केंद्र में भाजपा का बहुमत बनने के बाद अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल पार्टियों की हैसियत नाम मात्र की रह गई है. भाजपा को सरकार में लाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से पहली बार 1998 में भाजपा के साथ अन्य राजनीतिक पार्टियों को जोड़ने की शुरूआत हुई थी. इस तरह NDA (National Democratic Alliance) ने आकार लिया. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी एनडीए के प्रधानमंत्री थे. सरकार पर सहयोगी पार्टियों का भी दखल था.
2004 में चुनाव बाद कांग्रेस ने भी बहुमत से काफी दूर रह जाने पर अन्य पार्टियों को जोड़कर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) बनाया और केंद्र में UPA (United Progressive Alliance) सरकार बनी. सोनिया गांधी और अन्य सहयोगी पार्टियों की सहमति से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. इस सरकार को अगले लोकसभा चुनाव में भी जनता का समर्थन मिला. मनमोहन सिंह की सरकार दस साल चली. इस सरकार के आखरी महीनों में राहुल गांधी ने कुछ ऐसे रद्दी काम किए, जिनसे मनमोहन सिंह अपमानित हुए. उन पर सोनिया की कठपुतली होने का आरोप लगा.
2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के तूफानी चुनाव प्रचार और भाजपा की आक्रामक रणनीति ने जनता को कांग्रेस का विकल्प दे दिया. नरेन्द्र मोदी ने सरकार संभाली. उस समय भाजपा के पास लोकसभा में बहुमत से कुछ सीटें कम थीं. फिर भी मोदी ने सरकार की कार्यप्रणाली बदल दी. एनडीए से जुड़ी अन्य पार्टियों का असर भी सरकार में बहुत कम हो गया. अब 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को स्पष्ट और पूर्ण बहुमत मिला हुआ है और एनडीए में शामिल अन्य सहयोगी दलों की उपस्थिति नाममात्र की रह गई है. वे केंद्र में एकदम अलग-थलग पड़ गए हैं.
NDA की सहयोगी शिवसेना महाराष्ट्र में मजबूत है. भाजपा-शिवसेना का मजबूत गठबंधन है. वहां पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिवसेना से ज्यादा सीटें मिली थीं. भाजपा ने नागपुर के चमकदार नेता देवेन्द्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया. भाजपा पहले नंबर पर शिवसेना दूसरे नंबर पर आ गई. इससे पहले शिवसेना का स्थान भाजपा से ऊपर हुआ करता था. नब्बे के दशक में जब गठबंधन सरकार बनी थी, तब शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे और गोपीनीथ मुंडे उप मुख्यमंत्री थे.
अब महाराष्ट्र (Maharastra) में फिर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. देवेन्द्र फड़नवीस की सरकार जनादेश हासिल करने के लिए मैदान में उतर चुकी है. कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद हो रहे प्रचार और मोदी की लोकप्रियता के मद्देनजर इस चुनाव में भाजपा के लिए शिवसेना की जरूरत पहले जैसी नहीं रही. शिवसेना ज्यादा सीटें मांग रही है और भाजपा अपनी सीटें ज्यादा रखने के लिए अड़ी हुई है. दोनों में खींचतान चल रही है और उद्धव ठाकरे भाजपा के लिए असुविधाजनक बयान देने लगे हैं. इससे लगता है कि दोनों पार्टियों गठबंधन लंबा नहीं चल पाएगा. हो सकता है आगे चलकर शिवसेना मुंबई और मराठवाड़ा तक सिमटकर रह जाए. इसके बाद उसका एनडीए में रहने या नहीं रहने का कोई मतलब नहीं रहेगा.
इसी तरह बिहार में खींचतान बनी हुई है. वहां एनडीए से जुड़ी पार्टी JDU के नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) मुख्यमंत्री हैं और बिहार में उनका अच्छा खासा असर है. भाजपा उनकी सहयोगी पार्टी के रूप में सरकार में शामिल है. सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar) उप मुख्यमंत्री हैं. वहां 2020 में विधानसभा चुनाव होंगे. तैयार अभी से शुरू हो गई हैं. लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) जेल में हैं इसलिए RJD की ताकत पहले जैसी नहीं है. विभिन्न क्षेत्रों में अन्य पार्टियां प्रभावशाली हैं. कांग्रेस का भी ज्यादा दबदबा नहीं है. भाजपा वहां अपना जनाधार बढ़ाने में लगी है. इसी के तहत भाजपा के एक कोने से आवाज उठी है कि नीतीश कुमार को अब केंद्र में जिम्मेदारी संभालनी चाहिए. बिहार को भाजपा के लिए खाली छोड़ देना चाहिए.
गौरतलब है कि 2019 में दूसरी बार मोदी सरकार बनते समय नीतीश ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में JDU का एक मंत्री बनने की शर्त नहीं मानी थी और इस तरह JDU मोदी सरकार से बाहर रही. बिहार में नीतीश कुमार सुविधाजनक तरीके से सरकार चला रहे हैं. उन्हें भाजपा का सहयोग लेना पड़ रहा है. भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं. नीतीश कुमार पहले कांग्रेस के गठबंधन से जुड़े थे. बाद में वह खेमा बदलकर एनडीए में शामिल हो गए और भाजपा से तालमेल कर लिया. अब भाजपा के भीतर से ही उन्हें चुनौती मिलने वाली है.
इस तरह भाजपा पूरे देश को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेते हुए समान विचारधारा वाली अन्य छोटी पार्टियों को बेअसर कर रही है. इसमें उसे सफलता भी मिल रही है. महाराष्ट्र में सत्ता तक पहुंचने के लिए उसने धुर दक्षिणपंथी उग्र विचारधारा वाली शिवसेना से हाथ मिलाया तो बिहार में धर्म निरपेक्ष छवि वाले नीतीश कुमार के साथ गठजोड़ किया. भाजपा के रणनीतिकारों को पूरा भरोसा है कि कभी न कभी बिहार में भी भाजपा सरकार बना ही लोगी. नीतीश कुमार कब तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे. निकट भविष्य में राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर नीतीश कुमार पर रहेगी. यह देखना रोचक होगा कि नीतीश कुमार भाजपा के राजनीतिक दाव से कैसे बचते हैं.