बीते 48 घंटों से देश की राजनीति में केवल एक ही चर्चा. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (kamalnath) अपने सांसद सुपुत्र नकुलनाथ के साथ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. कुछ महीनों पहले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बताया जा रहा था कि कमलनाथ आलाकमान से नाराज चल रहे हैं. अब इन सभी कयासों को बल मिलने लगा है. खबर ये भी है कि कमलनाथ राजनीति से संन्यास ले सकते हैं और नकुलनाथ अपनी पत्नी के साथ बीजेपी में शामिल होंगे.
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अभी तक के लिए तो ये सभी केवल अटकलें हैं लेकिन कांग्रेस से नाराज होने और ‘हाथ’ का साथ छुड़ाकर ‘कमल’ थामने वाले कमलनाथ के पास अपने कई कारण हैं जो अंदरखाने उन्हें बीते कुछ महीनों से सता रही हैं. आइए, आपको कमलनाथ के कांग्रेस से नाराजगी के 5 संभावित कारण बताते हैं :-
- अध्यक्ष पद छीन लेने से नाराज थे कमलनाथ
बीते काफी सालों से कमलनाथ के पास मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद रहा है. सीएम बनने के बाद भी अध्यक्ष पद पर कमलनाथ ही आसीन थे. देखा जाए तो कमलनाथ के पास मप्र में केवल यही एक बड़ा पद रहा. उस पद की वजह से ही वे राज्य की सियासत में खुद को सक्रिय रख रहे थे. विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी के करीबी जीतू पटवारी को मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी गई. बताया जा रहा है कि कमलनाथ पर इस्तीफा देने का दबाव था. इस बात से कमलनाथ खासे आहत हुए हैं.
2. विस चुनाव में हार के सिर्फ कमलनाथ जिम्मेदार
दिसंबर में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड जनादेश हासिल किया. दो दिहाई वाली बहुमत ने कांग्रेस को इस राज्य में काफी कमजोर कर दिया. चूंकि सिंधिया के जाने के बाद एमपी में कांग्रेस का बड़ा चेहरा केवल कमलनाथ थे, ऐसे में जब हार का सामना करना पड़ा तो सारी जिम्मेदारी भी उन्हीं के ऊपर डाल दी गई. सपा और उद्धव गुट की शिवसेना तक ने कमलनाथ को ही उस हार के लिए जिम्मेदार बताया. इस पर कांग्रेस हाईकमान ने उनका कोई बचाव नहीं किया बल्कि उनसे अध्यक्ष पद भी छीन लिया. पिछले कार्यकाल में कांग्रेस के हाथों से सरकार के फिसलने का ठीकरा भी उन्हीं के सिर फूटा था.
3. दिग्विजय सिंह के साथ बनी रही तकरार
बीते कुछ सालों से मध्यप्रदेश कांग्रेस में दो सक्रिय धड़े चल रहे हैं – कमलनाथ और दिग्विजय सिंह. विस चुनावों के दौरान प्रत्याशियों को लेकर दोनों धड़ों से कई बार जुबानी फायर हुए हैं. कमलनाथ ने तो यहां तक कह दिया था कि टिकट के लिए दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ो. इस बात का फायदा बीजेपी ने चुनावी प्रचार में जमकर उठाया. कमलनाथ गुट के लोगों का मानना है कि पूर्व सीएम के खिलाफ जो माहौल पार्टी के अंदर तैयार हुआ है, उसके लिए कहीं न कहीं दिग्गी राजा ही जिम्मेदार हैं. आलाकमान ने इस बारे में दोनों के बीच सुलह कराने की कोई कोशिश नहीं की.
4. बड़े पद की लालसा, खाली रह गए हाथ
यह बात किसी से नहीं छिपी है कि 2018 से पहले तक तो कमलनाथ को केंद्र की राजनीति के लिए रखा गया था. वे राष्ट्रीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे. 2018 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें मप्र भेजा गया और उसके बाद से वे वहीं फंस कर रह गए. जब चुनाव में हार मिली, ऐसा कहा गया कि कमलनाथ को कांग्रेस फिर से दिल्ली की राजनीति में बुला लेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. चुनाव परिणाम के तीन माह बाद भी उन्हें प्रदेश तक ही सीमित रखा गया. नेता प्रतिपक्ष और अध्यक्ष पद दोनों पर किसी अन्य का चुनाव हुआ.
5. राज्यसभा की नहीं मिली टिकट
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पैठे से इकलौती राज्यसभा सीट पर सोनिया गांधी को उम्मीदवार बनाया जाना था. जब सोनिया ने खुद राजस्थान की राह पर जाना सही समझा तो कमलनाथ मन ही मन स्वयं उच्च सदन जाने के इच्छुक थे. इसके विपरीत पार्टी ने दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाने वाले अशोक सिंह को राज्यसभा भेजने का ऐलान कर दिया. माना जा रहा है कि ये अनदेखी भी कमलनाथ को नाराज कर गई थी.