सियासी चर्चा- एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो कांग्रेस के सामने खड़ा हो सकता है अस्तित्व का संकट

एग्जिट पोल ने बढ़ाई कांग्रेसी रणनीतिकारों की धड़कनें, अगर सही साबित होते हैं ये आंकड़े तो आएगा अभूतपूर्व संकट, ताक में बैठे हैं पार्टी के पहले से नाराज कुछ नेता! नेचुरल सहयोगी पार्टियां भी कांग्रेस से काटेंगे कन्नी, गिनी चुनी कांग्रेसी सरकारों पर मंडराएगा संकट, दूसरी तरफ कांग्रेस को पंजाब, उत्तराखंड और गोवा से आस, भेजे में चुने हुए संकटमोचक

एग्जिट पोल ने बढ़ाई कांग्रेसी रणनीतिकारों की धड़कनें
एग्जिट पोल ने बढ़ाई कांग्रेसी रणनीतिकारों की धड़कनें

Politalks.News/CongressParty. पांच राज्यों के राजनीतिक भविष्य (5 state assembly elections) की तस्वीर कल साफ हो जाएगी. लेकिन इससे पहले आए एक्जिट पोल्स के नतीजों ने कांग्रेस (Congress) के रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि वैसे तो आमतौर पर एक्जिट पोल सही साबित नहीं होते हैं, इस बात को पार्टियां भी जानती हैं. फिर भी पांच राज्यों में मतदान के बाद इनके अनुमानों से पार्टियां असहज हो गई हैं. जिसमें सबसे ज्यादा परेशान कांग्रेस पार्टी है क्योंकि अगर एक्जिट पोल (Exit Polls) के अनुमान सही साबित हुए तो कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट (existential crisis) खड़ा होना तय माना जा रहा है. चर्चा है कि बाकी पार्टियां जहां सरकार बनाने या नहीं बना पाने का गुणा-भाग लगा रही है वहीं कांग्रेस के आला नेता पार्टी बचाने की चिंता में लगे हैं. कांग्रेस दिग्गजों को लग रहा है कि अगर पांचों राज्यों में कांग्रेस हारती है तो फिर पार्टी टूट जाएगी और साथ ही भाजपा के खिलाफ साझा मोर्चे के नैरेटिव से भी बाहर हो जाएगी.

सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के नाराज नेताओं का समूह, जिसे जी-23 के नाम से जाना जाता है, माना जा रहा था कि वह एक तरह से बिखर गया था. लेकिन उसके नेता सही समय का इंतजार कर रहे हैं. ये नेता इसी ताक में हैं कब कांग्रेस को अधिकतम नुकसान पहुंचा सकें. अगर पांच राज्यों में कांग्रेस हारती है, खास कर पंजाब में सरकार नहीं बचती है और उत्तराखंड में वह सरकार नहीं बना पाती है तो जी-23 के नेता हमलावर हो जाएंगे. ये सभी गांधी परिवार का नेतृत्व खत्म करने का निर्णायक लड़ाई शुरू करेंगे. इसमें उनको कुछ बाहरी ताकतों का भी समर्थन मिलेगा. इसके बावजूद अगर इसमें कामयाबी नहीं मिलती है तो पार्टी में भारी-भरकम टूट होगी और असली कांग्रेस की राजनीतिक व कानूनी लड़ाई भी छिड़ेगी.

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दूसरा संकट ये कि एग्जिट पोल अगर सही साबित होते हैं तो देश की कई ऐसी क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जो कांग्रेस को भाजपा विरोधी मोर्चे के लिए अनिवार्य मान रही हैं. उनको लग रहा है कि कांग्रेस के बिना कोई मोर्चा नहीं बन सकता है. ऐसी पार्टियां और नेता भी फिर चुप होंगे या वे भी कांग्रेस के बिना मोर्चा बनाने के अभियान का हिस्सा बनेंगे. इनमें ममता बनर्जी, शरद पवार जैसे नेता अपना दांव चलेंगे और कांग्रेस के भीतर गांधी परिवार का विरोध करने वालों को समर्थन भी देंगे.

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तीसरा संकट कांग्रेस के समर्थन वाली सरकारों और इक्का दुक्का राज्यों में जहां पार्टी की सरकार है उनके ऊपर आएगा. भाजपा की नजर काफी समय से झारखंड और महाराष्ट्र में सरकार बनाने पर है. उसने कई बार प्रयास किया लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अगर कांग्रेस पांचों राज्यों में हारती है और भाजपा तीन या चार राज्य में सरकार बनाती है तो कांग्रेस के लिए इन राज्यों में पार्टी को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा. पहले से पाला बदलने को तैयार बैठे कांग्रेस विधायक अपना रास्ता लेंगे. कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां भी उसे लायबिलिटी मानने लगेंगी. तभी एक्जिट पोल के बाद कांग्रेस में सबसे ज्यादा चिंता है और चिंतन भी है. कांग्रेस के रणनीतिकारों को इतनी उम्मीद है कि एक्जिट पोल सही नहीं होते हैं. तभी कांग्रेस नेता उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में अपनी सरकार बनाने की उम्मीद कर रहे हैं और उसके लिए अभी से कमर भी कस ली है. पार्टी ने अपने खास सिपहसालारों को पार्टी को टूट से बचाने के लिए राज्यों में भेजा है. पार्टी ने पंजाब में अजय माकन, उत्तराखंड में भूपेश बघेल और गोवा में चिदंबरम और डीके शिवकुमार को भेजा गया है. अब चुनाव के नतीजों पर सबकी नजरें हैं.

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