राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद तो छोड़ दिया लेकिन हस्तक्षेप पूरा रखा, जो बना असंतोष का कारण- दिग्विजय सिंह

वफादार और बागियों की दो श्रेणियों में बंट चुकी है नेशनल कांग्रेस, सीनियर और जूनियर नेताओं के बीच बढ़ी वर्चस्व की लड़ाई, बिना जनाधार वाले नेता बैठे हैं सीडब्ल्यूसी में, गांधी परिवार के खिलाफ बज उठा बिगुल

सोनिया-राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह
सोनिया-राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह

Politalks.News/Rajasthan. अगर कहें कि कांग्रेस का अब तो भगवान ही मालिक है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए. एक ओर जहां भाजपा उसके लगभग पूरे साम्राज्य पर कब्जा करके बैठ गई है, वहीं दूसरी ओर उसके घर में ही उखाड-पछाड़ का दौर चल रहा है. कांग्रेस जिस खराब दौर से गुजर रही है, वर्तमान में बन रही कुछ सियासी तस्वीरों से इस बात को समझने की कोशिश करते हैं.

पहली तस्वीर – सीनियर जूनियर के बीच जंग
मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच की सियासी जंग में कांग्रेस को अपनी सरकार खोनी पड गई. हाल ही में राजस्थान में सचिन पायलट की मुख्यमंत्री गहलोत से नाराजगी के चलते सियासी संकट खडा हो गया. जो कि अभी भी समाप्त होता नजर नहीं आ रहा और पार्टी द्वारा सीएम गहलोत और पायलट के बीच पड़ी दूरी को कम करने के उपायों पर काम चल रहा है. उधर पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदसिंह युवा सांसद बाजवा के निशाने पर हैं. इसी तरह कई और प्रदेशों के कांग्रेस नेताओं में सीनियर और जूनियर के बीच की वर्चस्व को लेकर संघर्ष की खबरें आती रहती हैं. इन सब संघर्षों का कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड रहा है.

दूसरी तस्वीर – गांधी परिवार के खिलाफ बजा बिगुल
देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस नेताओं की आपस में चल रही वर्चस्व की लड़ाई के बीच अब कांग्रेस के अंदर का ऐसा सच सामने आ गया है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. कांग्रेस के जाने-माने दिग्गज नेताओं ने गांधी परिवार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया. पहले भाजपा देश के हालातों के लिए गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराती थी, अब कांग्रेस के हालातों के लिए उनके ही नेता गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराने में लग गए हैं.

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कुल मिलाकर गांधी परिवार के खिलाफ बिगुल बज चुका है. अब इसे कोई हल्के शब्दों में या फिर घूमा फिराकर कहे तो कह सकता है कि कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष को लेकर चुनाव कराने का अनुरोध करते हुए सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी गई और अब ये नेता पूरी तरह से मुखर होकर अगलव 6 महीने में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होने या न होने का इंतजार कर रहे हैं.

तीसरी तस्वीर – वफादार और बागियों में बंटी कांग्रेस
यूं तो कांग्रेस में जितने भी नेता हैं, वो सब गांधी परिवार के वफादार ही हैं. लेकिन वफादारों की यह फौैज भी अब दो भागों में बंट चुकी है. कुछ वफादारों ने चुनाव से अध्यक्ष चुनने की मांग को लेकर सोनिया को लेटर लिखा तो दूसरे वफादारों ने उन्हें बागी घोषित कर दिया. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद के साथ-साथ गुलाम नबी आजाद को भी पार्टी से निकालने की मांग हुई. जितिन प्रसाद के खिलाफ प्रियंका गांधी के सहयोगी धीरज गुर्जर ने नारेबाजी कराई तो उत्तर प्रदेश विधान परिषद के पूर्व सदस्य नसीब पठान ने आजाद को पार्टी से ही निकालने की मांग की.

इस तरह कांग्रेस को अब सीधे-सीधे गांधी परिवार के वफादार और बागियों के दो खेमों से समझा जा सकता है. यानि कांग्रेस में दो फाड हो गई है. एक वो नेता हैं, जो कह रहे हैं कि सोनिया गांधी अध्यक्ष पद संभाले, अगर यह संभव नहीं है तो राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बनें. वहीं दूसरे वो नेता जो कह रहे हैं कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद सहित सभी पदों के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए.

दिग्गीराजा ने चिट्ठी को गलत लेकिन राहुल गांधी को असंतोष का कारण बता दिया

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने लेटर बम के बाद एक इंटरव्यू में कहा कि कांग्रेस के नेताओं को इस तरह से चिट्ठी नहीं लिखनी चाहिए थी, बल्कि उन्हें सोनिया गांधी से मिलकर अपनी बात रखनी चाहिए थी. खास बात यह है कि पार्टी में असंतोष से जुडे एक सवाल पर दिग्गी राजा ने कहा कि असंतोष तो उसी दिन शुरू हो चुका था, जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोडा था और अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी ने जिम्मेदारी संभाली थी. दिग्गी राजा ने कहा कि यह असंतोष और तब बढने लगा जब एक और तो राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड चुके थे, वहीं पर्दे के पीछे पार्टी पर नियत्रंण बनाए हुए थे.

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दिग्विजय ने आगे कहा कि पार्टी में विभिन्न पदों पर नियुक्ति या चुनाव में टिकट देने संबंधी कांग्रेस के महत्वपूर्ण निर्णय राहुल गांधी ही कर रहे थे, जो कि आगे चलकर असंतोष का बड़ा कारण बना.

बिना जनाधार वाले नेता सीडब्लूसी में
कांग्रेस नेताओं में गांधी परिवार से एक बात की ओर नाराजगी है. इन नेताओं का कहना है कि गांधी परिवार के इर्दगिर्द ऐसे नेता जमा हो चुके हैं जिनका कोई जनाधार नहीं है, यानि की वो सब चापलूसी करके नेता बने हुए घूम रहे हैं. इससे भी बढकर ये चापलूस नेता, जनता के बीच रहकर कांग्रेस के लिए संधर्ष कर रहे नेताओं के बारे में निर्णय कर रहे हैं.
कांग्रेस की सबसे अहम बाॅडी कांग्रेस वर्किंग कमेटी है. इस कमेटी में बिना जनाधार वाले नेताओ की भरमार है. चूंकि इन नेताओं को फील्ड पाॅलिटिक्स का कोई अनुभव नहीं है, इसलिए फैसले सही नहीं हो पाते हैं और उनका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड रहा है.

अब कांग्रेस के लगभग सभी बडे नेता गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस और अपना भविष्य असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इसलिए ही कांग्रेस के अंदर ही अंदर गांधी परिवार के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. यह चिट्ठी इस अभियान की एक झलक मात्र है. वैसे अभी कांग्रेस के अंदर बहुत कुछ होना बाकी है. जिस दिन कांग्रेस का अगला अध्यक्ष सामने आएगा, हो सकता है उस रोज या उससे पहले इसी कांग्रेस से निकलने वाली एक नई कांग्रेस सामने आ जाए.

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