दिल्ली के अशोक रोड से गुजरते हैं तो एक बड़ी सरकारी इमारत नजर आती है. नाम है निर्वाचन आयोग. यही से चलता है भारत का चुनाव आयोग. पिछले कुछ समय से चुनाव आयोग पर सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लग रहे हैं. पहले तो ये आरोप विपक्षी दल के नेता लगा रहे थे लेकिन हाल में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने ही आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए.
इसके दूसरी ओर, ईवीएम की विश्वसनीयता पर भी काफी समय से विपक्षी नेता सवाल उठा रहे हैं. इस पर बयान देते हुए देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘मैं मतदाताओं के फैसले के साथ कथित छेड़छाड़ की खबरों को लेकर चिंतित हूं. ईवीएम की सुरक्षा चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है.’
खैर…. वैसे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों के बीच हमें टी.एन. शेषन के दौर को याद कर लेना चाहिए. शेषन के समय में चुनाव आयोग का वह रुप देखने को मिला जिसमें चुनाव के नियमों का कड़ाई से पालन हुआ. हम उस दौर के कुछ रोचक किस्से बताने जा रहे हैं.
साल था 1994 और बिहार चुनाव की अधिसूचना जारी की गई थी. बिहार चुनाव शेषन के लिए सबसे बडी परीक्षा वाले दिन होने वाले थे क्योंकि उन दिनों बिहार के चुनाव में बूथ कैप्चरिंग, हिंसा और हत्याएं आम बात थी. दोनालियों से गोली निकलते सैकंड नहीं लगता था. बिहार में साफ-सुथरे चुनाव कराना उस दौर में हर चुनाव आयुक्त के लिए सपना था. लेकिन शेषन यह सपना यूपी में पहले ही साकार करके दिखा चुके थे.
शेषन का अगला टार्गेट बिहार विधानसभा चुनाव थे. शेषन ने सबसे पहले पूरे बिहार को पैरामिलिट्री फोर्स से पाट दिया. जहां देखो वहां फोर्स ही दिखाई देती थी. बिहार के नेता इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्थाओं से परेशान थे.
शेषन ने विधानसभा चुनाव 4 चरण में कराने का निर्णय लिया. अफसरों को सख्त निर्देश दिए गए थे कि आचार संहिता उल्लंघन की थोड़ी भी भनक लगते ही उस इलाके का चुनाव रद्द कर दिया जाए. शेषन के खौफ के कारण अफसरों ने आदेशों का कठोरता से पालन किया. बिहार विधानसभा चुनाव चार बार रद्द् किए गए. चुनाव की प्रकिया तीन महीने तक चली. नेता-वोटर सब थक गए, बस एक केवल शख्स था जो नहीं थका, वह थे – टीएन शेषन.
8 दिसंबर, 1994 को शुरु हुई चुनावी प्रकिया आखिरकार 28 मार्च, 1995 को समाप्त हुई. चुनाव के दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव भी टीएन शेषन के प्रति चुनाव प्रचार में हमलवार रहे. वो हर सभा में विपक्षी नेताओं को कम, शेषन पर ज्यादा निशाना साधते थे. एक बार तो एक चुनावी सभा में लालू यादव ने कह दिया था, ‘इ शेषनवा को भैंसिया पर चढ़ा करके गंगाजी में हेला देंगे.’ हालांकि लालू उपरी मन से ही शेषन को कोसते थे, क्योंकि उन्हें यह अहसास था कि लंबी चुनावी प्रकिया का फायदा उनकी पार्टी ‘राजद’ को ही होगा.
हुआ भी कुछ ऐसा ही. लालू यादव की पार्टी को भारी बहुमत से जीत हासिल हुई. कारण रहा कि इतने बड़े चुनाव में लालू के विरोधी तो पहले ही थक-हार कर बैठ गए. इस दौरान लालू बिहार के सुदूर इलाकों में प्रचार करते रहे. शेषन का खौफ ऐसा था कि नेता चुनाव के दौरान अफसरों से मिलने से डरते थे. शेषन के खौफ को लेकर एक कहावत मशहूर थी ‘भारत के नेता दो ही चीज से डरते हैं- पहला भगवान और दूसरा शेषन.