भारतीय समाज में किन्नर, स्त्रियों की अपेक्षा और भी ज्यादा हाशिए पर है. उनके सामने अभी भी अपनी पहचान और सम्मान का संकट है. ऐसे में इस तबके के लिए राजनीति में हाथ आजमाना बड़ी बात है. एक दशक पहले तक पंचायत चुनावों में पहली बार जीतकर आई महिलाओं की जो स्थिति थी, कुछ वैसी ही स्थिति अभी राजनीति में किन्नरों की है. ऐसे में प्रयागराज लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर मां भवानी तीसरी आबादी के लिए उम्मीद की किरण हैं.
यूपी की इलाहाबाद सीट को राजनीतिक दृष्टि हाई प्रोफाइल माना जाता है. इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्रा जैसे दिग्गजों के साथ ही महानायक अमिताभ बच्चन भी चुनाव जीतकर सांसद रह चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर होगी. वर्तमान में इस सीट से श्यामाचरण गुप्त सांसद हैं, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट से जीत हासिल की थी, लेकिन चुनाव से ठीक पहले वे समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो गए हैं.
बीजेपी ने इलाहाबाद से योगी सरकार की मंत्री रीता बहुगुणा जोशी को टिकट दिया है. यहां से कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता और उनकी पत्नी मेयर अभिलाषा गुप्ता भी दावेदार थे. बताया जा रहा है कि टिकट नहीं मिलने की वजह से गुप्ता दंपत्ति नाराज है. वहीं, कांग्रेस ने अभी तक इस सीट पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. जो समीकरण सामने हैं, उनके हिसाब से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार मां भवानी की राह आसान नहीं है. उनके पास न तो कोई स्थायी वोट बैंक है और न ही पार्टी केडर.
हालांकि मां भवानी के चुनाव को लेकर उत्साहित हैं. वे कहती हैं, ‘हम सन्यासी हैं, हमारा भरण-पोषण जनता करती है. इसलिए उनके लिए हमें भी कुछ करना चाहिए. इसी भावना को लेकर चुनाव लड़ने जा रही हूं, ताकि उस पंचायत में आम जनता की आवाज रख सकूं. मैं किसी को हराने के लिए नहीं जीतने के लिए चुनाव लड़ रही हूं. गरीबी, नोटबंदी और बेरोजगारी हमारे मुख्य मुद्दे होंगे.’ यदि वे चुनाव जीतती हैं तो किन्नरों के उस क्लब में शामिल हो जाएंगी, जिन्होंने चुनावी राजनीति में झंडे गाड़े हैं.
एमपी में सफल ‘शबनम’
देश की पहली किन्नर विधायक मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए 2000 में चुनी गईं. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले की सोहागपुर सीट पर हुए उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शबनम मौसी ने शानदार जीत दर्ज कर देश की राजनीति के इतिहास में नया पन्ना जड़ा. 14 से अधिक भारतीय भाषाओं की जानकार शबनम मौसी को उस समय 44.08 फीसदी वोट मिले थे और उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को 17,863 वोटों से हराया था. 2002 के विधानसभा चुनाव में वह फिर चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन हार गईं.
गोरखपुर में ‘आशा’ की किरण
किन्नर शबनम मौसी के विधानसभा उप चुनाव जीतने का संदेश पूरे देश में पहुंचा. इसी का असर था कि 2001 के नगर निगम चुनाव में गोरखपुर की जनता ने एक अलग तरह का इतिहास रचा. तमाम राजनैतिक पार्टियों और दिग्गजों को दरकिनार कर जनता ने किन्नर आशा देवी उर्फ अमरनाथ के पक्ष में राजनीति के नए समीकरण गढ़े. उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ सांसद थे. चूड़ी चुनाव चिह्न के बल पर आशा देवी ने सपा प्रत्याशी अंजू चौधरी को 60 हजार वोटों से पराजित किया. चुनाव में आशा देवी को 1.08 लाख, सपा की अंजू चौधरी को 45 हजार और भाजपा की विद्यावती देवी को 13 हजार वोट मिले.
अयोध्या में ‘गुलशन’ का गदर
अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में 2012 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में गुलशन ने एक बार फिर राजनीति का ढर्रा बदलने का प्रयास किया. गुलशन जीत तो नहीं पाईं, लेकिन 20 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह की हार का कारण जरूर बनीं. गुलशन इसके बाद नगर पालिका परिषद चैयरमैन का चुनाव लड़ी और 200 वोटों से हारीं. 2017 के नगर निगम चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना मेयर प्रत्याशी बनाया. गुलशन ने इतनी मजबूत टक्कर दी कि भाजपा प्रत्याशी ऋषिकेश उपाध्याय सिर्फ 35 सौ वोटों से जीत पाए. उपाध्याय को 44628 वोट मिले जबकि गुलशन ने 41,035 वोट हासिल किए.
लखनऊ में ‘पायल’ की गूंज
वैसे तो एमपी में शबनम मौसी के विधायक और आशा देवी के गोरखपुर की मेयर बनने के बाद तेजी के किन्नरों ने चुनाव में अपनी किस्मत अजमाई, लेकिन सफलता उनके हाथ नहीं लगी. 2002 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो सौ से अधिक किन्नर प्रत्याशी मैदान में उतरे जबकि यूपी से 18 किन्नरों ने अलग-अलग सीटों से नामांकन दाखिल किया. इनमें पायल सहित तीन किन्नर लखनऊ की अलग-अलग विधानसभाओं से प्रत्याशी थे. पायल लखनऊ पश्चिम की उस सीट से मैदान में थी, जहां से भाजपा के धुरंधर नेता लालजी टंडन चुनाव जीता करते थे. पायल ने इस सीट पर अच्छा प्रदर्शन किया.