One Nation One Election in Hindi – मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में 100 दिन पुरे होने के बाद एक बार फिर से देश में कुछ नये ऐतिहासिक बदलाव करके विपक्ष समेत देश की जनता को भी सरप्राइज दिया है. 18 नवंबर दिन बुधवार को मोदी कैबिनेट ने कोविंद समिति के प्रस्तावों पर अपनी मुहर लगा दी है. मोदी कैबिनेट के द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से ‘एक देश एक चुनाव’ वाली कल्पना को धरातल पर उतारा जा सकता है.
इससे देश में बार बार चुनाव जैसी स्थितियों से छुटकारा मिलेगा और केंद्र सरकार व राज्य सरकार, दोनों को अपने अपने कार्यो को करने का भरपूर समय भी मिलेगा. इस समिति की सिफारिश के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हों सकते हैं और बाद में अर्थात 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव भी कराये जा सकते हैं. बता दें, चुनाव सुधारों के अंतर्गत देश में लोक सभा और विधान सभा चुनाव एक साथ कराने का मुद्दा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रह चुका हैं.
कब गठित हुई थी कोविंद समिति ?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में मोदी सरकार ने 2 सितंबर 2023 में ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए एक कमेटी बनाई थी. इस कमेटी ने 191 दिनों में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों व विशेषज्ञों से राय विचार करके मार्च में अपनी 18 हजार 626 पन्नो वाली एक रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को सौंपा था. उसी सिफारिश को मोदी कैबिनेट ने 18 सितंबर को अपनी स्वीकृति दे दी है. मोदी सरकार, केंद्रीय कैबिनेट द्वारा पारित इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में संसद में ला सकती है. यदि यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में बहुतम से पास हो जाती है तो फिर देश में एक साथ लोक सभा और विधान सभा के चुनाव कराना सम्भव होगा.
इससे पहले 1999 में तत्कालीन विधि आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में देश में प्रत्येक पांच वर्ष के अंतराल में लोक सभा और सभी विधान सभाओ के लिए एक समय में चुनाव कराने की सिफारिश किया था. बाद में वर्ष 2015 में एक संसदीय समिति ने लोक सभा और विधान सभाओ के चुनाव को एक साथ दो चरणों में कराने का परामर्श दिया था.
क्या है कोविंद समिति के प्रस्ताव में ? जानें, मुख्य बातें –
कोविंद कमेटी की सिफारिश के अनुसार पहले चरण में लोक सभा और विधान सभा के चुनाव होंगे जबकि दूसरे चरण में 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे.
- प्रथम चरण में लोक सभा के साथ साथ सभी राज्यों के विधान सभा के चुनाव हों
- द्वितीय चरण में लोक सभा एवं विधान सभा के साथ साथ साथ स्थानीय निकायों के चुनाव हों
- सभी राज्यों के विधान सभाओ के चुनाव का कार्यकाल अगले लोक सभा चुनाव अर्थात 2029 तक बढ़ा दी जाएं
- देश भर के सभी नागरिको के लिए समान मतदाता सूची हों
- देश के सभी नागरिको के लिए समान मतदाता पहचान कार्ड (वोटर आई कार्ड) हों
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली ‘कोविंद समिति’ की सबसे मुख्य बातों में कॉमन इलेक्टोरल रोल अर्थात समान मतदाता सूची तैयार करना है. इस समिति का कहना है कि इसी सूची को लोक सभा और विधान सभा एवं निकाय चुनावों में प्रयोग में लाया जाएं. वर्तमान में लोक सभा और राज्यों के विधान सभाओ के चुनाव कराने की कार्य केंद्रीय चुनाव आयोग करता है जबकि स्थानीय निकायों व पंचायतो का चुनाव राज्य चुनाव आयोग के हाथ में है. इस समिति ने इस प्रक्रिया में सुधार के लिए 18 संवैधानिक आवश्यक संशोधनों को गिनाया है. हालांकि उनमें अधिकांश के लिए राज्यों की विधानसभा की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है.
इससे पहले भी देश में एक साथ चुनाव हों चुके है
भारत में इससे पहले भी लोक सभा के साथ देश की विधान सभाओ के चुनाव हों चुके है अर्थात यह कोई नया नियम नहीं है और न ही अव्यवहारिक है. देश में वर्ष 1951 से लेकर वर्ष 1967 तक एक साथ चुनाव हुए थे. इस तरह देश में सत्रह वर्षो तक लोक सभा के साथ विधान सभाओ के चुनाव हों चुके है. वर्ष 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा के साथ विधानसभाओ के चुनाव भी हों चुके है.
वन नेशन, वन इलेक्शन के लाभ –
धन की बचत – इससे देश का धन बचेगा क्योकि चुनाव में बहुत सारा धन खर्च होता हैं. इस बार की लोक सभा चुनाव में लगभग 1.35 लाख करोड़ रूपये खर्च हुए थे जो कि पिछले चुनाव से बहुत अधिक था. वर्ष 2019 में हुए लोक सभा चुनाव में लगभग 60,000 करोड़ रूपये खर्च हुए थे. इतना ही नहीं ये आकड़े केवल केंद्रीय चुनावों के हैं, अगर इनमे राज्यों के हुए विधान सभाओ के चुनाव को भी जोड़ दिया जाएं तो यह आकड़ा कई गुना बढ़ जाएगा. ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू होने से चुनाव पर होने वाले इस भारी-भड़कम खर्च में बहुत अधिक कटौती होगी, जो देश के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान दे सकता हैं.
प्रशासनिक कार्यक्षमता का सदुपयोग – चुनाव पूर्व आचार संहिता लागू होने से प्रशासनिक कार्य जैसे नीति निर्माण व विकास कार्यो बुरी तरह से प्रभावित होते हैं अगर देश भर में केवल पांच वर्ष के अंतराल में एक बार ही चुनाव होगा तो इससे आचार संहिता वाली स्थितियों से बची जा सकती हैं और इससे कार्यो में वृद्धि होगी.
संसाधनों व प्रशासनिक मशीनरी की बचत – देश में वर्ष भर कही न कही चुनाव होता रहता हैं इससे प्रशासनिक मशीनरी व सुरक्षाबलों पर भरी दबाव पड़ता हैं. अगर एक चुनाव बार बार न होकर पांच वर्ष में एक बार होगा तो ऐसी स्थिति में संसाधनों और प्रशासनिक तंत्र पर दबाव में कमी आएगी.
जनता को नेताओ की लुभावने वादों से छुटकारा – एक बार चुनाव होने से जनता को लोक लुभावन वादों से छुटकारा मिलेगा क्योंकि इससे नेता भी जनता के सामने लम्बी अवधि की नीति अर्थात एजेंडा लाने को मजबूर होंगे क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उनके लिए अगला चुनाव पांच वर्ष ही आएगा.
निष्कर्ष : मोदी सरकार की कैबिनेट भले ही इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया हैं पर आगे का सफर आसान नहीं हैं. अभी इस प्रस्ताव को विधेयक का रूप देना होगा, विरोधी पार्टियों को साधना होगा तभी मंत्रिमंडल द्वारा पारित विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पारित कराना सम्भव होगा. इस समूचे प्रक्रिया में संविधान संशोधन से लेकर राज्यों की मंजूरी लेनी होगी तभी यह बदलाव धरातल पर दिखेगा.