बिहार में तनाव बीजेपी-जदयू के मध्य ही नहीं महागठबंधन के बीच भी फैला है

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने बिहार में प्रचंड जीत हासिल की, लेकिन चुनाव में मिली इस प्रचंड जीत के बाद भी जदयू, बीजेपी के भीतर हालात सामन्य नहीं है. पहले तो गठबंधन की गरिमा को झटका दिल्ली में लगा. जदयू ने कम हिस्सेदारी के चलते मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने से इंकार कर दिया. उसके बाद नीतीश कुमार ने दिल्ली का बदला अपने हिसाब से बिहार की राजधानी पटना में लिया.

बीते रविवार को सीएम नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है. जिसमें 8 नए मंत्री बनाए गए हैं. मंत्रिमंडल विस्तार में हैरानी की बात यह रही कि सरकार में साझेदार बीजेपी को इनमें से एक भी पद नहीं दिया गया. हालांकि एनडीए के नेता अपने तमाम बयानों में हालातों को सामान्य बता रहे है, लेकिन राजनीतिक रूप से देखने पर हालात सामान्य नहीं नजर आ रहे हैं.

ऐसा ही कुछ हाल विपक्षी खेमे में दिख रहा है. वहां हार के बाद से ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर दबी-जुबान में जारी है. हालांकि अभी कोई खुले तौर पर बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन उस तरफ भी कुछ ही दिनों में बड़ी भगदड़ मचने की संभावना है. जीतनरीम मांझी का हाल में दिया बयान तो इसी ओर इशारा करता है. महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तान आवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने अभी अपने नेता का चुनाव नहीं किया है.

जीतनराम ने राजद नेता शिवानंद तिवारी के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि तेजस्वी राजद के नेता हो सकते हैं. महागठबंधन का नेता चुनना अभी बाकी है और नेता का चुनाव शिवानंद तिवारी नहीं महागठबंधन में शामिल दलों के प्रमुख करेंगे. इस बयान के बाद बिहार के राजनीतिक हल्कों में तूफान आना तय था और तूफान आयेगा यह भी सुनिश्चित है, लेकिन अभी जो शांति नजर आ रही है वो किसी तूफान से पहले की खामोशी है.

यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद जीतनराम मांझी के तेवर कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. वो इन दिनों अपने पुराने राजनीतिक आका नीतीश कुमार के कुछ ज्यादा ही करीब जाते दिखाई दे रहे हैं. मुमकिन है कि वो अपनी पार्टी का विलय जनता दल यूनाइटेड में कर ले. वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी भी चुनावी नतीजों के बाद से ही गहरे सदमे में है. कारण ये है कि उनका भी हाल रालोसपा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाह जैसा है. जो उपजाऊ जमीन को छोड़कर बंजर भूमि में अन्न की पैदाइश करने गए थे.

अन्न कहां पैदा हो पाता जब जमीन ही बंजर थी और जब बड़े खेतो (राजद, कांग्रेस) में ही अनाज नहीं पैदा हो पाया तो साहनी के हिस्से में तो थोडी सी जमीन आई थी. मुकेश साहनी की राजनीतिक लॉन्चिंग स्वयं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साल 2015 के विधानसभा चुनाव में की थी. उनको हर चुनावी सभा में निषाद समाज के उभरते हुए सितारे के तौर अमित शाह प्रोजेक्ट करते थे. वो इस दौरान अमित शाह के काफी नजदीक भी आए.

लेकिन कभी-कभार ज्यादा महत्वाकांक्षा व्यक्ति की लुटिया डूबो देती है. मुकेश के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है. वो स्वयं को समय से पहले ही बड़ा नेता समझने लगे थे और बीजेपी का साथ छोड़ कर अपनी नई पार्टी बनाई. नाम रखा विकासशील इंसान पार्टी. जो लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल हुई. सीट बंटवारे में पार्टी के हिस्से में तीन सीटें आई. खुद मुकेश साहनी खगड़िया संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे.

लेकिन चुनावी नतीजा नील बट्टे सन्नाटा रहा. अब मुकेश को लेकर खबरें आ रही है कि मुकेश बीजेपी की तरफ रूख करने का विचार बना रहे हैं. हालांकि ये खबरें सूत्रों से आ रही है, इनमें कितनी सच्चाई है इसका पता तो आने वाले दिनों में चल पाएगा. फिलहाल लोकसभा चुनाव में जीतने वालों की नजर विधानसभा चुनाव में भी बाजी मारने की रणनीति बनाने पर है तो वहीं हारने वाले जनता में विश्वास कायम करने में जुटे हैं.

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