यूपी में टिकट मिलने के बाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेता लगातार अपनी-अपनी सीटों पर उम्मीदवारी छोड़ पार्टी की छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. इसका ताजा उदाहरण है कांग्रेस के बड़े नेता राशिद अल्वी, जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अमरोहा सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. ध्यान देने वाली बात यह है कि अल्वी खुद इस सीट पर कई महीनों से सक्रीय रहे. अब उनकी जगह सचिन चौधरी इस सीट से चुनाव लड़ेंगे.
ऐसा ही कुछ यूपी की मुरादाबाद सीट पर भी देखने को मिला था यहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को प्रत्याशी घोषित किया गया था, लेकिन अब वह ये सीट छोड़कर फतेहपुर सीकरी पहुंच गए. कांग्रेस के दिग्गजों के इस तरह अपनी सीट छोड़कर भागने या सीट बदलने की वजह मानी जा रही है बसपा-सपा गठबंधन ‘साथी’. अधिकतर नेता यही मानकर चल रहे थे कि यूपी में बीजेपी की मौजूदा स्थिति देखते हुए कांग्रेस-बसपा-सपा का गठबंधन हो जाएगा, लेकिन बसपा-सपा ने 38-38 सीटों पर गठबंधन करते हुए कांग्रेस को केवल 2 सीटों पर भागीदार बनाया है. ऐसे में गठबंधन प्रत्याशियों की मजबूत दावेदारी को देखते हुए दिग्गज भी घबराने लगे हैं. यही उनके सीट बदलने या छोड़ने की प्रमुख वजह है.
जैसा कि राज बब्बर के साथ हुआ है. मुरादाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी किसी मुस्लिम प्रत्याशी को उतार सकती है. ऐसे में राज बब्बर को यह आभास तो हुआ ही होगा कि उन्हें मुस्लिम वोट नहीं मिल रहे. ऐसे में उन्होंने फतेहपुर सीकरी सीट चुनी जहां तीनों प्रत्याशी हिंदू हैं और मुस्लिम वोट बैंक की कोई भूमिका नहीं है.
ऐसी ही कुछ कहानी है कांग्रेस के दिग्गज नेता जितिन प्रसाद की जो धरहरा सीट पर चुनाव नहीं लड़ना चाहते. वजह है यहां से बहुजन समाज पार्टी ने एक मुस्लिम लेकिन मजबूत प्रत्याशी उतारा है. ऐसे में अपना गढ़ होने के बावजूद जितिन प्रसाद को हार का डर सता रहा है. जितिन प्रसाद पिछला चुनाव यही से हारे थे. चर्चा है कि वह अब लखनऊ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं.