फ्लैशबैक 2019: देश की राजनीति में टॉप 5 घटनाएं जो रही सुर्खियों में

देश की राजनीति से जुड़ी ऐसी ही टॉप 5 घटनाएं जो न केवल सुर्खियों में रहीं बल्कि देशभर की नजरें इन खबरों पर टिकी रहीं, यह है फ्लैशबैक 2019

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पॉलिटॉक्स ब्यूरो. नए साल की शुरूआत हो चुकी है. हमारी आशा है कि नया साल राजनीति के लिए अच्छा लेकर आए लेकिन उससे पहले बीते जा रहे साल 2019 की राजनीति के लिहाज से चर्चा करना तो बनता है. राजनीति में साल 2019 कई मायनों में खास रहा. इस दौरान बीजेपी की आम चुनावों में भारी बहुमत से सफलता, शाह का गृहमंत्री बनना सहित कश्मीर मुद्दे जैसी कई घटनाएं अपने आप में खास स्थान रखती हैं. हमारे फ्लैशबैक 2019 में कुछ ऐसी ही मजेदार और देश की राजनीति से जुड़ी ऐसी ही टॉप 5 घटनाओं का जिक्र किया गया है जो न केवल सुर्खियों में रहीं, बल्कि देशभर की नजरें इन खबरों पर टिकी रहीं. आइए जानते हैं इन टॉप 5 फ्लैशबैक खबरों के बारे में …

1. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की विजयी पताका, शाह का गृहमंत्री बनना
2019 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सामने जब विपक्ष ने महागठबंधन खड़ा किया तो खुद बीजेपी के नेताओं को भी डर सताने लगा था लेकिन मोदी की आंधी में विपक्ष ऐसे उड़ा जैसे कोई तिनका. 545 सीटों में से बीजेपी ने अकेले 303 सीटों पर कब्जा जमा बहुमत हासिल कर लिया. यूपीए के हिस्से में 350 से ज्यादा सीटें आई. वहीं बीजेपी में अमित शाह का नंबर दो का नेता बनकर उभरना और देश का गृहमंत्री बनना खास सुर्खियों में रहा. माना जा रहा था कि शाह को वित्त या रक्षा मंत्रालय मिलेगा लेकिन गृह विभाग संभलाकर पीएम मोदी ने उन्हें काफी कुछ करने की खुली छूट दे दी जिसने विपक्ष ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय बॉर्डर पर भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए.

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2. कश्मीर से 370, 35A हटाना और कश्मीर-लद्दाख को अलग करना
5 अगस्त सोमवार की वो सुबह भुलाए नहीं भुलती जब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने तेज आवाज में सदन में कहा कि कश्मीर से आज धारा 370 और 35ए हटाया जा रहा है. विपक्ष नाराज हुआ, हंगामा मचाया, नाटक किए लेकिन सब बेकार. उसके साथ ही कश्मीर को कश्मीर और लद्दाख सहित दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. कश्मीर को दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर और लद्दाख को चंड़ीगढ़ की तर्ज पर व्यवस्थित किया. सब कुछ इस कदर सेट किया गया कि एक पत्थर फेंकने की नौबत तक नहीं आने दी. वर्तमान में आधी से ज्यादा सेना दोनों प्रदेशों से हटाई जा चुकी है.

3. कर्नाटक में गठबंधन का तख्ता पलट, महाराष्ट्र में टूटा गठबंधन
इस साल कर्नाटक और महाराष्ट्र में सत्ता पलट का सियासी घटनाक्रम लगातार सुर्खियों में बना रहा जिसपर देशभर की नजरें टिकी रहीं. कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस सरकार के 15 विधायकों का त्यागपत्र देना, विधानसभा अध्यक्ष का उन्हें अयोग्य कर देना, सरकार का गिरना और सुप्रीम कोर्ट की दखल अंदाजी काफी भी सियासी ड्रामा कर्नाटक में देखने को मिला. यहां सीएम कुमार स्वामी की सरकार गिरने के बाद बी.एस.येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. हालिया कर्नाटक उप चुनाव में भी उन्हें 15 में से 12 सीटों पर जीत मिली. वहीं महाराष्ट्र में 30 साल पुराना शिवसेना-बीजेपी गठबंधन टूट गया और दो विरोधी धूरी वाली पार्टियों के साथ मिलकर शिवसेना ने सरकार बनाई. पर्दे के पीछे से राजनीति को चलाने वाले शिवसेना सुप्रीमो उद्दव ठाकरे खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. उनके सुपुत्र आदित्य ठाकरे परिवार के पहले सदस्य रहे जिन्होंने विधानसभा चुनाव लड़कर सक्रिय राजनीति में कदम रखा.

4. राम मंदिर का विवाद निपटा, गोगोई की बैंच ने सुनाया एतिहासिक फैसला
सदियों से चला रहा अयोध्या जन्म भूमि विवाद का निपटारा इस साल जिस शांतिपूर्ण ढंग से हुआ, वो देश ही नहीं विदेशों में भी सुर्खियों में छाया रहा. 9 नवंबर को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की 5 सदस्यीय बैंच ने फैसला सुनाया कि विवादित जमीन पर हिंदू पक्ष का अधिकार रहेगा जबकि मुस्लिम पक्ष को शहर में ही कहीं पर 5 एकत्र भूमि मस्जिद के लिए दी जाए. केंद्र सरकार को राम मंदिर ट्रस्ट का निर्माण करने और रूपरेखा बनाने को कहा. सालों से चला आ रहा ये मामला बिना किसी शोर शराबे से निपट गया.

5. नागरिकता संशोधन कानून का पास होगा और असम में एनआरसी का लागू होना
जाते साल के साथ साथ नागरिकता संशोधन कानून और असम में एनआरसी का जिक्र अगर नहीं किया जाए तो शायद ये बेमानी होगी. सदन के शीतकालीन सत्र के दौरान 9 दिसम्बर को नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में और 11 दिसम्बर को राज्यसभा में पास होना और उसके बाद 12 दिसम्बर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून की शक्ल लेना खासा सुर्खियों में रहा. उसके बाद विपक्ष, जामिया सहित कई यूनिवर्सिटी के छात्रों का विरोध प्रदर्शन, आगजनी और तोड़फोड़ ने देश में हिंसा का माहौल उत्पन्न करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इससे पहले असम में एनआरसी लागू होने से 19 लाख लोग देश की नागरिकता से बेदखल हो गए.

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