कांग्रेस (Congress) में हरियाणा (Haryana) का जो मामला राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने उलझा दिया था, वह सोनिया गांधी (Soniya Gandhi) की टीम ने सुलझा दिया है. लेकिन नेताओं के आपसी विवाद कहां तक सुलझ पाएंगे, यह समय तय करेगा. हरियाणा में दो साल से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा (Bhupendra Singh Hudda) और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (State Congress President) अशोक तंवर (Ashok Tanwar) के बीच तलवारें खिंची हुई थी. बड़े-बड़े नेताओं के अलग-अलग गुट बन रहे थे और हुड्डा तो बगावती तेवर दिखाने लगे थे. ऐसे में हरियाणा में पार्टी को एकजुट बनाए रखने के लिए संगठन में फेरबदल जरूरी था.

अशोक तंवर अब हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं. उनकी जगह कुमारी शैलजी प्रदेश अध्यक्ष पद संभालेंगी, जबकि विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा होंगे. पहले किरण चौधरी कांग्रेस विधायक दल की नेता थी. हरियाणा में यह महत्वपूर्ण परिवर्तन है. कुमारी शैलजा किसी गुट विशेष से जुड़ी हुई नहीं हैं और न ही उनका विरोध है. अशोक तंवर की नियुक्ति राहुल गांधी के कहने पर हुई थी. वह पार्टी को एकजुट रखने में सफल नहीं रहे. लगातार विरोध के बावजूद वह पद पर बने हुए थे. इससे हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी.

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बात यहां तक पहुंच गई थी कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने पिछले दिनों रोहतक में कांग्रेस के समानांतर अपनी अलग रैली का आयोजन किया था. इसमें उन्होंने सार्वजनिक रूप से अशोक तंवर की आलोचना करते हुए उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की थी. यह हरियाणा में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी थी. हरियाणा में कांग्रेस एक बार फिर विभाजन के कगार पर पहुंच गई थी. हुड्डा जैसे नेता को पार्टी छोड़ने से रोकना जरूरी था.

हरियाणा के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पहले जो कुछ हुआ, वह इतिहास की बात है, अब हरियाणा में कांग्रेस कुमारी शैलजा और हुड्डा के नेतृत्व में आगे बढ़ेगी और एकजुट होकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी. हुड्डा और शैलजा कभी एक दूसरे के धुर विरोधी हुआ करते थे. अब दोनों टीम बनाकर काम करेंगे. लेकिन तंवर के पांच साल के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस में जितनी तोड़फोड़ हो चुकी है, उसको दुरुस्त करना इतना आसान नहीं है. हुड्डा और शैलजा के सामने इस समय बड़ी चुनौती है.

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गौरतलब है कि कांग्रेस में सितंबर 2017 में यही समीकरण लागू करने का फैसला हो चुका था. उस समय कमल नाथ हरियाणा के प्रभारी थे. उन्होंने राहुल गांधी से बातचीत कर पार्टी को एकजुट करने की रणनीति बना ली थी, जिसके तहत हुड्डा को विधायक दल नेता और शैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला होना था. राहुल गांधी अमेरिका दौरे से लौटने के बाद इसकी घोषणा करने वाले थे. लेकिन यह फैसला अब दो साल बाद हुआ है.

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