भैरों सिह शेखावत के बाद राजस्थान में बीजेपी की वन-वुमैन आर्मी बनी वसुंधरा राजे को प्रदेश राजनीति में कभी किसी ने चैलेंज नहीं किया. जिसने भी उनके कद के बराबर पहुंचने की कोशिश की सफल नहीं हो पाया. लेकिन करीब दो साल पहले राजस्थान की राजनीति ने करवट लेनी चाही और दिल्ली में बैठे मोदी और शाह की जोड़ी ने राजस्थान में अपने ढंग से सरकार और पार्टी को चला रही वसुंधरा के बराबर अपने विश्वस्त को खड़ा करने की कोशिश की. इन विश्वस्तों में दो नाम सामने आए. इनमें पहला नाम था गजेंद्र सिंह शेखावत और दूसरा अर्जुनराम मेघवाल.
अशोक परनामी को हटाकर गजेंद्र सिंह और अर्जुन मेघवाल में से एक को प्रदेशाध्यक्ष बनाने के सियासी चर्चाओं के बीच एकबारगी गजेन्द्र सिंह का नाम तय हो ही गया था, लेकिन वसुंधरा ने वीटो लगा दिया. पार्टी को गजेंद्र सिंह का नाम रोकना पड़ा और करीब 75 दिन बाद ‘न तू जीता और न मैं हारा’ की तर्ज पर मदन लाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया.
मदन लाल सैनी अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन इस पद का रुतबा कभी कायम नहीं कर पाए. विधानसभा चुनाव में उनकी न तो टिकट वितरण में चली और न ही चुनाव प्रचार में सक्रियता नजर आई. विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई. अब पार्टी के सामने सवाल आया कि नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए. वसुंधरा राजे इस ओहदे पर बैठना चाहती थीं, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने गुलाब चंद कटारिया के नाम पर मुहर लगाई. पार्टी ने राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर राजस्थान की राजनीति से किनारे करने का कवायद भी कर दी.
कहा यह भी जाता है कि मोदी-शाह ने वसुंधरा से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहा लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया. यानी वसुंधरा का केंद्र की राजनीति में जाने का मन नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में वे ही पार्टी की कमान संभालेंगी. यदि लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता है और मोदी-शाह की जोड़ी कमजोर होती है तो वसुंधरा को राजस्थान की राजनीति से रुखसत करने वाला कोई नहीं बचेगा. अगर यह जोड़ी ताकतवर बनी रहती है तो उन्हें मशक्कत करनी पड़ सकती है.
2023 में क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा मगर तब तक वसुंधरा राजे खुद को मजबूत करने में जुटी हैं. लोकसभा चुनाव में उनके प्रचार का शेड्यूल चर्चा का विषय बना हुआ है. वे रोजाना कहीं न कहीं बीजेपी उम्मीदवारों के पक्ष में सभाएं कर रही हैं लेकिन प्रदेश की दो सबसे चर्चित सीटों पर उन्होंने झांककर भी नहीं देखा है. ये सीटें हैं जोधपुर और बीकानेर. जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव लड़ रहे हैं और बीकानेर से अर्जुनराम मेघवाल मैदान में हैं. दोनों मोदी सरकार में मंत्री हैं और इस बार मुकाबले में फंसे हुए हैं लेकिन वसुंधरा राजे अभी तक इनका प्रचार करने नहीं पहुंची.
गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव चुनाव लड़ रहे हैं. इलाके की राजनीति के जानकारों की मानें तो गहलोत ने गजेंद्र सिंह शेखावत को ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया जिससे निकलना अकेले उनके बूते का नहीं है. इसके बावजूद वसुंधरा राजे अभी तक जोधपुर में प्रचार करने नहीं गई हैं. बीजेपी के स्थानीय नेता इसके पीछे प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए गजेंद्र सिंह की दावेदारी को वजह बताते हैं.
कमोबेश ऐसा ही हाल बीकानेर का है जहां अर्जुन मेघवाल मैदान में है. राजे बीकानेर भी नहीं गई हैं.जबकि बीकानेर में राजे का काफी प्रभाव है. यहां के शहरी मतदाताओं में आज भी सूरसागर झील की सफाई और सड़कों के सौंदर्यकरण के चलते राजे का क्रेज है. इसी के चलते विधानसभा चुनाव में राजे ने यहां रोड शो किया था. लोकसभा चुनाव में यहां प्रचार करना तो दूर, उनके खास माने जाने वाले देवी सिंह भाटी ने अर्जुनराम मेघवाल के विरोध में पार्टी छोड़ दी और उन्हें हराने के लिए कांग्रेस को वोट देने की अपील कर रहे हैं.
वसुंधरा राजे के जोधपुर और बीकानेर से मुंह मोड़ लेने की पार्टी के भीतर खूब चर्चा हो रही है. कहा यहां तक जा रहा है कि राजे की उपेक्षा के बावजूद यदि गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल जीत जाते हैं तो यह राजे के लिए बड़ा झटका होगा. वहीं, दोनों हार जाते हैं तो वसुंधरा राजे के लिए रास्ता साफ हो जाएगा. ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि नतीजा क्या रहता है.