सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के फैसले को नेशनल कांफ्रेंस के दो सांसदों ने चुनौती दी है. जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा राष्ट्रपति के आदेश से समाप्त किया गया है और इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने धारा 370 का इस्तेमाल करते हुए जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाई है और यह फैसला असंवैधानिक है.
जम्मू-कश्मीर के अखबार कश्मीर टाइम्स के कार्यकारी संपादक ने भी राज्य में संचार सुविधाएं बंद करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने अपनी याचिका में मांग की है कि जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों और मीडिया के लोगों को आने-जाने की और संवाद भेजने की सुविधा होनी चाहिए. गौरतलब है कि कश्मीर में एक हफ्ते से भी ज्यादा समय से फोन और इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, जिससे पत्रकारों के लिए क्षेत्र के समाचार भेजना मुश्किल हो रहा है.
नेशनल कांफ्रेंस के बारामूला के सांसद मोहम्मद अकबर लोन और अनंतनाग के सांसद हसनैन मसूदी ने कहा है कि धारा 370 हटाने के लिए धारा 370 का ही इस्तेमाल किया गया है. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 (1) (डी) का विशेष प्रावधान धारा 370 के तहत ही समाप्त किया गया है. इस तरह धारा 370 में संशोधन किया गया है. इससे पहले कोई विचार विमर्श नहीं किया गया जम्मू-कश्मीर की जनता को भी विश्वास में नहीं लिया गया.
केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला उस समय किया है, जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है. इस तरह केंद्र सरकार ने गलत तरीके से देश के संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया है. जम्मू-कश्मीर को लेकर जो भी फैसले लिए जा रहे हैं, उसमें स्थानीय लोगों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा है. स्थानीय लोगों को रातोंरात इनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है.
याचिकाकर्ता सांसदों ने जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान को निरस्त करते हुए वहां अचानक भारतीय संविधान लागू करने के फैसले पर भी एतराज किया है. उन्होंने कहा कि यह कार्य क्रमबद्ध तरीके से आवश्यकतानुसार किया जाना था. इसके लिए राज्य के संविधान को निरस्त करने की आवश्यकता नहीं थी. केंद्र सरकार का राष्ट्रपति शासन के दौरान कानून के शासन के नाम पर संघीय ढांचे में फेरबदल करने का फैसला ठीक नहीं है.