Politalks.News/RahulGandhi. कोरोना की दूसरी लहर के तूफान के बीच सियासत चरम पर है. विपक्ष लगातार मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है. मोदी सरकार भी कोरोना के मामलों को लेकर चुप्पी साधे हुए है और कोरोना को संभालने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी है. लेकिन इस पूरे कोरोना संकट में सबसे सटीक अनुमान लगाने वाले नेताओं में देश में किसी का नाम आता है तो वो हैं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, लेकिन बीजेपी हमेशा की तरह उन्हें हल्के में लेने की भूल क्यों करती है?
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा की आईटी सेल और नेता कितना भी पप्पू कह दें, कितना भी मजाक उड़ा लें, लेकिन ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी जो बातें कहते हैं, उसे मोदी सरकार को मानना ही होता है. चाहे दुनिया भर की वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी देने का मामला हो या 45 साल से ज्यादा उम्र के सभी नागरिकों को टीका लगाने का मामला हो या बोर्ड की परीक्षाएं टालने का मामला हो, इन सभी मुद्दों की मांग सबसे पहले राहुल गांधी ने की थी. वहीं थोड़े दिन के ढुलमुल रवैये के बाद आखिर मोदी सरकार ने राहुल की कही हुई सारी बातें मान लीं.
सबसे ताजा दिलचस्प मामला विदेशी वैक्सीन को मंजूरी देने का है. राहुल गांधी ने सबसे पहले 9 अप्रैल को कहा था कि सरकार को दुनिया भर में इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूर की गई वैक्सीन को भारत में मंजूरी देनी चाहिए. उस समय केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि राहुल एक विफल राजनेता हैं, जो अब लॉबिस्ट यानी ‘दलाल’ बन गए हैं. प्रसाद ने आरोप लगाते हुए कहा था कि राहुल गांधी दुनिया भर की वैक्सीन बनाने वाली दवा कंपनियों के लिए दलाली कर रहे हैं. दूसरी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी राहुल को ‘फेल्ड पोलिटिशयन एंड फुल टाइम लॉबिस्ट’ कहा था.
लेकिन 13 अप्रैल को ही मोदी सरकार ने ज्यादा देर नहीं करते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और डब्लुएचओ से मंजूर सभी वैक्सीन को भारत में इस्तेमाल की मंजूरी दे दी. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद तो इस मामले में वैसे ही मददगार बने हैं जैसे बीजेपी के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में राहुल गांधी को मददगार बताया जाता है. सोशल मीडिया पर लोग तो यहां तक पूछने लगे कि रविशंकर प्रसाद अब किसे लॉबिस्ट कहेंगे? लोगों का कहना रहा कि मोदी सरकार ने ही राहुल गांधी को सही और रविशंकर प्रसाद को गलत साबित कर दिया-और ऐसा करने में चार दिन भी नहीं लगे. क्या राहुल को लॉबिस्ट कहने वाले उन केंद्रीय मंत्रियों को शर्म आई होगी? इसकी संभावना कम है क्योंकि नेताओं को तो शर्म आती ही नहीं है.
खैर, मोदी सरकार के इस कदम के बाद अब राहुल गांधी के बोलने की बारी थी, लेकिन राहुल गांधी ने बड़े ही शालीन तरीके से इस पर रिएक्ट किया. रविशंकर प्रसाद को जवाब देने के लिए राहुल गांधी ने महात्मा गांधी के एक कथन का हवाला दिया, बिलकुल दार्शनिक अंदाज में राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, ‘पहले वे आपको नजरअंदाज करेंगे… फिर आप पर हंसेंगे… फिर आपसे लड़ेंगे – और फिर आप जीत जाएंगे.’
इसी तरह राहुल गांधी पिछले कई दिनों से कह रहे थे कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए बोर्ड की परीक्षाएं स्थगित करनी चाहिए. प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इसकी मांग की और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इसकी आवाज उठाई थी. लेकिन तब भाजपा के कई नेता थे, जिनका कहना था कि बच्चों की शिक्षा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. यहां तक की CBSE ने दावा भी कर दिया था कि हर हाल में परीक्षाएं होंगी. लेकिन बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ बैठक की और कहा कि शिक्षा जरूरी है पर बच्चों का स्वास्थ्य प्राथमिकता है और इसके साथ ही 10वीं की परीक्षा रद्द कर दी गई और 12वीं की परीक्षा टाल दी गई.
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इससे पहले राहुल गांधी ही पहले नेता थे, जिन्होंने 45 साल से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति को टीका लगाने की मांग की थी. पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाया गया. उसके बाद से ही राहुल मांग कर रहे थे कि 45 साल से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति को टीका लगाना शुरू करना चाहिए. उनकी यह मांग भी सरकार ने मान ली है और एक अप्रैल से 45 साल से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति को टीका लगाना शुरू कर दिया गया है.
वैसे देश में कोरोना वायरस की महामारी को लेकर पहले दिन से राहुल गांधी जो भी कह रहे हैं वो ही मोदी सरकार सरकार को करना पड़ा रहा है. भारत के नेताओं वे पहले थे, जिन्होंने इस महामारी को लेकर आगाह किया था. दरअसल, 12 फरवरी, 2020 को ‘द हॉर्वर्ड गजट’ की एक रिपोर्ट को टैग करते हुए राहुल गांधी ने सबको आगाह करने की कोशिश की थी कि कोरोना वायरस कितना खतरनाक हो सकता है. इस तरह राहुल गांधी पिछले साल जनवरी से आगाह कर रहे थे, कि कोरोना देश को बड़ी क्षति पहुंचाने वाला है, अब यह अलग बात है कि मोदी सरकार की नींद मार्च में खुली.
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वैसे ये कोई पहला मौका भी नहीं है कि मोदी सरकार ने राहुल गांधी की सलाह को देर से ही सही गंभीरता से लिया है, लेकिन ऐसे कम ही मौके आते हैं. कांग्रेस की नीतियों को अपनाने के मामले में मनरेगा योजना सबसे बड़ी मिसाल है. दूसरे बीजेपी नेताओं की कौन कहे, एक दौर में तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही मनरेगा का मजाक उड़ाया करते रहे, लेकिन बाद में उनकी ही सरकार ने मनरेगा योजना को हाथों हाथ ले लिया. किसानों के लिए डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम के पीछे भी राहुल गांधी की ही पहल और न्याय योजना का दबाव रहा.