एक बार फिर तारणहार बने सीएम गहलोत, हुड्डा ने खड़े किए हाथ तो रैली का पता बदलकर हुआ जयपुर!

जयपुर में होने वाली कांग्रेस की महारैली की तैयारियों में जुटे कांग्रेसी दिग्गज, कांग्रेसी रणनीतिकारों ने जयपुर में डाला डेरा, केन्द्रीय पदाधिकारी भी पहुंचे जयपुर, लेकिन सियासी गलियारों में एक ही चर्चा, दिल्ली से जयपुर कैसे आई ये राष्ट्रव्यापी रैली? आखिर एक बार फिर क्यों आलाकमान को याद आई खास सिपहसालार सीएम गहलोत की?

एक बार फिर तारणहार बने सीएम गहलोत
एक बार फिर तारणहार बने सीएम गहलोत

Politalks.News/Rajasthan. 12 दिसंबर को जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में मोदी सरकार की नीतियों और बढ़ती महंगाई के विरोध में होने वाली कांग्रेस (Congress) की राष्ट्रव्यापी ‘महंगाई हटाओ रैली’ की तैयारियां चरम पर हैं. सत्ता और संगठन की बैठकों का दौर जारी है. खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot)और प्रदेश प्रभारी अजय माकन (ajay makan) लगातार बैठक ले रहे हैं. आपको बता दें कि कांग्रेस की यह रैली पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाली थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Soniya Gandhi) के साथ पार्टी नेताओं की बैठक में इस रैली का आयोजन दिल्ली में करने का फैसला किया गया था. लेकिन अब यह रैली 12 दिसंबर को जयपुर में हो रही है, जिसका कारण दिल्ली में रैली करने की इजाजत नहीं मिलना बताया गया है.

लेकिन सियासी गलियारों में कांग्रेस की इस महारैली का पता बदलकर दिल्ली से जयपुर करने के पीछे दूसरा ही बड़ा सियासी कारण बताया जा रहा है. बता दें, इस तरह की राष्ट्रव्यापी रैलियां अभी तक दिल्ली में ही होती आई हैं. ऐसे में इस रैली को दिल्ली से बाहर भेजने के पीछे के सियासी कारण पॉलिटॉक्स बताने जा रहा है. आखिर क्यों आलाकमान का एक फोन अपने भरोसेमंद सिपहसालार सीएम अशोक गहलोत के पास आया और जयपुर में रैली की तैयारियां शुरू हो गईं.

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क्या रैली के फ्लॉप होने की थी रिपोर्ट?
सियासी गलिरायों में रैली के जुड़ी जो चर्चाएं हो रहीं है वो ये हैं कि, कांग्रेस न तो कोई क्षेत्रीय पार्टी है और न महंगाई कोई राजस्थान भर का मुद्दा है, फिर जयपुर में राष्ट्रीय नेतृत्व की रैली का क्या मतलब है? क्या संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली होती तो उसका अखिल भारतीय मैसेज नहीं जाता? क्या कांग्रेस को दबाने के लिए तृणमूल कांग्रेस और दूसरे प्रादेशिक क्षत्रप जो राजनीति कर रहे हैं उसका जवाब दिल्ली से नहीं दिया जाना चाहिए था? क्या इन सभी बातों को ध्यान में रखकर इस महारैली को दिल्ली में नहीं किया जाना चाहिए था? ऐसे में एक बड़ा कारण कांग्रेस के कुछ सूत्रों से निकलकर आया वो यह कि पार्टी ने जयपुर में रैली का फैसला इसलिए लिया क्योंकि दिल्ली में रैली फ्लॉप होने का खतरा मंडरा रहा था.

