केंद्र में एक बार फिर सत्ता बनाने में जुटे नरेंद्र मोदी के लिए देशभर में भले ही अनुकूल परिस्थितियां मानी जा रहीं हों, लेकिन पश्चिमी राजस्थान की अधिकांश सीटों पर पेंच फंसता नजर आ रहा है. इसका कारण न तो मोदी है और न ही उनकी पार्टी की नीतियां. कारण है तो सिर्फ सांसद और उनकी कार्यशैली. इस बीच, ये कहना भी गलत नहीं होगा कि प्रत्याशी सांसद ने जिन नेताओं को पहले पीछे करने की कोशिश की थी, अब वो ही सब मिलकर सांसद को हराने में जुटे हैं.
चूरू लोकसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी राहुल कस्वां अपने पारिवारिक राजनीतिक इतिहास के दम पर एक बार फिर टिकट ले आए, लेकिन उनकी जीत का सबसे बड़ा आधार कोई होगा तो वो सिर्फ और सिर्फ ‘नरेंद्र मोदी’ ही हैं. पिछले चार लोकसभा चुनावों में यहां से उनके पिता राम सिंह कस्वां ने ही जीत दर्ज की है. आज भी कस्वां परिवार यहां अपने दम पर वोट लेता है मगर बदले दौर में जब भाजपा स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में बंट चुकी है तब राहुल को नरेंद्र मोदी के प्रभाव का ही सहारा नजर आता दिख रहा है.
चूरू में भाजपा की अंर्तकलह जहां कस्वां के लिए परेशानी का सबब है, वहीं नरेंद्र मोदी के नाम पर मिलने वाले वोट पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ रहा. इसी बीच बीजेपी के आला नेता राजेंद्र राठौड़ और राजकुमार रिणवा की निष्क्रियता भी साफ करती है कि राहुल कस्वां को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी. वहीं, यह राहत देने वाला तथ्य है कि ‘मोदी-मोदी’ की गूंज इतनी तेज है कि भाजपा की अंर्तकलह की छटपटाहट सुनाई नहीं देती.
सत्ता में नहीं होने से राजेंद्र राठौड़ के पास क्षेत्र में प्रचार के लिए गांव-गांव घूमने का पूरा वक्त है लेकिन वो कोई खास उपस्थिति दर्ज नहीं करा पा रहे हैं. माना जाता है कि चूरू में राठौड़ से बड़ा भाजपा नेता नहीं बन सके, इसका पूरा प्रयास हो रहा है. राहुल कस्वां ने पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अभिनेष महर्षि को करीब तीन लाख वोटों से हराया था.
तब अभिनेष महर्षि को करीब तीन लाख वोट मिले और राहुल को इससे दो गुना 5 लाख 95 हजार वोट मिले. पिछले चुनाव में महर्षि वसुंधरा राजे की कृपा से भाजपा में शामिल हुए और विधायक भी बने. देखना यह है कि जिनसे महर्षि चुनाव हारे थे, उन्हें विजयश्री दिलाने के लिए कितना प्रयास करते हैं. चूरू में दो विधानसभा सीट हनुमानगढ़ की आती है जिसमें नोहर और भादरा दोनों सीटों पर विधानसभा चुनाव में भाजपा हार चुकी है.
भादरा में माकपा के बलवान पूनिया ने जीत दर्ज की, जो इस बार लोकसभा प्रत्याशी भी हैं. बलवान ने 72 हजार वोट लिए थे. वहीं नोहर में कांग्रेस के अमित चाचाण तो 93 हजार मत लेकर जीते थे. यहां भाजपा को तब 80 हजार वोट मिले थे. यहां एक बार फिर बढ़त लेना भाजपा के लिए जरूरी है.
इसी तरह सार्दुलपुर सीट पर कांग्रेस की कृष्णा पूनिया चुनाव जीती थीं, जो इन दिनों अपने क्षेत्र के बजाय जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को टक्कर दे रही है. ऐसे में मैदान खाली है लेकिन वोट बदलना यहां भी मुश्किल है. दरअसल, इस सीट पर भाजपा पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रही थी. बसपा के मनोज न्यांगली दूसरे नंबर पर थे.
भले ही भाजपा के राहुल कस्वां को मोदी के नाम पर वोट मांगने पड़ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए भी यहां राह आसान नहीं है. कांग्रेस के प्रत्याशी रफीक मंडेलिया पिछले चुनाव में तीन लाख 64 हजार वोट ले चुके हैं. तब राहुल के पिता राम सिंह कस्वां महज दस हजार वोटों से जीते थे. इस बार भाजपा की अंर्तकलह उन्हें लाभ दे सकती है, लेकिन मोदी लहर उनके लिए अभी भी खतरा है. जातीय आधार पर टिकटों का बंटवारा भी मंडेलिया के पक्ष में नहीं जाता.
बता दें कि साल 1999 के बाद से इस सीट पर कस्वां परिवार का ही कब्जा है. कांग्रेस को मुस्लिम वोट बड़ी संख्या में मिलने की उम्मीद है, वहीं दलित वोटों में बिखराव साफ नजर आता है. विधानसभा चुनाव में जो समीकरण कांग्रेस के पक्ष में थे, वहीं समीकरण लोकसभा में नहीं बन पा रहे हैं. खैर, नतीजे जो भी हों फिलहाल बन रहे समीकरण बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के लिए परेशानी खड़ी करने वाले हैं.