प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही बीजेपी चुनाव नतीजों के चलते खुशियां मनाने में लगी है. साल 2014 से भी बड़ी विजय हासिल करने वाली बीजेपी ने ‘मोदी है तो मुमकिन है’ पर मुहर लगा दी है. बड़ी जीत के उत्साह के बीच हाल ही में बीजेपी से बगावत करने वाले नेताओं के पास अब हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं है. जनता ने इस चुनाव में इन्हें सिरे से नकार दिया है जबकि 2014 में इसी पार्टी से जीतकर वे लोकसभा पहुंचे थे.
जीत के उत्साह में डूबी बीजेपी के मोदी नेतृत्व को सत्ता से दूर करने की विपक्ष ने भरपूर कोशिश की. पूरे यूपीए दलों के अलावा एनडीए विरोधी दल भी इसी कवायद में जुटे थे लेकिन जनता द्वारा दिए गए निर्णय के सामने आखिरकार सबको हार माननी ही पड़ी. 2014 से भी बड़ी मोदी लहर के बीच जीत की ऐसी सुनामी आई कि दिग्गज सियासी दलों के अलावा गठबंधन के भी खंभे उखड़ गए.
इसी बीच हाल ही में बीजेपी छोड़ दूसरी पार्टी के साथ चुनावी मैदान में आए दलबदलू नेताओं का भी कहीं पता ही नहीं चला. बीजेपी पर भरोसा जताते हुए देश की जनता ने इन्हें पसंद नहीं किया. इन्ही नेताओं ने साल 2014 के चुनाव में बीजेपी की टिकट पर मोदी लहर में जीत हासिल की थी. लेकिन इस चुनाव से पहले वे पार्टी से बगावत कर बैठे और किनारा कर दूसरी पार्टी के साथ थामा. लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन जनता के आगे नहीं टिक पाए.
आइए जानते हैं ऐसे दलबदलू नेताओं के बारे में, जिनके पास शायद अब पछताने के अलावा कोई चारा नहीं है —
1. शत्रुघ्न सिन्हा
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शत्रुघ्न सिन्हा की बीजेपी से नाराजगी उनके बयानों के जरिए बाहर आई. सिन्हा लगातार पार्टी विरोधी बयान देकर चर्चा में बने रहे. चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया. पार्टी ने उन्हें पटना साहिब संसदीय सीट से टिकट दी तो बीजेपी ने उनके सामने रवि शंकर प्रसाद को मैदान में उतारा. जनता को शायद सिन्हा का चुनाव चिन्ह बदलकर लड़ना पसंद नहीं आया और वे यहां से चुनाव हार गए. रविशंकर प्रसाद यह सीट निकालने में कामयाब रहे.
2. अशोक कुमार दोहरे
उत्तरप्रदेश की इटावा लोकसभा सीट से सांसद अशोक कुमार दोहरे पिछला चुनाव बीजेपी की टिकट पर जीते थे. लेकिन पार्टी नेताओं के उनकी नहीं जमी और उन्होंने बीजेपी से खिलाफत की मुहिम छेड़ दी. आखिरकार उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया. लेकिन अब अशोक कुमार दोहरे कांग्रेस के टिकट पर इटावा से चुनाव हार गए. अशोक दोहरे से ज्यादा बीजेपी व सपा उम्मीदवारों ने वोट हासिल कर उन्हें तीसरे नंबर पर पहुंचाया.
3. मानवेंद्र सिंह जसोल
इस फेहरिश्त में एक और बड़े राजनीतिक घराने का नाम भी जुड़ा है. बीजेपी के दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह ने भी बीजेपी से खिलाफत की और पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने चुनाव हार गए. इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय सीट से मैदान में उतारा लेकिन इस बार भी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
4. कीर्ति आजाद
पूर्व क्रिकेटर व कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति आजाद भी इस बार झारखंड की धनबाद संसदीय सीट से चुनाव हार गए. बीजेपी से खफा होकर कांग्रेस में आए आजाद पिछली बार बिहार के दरभंगा से बीजेपी की टिकट पर सांसद जीते थे. कीर्ति आजाद ने बीजेपी के खिलाफ आवाज उठाई थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थामने वाले आजाद को पार्टी ने दरभंगा की बजाय धनबाद से चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे हार गए.
5. श्याम चरण गुप्ता
सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की ओर से यूपी की बांदा संसदीय सीट पर भाग्य आजमाने वाले श्याम चरण गुप्ता भी इस बार जीतने में कामयाब नहीं हो सके. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी को अलविदा कह सपा में शामिल हुए गुप्ता को यहां बीजेपी के आरके सिंह पटेल ने शिकस्त दी. बांदा की जनता को श्याम चरण गुप्ता का दलबदलू अंदाज पसंद नहीं आया जबकि साल 2014 में गुप्ता बीजेपी के टिकट पर इलाहाबाद से जीतकर सांसद बने थे.
6. नाना पटोले
बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस का हाथ चुनने वाले नाना पटोले भी इस बार कांग्रेस के टिकट पर नागपुर से चुनाव हार गए. यहां उनका मुकाबला वरिष्ठ बीजेपी नेता नितिन गडकरी से था, नाना गडकरी के सामने नहीं टिक पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में लातूर सीट पर बीजेपी का कमल खिलाने वाले नाना पटोले पार्टी से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
7. सावित्री बाई फुले
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने पाला बदल कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. बहराइच संसदीय सीट से कांग्रेस ने उन्हें बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया. बीजेपी से बगावत करके कांग्रेस में गईं साबित्री बाई फुले इस बार बीजेपी उम्मीदवार अक्षयबर लाल के सामने नहीं टिक पाई और चुनाव हार गई. बहराइच की जनता को फुले का बीजेपी से बगावत करना नागवार गुजरा और जनता ने अपना फैसला सुनाते हुए उन्हें दरकिनार कर बीजेपी के अक्षयबर लाल के सिर जीत का सेहरा बांध दिया.