परमिशन का बहाना बना मोदी सरकार पर डाली जिम्मेदारी!
आपको बता दें, कांग्रेस की ओर से जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है कि रामलीला मैदान में रैली की इजाजत नहीं मिली है. मोदी सरकार ने षड्यंत्र करके महंगाई के खिलाफ होने वाली रैली की परमिशन नहीं दी है. लेकिन यह कोई ऐसा बड़ा कारण नहीं है, रामलीला मैदान में अगर परमिशन नहीं दी गई तो द्वारका में या रोहिणी के जापानी पार्क में या बुराड़ी के निरंकारी मैदान में यह रैली हो सकती थी. कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि असली कारण यह है कि कांग्रेस नेताओं ने तीन दिन में यह असेसमेंट कर लिया कि दिल्ली में भीड़ नहीं जुटेगी और इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का हाथ खड़े करना था. सूत्रों की मानें तो हुड्डा ने रैली के लिए भीड़ जुटाने से साफ इनकार कर दिया था.

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भूपेंद्र हुड्डा ने भीड़ जुटाने से कर दिया था मना!
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी विवेक बंसल ने एक बैठक में कहा कि, ‘एनसीआर के नेता ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने की कोशिश करें’ तो इस पर भूपेंद्र हुड्डा ने दो टूक अंदाज में प्रभारी से पूछा कि, ‘अलीगढ़ भी तो एनसीआर में आता है, वहां से कितनी भीड़ आएगी.’ आपको बता दें कि विवेक बंसल अलीगढ़ के हैं. कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि, असल में कांग्रेस की दिल्ली में पिछले दो दशकों में कोई भी रैली हुई है तो वो हुड्डा की बुलाई भीड़ से ही सफल होती रही है. लेकिन इस बार वे सहयोग से इनकार कर रहे थे. दिल्ली की रैली में हरियाणा के बाद सबसे ज्यादा भीड़ पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान से आती है. पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में दो-तीन महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं और सारे नेता उसकी तैयारी में जुटे हैं. ऐसे में उन्होंने भी दिल्ली में भीड़ जुटाने से एक तरह से हाथ खड़े कर दिए थे.

वहीं बात करें अकेली दिल्ली की तो दिल्ली में तो कांग्रेस संगठन पहले से रसातल में है. वहां से तो कांग्रेस को कोई उम्मीद हो भी नहीं सकती. अब बात करें हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के हाथ खड़े करने की तो हरियाणा में सोनिया गांधी की करीबी दिग्गज कांग्रेस नेत्री कुमारी शैलजा और हुड्डा के बीच चल रही खींचतान पर आलाकमान का ध्यान नहीं देना एक वजह माना जा रहा है. वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि हरियाणा कांग्रेस की टीम मोदी सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन को कंटिन्यू करने में जुटी है.

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फिर आलाकमान को याद आए सिपहसालार सीएम गहलोत!
अब जब कांग्रेस आलाकमान चारों तरफ से फंस गया तो उनको याद आई मारवाड़ के गांधी कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की. सूत्रों का कहना है कि, ‘सोनिया गांधी ने प्रभारी अजय माकन को दूत बनाकार भेजा और फिर माकन ने आलाकमान और सीएम गहलोत की फोन पर बात करवाई, बातचीत के दौरान सीएम गहलोत ने कहा यस मैम! और इसी के साथ जयपुर में कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी ‘महंगाई हटाओ रैली‘ की तैयारियां शुरू हो गईं.

आपको बता दें, यह पहला मौका नहीं है, इससे पहले भी सीएम अशोक गहलोत कई बार कांग्रेस के संकटमोचक रहे हैं. असम, कर्नाटक या गुजरात में सियासी संकट के समय भी आलाकमान के एक फोन पर वहां के विधायकों की जयपुर में तुरंत मजबूत बाड़ाबंदी की व्यवस्था कर दी गई थी. अब एक बार फिर जब कांग्रेस की बात का सवाल टकराया तो आलाकमान को फिर से सीएम गहलोत की याद आई. इससे पहले भी कांग्रेस ने भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ जो रैली की थी उस समय राजस्थान में कांग्रेस विपक्ष में थी और वहां के सभी नेताओं ने पूरी मेहनत करके दिल्ली में भीड़ जुटाई थी. इस बार की रैली में तो एक तरह से समूची प्रदेश कांग्रेस और सरकार जुट गई है तो ऐसे में रैली का ऐतिहासिक होना तय माना जा रहा है.

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