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कांग्रेस ने अपना सस्पेंस खत्म करते हुए पार्टी की दो परंपरागत हाईप्रोफाइल सीट उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. सभी संभावनाओं को खारिज करते हुए राहुल गांधी ने अमेठी की जगह रायबरेली सीट पर नामांकन भर दिया. अब तक प्रियंका गांधी को रायबरेली से दावेदार माना जा रहा था. राहुल की रायबरेली से उम्मीदवारी के बाद पूर्व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी का चुनावी मैदान में न उतरना तय है. राहुल गांधी की अमेठी से गांधी परिवार के करीबी​ किशोर लाल शर्मा ने नामांकन भरा है. 2019 में अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को करीब 55 हजार वोटों से हराया था. जबकि रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी करीब 1.7 लाख वोटों से जीती थीं.

 

राहुल गांधी अमेठी लोकसभा से लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं. स्मृति से हार के बाद राहुल गांधी ने अमेठी से दूरी बना ली थी. उन्होंने अब सोनिया गांधी की सुरक्षित सीट रायबरेली से लोकसभा जाने का निर्णय लिया है. हालांकि राहुल गांधी ने दिल की जगह दिमाग से काम लेते हुए अमेठी की जगह रायबरेली सीट चुनी. अमेठी में इस समय स्मृति ईरानी काफी मजबूत दिख रही हैं. केंद्र में मंत्री होने की वजह से स्मृति ईरानी का राजनीतिक कद बढ़ा है. राज्य और केंद्र में बीजेपी की ही सरकार होने से अमेठी का विकास करने में स्मृति को मदद हुई है. स्मृति ने अमेठी की जनता से भावनात्मक रिश्ता बनाने के लिए वे गौरीगंज के मेदन गांव से मतदाता बन गयी हैं ताकि जनता को ये संदेश दिया जा सके कि वो अमेठी की जनता के बीच रहकर उनके लिए काम करेंगी.

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वहीं राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं. राहुल का अपने ही गढ़ में स्मृति से एक बार फिर से चुनाव हारना, उनकी छवि पर बड़ा झटका साबित होता. अमेठी सीट पर 2019 के चुनाव की तरह ही माहौल बना हुआ है. ऐसे में राहुल के लिए स्मृति को हराना मुश्किल होता. उस हिसाब से राहुल गांधी के रायबरेली से लड़ने का फैसला सही है. राहुल के रायबरेली से जीतने की संभावना ज्यादा है. वैसे भी राहुल गांधी ने वायनाड से भी नामांकन भरा है. ऐसे में यह कांग्रेस और राहुल दोनों के लिए कम जोखिम भरा होगा.

अमेठी और रायबरेली में से किसी एक ट्रेडिशनल सीट पर राहुल गांधी का लड़ना इसलिए जरूरी है क्योंकि अभी वे कांग्रेस का चेहरा हैं. वे लड़ाई से भागते हुए नजर नहीं आने चाहिए. ऐसे में उन्होंने रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला सही है. संविधान के मुताबिक कोई भी उम्मीदवार केवल एक ही संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. अगर राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव जीतते हैं तो वे वायनाड की सीट छोड़ सकते हैं. ऐसे में प्रियंका गांधी को वायनाड से उप-चुनाव लड़ना चाहिए. इस तरह उत्तर और दक्षिण में गांधी परिवार का अस्तित्व बना रहेगा.

इससे पहले 9 बार से अमेठी संसदीय सीट पर कांग्रेस का आधिपत्य रहा है. स्मृति ईरानी ने 2019 में कांग्रेस का विजयी रथ रोका था. अमेठी सीट छोड़ने की एक वजह ये भी है कि राहुल गांधी अगर अमेठी से सीट हार जाते तो उनकी राजनीतिक रूप से बड़ी किरकिरी होती. वहीं कांग्रेस के आत्मविश्वास को भी धक्का लगता. इससे आने वाले समय में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खत्म होने की कगार पर आ जाती. इससे उपर उठते हुए राहुल गांधी ने भावनात्मकता को छोड़कर राजनीतिक विवेक से चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

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