विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सरकार लोकसभा में मिले बहुमत के आधार पर राज्यसभा में भी जल्दबाजी में विधेयक पारित कराने का प्रयास कर रही है. राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने इसका जवाब देते हुए 14 विभिन्न पार्टियों के 15 राज्यसभा सदस्यों को छह पृष्ठों का एक पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने सुझाव दिया है कि संसदीय समितियों द्वारा विधेयकों की संवीक्षा के दिशा-निर्देश संहिताबद्ध करने की जरूरत है.

संसद के मौजूदा सत्र में कई विधेयकों को बगैर संवीक्षा कराए पारित किए जाने पर पीड़ा व्यक्त करते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि चयन समितियों के संदर्भ से आसन का कोई लेना-देना नहीं है और अब तक किसी भी स्थायी समिति का गठन ही नहीं हुआ है. ऐसे में विधेयक को सदन में लाना या नहीं लाना सदन का विशेषाधिकार है. स्थायी समितियों में दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं. समितियों में लोकसभा के सदस्यों का मनोनयन अभी तक नहीं हुआ है.

नायडू ने विधेयकों की संवीक्षा के लिए दिशानिर्देश संहिताबद्ध करने की जरूरत बताई. उन्होंने कहा कि इसके लिए किसी समिति का गठन किया जाना चाहिए. प्रत्येक विधेयक को संवीक्षा के लिए किसी संसदीय समिति के पास नहीं भेजा जा सकता. इस प्रकार की संवीक्षा का निर्णय किसी विधायी प्रस्ताव में शामिल ऐसे जटिल विषयों के आधार पर लिया जाना चाहिए, जिनके लिए इस तरह की विस्तृत संवीक्षा की जरूरत हो.

वेंकैया नायडू जब से राज्यसभा के सभापति बने हैं, तब से पिछले पांच वर्षों के दौरान सदन में पहले पेश किए गए दस विधेयकों पर अपनी स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इनमें से आठ विधेयकों को स्थायी समितियों के पास भेजा गया था, हालांकि यह अनिवार्य नहीं था. अन्य दो विधेयकों में से एक अनुसूचित जनजातियों की सूची में कुछ और जाति समूहों को शामिल करने से संबंधित था, जिसकी विस्तृत संवीक्षा की जरूरत नहीं थी. दूसरा मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक था, जो संबंधित स्थायी समिति द्वारा विस्तार से संवीक्षा किए जाने के बाद लोकसभा से प्राप्त हुआ था. बाद में इसे राज्यसभा क चयन समिति के पास भेजा गया.

नायडू ने कहा कि मौजूदा सत्र में अब तक केवल चार विधेयक पहले राज्यसभा में पेश किए गए और पहले से पारित तीन विधेयकों को स्थायी समितियों के पास इसलिए नहीं भेजा जा सकता कि क्योंकि उनका अब तक गठन नहीं हुआ है. चौथे इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड एक्ट में संशोधन विधेयक पर अभी विचार विमर्श जारी है. इस पर सदन सामूहिक रूप से कोई राय बनाएगा. उन्होंने कहा, यह निर्णय करना सदन का काम है कि किसी विधेयक को चयन समिति के पास भेजा जाए या मेरे पास, क्योंकि मैं सभापति हूं.

सदन में सोमवार को सूचीबद्ध अनियमित जमा योजनाओं पर रोक लगाने वाले विधेयक के बारे में नायडू ने कहा कि इस पर स्थायी समिति पहले ही विचार कर चुकी है. स्थायी समिति की संवीक्षा के बाद सात और विधेयक लोकसभा से राज्यसभा में भेजे गए हैं. बड़ी संख्या में विधेयक पारित करने के लिए संसद का सत्र लंबा खींचने की शिकायत पर उन्होंने कहा कि यह सरकार का विशेषाधिकार है. सदन के पीठासीन अधिकारी की इसमें कोई भूमिका नहीं है. सरकार सत्र का कार्यक्रम तय करती है और विधायी कार्यों को देखते हुए सत्र की अवधि बढ़ाती है.

नायडू ने लिखा कि पिछले कुछ वर्षों में संसद की बैठकों की संख्या कम हुई है, जो चिंताजनक है. इसके लिए संसद के सत्र की अवधि बढ़ाने की जरूरत है. हर हफ्ते सदन में एक बहस कराने की परंपरा का उल्लंघन कर राज्यसभा में कम अवधि की अधूरी बहस करवाकर विपक्ष की आवाज दबाने के आरोप पर नायडू ने कहा कि उन्होंने अपने सचिवालय में इसकी पड़ताल की है, जहां प्रत्येक सप्ताह एक बहस की परंपरा की जानकारी नहीं मिली.

राज्यसभा के वर्ष 1978 से लेकर 2013 तक के 36 वर्षों के कार्यकाल का उल्लेख करते हुए नायडू ने कहा कि इस दौरान 16 वर्ष तक हर साल एक से लेकर पांच बहस हुई, जबकि 1984 में इस प्रकार की एक बहस हुई. बाकी 14 वर्षों के दौरान हर साल इस तरह की छह से आठ बार बहस हुई. उन्होंने कहा कि पिछले 30 वर्षों का रिकॉर्ड है कि प्रत्येक सत्र में तीन से भी कम बार राज्यसभा में बहस कराई गई है.

नायडू ने कहा कि राज्यसभा का 40 फीसदी समय रुकावटों के कारण नष्ट होता है. यह सिलसिला रोकने के लिए सदस्यों को आत्मपरीक्षण की जरूरत है. उन्होंने अपील की कि सदन के दोनों पक्ष एक दूसरे की चिंताओं का समाधान करने के लिए सौहार्द्रपूर्ण तरीके अपनाकर यह सुनिश्चित करें कि एक सभापति के रूप में वे सदन से सदस्यों के विशेषाधिकारों और अधिकारों को कम करने की किसी को भी अनुमति न दें.

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