PoliTalks.News/बिहार. पिछले 15 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में बिहारी राजनीति का केंद्र बने सुशासन बाबू यानि नीतीश कुमार के लिए आने वाला विधानसभा चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं है. 2015 के समय के चुनावी समीकरण अब पूरी तरह पलट चुके हैं. 2015 में लालू प्रसाद यादव की राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले नीतीश कुमार को इस बार उसके खिलाफ चुनावी मैदान में दो -दो हाथ करने हैं. विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही बीजेपी को छोड़कर बाकी सब किसी न किसी रूप में नीतीश कुमार की छवि पर राजनीतिक हमला करने में जुटे हैं. जहां एक ओर नीतीश जनता के बीच अपनी सरकार के कामों को गिनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, वहीं सारे विपक्षी उन्हें जन विरोधी सरकार के मुखिया के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
लोजपा के चिराग पासवान अपने नए समीकरण के साथ चुनावी मैदान में जाने को इच्छुक नजर आ रहे हैं, तो औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सभी मुस्लिम बहुल्य सीटों पर बिसात बिछा दी है. 2014 में नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तावित करने वाले तेजस्वी यादव अब सुशासन बाबू को मुख्यमंत्री पद पर भी नहीं देखना चाहते हैं. इन सब विपरीत परिस्थितियों के बीच नीतीश कुमार अनुभवी राजनीतिक योद्धा के रूप में मजबूती से खड़े नजर आ रहे हैं. लालू यादव के बाद केवल नीतीश कुमार ही ऐसा नाम है जो बिहार की राजनीति में सबसे अनुभवी है.
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जेपी आंदोलन से निकले नीतीश कुमार ने 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहला चुनाव लड़ा था और 1985 में बिहार विधानसभा में विधायक बनकर पहुंचे. इसके बाद नीतीश साल दर साल आगे बढ़ते चले गए. 1987 में बिहार लोक दल युवा के अध्यक्ष बने और 1989 में जनता दल बिहार के महासचिव पद पर पहुंचे. अगले ही साल लोकसभा सांसद बने. 1990 में पहली बार केंद्रीय राज्य मंत्री बने और 1991 में जनता दल से संसद में उपनेता बने. 2004 तक छह बार सांसद रहे. इस दौरान वो भारत सरकार की कई कमेटियों के प्रमुख और विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे.
नीतीश भारत के रेलवे मंत्री के रूप में कई कारणों से चर्चा में रहे. उन्होंने टिकट विंडो को डिजिटलाइज कराया, साथ ही रेलवे के कार्यों को कम्प्यूटरीकृत कराने में नीतीश की महत्वपूर्ण भूमिका रही. 3 मार्च, 2000 को नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन केवल 7 दिन ही इस पद पर रह सके. भले ही यह 7 दिनों का समय रहा लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी प्रस्तावना तैयार हो गई.
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2005 के बाद से अब तक नीतीश कुमार लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने. इस दौरान 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनवाया लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों के चलते 2015 में एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद संभाल लिया. मांझी अब तेजस्वी यादव के साथ मिलकर नीतीश के खिलाफ राजनीतिक अभियान चला रहे हैं.
बिहार की राजनीति में ऐसे रहा दबदबा
साल 2000 में केवल 7 दिन मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले नीतीश कुमार 2001 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के मंत्रीमंडल में रेल मंत्री बने. इसके बाद 2005 और 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद को हराकर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे. 2015 में नई राजनीतिक परिस्थितियों के बीच नीतीश ने राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और फिर से मुख्यमंत्री बने. 2017 में सीबीआई की ओर से तेजस्वी यादव के खिलाफ की गई एफआईआर के बाद दोनों के बीच रिश्तों में खटास आ गई. उस समय तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री थे. रिश्तों में आई खटास के कारण गठबंधन टूट गया. उस समय नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ लेकर नया समीकरण बनाया और मुख्यमंत्री बने रहे.
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इस तरह नीतीश कुुमार अपने लंबे राजनीतिक अनुभवों का लाभ लेकर हर बार अपने पक्ष में समीकरण बनाने में सफल रहे. लेकिन इस बार बीजेपी को छोड़कर बिहार के सभी प्रमुख राजनीतिक दल उनकी घेराबंदी में जुटे हैं. देखना होगा कि आने वाले विधानसभा में नितिश कुमार अपनी रणनीति से ऐसा कौनसा चमत्कार करते हैं कि वो फिर से बिहार की सत्ता पर काबिज हो सकें.