राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री भंवरसिंह भाटी ने बुधवार को राजस्थान के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव की घोषणा कर दी. इसके साथ ही छात्र नेताओं ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी. भाजपा से जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) औऱ कांग्रेस से जुड़े भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) उम्मीदवारों के पैनल तैयार करने में जुट गए हैं. बैठकें शुरू हो गई हैं.

राज्य में छात्रसंघ चुनाव 27 अगस्त को होंगे. इस बार छात्रसंघ चुनाव में महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है. इसके तहत 27 अगस्त को मतदान होगा और मतगणना 28 अगस्त को सुबह 11 बजे से होगी. इससे पहले जिस दिन चुनाव होते थे, उसी दिन शाम को मतगणना शुरू हो जाती थी और रात तक नतीजे घोषित हो जाते थे. इस बार नतीजों के लिए उम्मीदवारों को 28 अगस्त की दोपहर बाद तक इंतजार करना पड़ेगा. प्रदेश में शांतिपूर्वक और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए यह बदलाव किया गया है.

छात्रसंघ चुनाव लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुसार कराए जाएंगे. चुनाव प्रक्रिया के दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाएगा. पिछले साल छात्रसंघ चुनाव दो चरणों में कराए गए थे. इस बार प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में एकसाथ एक ही दिन चुनाव होंगे. छात्रसंघ चुनाव की घोषणा के तहत 19 अगस्त को मतदाता सूचियों का प्रकाशन होगा. इसके बाद दोपहर तीन से पांच बजे तक सूचियों पर आपत्ति दर्ज की जा सकेगी. 20 अगस्त को सुबह 10 से दोपहर एक बजे तक मतदाताओं सूचियों का अंतिम प्रकाशन किया जाएगा. इसी दिन दोपहर दो से पांच बजे पजे तक नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे.

22 अगस्त को सुबह 10 से दोपहर तीन बजे तक उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच होगी और उन पर आपत्तियां स्वीकार की जाएंगी. दोपहर तीन से शाम पांच बजे तक नामांकन पत्रों पर आपत्तियों की जांच होगी. 23 अगस्त को सुबह 10 बजे वैध नामांकन सूची का प्रकाशन होने के बाद सुबह 11 से दोपहर दो बजे तक नाम वापस लिए जा सकेंगे. शाम पांच बजे तक अंतिम नामांकन सूची का प्रकाशन हो जाएगा.

27 अगस्त को सुबह आठ से दोपहर एक बजे मतदान होगा. सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के मताधिकार प्राप्त विद्यार्थी मतदान करेंगे. इसके बाद सभी मतपेटियां सुरक्षित रख दी जाएंगी. 28 अगस्त को सुबह 11 बजे से मतगणना होगी और शाम तक नतीजे घोषित हो जाएंगे.

छात्रसंघ चुनाव की घोषणा होते ही विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में हलचल बढ़ गई है. देश में चल रहे मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर एबीवीपी के छात्रनेता उत्साह से भरे हुए हैं, क्योंकि वे भाजपा से जुड़े हुए हैं, जबकि कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन एनएसयूआई में वैसा उत्साह मुश्किल है. राजस्थान की राजनीति में छात्रसंघ चुनाव हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं. इसे राज्य की और राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश का पहला पायदान माना जाता है.

राजस्थान में विश्वविद्यालय में छात्र संघ के माध्यम से सक्रिय कई नेता आज राज्य की और राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल कर चुके हैं. इनमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम पहले स्थान पर है. उन्होंने छात्र राजनीति के जरिए ही राजनीति की मुख्य धारा में प्रवेश किया था. गहलोत के बाद कालीचरण सराफ, राजेन्द्र राठौड़, रघु शर्मा, हनुमान बेनीवाल, प्रताप सिंह खाचरियावास जैसे कई नेता शामिल हैं, जो आज इस या उस पार्टी से जुड़कर राजनीति में अपनी सफल पारियां खेल रहे हैं.

