हरियाणा के हिसार जिले के सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र उकलाना से भाजपा उम्मीदवार आशा खेदर (Asha Khedar BJP) को उस समय आश्यर्य हुआ, जब वह अपने पति विनय खेदर के गांव खेदर पहुंची. उन्होंने गांव की परंपरा के अनुसार अपना चेहरा पूरी तरह घूंघट में छिपा लिया था. खेदर गांव में पर्दा प्रथा अभी भी सख्ती से लागू थी. आशा खेदर उम्मीदवार बनने के बाद पहली बार अपने ससुराल पहुंची थी. बाद में उन्होंने घूंघट हटाना पड़ा. इस तरह गांव में सख्ती से चली आ रही पर्दा प्रथा टूटी.

आशा खेदर प्रतिभाशाली दलित महिला है. संस्कृत और अंग्रेजी में एमए कर चुकी है. पुलित्जर और बुकर जैसे पुलस्कारों की विजेता झुंपा लाहिड़ी पर पीएचडी कर रही हैं. उन्होंने एक जाट व्यापारी से विवाह किया है, जो खेदर के निवासी हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में उन्हें भाजपा ने टिकट दे दिया है. चुनाव प्रचार के विवाह के 13 साल बाद पहली बार उन्होंने खेदर में घूंघट हटाया.

आशा खेदर के खेदर पहुंचने पर गांव के लोग उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़े. वह गांव की बहू थी. बहू होने के नाते उन्हें घूंघट करना जरूरी था. उन्होंने परंपरा का पालन किया. उन्हें देखने के लिए करीब दो हजार लोगों की भीड़ जुटी थी. लोगों ने उनसे घूंघट हटाकर बात करने का अनुरोध किया, जिसे मानने के अलावा आशा के सामने और कोई उपाय नहीं था. इसके बाद उन्होंने घूंघट हटाकर चुनाव प्रचार किया. इसके साथ ही वह गांव की अन्य बहू-बेटियों से भी घूंघट हटाने की अपील करने लगी.

इस प्रकार हरियाणा के रूढ़िवादी गांव खेदर की एक बहू के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बन जाने से गांव की कई महिलाओं को पर्दा प्रथा से मुक्ति मिली. आजकल के जमाने हमेशा घूंघट में चेहरा छुपाए रहना महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल होता है. आशा के उम्मीदवार बनने से अकस्मात एक क्रांति हो गई. हालांकि वह क्रांति करने नहीं गई थी. वह चुनाव प्रचार करने गई थी. जब स्थानीय लोगों ने खुद ही उनसे घूंघट हटाने के लिए कह दिया तो वे अन्य महिलाओं को कैसे मना करेंगे?

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जिला परिषद सदस्य राजबीर खेदर ने कहा राजनीति कर रही महिला घूंघट में रहे, यह अच्छा नहीं लगता. अगर वह चुनाव जीत गईं तो मंत्री भी बन सकती है. तब बड़े कार्यक्रमों के मंच पर उनका घूंघट पहनकर पहुंचना किसको अच्छा लगेगा? सरपंच शमशेर सिंह ने कहा की गांव की बहू होने से उसे पर्दा करना पड़ता है, लेकिन लोगों से वोट मांगने के लिए पर्दा कैसे कर सकती है? हम सभी ने उनसे पर्दा हटाकर जनसंपर्क करने के लिए कहा है.

आशा चंडीगढ़ में पली-बढ़ी. पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत में डिग्री ली और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में डिग्री हासिल की. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ही उन्होंने बीएड और एमफिल किया. रोहतक बीएमयू से उनकी पीएचडी पूरी होने के करीब है. झुंपा लाहिड़ी के उपन्यासों में पात्रों की पहचान पीएचडी का विषय है. उनके पिता हरियाणा रोडवेज के कर्मचारी थे. वह चंडीगढ़ में पली-बढ़ी. अब वह उकलाना कस्बे में अपने पति विनय और 11 वर्षीय बेटी के साथ रहती हैं. पास ही बरवाला में विनय का पेट्रोल पंप है. उनके पति के परिवार के अन्य सदस्य खेदर गांव में रहते हैं. आशा ने बताया कि वह नियमित तौर पर ससुराल जाती थी, लेकिन वहां कभी भी घूंघट नहीं हटाया.

आशा 2007 में भाजपा में शामिल हुई थी और फिलहाल भाजपा की हिसार इकाई की महासचिव हैं. लोग बताते हैं कि वह कार्यक्रमों के संचालन में कुशल है और जिले में जब भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर दौरा करते हैं, उनके कार्यक्रमों का संचालन आशा ही करती हैं. उन्होंने बताया कि चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र का विकास उनकी प्राथमिकता होगी. उकलामा में कॉलेज पहले ही खुल चुका है, जिसकी मांग यहां के लोग लंबे समय से कर रहे थे. अब जल्दी ही यहां औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) खुलने वाला है. आगे इस क्षेत्र का और भी विकास होगा.

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