लोकतंत्र का वस्त्रहरण करके महाराष्ट्र में कराए गए इस राजनीतिक ड्रामे के अभी कई भाग हैं बाकी- सामना

'महाराष्ट्र में अस्थिरता निर्माण करने के लिए कराई जा रही राजनीतिक नौटंकी के अभी और कितने भाग बाकी हैं दृढ़तापूर्वक कोई कह नहीं सकता, फिलहाल जो होना था हो गया लेकिन महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री और पार्टी का आदेश शिरोधार्य मानने वाले उपमुख्यमंत्री के हाथ से महाराष्ट्र हित के ही कार्य हों यही अपेक्षा है, यह शिवराय का महाराष्ट्र है अंधा धृतराष्ट्र नहीं, ये उन्हें ध्यान में रखना चाहिए, वाजपेयी का युग हो चूका है समाप्त अब काले को सफेद-सफेद को काला बनाने वाला नया युग है- सामना

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Politalks.News/Maharashtra. महाराष्ट्र में जारी सत्ता के संग्राम के बीच नवनिर्मित शिंदे सरकार को 4 जुलाई को विधानसभा में बहुमत पेश करना है. सियासी गलियारों में चर्चा है की शिंदे सरकार बहुमत परिक्षण पार कर लेगी लेकिन शिवसेना के ठाकरे गुट का इमोशनल ड्रामा लगातार जारी है. जबसे महाविकास अघाड़ी सरकार पर संकट आया तब से पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक नहीं दो नहीं तीन तीन बार बागी विधायकों को अपने इमोशनल संदेश के द्वारा साधने की कोशिश की है. फिलहाल शिवसेना से बागी हुए सभी विधायक गोवा से मुंबई आ चुके हैं और कल से शुरू होने वाले विधानसभा के दो दिवसीय सत्र में भाग लेंगे. आपको बता दें, 3 जुलाई को जहां विधानसभा में स्पीकर का चुनाव होगा तो वहीं 4 जुलाई को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपनी सरकार का बहुमत पेश करेंगे. लेकिन इससे पहले शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिये बीजेपी पर जोरदार निशाना साधा है. सामना के सम्पादकीय में लिखा कि, ‘मन’ और ‘अपराध’ की सुस्पष्ट व्याख्या व्यक्त करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी युग एवं उनकी विचारधारा देश की राजनीति से कब की अस्त हो चुकी है.’

सामना के संपादकीय में बीजेपी के दिवंगत नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता का जिक्र करते हुए शिवसेना ने बीजेपी पर निशाना साधा है. अपने मुखपत्र सामना के जरिए शिवसेना ने कहा, ‘महाराष्ट्र में अस्थिरता निर्माण करने के लिए जो राजनीतिक नौटंकी कराई जा रही है, उस नौटंकी के अभी और कितने भाग बाकी हैं, इस बारे में आज कोई भी दृढ़तापूर्वक कह सकता है, ऐसा लगता नहीं. घटनाक्रम ही इस तरह से घट रहे हैं अथवा घटनाएं कराई जा रही हैं कि राजनीतिक पंडित, चाणक्य व पत्र पंडित भी सिर पर हाथ रखकर बैठ गए हैं. स्ट्रोक-मास्टर स्ट्रोक ऐसे ड्रामों का प्रयोग प्रस्तुत किया गया. एक पर्दा गिरा कि दूसरा पर्दा ऊपर, ऐसी भी घटनाएं हुई. इस पूरे राजनीतिक ड्रामे के सूत्र पर्दे के पीछे से चलानेवाली तथाकथित ‘महाशक्ति’ का ‘पर्दाफाश’ भी बीच के दौर में हुआ. कम-से-कम उसके बाद तो ड्रामा खत्म होगा, ऐसा कुछ लोगों का कयास था, परंतु ऐसा होता दिख नहीं रहा है. बल्कि इस ड्रामे में और रंग भरने का काम होता दिख रहा है.’

