्ठी की भूमिका तैयार की बल्कि उसके बाद एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देकर दो ऐसी बडी बाते कहीं जिससे गांधी परिवार चिठ्ठी से भी ज्यादा आहत हुआ.
गुलाम नबी आजाद ने पहली बात सोनिया से जुडी हुई कही, उन्होंने कही कि ‘कांग्रेस रहेगी तभी तो सोनिया गांधी अध्यक्ष रहेंगी‘ और दूसरी चुभने वाली बात कही कि ‘बिना कांग्रेस को मजबूत किए राहुल गांधी प्रधानमंत्री कैसे बनेंगे‘. हालांकि यह दोनों ही बातें बाहर से दिखने में बिल्कुल सही प्रतीत होती हैं लेकिन इससे साफ हो जाता है कि सोनिया अध्यक्ष अभी भी पद पर बना रहना चाहती हैं और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोय बैठे हैं.
क्या गुलाम नबी आजाद छोड़ेंगे कांग्रेस?
कांग्रेस में गांधी परिवार से जुडे नेताओं के निशाने पर आए गुलाम नबी आजाद के लिए अब कांग्रेस में समस्याएं खडी होनी शुरू हो गई हैं. ऐसे में गुलाम नबी के लिए कांग्रेस में बने रहना मुश्किल दिख रहा है. अब सवाल उठता है कि गुलाम नबी आजाद खुद पार्टी छोडेंगे या फिर उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी? सवाल यह भी उठता है कि अगर वो पार्टी छोडते हैं तो क्या उनके साथ दूसरे कई नेता भी कांग्रेस को अलविदा कहेंगे? ऐसे ही कई सवाल फिलहाल बने हुए हैं.
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एक बात तो तय हो गई है कि कांग्रेस के नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कराने की मांग की है. इन मांगों के पीछे गांधी परिवार खुद है या फिर गांधी परिवार से जुडे नेताओं ने अपने स्तर पर इस मुहिम का शुरू कर दिया है. जो भी है आने वाला समय कांग्रेस और गांधी परिवार की परीक्षा का कठिन दौर होगा. इसमें गांधी परिवार किस सूझबूझ के साथ सारे नेताओं को साथ लेकर चलते हुए अपने वर्चस्व को कायम रखेगा, यह बात देखने वाली होगी.