Thursday, January 16, 2025
spot_img
Homeलोकसभा चुनावग्राउंड रिपोर्ट: मोदी के भरोसे राहुल, मंडेलिया के सामने हिंदू वोट साधने...

ग्राउंड रिपोर्ट: मोदी के भरोसे राहुल, मंडेलिया के सामने हिंदू वोट साधने की चुनौती

Google search engineGoogle search engine

बीकानेर संभाग की चूरू संसदीय सीट पर कांग्रेस पिछले दो दशक से जीत को तरस रही है. इसकी वजह है कि अब तक रामसिंह और राहुल कस्वां की बाप-बेटे की जोड़ी कांग्रेस के लिए भारी साबित हुई है. इसके चलते थार मरुस्थल का गेटवे कहे जाने वाले चूरू में कांग्रेस पिछले चार चुनावों से लगातार हार का मुंह देख रही है. यही वजह रही होगी कि वर्तमान चुनावी परिणाम से पहली ही शायद कांग्रेस ने यहां हार का एहसास कर लिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर कांग्रेस जीतने की चाह रखती तो मोदी-हिंदुत्व-राष्ट्रवाद के शोर के बीच एक मुस्लिम प्रत्याशी को उतारने का रिस्क कभी न लेती. ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि अपने परम्परागत मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए कांग्रेस ने ऐसा किया हो.

कांग्रेस ने 2009 में लोकसभा चुनाव हार चुके रफीक मंडेलिया को चूरू से टिकट दिया है. मंडेलिया परिवार का यह पांचवा चुनाव है. दूसरी तरफ, बीजेपी की ओर से बाप-बेटे की जोड़ी अब तक पांच बार संसदीय सफर तय कर चुकी है. यहां पर भाजपा को धुर्वीकरण सियासत के हथखंडे अपनाने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि विपक्ष ने यह फैक्टर खुद ही अपने हाथों से थाली में परोस दिया है. जाट, मुस्लिम और राजपूत बाहुल्य वाली चूरू सीट पर कांग्रेस के लिए अंतिम बार 1998 में नरेंद्र बुडानिया ने दिल्ली तक का सफर तय किया था. उसके बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता बलराम जाखड़ भी पार्टी को कभी विजयश्री नहीं दिला सके.

बीते चार चुनावों में कांग्रेस ने मुस्लिम और जाट उम्मीदवार के सभी दिव्यास्त्र चलाकर देख लिए लेकिन दो दशकों का अपना जीत का सूखा भरने में नाकामयाब रहे. हालांकि सूत्रों के अनुसार, प्रदेश के मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल और विधायक भवंरलाल शर्मा ने इस बार ब्राह्मण प्रत्याशी को मौका दिए जाने का हवाला दिया था लेकिन आलाकमान के सामने उनकी एक न चली. इधर, रफीक मंडेलिया के लिए पार्टी की गुटबाजी सबसे बड़ी समस्या है. कांग्रेस के अन्य नेताओं को पता है कि अगर इस बार मंडेलिया जीत गए तो भविष्य में इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को ही पार्टी मौका देगी. लिहाजा कांग्रेस नेता दिखावे के तौर पर तो मंडेलिया का प्रचार कर रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर अपनी अलग रोटियां सेंक रहे हैं.

उधर बीजेपी में राहुल कस्वां और राजेंद्र राठौड़ की अदावत से सब वाफिक है. राठौड़ की नाराजगी के बाद भी पिछली बार कस्वां यहां से जीत दर्ज कर चुके हैं. ऐसे में बीजेपी को इस सीट पर तनाव तो बिल्कुल भी नहीं है. पिछले रिकॉर्ड पर एक नजर डालें तो 1977 में बनी चूरू सीट पर अब तक 12 चुनाव हो चुके हैं जिसमें 11 बार जाट और एक बार गैर जाट वर्ग का नेता सांसद बना. कद्दावर किसान नेता दौलतराम सारण इस सीट से पहले सांसद बनें. कांग्रेस ने पहले चुनाव में भी मुस्लिम उम्मीदवार के तौर पर मोहम्मद उस्मान आरिफ को उतारा था. 1980 में सारण फिर एमपी चुने गए. उसके बाद सारण 1984 में कांग्रेस के मोहर सिंह राठौड़ से हार गए. यह पहला मौका था जब कोई गैर जाट चुनाव इस सीट से चुनाव जीत पाया. मोहर सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यहां से कांग्रेस के नरेंद्र बुडानिया ने जीत दर्ज की थी.

लोकसभा सीट पर करीब 20 लाख मतदाता है जिनमें 10.49 लाख पुरुष और 9.52 लाख महिला मतदाता है। पिछले चुनावों में राहुल कस्वां ने बसपा के अभिनेष महर्षि को 2 लाख 94 हजार वोटों से हराया था। वर्तमान लोकसभा चुनावों में देखा जाए तो कांग्रेस को मुस्लिम, राजपूत और दलित वोट बैंक से जीत की उम्मीद है, वहीं बीजेपी जाट वोट बैंक के जरिए लगातार पांचवी बार जीत की लहर में बहने की उम्मीद कर रही है.

Google search engineGoogle search engine
Google search engineGoogle search engine
RELATED ARTICLES

Leave a Reply

विज्ञापन

spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img