छात्रसंघ चुनाव अब पहले जैसे सस्ते नहीं रहे. पिछले दो दशकों से इन चुनावों में पैसा भी बहुत बहने लगा है. इससे पहले तक दमदार छात्रनेता संगठन और बाहुबल के दम पर चुनाव जीत लेते थे. पीवी नरसिंहराव की सरकार बनने के बाद उदारीकरण शुरू होने के साथ ही बाहुबल पीछे रह गया और उसकी जगह धनबल ने लेना शुरू कर दिया. पिछले कुछ छात्रसंघ चुनावों का रिकॉर्ड देखा जाए तो अब बाहुबल धनबल से बहुत पीछे छूट गया है.

छात्रसंघ चुनाव जीतने के लिए दबंगई का सहारा लेने का चलन बहुत पहले से है. पूरा जोश और जवानी का माहौल होता है. इससे छात्रों की क्षमता और संगठन क्षमता जाहिर होती है. छात्रनेता भाषण कला भी सीखते हैं. कुल मिलाकर आजकल छात्रसंघ चुनावों के माध्यम से कई छात्रों को राजनीति में प्रवेश करने का अच्छा मौका मिल जाता है. इसलिए योग्य छात्र नेताओं को आगे बढ़ाने के लिए कई ताकतें लगती हैं. उन पर पैसे खर्च किए जाते हैं.

चुनाव के समय सभी होस्टलों में विद्यार्थियों की भीड़ और चहल पहल बढ़ जाती है. मतदान के दो हफ्ते पहले से मतदाताओं की घेरेबंदी के प्रयास शुरू हो जाते हैं. अपने समर्थकों की सक्रियता और विरोधियों के समर्थकों को दबाकर रखने के पूरे प्रयास होते हैं. राजस्थान में तो जातिवाद भी चरम पर है, जो छात्रसंघ चुनावों में साफ तौर पर दिखाई देता है. जाट, मीणा, गुर्जर बहुल छात्रों के अलग-अलग गुट बन जाते हैं. राजपूत, ब्राह्मण अपनी अलग-अलग रणनीति बनाते हैं. अन्य जातियों के विद्यार्थी हतप्रभ रहते हैं. जिन जातियों की आबादी बहुत कम होती है, उससे जुड़े विद्यार्थियों में जबरन की हीन भावना पैदा होती है.

इस तरह राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव जातिगत आधार पर दबंगई दिखाने का मौका भी बन जाता है. इससे शैक्षणिक वातावरण कुछ भी हो, कुछ लोगों की राजनीति अवश्य चमकती है. इस बार छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी के पदाधिकारी जमकर प्रचार करेंगे. कश्मीर से धारा 370 जो हट गई है. वे मतदाता विद्यार्थियों से कहेंगे कि देश का नवनिर्माण भाजपा ही कर सकती है, इसलिए यहां भी हमको जिताओ. इसमें जातिवाद का भी पुट लगेगा तो उनके जीतने की संभावना बनेगी.

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, छात्र राजनीति करते हुए आगे बढ़े अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं, रघु शर्मा मंत्री हें, लेकिन कांग्रेस की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर डांवाडोल है. इससे यहां के छात्रसंघ चुनावों में उसके आनुषांगिक छात्र संगठन एनएसयूआई का प्रदर्शन कितना प्रभावित होगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल है. मोदी के पक्ष में भाजपा को सबसे ज्यादा वोट युवा वर्ग से ही मिले हैं. फिर भी एनएसयूआई का इन चुनावों में पूरा जोर रहेगा. वामपंथियों की राजस्थान की छात्र राजनीति में ज्यादा भूमिका नहीं है.

बहरहाल अगस्त का पूरा महीना राजस्थान में छात्र राजनीति के सुपुर्द रहेगा. एबीवीपी का जोर रहेगा, उसकी टक्कर एनएसयूआई से होगी और कई निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव लड़ेंगे. होस्टलों में लंगर शुरू हो जाएंगे. छात्रों के लिए छककर साग पूड़ी खाने का इंतजाम होगा. कई जगह पीने का इंतजाम भी होगा. चुनाव जीतने के हर संभव तरीके अपनाए जाएंगे. छात्राओं के महाविद्यालयों और होस्टलों में भी सक्रियता और चहल-पहल रहेगी. करोड़ों रुपए खर्च होंगे. कहां से आएंगे, कौन खर्च करेगा, कैसे करेगा, यह सब जांच-पड़ताल करना आयकर विभाग का काम है, जो इन दिनों कई धनवानों को नोटिस देने और पकड़ने का काम सक्रियता से कर रहा है.

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