असम में NRC लागू होने के बाद 19 लाख लोग भारतीय नागरिकता से वंचित हो गए. हालांकि कुछ खामियां भी रही लेकिन ये दंश आसान नहीं. असम में NRC लागू होने के तुरंत बाद कई राज्यों में एनआरसी लागू करने की मांग उठ खड़ी हुई है. इनमें बीजेपी शासित प्रदेशों के साथ ऐसे भी प्रदेश हैं जहां कांग्रेस या अन्य सरकारें काबिज हैं. पंजाब, राजधानी दिल्ली, पं.बंगाल, उत्तर प्रदेश कुछ ऐसे ही राज्य हैं. हाल में कोलकाता में एक सभा को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी कह चुके हैं कि घुसपैठियों को हर हाल में देश के बाहर निकाला जाएगा. माना ये भी जा रहा है कि संसद के अगले सत्र में नागरिकता कानून को आवश्यक रुप से लागू कराया जाएगा.
संसद के पिछले सत्र में पूरी उम्मीद थी कि केंद्र सरकार नागरिकता कानून बिल पेश करेगी लेकिन सरप्राइज देते हुए मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 पेश कर दिया और जम्मू कश्मीर में ऐतिहासिक कारनामा कर दिखाया. बहरहाल अब कहा जा रहा है कि नवंबर में होने वाले शीतकालीन सत्र में सरकार नया नागरिकता कानून पेश करेगी. हालांकि ये अभी तक नहीं भूलना चाहिए कि अभी भी केंद्र सरकार को राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं है. उसके बाद भी मोदी 2.0 सरकार तीन तलाक और अनुच्छेद 370 व 35ए जैसे अहम बिल पास कराने में सफल हो गयी लेकिन नागरिकता कानून पास करा लेगी, इसमें काफी संयश है.
अमित शाह और हिमंता बिस्वा सरमा ताल ठोक कर कह चुके हैं कि नागरिकता कानून पास करेंगे और पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए घुसपैठियों को देश से बाहर करेंगे लेकिन सरकार की कई सहयोगी पार्टियां खुद इस बिल का विरोध कर रही हैं. असम में सरकार की सहयोगी पार्टी असम गण परिषद ने तक इस बिल का विरोध किया है. वहां ये बात इतनी बढ़ गई है कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी अकेले जंग में उतरने का मन बना रही है. हालांकि वहां बीजेपी की सेहत को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला.
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भाजपा की दूसरी सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाइटेड यानि बिहार में नितिश कुमार की जेडीयू भी इस बिल के खिलाफ है. नागरिकता बिल को अगर लोकसभा में पास कराना हो तो भाजपा को किसी भी सहयोगी पार्टी की जरूरत न होगी लेकिन राज्यसभा में उनके बिना काम नहीं चलेगा. जानकारों की माने तो कई सहयोगी पार्टियों ने तीन तलाक और अनुच्छेद 370 व 35ए पर भी विरोध जताया था लेकिन विपक्ष की कई पार्टियों के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन के चलते ये बिल पास हो गए.
इस बिल की सबसे अधिक मार पश्चिम बंगाल में पड़ने वाली है. यहां 2022 में विधानसभा चुनाव हैं और बंगाल में पड़ौस देश बांग्लादेशियों के ऐसे लोगों की भरमार है जो घुसपैठ कर सालों से वहां रह रहे हैं. बंगाल की शेरनी और टीएमसी प्रमुख मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बात को भली भांति जानती है कि अगर NRC लागू हुआ तो किसी भी सूरत में उनका स्थानीय सत्ता का मुखिया बनना संभव नहीं. ऐसे में वे अग्र पंक्ति में आकर इस बिल का विरोध कर रही हैं. इसके लिए ममता दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मिलकर भी आई हैं लेकिन वहां से उन्हें कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला.
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष की विचारधारा पर काम करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी यूपी में कथित घुसपैठियों की पहचान शुरू कर दी है. उत्तर प्रदेश और दिल्ली से सटे कुछ इलाकों में घुसपैठियों की संख्या बहुतायत में बताई जा रही है. यही वजह है कि दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने भी राजधानी में एनआरसी की मांग को तेज किया.
केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों के इस कदम से लोगों में खौफ भी है. वजह है कि असम में एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट मॉनिटर कर रही थी. यहां जो कुछ भी हो रहा था, वो कानूनी प्रक्रिया के तहत हो रहा था. अब अन्य राज्यों में ऐसा हो, ये अभी तक साफ नहीं है. अभी तक की तस्वीर देखें तो उत्तर प्रदेश में ये अभियान पुलिस प्रशासन ने संभाल रखा है लेकिन उनकी निगरानी करने वाला कोई तंत्र नहीं है. न ही इसके लिए कोई नियम बनाया गया है. कुल मिलाकर पुलिस राज से सबको परेशान होने का खतरा दिख रहा है.