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शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा कि, ‘शिवसेना में बगावत कराकर महाराष्ट्र की सत्ता काबिज करना, यही इस ड्रामे का मुख्य उद्देश्य था. उसके अनुसार इसके पात्रों ने अपनी-अपनी भूमिका निभाई. सूरत, गुवाहाटी, सर्वोच्च न्यायालय, गोवा, राजभवन और सबसे अंत में मंत्रालय आदि जगहों पर इसके अलग-अलग प्रयोग पेश किए गए. लेकिन सबसे झकझोरने वाला ऐसा क्लाइमेक्स हुआ तो गुरुवार की शाम राजभवन में इस ड्रामे का अंत वगैरह लगने वाला प्रयोग हुआ तब उपमुख्यमंत्री बनने वाले अचानक मुख्यमंत्री बन गए और हम काश मुख्यमंत्री बनेंगे, ऐसा लगने वाले को उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पड़ा. पक्षादेश के रूप में उसे उन्होंने स्वीकार भी किया. इस ‘क्लाइमेक्स’ पर टिप्पणी, समीक्षा, परीक्षण की भरमार होने के दौरान ‘बड़ा मन’ और ‘पार्टी के प्रति निष्ठा का पालन’ ऐसा एक बचाव भी सामने आया.’

वहीं देवेंद्र फडणवीस के उपमुख्यमंत्री बनने पर सियासी गलियारों में चर्चा है कि वे भाजपा आलाकमान के इस फैसले से खुश नहीं है. लेकिन फिर भी भाजपा नेताओं की तरफ से प्रतिक्रिया आ रही है कि ‘फडणवीस ने मन बड़ा करके मुख्यमंत्री के पद की बजाय उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया’. इसी को आधार बना सामना के संपादकीय में भारतीय जनता पार्टी के स्वर्गीय नेता अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता का जिक्र करते हुए लिखा कि,

‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,

टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता

लेकिन इन पंक्तियों से पहले इसी कविता में वाजपेयी कहते हैं-

हिमालय की चोटी पर पहुंच,

एवरेस्ट विजय की पताका फहरा,

कोई विजेता यदि ईर्ष्या से दग्ध,

अपने साथी से विश्वासघात करे

तो उसका क्या अपराध

इसलिए क्षम्य हो जाएगा कि

वह एवरेस्ट की ऊंचाई पर हुआ था?

नहीं, अपराध अपराध ही रहेगा

हिमालय की सारी धवलता

उस कालिमा को नहीं ढक सकती!

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अर्थात ‘मन’ और ‘अपराध’ की सुस्पष्ट व्याख्या व्यक्त करने वाले वाजपेयी युग का उनकी विचारधारा देश की राजनीति से कब की अस्त हो चुकी है. काले को सफेद और सफेद को काला बनाने वाला नया युग अब यहां अवतरित हुआ है. इसीलिए ही ‘छोटा मन’ और ‘बड़ा मन’ की व्याख्या नए सिरे से कही जा रही है.’

सामना के संपादकीय में आगे लिखा गया कि, ‘करार के अनुरूप दिए गए वचन का पालन करने का ‘बड़ा मन’ भाजपा ने ढाई साल पहले ही दिखाया होता तो बचाव के नाम पर ‘बड़े मन’ की ढाल सामने लाने की नौबत शिवसेना पर नहीं आई होती. लोकतंत्र का वस्त्रहरण करके महाराष्ट्र में कराए गए इस राजनीतिक ड्रामे के और कितने भाग सामने आएंगे इसे अब देखना होगा. जो होना था हो गया, लेकिन महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री और पार्टी का आदेश शिरोधार्य मानने वाले उपमुख्यमंत्री के हाथ से महाराष्ट्र हित के ही कार्य हों यही अपेक्षा है. यह शिवराय का महाराष्ट्र है अंधा धृतराष्ट्र नहीं, ये उन्हें ध्यान में रखना चाहिए.

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