आरटीआई कानून संशोधन विधेयक राज्यसभा में पारित होना मुश्किल

आरटीआई कानून संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में इसके पारित होने में दिक्कत है. विपक्षी पार्टियों सहित 14 पार्टियां इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. तृणमूल कांग्रेस ने इसके खिलाफ नोटिस दिया है. नोटिस पर दस्तखत करने वालों में कांग्रेस के 48, तृणमूल कांग्रेस के 13, द्रमुक के 3, सपा के 12, राकांपा के 4, भाकपा के 2, माकपा के 5, आम आदमी पार्टी के 3, बसपा के 4, पीडीपी के 2, तेदेपा के 2, बीजद के 7, आईयूएमएल का एक और राजद के 5 राज्यसभा सांसद शामिल हैं.

बुधवार को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इस विधेयक को प्रवर समिति (सलेक्ट कमेटी) के पास भेजने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि आरटीआई कानून में जो संशोधन लाया जा रहा है, उससे राज्य सरकारों के अधिकारों पर भी असर पड़ रहा है. आजाद की मांग पर सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया. सदन के नेता थावरचंद गहलोत ने कहा कि अभी विधेयक सदन में पेश नहीं हुआ है. इस पर आगे कुछ कहने का फिलहाल कोई औचित्य नहीं है.

गौरतलब है कि आरटीआई कानून संशोधन विधेयक पर बुधवार को ही हंगामा होने लगा था. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार सूचना का अधिकार कानून को कमजोर करना चाहती है. लोकसभा में भी वह समितियों से समीक्षा कराए बगैर महत्वपूर्ण विधेयक पारित करा रही है. राज्यसभा में यह नहीं चलेगा. सरकार को कई विधेयक संसद से पारित कराना है. इसके लिए सत्र की अवधि भी बढ़ाई जा रही है. विपक्ष इनमें से आरटीआई कानून संशोधन, तीन तलाक सहित सात विधेयकों को पारित करने से पहले जांच पड़ताल जरूरी मानता है.

इस मुद्दे पर यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक की थी. बैठक में सपा और तृणमूल कांग्रेस के सदस्य शामिल नहीं हुए. बाद में विपक्षी नेताओं की बैठक गुलाम नबी आजाद के कक्ष में हुई. विपक्ष इन विधेयकों को प्रवर समिति के पास या स्थायी समिति के पास भेजने की मांग करेगा. राजद नेता मनोज झा ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून के तहत जो अधिकार लोगों को मिला था, उससे उनका सशक्तिकरण हुआ था, उन सबको इस बिल के जरिए ध्वस्त किया जा रहा है. हम चाहते हैं कि यह बिल सलेक्ट कमेटी को भेजा जाए. भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा कि आरटीआई कानून को और मजबूत किया जा रहा है, जिससे उसका रचनात्मक और पारदर्शी तरीके से उपयोग किया जा सके और इसका दुरुपयोग भी रोका जा सके.

आरटीआई कानून में संशोधन का विरोध संसद से बाहर भी शुरू हो गया है. बुधवार को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और पूर्व चुनाव आयुक्त आरटीआई कानून में संशोधन के खिलाफ एक ही मंच पर दिखे और सरकार की पहल का विरोध किया. इसके अलावा देश के विभिन्न शहरों में विरोध शुरू हो चुका है.

अगर सूचना का अधिकार कानून संशोधन विधेयक पारित हो गया तो मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के बराबर होंगी. मुख्य सूचना आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के समान वेतन भत्ते का प्रावधान है. कानून में संशोधन के बाद वेतन-भत्ते केंद्र सरकार तय करेगी. मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल भी पांच से घटकर तीन साल रह जाएगा.

Google search engine